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बने प्रदेश अध्यक्षों में से पंजाब और उत्तर प्रदेश तो तुरंत चुनाव वाले राज्य
हैं। पंजाब में पार्टी ने दलित नेता विजय सांपला को पार्टी की कमान सौंपी है।
सांपला के बारे में बताया जाता है कि उन्होंने मंडियों में बोझ उठाने का काम किया
है। इसी तरह से उत्तर प्रदेश के नए अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्या के सबसे बड़े
विशेषणों में से एक अपने पिता के साथ चाय बेचना भी है। चाय बेचने वाला
प्रधानमंत्री बन गया की सफलता से भारतीय जनता पार्टी इस कदर उत्साहित दिख रही है
कि ज्यादातर नेताओं को जमीनी और बेहद कमजोर पृष्ठभूमि का साबित करने में कोई कसर
नहीं छोड़ रही है। और मीडिया को भी ऐसी सुर्खियां लुभाती हैं। इसीलिए केशव मौर्या
की नियुक्ति को सभी ने चाय बेचने से जरूर जोड़ा। वैसे केशव प्रसाद मौर्या का चयन
करके अमित शाह ने बेहतर रणनीति तैयार कर दी है। पहले के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत
बाजपेयी ने पिछले करीब चार सालों में उत्तर प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी को एक नई
धार दे दी थी। अब उसी जमीन को और बेहतर करने की जिम्मेदारी केशव प्रसाद मौर्या पर
होगी। केशव इलाहाबाद जिले की फूलपुर सीट से सांसद हैं। लेकिन, केशव की खासियत ये
है कि वो पिछड़ी कुशवाहा जाति से हैं। जो राजनीतिक तौर पर उत्तर प्रदेश में किसी
दल के साथ निष्ठावान नहीं है। बाबू सिंह कुशवाहा ही इस समाज के बड़े नेता था।
अच्छा है कि इस बार भाजपा ने पुरानी गलती न करके अपना नेता खड़ा करने का मन बनाया
है। हालांकि, उत्तर प्रदेश में भाजपा की सत्ता कल्याण सिंह से ही जुड़ी हुई है। जो
लोध जाति से आते हैं। लेकिन, इसके बावजूद कलराज सिंह और राजनाथ सिंह के चमकते
चेहरे उत्तर प्रदेश के पिछड़ी जाति के लोगों में भाजपा के अपनी पार्टी होने का
भरोसा नहीं जगा पाते हैं। जबकि, तेज तर्रार नेता और केंद्रीय मंत्री उमा भारती भी
लोध जाति से ही आती हैं। इस सबके बावजूद भारतीय जनता पार्टी सवर्णों की ही पार्टी
बनी रही। इसीलिए अब जब खुद अमित शाह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और सवर्ण
नहीं हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पिछडी जाति से हैं। उत्तर प्रदेश का
अध्यक्ष पिछड़ी जाति से होने भारतीय जनता पार्टी के सवर्णों की पार्टी होने की
अवांछित छवि से मुक्त करने में मददगार होगा। अच्छी बात ये है कि केशव पिछड़ी जाति
से हैं लेकिन, पिछड़ों के नेता नहीं हैं। केशव हिंदुत्ववादी नेता हैं। अशोक सिंघल
की छत्रछाया में पले-बढ़े केशव से इस वजह से सवर्ण भी कम बिदकेंगे। हालांकि, केशव
के लिए यही चुनौती भी है कि पार्टी की ब्राह्मण-बनिया वाली छवि से पिछड़ों-दलितों
की हितैषी पार्टी बनने के इस क्रम में सवर्ण खासकर ब्राह्मण नाराज न हो जाए। ये
इसलिए भी ज्यादा महत्वपूर्ण है कि लक्ष्मीकांत बाजपेयी की ही कुर्सी केशव मौर्या
को संभालनी है। केशव को इस बात का अंदाजा है। इसीलिए केशव ने शुरुआत बाजपेयी के
कार्यकाल की तारीफ से ही की है। इससे संकेत मिल रहे हैं कि लक्ष्मीकांत बाजपेयी को
राष्ट्रीय टीम में शामिल किया जा सकता है।
सिर्फ
उत्तर प्रदेश ही नहीं पंजाब और कर्नाटक में भी ब्राह्मण अध्यक्षों की जगह दलित और
पिछड़े नेता को अमित शाह ने भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष बनाया है। कर्नाटक में
प्रहलाद जोशी और पंजाब में कमल शर्मा भारतीय जनता पार्टी की कमान संभाल रहे थे। कर्नाटक
में तो बी एस येदियुरप्पा स्थापित रहे हैं। और इतने स्थापित रहे हैं कि इतने
भ्रष्टाचार के आरोप, नई पार्टी बनाने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी में येदियुरप्पा
का विकल्प तैयार नहीं हो सका है। इसलिए येदियुरप्पा के पिछड़ी जाति से होने से
ज्यादा उनका मजबूत जनाधार उनकी ताजपोशी की वजह बना। येदियुरप्पा ही नए बने प्रदेश
अध्यक्षों में अकेले बड़े जनाधार वाले नेता हैं। बाकी के सभी अध्यक्षों को अपने
राज्य का नेता बनने के लिए और अमित शाह की पार्टी की छवि बदलने की कोशिश को सफल
करने के लिए कड़ी मेहनत करना होगा। पंजाब में अकालियों के साथ भारतीय जनता पार्टी
की दो बार से सरकार है। अगर दिल्ली और बिहार के फैसले भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ
नहीं गए होते, तो पंजाब में बादल पिता-पुत्र की जोड़ी से किनारा करने का फैसला
अमित शाह ने उसी समय ले लिया होता। लेकिन, बदली परिस्थितियों में सत्ता विरोधी लहर
को कम करने के लिए एक दलित नेता विजय सांपला को प्रदेश अध्यक्ष बनाना बेहतर साबित
हो सकता है। आम आदमी पार्टी जिस तरह से पंजाब में आक्रामक है। उसमें भारतीय जनता
पार्टी को शहरी मतदाताओं के अलावा गांव में भी मतदाता समूह चाहिए था। और उस कमी को
विजय सांपला पूरी कर सकते हैं। तेलंगाना में पिछड़ी जाति से आने वाले के लक्ष्मण
और अरुणाचल प्रदेश में पूर्व सांसद तापिर गांव को अध्यक्ष की कुर्सी सौंपना भी
अमित शाह की पार्टी की छवि बदलने वाली कवायद को ही मजबूत करने की कोशिश दिखती है। ये
कोशिश सफल हुई, तो भारतीय जनता पार्टी मई 2014 से आगे भले न बढ़े लेकिन, कम से कम
उस जगह पर मजबूती से खड़ी रह सकती है। लेकिन, उत्तर प्रदेश के संदर्भ में सावधानी
बेहद जरूरी है कि मामला आधी छोड़ पूरी को धावै, आधी मिलै न पूरी पावै वाला न हो
जाए। क्योंकि, राजनीति में बहुत ज्यादा जाति जोड़ने पर जाति जुड़कर घटती ही जाती
है। लेकिन, छवि बदलने की अमित शाह की इस कोशिश की तारीफ की जा सकती है।
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