दाग लग जाए, तो छुड़ाने के बाद भी थोड़ा बहुत दिखता रहता है। आम आदमी पार्टी
के सोमनाथ भारती के मामले में भी ये साफ दिख रहा है। #BASO भारत अक्षरा सोशल
ऑर्गनाइजेशन के कर्ताधर्ता भाई दीपक बाजपेयी ने बताया कि दिल्ली में #किताबगीरी और Mission #HealingTouch वो शुरू कर रहे हैं। गया,
अच्छा लगा कि इस तरह की शुरुआत को आम आदमी पार्टी की सरकार समर्थन कर रही है।
कार्यक्रम में अरविंद केजरीवाल को भी आना था। लेकिन, किन्ही वजहों से नहीं आ सके।
मनीष सिसौदिया पूरे समय रहे और कांग्रेस सांसद राजीव शुक्ला भी। कार्यक्रम में
दौरान दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल आईँ, बोलीं और बैठी भी रहीं।
लेकिन, इस बैठने में साफ दिखा कि स्वाति सोमनाथ भारती के बगल की खाली कुर्सी पर
नहीं बैठना चाह रही थीं। कार्यक्रम के बीच में जब स्वाति आईं, तो राजीव शुक्ला बोल
रहे थे। उनकी कुर्सी पर बैठ गईं। राजीव शुक्ला लौटे, तो स्वाति को उठना पड़ा।
लेकिन, स्वाति मोहित चौहान के बाद बैठे सोमनाथ भारती के बगल की खाली सीट से बच रही
थीं। आखिर में वो दूसरे किनारे पर पीछे से एक कुर्सी लगवाकर बैठीं। शायद ये भी वजह
हो सकती है कि स्वाति दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष हैं और दिल्ली महिला आयोग में
भी सोमनाथ की पत्नी ने शिकायत दर्ज कर रखी है। हो सकता है कि इसी वजह से स्वाति
मालीवाल, सोमनाथ भारती के बगल न बैठी हों।
देश की दशा-दिशा को समझाने वाला हिंदी ब्लॉग। जवान देश के लोगों के भारत और इंडिया से तालमेल बिठाने की कोशिश पर मेरे निजी विचार
Thursday, April 28, 2016
Sunday, April 24, 2016
आजादी का गला घोंटने की कोशिश!
जवाहरलाल
नेहरू विश्वविद्यालय के अध्यक्षों का काफी शोहरत मिलती रही है। मान लिया जाता है
कि बौद्धिक तौर पर वो काफी आगे होते हैं। लेकिन, इस अध्यक्ष ने पिछले सारे
अध्यक्षों की बौद्धिक सीमा से आजादी हासिल कर ली है। जवाहरलाल नेहरू छात्रसंघ
अध्यक्ष #KanhaiyaKumar ने तो वो कर दिखाया है जो, अब तक कोई न कर सका था। कन्हैया कुमार ने
देश के कुछ लोगों को आजादी-आजादी का नारा देकर ऐसा दिमागी कुंद कर दिया है कि वही
अब उन खास लोगों को हर तरह की आजादी दिलाने वाला मसीहा नजर आ रहा है। वो नौटंकी का
देश का सबसे बड़ा उस्ताद बन गया है। ताजा नौटंकी में उसे बताया कि उसे जेट एयरवेज
की फ्लाइट में साथी यात्री ने मारने की कोशिश की। अब कन्हैया को मारने की कोशिश और
वो भी गला दबाकर। इतना सुंदर सधी सुर्खियां बनीं। देखिए कन्हैया का गला दबाकर
मारने की कोशिश। कन्हैया मतलब आजादी हो रखा है। पैर से लेकर सिर के सहारे खड़े
होकर लोग कन्हैया की आजादी के साथ सुर मिला रहे हैं। इसलिए सीधे सुर्खी बन गई कि
आजादी का गला दबाकर मारने की कोशिश। अब ये भी कमाल ही है ना कि कन्हैया के बगल की
सीट पर एक भाजपाई को सीट मिली। मतलब कितनी बड़ी साजिश रही होगी। अब जाहिर है कि
इतनी बड़ी साजिश है, तो इसमें कोई छोटे-मोटे लोग तो होंगे नहीं। तो, इसको थोड़ा और
बढ़ा देते हैं। ये हुआ सरकार भी कन्हैया को मारने की साजिश में शामिल। अच्छा इतने
से भी आजादी नहीं मिल पा रही है। तो इसे और एक हाथ आगे बढ़ा लो या ऐसे समझो कि ये
आज के समय में सबसे मारू टाइप की लाइन है। कन्हैया को मारने की संघ की साजिश।
नागपुर के इशारे पर जेट एयरवेज में सवार हुआ था यात्री।
कन्हैया
कुमार ने ट्वीट किया। इसके बाद सोशल मीडिया पर और साथ ही साथ टीवी पर भी चल पड़ा
कि कन्हैया कुमार को गला दबाकर मारने की कोशिश की गई। जरा सा भी पड़ताल नहीं किया
गया कि आखिर कैसे ये संभव है कि घनघोर सुरक्षा वाली जगह पर कन्हैया को मारने की
साजिश की जाए। और अगर की गई है तो, कम से कम उस तथाकथित तौर पर कन्हैया का गला
दबाने वाले यात्री के बारे में भी पड़ताल कर लेते। पड़ताल हुई। लेकिन, तब तक तो
टीवी चैनलों के स्क्रीनशॉट के हवाले से कन्हैया और कन्हैया के बहाने देश में आजादी
का गला दबाने की साजिश सोशल मीडिया में वायरस की तरह फैल गई। आजादी चाहने वाले के
समर्थक सोशल मीडिया पर लिखने लगे कि ये रोजगार और शिक्षा जैसे मामलों पर बात न
करने देने की साजिश है। आजादी के तथाकथित समर्थक ये भी बता रहे हैं कि जनता को
हिंदू मुसलमान के दायरे से बाहर न निकलने देने की ये साजिश है। कमाल है। इस तरह की
बेवकूफ बनाने वाली साजिश इस देश में अद्भुत तरीके से हो रही है। लगभग समाप्त हो
चुके वामपंथी ये फैला रहे हैं कि कन्हैया अकेला पड़ रहा है। और तुरंत ही ये भी बता
रहे हैं कि देश कन्हैया को लेकर आंदोलित है। उसके साथ खड़े होने की जरूरत है। #StandWithJNU टाइप हैशटैग फिर
झाड़पोंछकर निकाल लिया गया है। अब बताइए भला इसमें इस हैशटैग की क्या उपयोगिता है। ऐसे अपील जारी हो रही है कि जैसे देश के भीतर आजादी
खतरे में है। अच्छा ये हुआ कि मीडिया ने ही थोड़ी देर से सही लेकिन, पड़ताल की। खबर
लिखने से पहले सभी पक्षों से बात की जो जरूरी शर्त थी वो पूरी हुई। इससे पता चला
कि कन्हैया अव्वल दर्जे का झूठा है। कोई हत्या की साजिश नहीं थी। कोई गला दबाने की
कोशिश नहीं हुई। पैर लगने से सहयात्री से झगड़ा हुआ। जेट एयरवेज ने दोनों को उतार
दिया। मुंबई-पुणे के हवाई जहाज में जिस सहयात्री पर कन्हैया का गला दबाने का आरोप
लगा है। वो टीसीएस का कर्मचारी है। तैंतीस साल के मानस ज्योति डेका ने बताया है कि
ये सिर्फ प्रचार पाने का तरीका है। अब ये भला कोई भी कैसे मान सकता है कि किसी
साजिश के तहत कन्हैया का गला दबाने के लिए एक सॉफ्टवेयर कंपनी के कर्मचारी को
तैयार किया जाएगा। उसे जहाज पर कन्हैया के बगल की सीट दिलाई जाएगी। और हवा में गला
दबाकर इसे और ज्यादा फिल्मी बनाने की पटकथा लिखी जाएगी। दरअसल मुश्किल ये भी है कि
वामपंथी ज्यादातर कलाकारी के चक्कर में फिल्मी ही हो जाते हैं। और इसका असर इस नए
वामपंथी नेता की हर हरकत से साफ झलक रहा है। इसीलिए ये जुझारू वामपंथी नेता ट्वीट
भी इसी अंदाज में करता है कि फिर से और इस बार एयरक्राफ्ट के अंदर एक आदमी ने मेरा
गला दबाने की कोशिश की। भला गला दबाकर मारने की चाहत रखने वाला इतना मौका देगा कि
वो ट्वीट कर सके। इस नौटंकी से आजादी की देश को बड़ी सख्त जरूरत है।
Saturday, April 23, 2016
जैसे को तैसा!
Xinhua एजेंसी पर Uighar खोजने पर ये मिला |
किसी भी दिन शायद ही ऐसा होता हो, जब सोशल मीडिया के जरिये आप तक कोई
ऐसा संदेश न पहुंचता हो, जिसे पूरी दुनिया में फैला देने की जरूरत बताई जाती हो।
अकसर वो संदेश निहायत बेवकूफाना ही होता है। लेकिन, चीन के dolcun isa डॉलकुन ईसा को भारतीय वीसा मिलने की खबर सचमुच पूरी दुनिया में फैलाने
लायक है। चीन के विद्रोही Uighur
ऊईघर समुदाय के नेता हैं डॉलकुन ईसा मदद देते
हैं। और डॉलकुन रहते जर्मनी में हैं। जर्मनी में ही रहकर वो दुनिया भर में ऊईघर
विद्रोहियों की मदद करते हैं। चीन का शिनजियांग प्रांत मुस्लिम बहुल है। और इस
प्रांत के लोग स्वतंत्रता और स्वायत्तता की लड़ाई लड़ रहे हैं। इन्हीं लोगों की
अगुवाई डॉलकुन ईसा Dolcun
Eesa करते हैं। डॉलकुन अपने राजनीतिक अधिकारों
के लिए हिंसक तरीके को जायज नहीं मानते हैं। लेकिन, चीन के तानाशाही शासन में किसी
भी तरह के अधिकार की बात करना चीन के खिलाफ जाना है। इसीलिए चीन ने डॉलकुन ईसा को
आतंकवादी घोषित कर रखा है। इसीलिए जब भारत ने डॉलकुन ईसा को दलाई लामा से मिलने के
लिए भारतीय वीसा देने का एलान किया, तो चीन ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। चीन के विदेश
मंत्रालय प्रवक्ता हुआ चुनाइंग Hua Chunying ने कहा कि “What I want to point out is that
Dolkun is a terrorist on red notice of the Interpol and Chinese police.
Bringing him to justice is due obligation of relevant countries.” डॉलकुन एक आतंकवादी है और चीन की पुलिस और इंटरपोल
की तरफ से डॉलकुन के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी है। माना जा रहा है कि
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद इस फैसले को अंजाम दिया है। और इसकी सबसे बड़ी
वजह चीन का अजहर मसूद को आतंकवादी घोषित करने में अड़ंगा लगाना है। चीन संयुक्त
राष्ट्र संघ में मसूद अजहर को प्रतिबंधित करने के फैसले में बाधा बना था। और भारत
के कड़े एतराज के बावजूद चीन ने कहाकि तकनीकी वजहों से Jaish-e-Muhammad chief Masood Azhar मसूद अजहर को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी नहीं
घोषित किया जा सकता है।
माना जा रहा है कि चीन की पाकिस्तान में आतंकवादी गतिविधियों को मदद
करने के खिलाफ कड़ा एतराज जताने का ये तरीका भारत ने निकाला है। इससे पहले 2009
में चीन के एक और ऊईघर नेता रेबिया कादिर Rebiya Kadeer को तत्कालीन
भारत सरकार ने वीसा नहीं दिया था। 2009 में डॉलकुन को दक्षिण अफ्रीका इसी वजह से
जाने की इजाजत नहीं मिली थी। चीन की मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, डॉलकुन 1990 में Toksu, Xinjiang में हुए आंतकी हमलों का गुनहगार है। डॉलकुन ने 1997 में चीन छोड़
दिया और जर्मनी में शरण ली। चीन ईसा के World Uyghur Congress पर
शिनजियांग में हिंसक गतिविधि का जिम्मेदार बताता है। खासकर 2009 में हुए भीषण दंगे
का मास्टरमाइंड, जिसमें 197 जानें गईं थीं। लेकिन, विश्व ऊईघर कांग्रेस ने इसे
पूरी तरह नकार दिया है। उनका कहना है कि वो ऊईघर दमन को दुनिया के सामने लाने की
कोशिश कर रहे हैं और ये आंदोलन पूरी तरह से अहिंसक है। अब वही विश्व ऊईघर कांग्रेस
28 अप्रैल को धर्मशाला में हो रही है। इसी के लिए डॉलकुन को भारतीय वीसा मिला है। चीन
की आंख की किरकिरी इसलिए भी बढ़ गई है कि इस विश्व ऊईघर कांग्रेस को आयोजित करने
वाली लोकतंत्र समर्थक संस्था के अध्यक्ष Yang Jianli यांग
जिनाली हैं, जो 1989 में Tiananmen
Square पर होने वाले छात्र प्रदर्शन में शामिल
थे। धर्मशाला में होने वाले विश्व ऊईघर कांग्रेस में दलाई लामा भी होंगे। लामा
पहले से ही चीन की आंख की किरकिरी हैं। चीन में तानाशाही होने की वजह से वैसे तो
चीन की खबरें ना के बराबर ही आती हैं। लेकिन, शिनजियांग प्रांत के अल्पसंख्यक ऊईघर
मुसलमान विद्रोहियों की तो खबरें दुनिया भर में जाने से रोकने की कोशिश चीन की
सरकार करती है। इस कदर कि इतनी बड़ी खबर CNN और Washington Post जैसे पश्चिमी मीडिया में भी ये खबर तलाशने पर मिली नहीं। जाहिर है फिर
चीन की Xinhua एजेंसी पर खबर कैसे मिलती। इंटरनेट सर्वर एरर बता
रहा है। सिर्फ भारतीय मीडिया ने इस खबर को सलीके से छापा है। इसलिए जरूरी है कि ये
खबर सबको पता चले। ये पता चले कि भारत सठे साठ्यंसमाचरेत् मुद्रा में आ गया है। भारत
ने पाकिस्तान के बलूचिस्तान में आजादी की मांग कर रही बलूच नेता नाएला कादरी Baloch nationalist leader Naela Qadri
Baloch को भी दिया। नाएला कनाडा में निर्वासन
में हैं। और वहीं से बलूच स्वतंत्रता आंदोलन चला रही हैं। चीन और पाकिस्तान, भारत
के दो ऐसे पड़ोसी देश हैं। जिन्होंने भारत के हर नरम लहजे को उसकी कमजोरी के तौर
पर देखा है। पहली बार इन दोनों को ये समझ आ रहा होगा कि आंतरिक मामलों में दखल
देना क्या होता है।
Friday, April 22, 2016
एक चुकी विरासत का शहजादा
राहुल गांधी को लेकर बार-बार ये कहा जाता है कि इतनी शानदार विरासत को
वो संभाल नहीं पा रहे हैं। ये बात इतनी बार और इतने तरीके से कही जा चुकी है कि
देश को राहुल गांधी पर अब नेता के तौर पर भरोसा हो ही नहीं पाता है। क्योंकि, देश
के लोगों को लगने लगा है कि राहुल गांधी ही दरअसल नाकाबिल हैं। जबकि, कांग्रेस की
और गांधी परिवार की विरासत बहुत समृद्ध है। इससे राहुल गांधी की नेतृत्व की क्षमता
पर सवाल और गंभीर होता जाता है। अब सवाल यही है कि क्या राहुल गांधी को सचमुच इतनी
शानदार विरासत मिली है। जिसे वो आगे नहीं ले जा पा रहे हैं। या दरअसल सच्चाई ये है
कि राहुल गांधी को एक चुकी हुई विरासत मिली थी। एक पार्टी के तौर पर भी और एक
परिवार के तौर पर भी।
राहुल गांधी की सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि राजनीतिक विश्लेषक और देश
की जनता आज के समय में उनकी काबिलियत की तुलना उनके पिता राजीव गांधी से कर रही
है। भले ही भारतीय जनमानस में राजीव गांधी की छवि एक गजब के नेता के तौर पर बनी हुई
है। जिसने सीधे प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली और देश का सबसे नौजवान प्रधानमंत्री
बन गया। लेकिन, विश्लेषक ये भूल जाते हैं कि दरअसल राजीव गांधी के अंदर भी नेतृत्व
का कतई कोई गुण नहीं था। होता तो वो ब्रिटेन से पढ़ाई करके भारत लौटने के बाद अपनी
मां इंदिरा के साथ राजनीति के गुर सीखते और देश को राजनीतिक तौर पर आगे ले जाने की
कोशिश करते। लेकिन, राजीव गांधी ने ऐसा कतई नहीं किया। राजीव गांधी लौटकर सरकारी
इंडियन एयरलाइंस के पायलट बन गए। और ये कोई बताने की जरूरत तो है नहीं कि जिस
सत्ताधारी परिवार से वो आते थे। उसमें पायलट बनने की उनमें भले सारी योग्यता रही
हो। दरअसल योग्यता की कोई जरूरत थी नहीं। 1980 में अगर संजय गांधी की विमान
दुर्घटना में मृत्यु न हुई होती, तो शायद राजीव गांधी चुपचाप विमान उड़ाते रहते और
देश शायद ही उन्हें प्रधानमंत्री के तौर पर याद कर पाता। राहुल गांधी पर अकसर ये
आरोप लगता है कि वो अपनी पारिवारिक अमेठी सीट से बाहर शायद ही चुनाव जीत सकें।
लेकिन, ये कहने वाले भूल जाते हैं कि राजीव गांधी भी 1980 में संजय गांधी की
मृत्यु के बाद उनकी पारिवारिक सीट से ही जीतकर आए थे। हालांकि, उस समय देश में जो
स्थिति थी, उसमें राजीव गांधी कहीं से भी चुनाव लड़ते और जीत जाते। राजीव गांधी की
उपलब्धि के तौर 1982 के एशियन खेलों को कराना भी बताया जाता है। उस समय राजीव
गांधी कांग्रेस पार्टी के महासचिव थे। लेकिन, क्या राजीव गांधी ने कोई ऐसी विरासत
दी थी, जिसे लेकर ये कहा जाए कि गांधी परिवार या कांग्रेस की समृद्ध विरासत राहुल
गांधी को मिली थी, लेकिन, वो इसे संभाल नहीं पाए। राजीव गांधी अगर प्रधानमंत्री बन
सके तो उसके पीछे इंदिरा गांधी की हत्या की बुनियाद पर मिला जबर्दस्त बहुमत था।
अगर ऐसे प्रधानमंत्री बनना होता, तो सोनिया गांधी 2009 में राहुल गांधी को
प्रधानमंत्री बना सकती थीं। और कल्पना करके देखिए कि कभी-कभी ही सही लेकिन, राहुल
जब बांहें चढ़ाते, कुछ चुने मुद्दों पर गुस्साते नजर आते, तो क्या जनता के बीच
उनकी छवि मनमोहन सिंह से बेहतर होती या नहीं। ये बात मैं इसलिए कह रहा हूं कि
राहुल गांधी जब प्रधानमंत्री की कुर्सी पर होते, तो निश्चित तौर पर इस देश की जनता
में एक बड़ा वर्ग और खासकर सत्ता से चिपके रहने वाले कांग्रेसी नेताओं का एक बड़ा
वर्ग तो निश्चित तौर पर राहुल गांधी को महानतम प्रधानमंत्री बनाने के सैकड़ों
नुस्खे खोजकर उसे अमल में ला देता। क्योंकि, प्रधानमंत्री के तौर पर राजीव गांधी
ने कुछ ऐसा नहीं किया था। जो खास हो। लेकिन, राजीव गांधी की बात होते ही नए भारत
का निर्माता टाइप विशेषण राजीव गांधी के लिए कहा जाता है।
राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते ही भोपाल गैस कांड हुआ था। ये इतना
बड़ा धब्बा है कि किसी भी नेता के सारे जीवन को कलंकित करने के लिए काफी था। लेकिन,
भोपाल गैस कांड के बाद भी राजीव गांधी की छवि बेदाग नेता की ही रही। बोफोर्स
घोटाला भी राजीव गांधी के समय में ही हुआ। उसी की वजह से 1989 में वी पी सिंह
सत्ता में आए। ये राजीव गांधी ही थे जिनके समय में शाहबानो का मामला सामने आया। ये
542 में से 411 सीटें पाकर प्रचंड बहुमत वाली कांग्रेस थी। सोचिए इतने प्रचंड
बहुमत वाली सरकार के मुखिया होने के बावजूद राजीव गांधी देश के लिए क्या खास कर
पाए। फिर भी राजीव गांधी को भारत रत्न से नवाज दिया गया। दरअसल इसी सब वजह से राहुल
गांधी पर ये दबाव बनता है कि वो इतनी बड़ी विरासत संभाल नहीं पाए। राहुल गांधी की
डिग्रियों पर कई बार सुब्रमण्यम स्वामी सवाल उठा चुके हैं। लेकिन, शायद ही कभी इस
बात की चर्चा हुई हो कि राजीव गांधी 1965 तक ट्रिनिटी कॉलेज, कैंब्रिज में पढ़ने
के बावजूद अपनी डिग्री पूरी नहीं कर सके। विकीपीडिया पर अभी भी ये साफ लिखा हुआ
दिखता है। ये राजीव गांधी ही थे जिन्होंने एक बयान दिया था कि बड़ा पेड़ गिरता है,
तो धरती हिलती ही है। राजीव गांधी का वो बयान अगर आज के समय में आया होता, तो 24
घंटे के टीवी चैनल और सोशल मीडिया ने राजीव गांधी को क्या से क्या बना दिया होता। राजीव
गांधी का वो वीडियो अब उपलब्ध है। उसे देखकर साफ लगता है कि राहुल गांधी दरअसल उसी
विरासत को संभाल रहे हैं। जो उन्हें मिली थी। लेकिन, मीडिया आंदोलन के इस समय में
राहुल गांधी नाकाम साबित हो रहे हैं। जबकि, सच्चाई यही है कि राहुल गांधी राजनीति
में आने के अनिच्छुक होने के बावजूद अपनी हर कोशिश कर रहे हैं कि वो कांग्रेस के
नेता बन सकें। दिक्कत बस इतनी है कि उनके पिता को प्रचंड बहुमत वाली सरकार मिल गई
थी। उनके पिता के समय में मीडिया ऐसा नहीं था जो छोटी-छोटी बातों पर किसी नेता को
धूल में मिला देता है। या फिर आसमान में खड़ा कर देता है। दरअसल राजीव गांधी उस
समय के नेता थे, जब कांग्रेस के निष्ठावान लोगों का देश भारत हुआ करता था। उसमें
सबसे बड़ी सेंध लगाने का काम विश्वनाथ प्रताप सिंह ने किया था। लेकिन, लिट्टे ने
जिस तरह से राजीव गांधी की निर्मम हत्या कर दी। उससे राजीव गांधी पर लगे सारे दाग
धुल गए। राजीव गांधी के समय से स्थितियां एकदम उलट हैं। दरअसल राहुल गांधी को
विरासत में पाने के लिए खास बचा नहीं है और राहुल गांधी की परवरिश ऐसी हुई नहीं है
कि वो कांग्रेस को नए सिरे से लोगों के करीब पहुंचा सकें। इस समय न कांग्रेस के
प्रति देश के लोगों में कोई उत्साह सम्मान बचा है ना गांधी परिवार के प्रति। इसीलिए
मुझे लगता है कि राजनीतिक विश्लेषकों और देश की जनता को राहुल गांधी की समीक्षा एक
समृद्ध विरासत वाले राजकुमार की बजाए एक चुकी हुई विरासत के शहजादे के तौर पर करनी
चाहिए। तब शायद ज्यादा बेहतर समीक्षा राहुल गांधी की हो सकेगी।
Sunday, April 17, 2016
सत्ता आने के साथ समाज की समझ घटती जाती है
दैनिक जागरण में 18 अप्रैल को प्रकाशित |
दूसरे
पक्ष का अनुभव हुआ, जब नोएडा सिटी सेंटर से मेट्रो पकड़ी। चिलचिलाती गर्मी में
सीढ़ियों से नीचे तक कतार लगी थी। जबरदस्त भीड़ थी। दो लाइनों में भी सीढ़ी खत्म
होने के बाद भी कतार में खड़े होना पड़ा। कतार में ही एक पुराने सहयोगी मिल गए। वो
भी मीडिया में ही हैं। दफ्तर जा रहे थे। मेट्रो ट्रेन आई। हम लोग लपककर सीट पा गए।
थोड़ी सीट मिलने के दंभ में थे कि अचानक सोमराज अपना बैग चेक करने लगे। पूरा बैग
चेक करने के बाद समझ में आया कि पर्स गायब हो चुका था। फिर मैंने उनको सलाह दी कि
सबसे पहले #FIR कराइए
क्योंकि, #PANCARD #ADHAARCARD #DebitCard बनवाने के लिए उसकी जरूरत होगी। वो लौटे। लौटने के बाद पता चला कि उसी
दौरान दस पंद्रह ऐसे मामले सामने आए। कई लोगों ने पर्स चोरी जाने के बाद भी लौटना
जरूरी नहीं समझा होगा। पुलिस का अनुमान था कि भीड़ ज्यादा होने की वजह से ये घटना
ज्यादा बढ़ी है। #OddEven का ये बुरा असर तो कभी हमारी कल्पना में भी नहीं था। मुझे लगता है कि
अरविंद केजरीवाल शायद अब जनता की नब्ज समझ नहीं पा रहे हैं। और जिस तरह से दिल्ली
के दिल से तैयार होने वाला विज्ञापन दिखा रहे हैं। वो दिल्ली के लोगों को चिढ़ाता
नजर आ रहा है। इस चिलचिलाती गर्मी में कार चलने वालों की कार छीनकर वो कार वालों
को बुरी तरह से नाराज कर ही रहे हैं। मेट्रो और बसों में ज्यादा भीड़ बढ़ने से उन
लोगों को भी नाराज कर रहे हैं। लेकिन, सत्ता के साथ ये हो जाता है। समाज की समझ कम
होती जाती है।
Monday, April 11, 2016
दलित-पिछड़े की पार्टी दिखने को बेकरार भाजपा
ताजा
बने प्रदेश अध्यक्षों में से पंजाब और उत्तर प्रदेश तो तुरंत चुनाव वाले राज्य
हैं। पंजाब में पार्टी ने दलित नेता विजय सांपला को पार्टी की कमान सौंपी है।
सांपला के बारे में बताया जाता है कि उन्होंने मंडियों में बोझ उठाने का काम किया
है। इसी तरह से उत्तर प्रदेश के नए अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्या के सबसे बड़े
विशेषणों में से एक अपने पिता के साथ चाय बेचना भी है। चाय बेचने वाला
प्रधानमंत्री बन गया की सफलता से भारतीय जनता पार्टी इस कदर उत्साहित दिख रही है
कि ज्यादातर नेताओं को जमीनी और बेहद कमजोर पृष्ठभूमि का साबित करने में कोई कसर
नहीं छोड़ रही है। और मीडिया को भी ऐसी सुर्खियां लुभाती हैं। इसीलिए केशव मौर्या
की नियुक्ति को सभी ने चाय बेचने से जरूर जोड़ा। वैसे केशव प्रसाद मौर्या का चयन
करके अमित शाह ने बेहतर रणनीति तैयार कर दी है। पहले के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत
बाजपेयी ने पिछले करीब चार सालों में उत्तर प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी को एक नई
धार दे दी थी। अब उसी जमीन को और बेहतर करने की जिम्मेदारी केशव प्रसाद मौर्या पर
होगी। केशव इलाहाबाद जिले की फूलपुर सीट से सांसद हैं। लेकिन, केशव की खासियत ये
है कि वो पिछड़ी कुशवाहा जाति से हैं। जो राजनीतिक तौर पर उत्तर प्रदेश में किसी
दल के साथ निष्ठावान नहीं है। बाबू सिंह कुशवाहा ही इस समाज के बड़े नेता था।
अच्छा है कि इस बार भाजपा ने पुरानी गलती न करके अपना नेता खड़ा करने का मन बनाया
है। हालांकि, उत्तर प्रदेश में भाजपा की सत्ता कल्याण सिंह से ही जुड़ी हुई है। जो
लोध जाति से आते हैं। लेकिन, इसके बावजूद कलराज सिंह और राजनाथ सिंह के चमकते
चेहरे उत्तर प्रदेश के पिछड़ी जाति के लोगों में भाजपा के अपनी पार्टी होने का
भरोसा नहीं जगा पाते हैं। जबकि, तेज तर्रार नेता और केंद्रीय मंत्री उमा भारती भी
लोध जाति से ही आती हैं। इस सबके बावजूद भारतीय जनता पार्टी सवर्णों की ही पार्टी
बनी रही। इसीलिए अब जब खुद अमित शाह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और सवर्ण
नहीं हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पिछडी जाति से हैं। उत्तर प्रदेश का
अध्यक्ष पिछड़ी जाति से होने भारतीय जनता पार्टी के सवर्णों की पार्टी होने की
अवांछित छवि से मुक्त करने में मददगार होगा। अच्छी बात ये है कि केशव पिछड़ी जाति
से हैं लेकिन, पिछड़ों के नेता नहीं हैं। केशव हिंदुत्ववादी नेता हैं। अशोक सिंघल
की छत्रछाया में पले-बढ़े केशव से इस वजह से सवर्ण भी कम बिदकेंगे। हालांकि, केशव
के लिए यही चुनौती भी है कि पार्टी की ब्राह्मण-बनिया वाली छवि से पिछड़ों-दलितों
की हितैषी पार्टी बनने के इस क्रम में सवर्ण खासकर ब्राह्मण नाराज न हो जाए। ये
इसलिए भी ज्यादा महत्वपूर्ण है कि लक्ष्मीकांत बाजपेयी की ही कुर्सी केशव मौर्या
को संभालनी है। केशव को इस बात का अंदाजा है। इसीलिए केशव ने शुरुआत बाजपेयी के
कार्यकाल की तारीफ से ही की है। इससे संकेत मिल रहे हैं कि लक्ष्मीकांत बाजपेयी को
राष्ट्रीय टीम में शामिल किया जा सकता है।
सिर्फ
उत्तर प्रदेश ही नहीं पंजाब और कर्नाटक में भी ब्राह्मण अध्यक्षों की जगह दलित और
पिछड़े नेता को अमित शाह ने भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष बनाया है। कर्नाटक में
प्रहलाद जोशी और पंजाब में कमल शर्मा भारतीय जनता पार्टी की कमान संभाल रहे थे। कर्नाटक
में तो बी एस येदियुरप्पा स्थापित रहे हैं। और इतने स्थापित रहे हैं कि इतने
भ्रष्टाचार के आरोप, नई पार्टी बनाने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी में येदियुरप्पा
का विकल्प तैयार नहीं हो सका है। इसलिए येदियुरप्पा के पिछड़ी जाति से होने से
ज्यादा उनका मजबूत जनाधार उनकी ताजपोशी की वजह बना। येदियुरप्पा ही नए बने प्रदेश
अध्यक्षों में अकेले बड़े जनाधार वाले नेता हैं। बाकी के सभी अध्यक्षों को अपने
राज्य का नेता बनने के लिए और अमित शाह की पार्टी की छवि बदलने की कोशिश को सफल
करने के लिए कड़ी मेहनत करना होगा। पंजाब में अकालियों के साथ भारतीय जनता पार्टी
की दो बार से सरकार है। अगर दिल्ली और बिहार के फैसले भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ
नहीं गए होते, तो पंजाब में बादल पिता-पुत्र की जोड़ी से किनारा करने का फैसला
अमित शाह ने उसी समय ले लिया होता। लेकिन, बदली परिस्थितियों में सत्ता विरोधी लहर
को कम करने के लिए एक दलित नेता विजय सांपला को प्रदेश अध्यक्ष बनाना बेहतर साबित
हो सकता है। आम आदमी पार्टी जिस तरह से पंजाब में आक्रामक है। उसमें भारतीय जनता
पार्टी को शहरी मतदाताओं के अलावा गांव में भी मतदाता समूह चाहिए था। और उस कमी को
विजय सांपला पूरी कर सकते हैं। तेलंगाना में पिछड़ी जाति से आने वाले के लक्ष्मण
और अरुणाचल प्रदेश में पूर्व सांसद तापिर गांव को अध्यक्ष की कुर्सी सौंपना भी
अमित शाह की पार्टी की छवि बदलने वाली कवायद को ही मजबूत करने की कोशिश दिखती है। ये
कोशिश सफल हुई, तो भारतीय जनता पार्टी मई 2014 से आगे भले न बढ़े लेकिन, कम से कम
उस जगह पर मजबूती से खड़ी रह सकती है। लेकिन, उत्तर प्रदेश के संदर्भ में सावधानी
बेहद जरूरी है कि मामला आधी छोड़ पूरी को धावै, आधी मिलै न पूरी पावै वाला न हो
जाए। क्योंकि, राजनीति में बहुत ज्यादा जाति जोड़ने पर जाति जुड़कर घटती ही जाती
है। लेकिन, छवि बदलने की अमित शाह की इस कोशिश की तारीफ की जा सकती है।
Thursday, April 07, 2016
विज्ञापन के बहाने मीडिया खरीद में लगी आम आदमी पार्टी
लग
रहा है कि दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसौदिया manish sisodia
बेहतर कर रहे हैं। लेकिन, अभी
अपने शहर इलाहाबाद का अखबार देखते हुए दैनिक जागरण में ये एक पन्ने का विज्ञापन
दिखा, तो मुझे संदेह हो रहा है कि ये काम
करने की नीयत है या काम करते हुए दिखने की। वैसे तो दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों को
सरकारी आदेश देने के लिए किसी अखबार में विज्ञापन की जरूरत क्या है। और अगर है भी
तो वो सिर्फ दिल्ली के अखबारों में विज्ञापन देने की है। Allahabad इलाहाबाद के अखबारों में
दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों को ध्यान दिलाने की कोशिश सिर्फ और सिर्फ Propaganda प्रोपोगैंडा
नजर आता है। तो क्या आम आदमी पार्टी और इसके नेता लोकलुभावन राजनीति को नए सिरे से
साबित कर रहे हैं। हर रोज मैं
इलाहाबाद की ई पेपर पढ़ता हूं, तो वहां छपे विज्ञापन पर सवाल खड़ा हुआ। लेकिन, जब
उसके बाद Facebook फेसबुक की मेरी पोस्ट पर देश के अलग-अलग हिस्से के लोगों ने बताया कि देश
में लगभग हिंदी पट्टी में हर जगह विज्ञापन गया है। मेरी फेसबुक पोस्ट पर लोगों की
जो टिप्पणी आई उसे भी लगा रहा हूं।
Shiv Om लिखते हैं They are literally worst thing of modern politics of
country who emerge by hype and propaganda ..it's ridiculous..
Ashotosh Tripathi लिखते हैं choro ki ek nai jamat hai jo bhedie aur siyar se bhi jada
dhoorta hai
Amit Jain लिखते हैं कि MP के अखबारों में भी है
Ramesh Verma ने बताया कि हिसार में भी आया है
Kamal Tiwari व्यंग्य करते हैं ढिंढोरा पीटना भी तो काम करने जैसा होता
है सर
Prem Kumar Sharma
कह रहे हैं daonik jagran ke sabhi edition. mein. dena hi thaa to delhi
and punjab mein dete..Punjab mein next yr election hai
Satish Mani Tripathi ने लिखा दिल्ली
जनता का धन आपिये अपने प्रचार में खर्च कर रहे हैं
Mohit Chopra की टिप्पणी थोड़ा हटकर Sir sasaram main bjp jagjeevan ram ji ki
jayanti nahi manayegi.... Noida main manayegi??? Sirf UP K DALIT SANSAD HI
UTTHAR KARENGE DALITO KA... YE DESH KI SARKAR HAI YA UP KI???? VISTAR, PRACHAR
YE MODI G NE HI TO SIKHAYA HAI
Swami Nandan कह रहे हैं कि झारखण्ड के अख़बार भी इससे अछूता नहीं
है
Vivek Rai अनुमान लगा रहे हैं बिहार
में यही विज्ञापन छपा है मै भी हैरान हूँ ............इसके लिए कम से कम 500000 ₹पाँच लाख लगा होगा
इससे मुझे तो यही लगा कि बाबा Ramdev रामदेव की ही तर्ज पर Arvind Kejriwal अरविंद
केजरीवाल भी अब विज्ञापन की आड़ में मीडिया की बोली लगा रहे हैं। काफी हद तक सफल
भी हैं। किसी भी अखबार में दिल्ली के बाहर दिल्ली के स्कूलों से संबंधित विज्ञापन
देना भी उसी नीति का नतीजा है। इससे पहले दिल्ली विधानसभा चुनाव के समय 92.7 BIG FM बिग एफएम के साथ ऐसे ही विज्ञापनों की श्रृंखला की थी।
जिसमें आम आदमी पार्टी की प्रचार होता विज्ञापन के तौर पर था। लेकिन, चैनल की RJ ऋचा अनिरुद्ध के आम आदमी पार्टी के पक्ष में लोगों से बात
वाला हिस्सा ऐसे काटकर लगाया गया था कि विज्ञापन की बजाय वो जनता की आवाज लगने
लगती थी। ये राजनीति बदलने आए थे। बदल रहे हैं।
Tuesday, April 05, 2016
देशभक्त मुसलमान नेताओं को नहीं लुभाता
मोहम्मद तंजील अहमद Mohammad Tanzil Ahmad के मां-बाप ने उनका नाम पता नहीं कितना सोचकर रखा
होगा। लेकिन, जब अंग्रेजी और हिन्दी में तंजील का मतलब समझने की कोशिश में ढेर
सारे शब्द मिले, तो साफ हो गया कि अल्लाह ने तंजील को किसी खास मकसद से धरती पर
भेजा रहा होगा। तंजील का मतलब अंग्रेजी में Revelation रेवलेशन और हिंदी में ईश्वरावेश,
इश्वरोक्ति, इलहाम, प्रकटीकरण, प्रकाश, पर्दाफाश, रहस्योद्घाटन मिलता है। और अगर इस्लाम
के संदर्भ में समझें, तो जिस प्रक्रिया से पवित्र संदेश मुहम्मद साहब तक पहुंचता
है, वही तंजील है। यह मूलत: अरबी भाषा का शब्द है। नाम से ही ढेर सारी विविधताओं को समेटे तंजील
को हत्यारों ने पूरी योजना के साथ मौत के घाट उतार दिया है। अब तक ये साफ नहीं हो
सका है कि तंजील की हत्या के पीछे कौन हैं। लेकिन, तंजील के देश की सुरक्षा एजेंसी
एनआईए के अधिकारी के तौर पर काम करने की वजह से आतंकवादी घटना से भी इनकार नहीं
किया जा रहा है। तंजील ऐसे अधिकारी रहे हैं, जिनके लिए ये बता पाना मुश्किल है कि
इस देश की किस आतंकवादी जांच में वो शामिल नहीं हैं। तंजील पचास साल के होने ही
वाले थे। लेकिन, देश के दुश्मनों को तंजील जैसे देशभक्त मुसलमानों का हर लमहा भारी
पड़ रहा था। इसीलिए एक शादी समारोह से लौटते समय मोटरसाइकिल सवार हत्यारों ने 22
गोलियां तंजील के शरीर में दाग दीं। इतनी बेरहमी से और ये पुख्ता करना कि गलती से
भी तंजील बच न जाएं, साबित करता है कि हत्यारे किस तरह के थे। हत्यारों के बारे
में अंदाजा लगाना थोड़ा आसान इसलिए भी हो जाता है कि नेशनल इन्वेस्टिगेटिव एजेंसी
के इस जांबाज अधिकारी ने ही इंडियन मुजाहिदीन के भारत में आतंकवादी हरकतों के लिए
जिम्मेदार प्रमुख यासीन भटकल को पकड़ा था और अभी भी उसकी जांच तंजील के ही पास थी।
पठानकोट आतंकवादी हमले की जांच में भी तंजील प्रमुख भूमिका में थे। पाकिस्तान से
आई टीम के साथ वही बात कर रहे थे। 2009 में एनआईए के बनने के बाद से बीएसएफ के
असिस्टेंट कमांडेंट तंजील एजेंसी के साथ जुड़ गए थे और लगभग हर मामले में प्रमुख
भूमिक में थे। तंजील की सबसे बड़ी ताकत उनके मुखबिर यानी सूत्र थे। मालदा से लेकर
पठानकोट तक जहां भी आतंकवादी घटनाएं हुईं, तंजील के जिम्मे वो जांच आई। पारसी और
उर्दू भाषा पर तंजील की गजब की पकड़ थी। अब एनआईए के अधिकारी की हत्या हुई है, तो
जरूर वो अपने जांबाज अधिकारी की हत्या से जुड़े हर तथ्य खोजेंगे। ये मुझे पूरा
भरोसा है। लेकिन, इस हत्या ने हिंदुस्तान के भयावह तौर पर सांप्रदायिक हो गए माहौल
की उजागर किया है। या ये कहें कि तंजील के नाम के एक मतलब प्रकटीकरण को साबित किया
है। हिंदुस्तान में इस कदर माहौल सांप्रदायिक है कि मुसलमान देशभक्त होता है, तो
वो देश के नेताओं के लिए गलती से भी तवज्जो की वजह नहीं बन पाता है। तंजील की मौत
नेताओं को इसीलिए नहीं लुभा रही कि वो देशभक्त मुसलमान था। इस देश में कितनी बार वीर अब्दुल
हमीद की चर्चा हो पाती है। अकसर लगता है कि हिंदुस्तान में नेताओं के लिए देशभक्त
मुसलमान की कदर नहीं हैं। क्योंकि, वो वोटबैंक नहीं है। मोहम्मद तंजील अहमद इसी देश के उन गंदी राजनीति
करने वाले नेताओं को भी आतंकवादियों से बचाने के लिए जान पर खेल गए।
सिर्फ थोड़ा सा पीछे जाइए। ग्रेटर नोएडा के एक गांव बिसाहडा में गाय
का मांस होने के भ्रम में एक मुसलमान अखलाक को मार दिया गया। जघन्य अपराध था। समाज
के लिए धब्बा था। पुलिस हरकत में आई। सभी आरोपियों को पकड़ लिया गया। लेकिन, वहां
ऐसे नेता पहुंच रहे थे। जैसे कोई उत्सव चल रहा हो। वजह साफ थी कि उसमें हर किसी को
राजनीति की, वोटबैंक की संभावना दिख रही थी। इसीलिए केंद्र से लेकर राज्य सरकार के
मंत्री तक और अरविंद केजरीवाल जैसे दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्री तक टूट पड़े थे। अखलाक
के परिवार में एक सैनिक भी था। ये बताकर नेता से लेकर मीडिया तक ऐसे साबित कर देना
चाह रहे थे। जैसे मुसलमान सैनिक के साथ देश के हिंदुओं ने ये बुरा सुलूक किया हो। गंदी
राजनीति करने वाले तो मुसलमानों को भारत माता की जय कहने पर भी इबादत अल्लाह के
सिवाय किसी और की नहीं, कहकर भड़काएंगे ही। लेकिन, क्या मुसलमान इसे नहीं समझेगा
कि उसके साथ क्या हो रहा है। देश में गंदी राजनीति करने वाले कितने सलीके से
मुसलमान को देश से काटकर अलग कर देना चाह रहे हैं। अब सवाल ये है कि क्या देशभक्त
हुआ मुसलमान मुसलमान के तौर पर नहीं रह जाता है। अभी हाल ही में जावेद अख्तर ने जब
भारत माता की जय बोला तो, उन्हें राज्यसभा में कहना पड़ा कि मैं जानता हूं कि इससे
मेरे ढेर सारे मित्र नाराज हो जाएंगे। इस देश में मुसलमान को देशभक्त दिखने की
इजाजत गंदी राजनीति नहीं दे रही है। एक छोटा सा उदाहरण और है। वैसे तो भारतीय जनता
पार्टी की राजनीति करने वाले हर मुसलमान भाजपा में शामिल होने के बाद सिर्फ भाजपाई
रह जाता है। जबकि, कांग्रेस में या दूसरे दलों में राजनीति करते वो बड़ा मुसलमान
नेता होता है। और तो और एमजे अकबर जैसे बड़े पत्रकार को भी जब भाजपा अच्छी लगने
लगती है, तो इस देश में गंदी राजनीति करने वाले अकबर के सच्चे और अच्छे मुसलमान
होने को धीरे से बोलने लगते हैं। नजमा हेपतुल्ला की मुसलमानों के बीच मान्यता
क्यों नहीं बन पाती। मोहम्मद तंजील की हत्या के बहाने इसका प्रकटीकरण होना जरूरी
है। हिंदुस्तान दुनिया में अकेला ऐसा देश है, जहां मुसलमान पराया नहीं है। वो
इबादत के लिए मक्का मदीना देखता होगा। वो उनका मंदिर हो सकता है। घर हिंदुस्तान ही
है। और तंजील जैसे लाखों मुसलमान अपनी जिम्मेदारी बड़े सलीके से निभा रहे हैं।
लेकिन, गंदी राजनीति के साथ खड़े होने वाले मुसलमान इन बहुतायत मुसलमानों का अपमान
करते हैं। मुसलमानों के बीच घुस गए आतंकवादियों के नेटवर्क को ध्वस्त करने का काम
भी मोहम्मद तंजील जैसे जांबाज मुसलमान देशभक्त अधिकारी ही कर रहे हैं। लेकिन, इस
तरह से बात करने से गंदी राजनीति करने वालों का वोटबैंक नहीं बन पाता। इसलिए वो
हमेशा हिंदु-मुसलमान होने पर ही राजनीति करते हैं। बाटला हाउस एनकाउंटर तो सबको
याद ही होगा। वहां सिर्फ इसलिए इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा की मौत पर भी राजनीति
होने लगी थी। क्योंकि, हिंदु मुसलमान उसमें मिल गया था। फिर क्या था नेता इस कदर
गिरे कि मोहन चंद्र शर्मा के एनकाउंटर को ही फर्जी ठहराने की कोशिश की। हालांकि,
बाद में अदालत ने आतंकवादियों के साथ हुई मुठभेड़ को असली माना था। लेकिन, सबसे
बड़ा सवाल यही है कि कैसे सिर्फ हिंदु मुसलमान को वोटबैंक समझकर इंडियन मुजाहिदीन
के आतंकवादियों को मारने दिल्ली पुलिस के उस इंस्पेक्टर को ही गलत करार देने की
कोशिश की जो, खुद आतंकवादियों की गोली का शिकार हो गया। राज करने के लिए यही गंदी
नीति दुनिया में हिंदुस्तान की पहचान बन गई है। हिंदु मुसलमान मिलकर अगर नेताओं की
ये गंदी राजनीति बदल सके, तो मोहम्मद तंजील को असली श्रद्धांजलि यही होगी और उनका
मरना भी तंजील मतलब प्रकाश बन जाएगा।
Sunday, April 03, 2016
पानी पर धारा 144
4 अप्रैल 2016 को दैनिक जागरण के संपादकीय पृष्ठ पर |
Latur लातूर से लगता
है कि ये देश के एक इलाके में पानी की कुछ कमी हो गई है। इससे हमारी सेहत पर कितना
फर्क पड़ेगा। क्योंकि, ज्यादातर शहरी भारत तो मजे से बोतलबंद पानी पी ले रहा है।
या फिर घर में कितने भी खराब पानी को मशीन से साफ करके पी ले रहा है। लेकिन,
स्थिति इतनी भयावह हो चुकी है कि देश में पानी के भंडार Water Reservoir की बात करें, तो ये पिछले
दस सालों के औसत से भी कम हो गया है। पिछले साल से ही तुलना कर लें, तो ये उससे भी
उनतीस प्रतिशत कम जल भंडार देश में है। इसको ऐसे समझें कि देश के 91 जल भंडारों
में 29 प्रतिशत से भी कम जल बचा हुआ है। ये 91 जल भंडार देश की जरूरत का 62
प्रतिशत पानी जुटाते हैं। इन 91 जलाशयों की क्षमता करीब 158 बिलियन क्यूबिक मीटर की है। जिसमें अभी 10
मार्च 2016 तक के आंकड़ों के मुताबिक छियालीस बिलियन क्यूबिक मीटर से भी कम पानी
जमा है। इन महत्वपूर्ण जलाशयों में जल भंडारण की ये स्थिति साफ बताती है कि हालात
कितने खराब हो चुके हैं। पहले से ही लगातार दो साल से कम बारिश झेल चुके किसानों
के लिए ये खतरे की घंटी जैसा है। देश में पानी की खतरनाक होती स्थिति को अभी मार्च
महीने में आई संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट और पुख्ता करती है। इस रिपोर्ट में
कहा गया है कि 2020 तक दुनिया की चालीस प्रतिशत आबादी को पानी की कमी होगी। और अगर
भारत जल संरक्षण के उपाय सही से लागू नहीं करता है, तो यहां भी ये मुश्किल बढ़ती
दिख रही है। खुद मिनिस्ट्री ऑफ वॉटर रिसोर्सेज का आंकड़ा है कि दुनिया की 18
प्रतिशत आबादी भारत में है। लेकिन, सिर्फ 4 प्रतिशत इस्तेमाल करने लायक पानी है।
आजादी के समय यानी 1947 में हर भारतीय को साल भर में 6042 क्यूबिक मीटर पानी
उपलब्ध था। जो, 2011 में घटकर 1545 क्यूबिक मीटर ही रह गया है। 2025 तक पानी की
उपलब्धता तेजी से घटकर सिर्फ 1340 क्यूबिक मीटर रहने की आशंका है। और पानी की
उपलब्धता घटने के पीछे सबसे बड़ी वजह यही है कि हम भारतीय पानी को बचा नहीं पा रहे
हैं। बारिश का 65 प्रतिशत पानी समुद्र में चला जाता है और हम इसका इस्तेमाल नहीं
कर पाते हैं। खतरनाक ये भी है कि नदियों में मिलने वाला 90 प्रतिशत पानी प्रदूषित
है। ये आंकड़े साफ करते हैं कि भारतीय समाज और सरकार पानी की कमी की भयावहता को
अभी भी समझने को तैयार नहीं हैं। अच्छा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ड्रॉप
मोर क्रॉप का नारा दे रहे हैं। साथ ही मनरेगा के तहत कुएं और तालाब खुदवाने की भी
बात कही गई है। हालांकि, ये साफ नहीं है कि उस परि कितना हिस्सा खर्च होगा।
प्रदूषित पानी को साफ करके पीने की वजह से भी शहरी भारतीय पानी का जबर्दस्त तरीके
से बहा रहे हैं। हालांकि, इसका कोई अधिकारिक आंकड़ा नहीं है कि शहरों में लगे घरों
में पानी साफ करने की मशीन कितना पानी बर्बाद कर रही है। लेकिन, एक मोटे अनुमान के
मुताबिक, एक लीटर पानी साफ करने में आरओ मशीन करीब चार लीटर पानी खराब कर देती है।
यानी ये भी मुश्किल चुपचाप बड़ी होती जा रही है। जिस पर सरकार की शायद ही नजर हो। लेकिन,
ये नजर ज्यादा दिनों तक हटी रही, तो लातूर जैसे हालात देश भर में बनने में ज्यादा
वक्त नहीं लगेगा। क्योंकि, पानी तो लगातार बह रहा है, बर्बाद हो रहा है।
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