मोहम्मद तंजील अहमद Mohammad Tanzil Ahmad के मां-बाप ने उनका नाम पता नहीं कितना सोचकर रखा
होगा। लेकिन, जब अंग्रेजी और हिन्दी में तंजील का मतलब समझने की कोशिश में ढेर
सारे शब्द मिले, तो साफ हो गया कि अल्लाह ने तंजील को किसी खास मकसद से धरती पर
भेजा रहा होगा। तंजील का मतलब अंग्रेजी में Revelation रेवलेशन और हिंदी में ईश्वरावेश,
इश्वरोक्ति, इलहाम, प्रकटीकरण, प्रकाश, पर्दाफाश, रहस्योद्घाटन मिलता है। और अगर इस्लाम
के संदर्भ में समझें, तो जिस प्रक्रिया से पवित्र संदेश मुहम्मद साहब तक पहुंचता
है, वही तंजील है। यह मूलत: अरबी भाषा का शब्द है। नाम से ही ढेर सारी विविधताओं को समेटे तंजील
को हत्यारों ने पूरी योजना के साथ मौत के घाट उतार दिया है। अब तक ये साफ नहीं हो
सका है कि तंजील की हत्या के पीछे कौन हैं। लेकिन, तंजील के देश की सुरक्षा एजेंसी
एनआईए के अधिकारी के तौर पर काम करने की वजह से आतंकवादी घटना से भी इनकार नहीं
किया जा रहा है। तंजील ऐसे अधिकारी रहे हैं, जिनके लिए ये बता पाना मुश्किल है कि
इस देश की किस आतंकवादी जांच में वो शामिल नहीं हैं। तंजील पचास साल के होने ही
वाले थे। लेकिन, देश के दुश्मनों को तंजील जैसे देशभक्त मुसलमानों का हर लमहा भारी
पड़ रहा था। इसीलिए एक शादी समारोह से लौटते समय मोटरसाइकिल सवार हत्यारों ने 22
गोलियां तंजील के शरीर में दाग दीं। इतनी बेरहमी से और ये पुख्ता करना कि गलती से
भी तंजील बच न जाएं, साबित करता है कि हत्यारे किस तरह के थे। हत्यारों के बारे
में अंदाजा लगाना थोड़ा आसान इसलिए भी हो जाता है कि नेशनल इन्वेस्टिगेटिव एजेंसी
के इस जांबाज अधिकारी ने ही इंडियन मुजाहिदीन के भारत में आतंकवादी हरकतों के लिए
जिम्मेदार प्रमुख यासीन भटकल को पकड़ा था और अभी भी उसकी जांच तंजील के ही पास थी।
पठानकोट आतंकवादी हमले की जांच में भी तंजील प्रमुख भूमिका में थे। पाकिस्तान से
आई टीम के साथ वही बात कर रहे थे। 2009 में एनआईए के बनने के बाद से बीएसएफ के
असिस्टेंट कमांडेंट तंजील एजेंसी के साथ जुड़ गए थे और लगभग हर मामले में प्रमुख
भूमिक में थे। तंजील की सबसे बड़ी ताकत उनके मुखबिर यानी सूत्र थे। मालदा से लेकर
पठानकोट तक जहां भी आतंकवादी घटनाएं हुईं, तंजील के जिम्मे वो जांच आई। पारसी और
उर्दू भाषा पर तंजील की गजब की पकड़ थी। अब एनआईए के अधिकारी की हत्या हुई है, तो
जरूर वो अपने जांबाज अधिकारी की हत्या से जुड़े हर तथ्य खोजेंगे। ये मुझे पूरा
भरोसा है। लेकिन, इस हत्या ने हिंदुस्तान के भयावह तौर पर सांप्रदायिक हो गए माहौल
की उजागर किया है। या ये कहें कि तंजील के नाम के एक मतलब प्रकटीकरण को साबित किया
है। हिंदुस्तान में इस कदर माहौल सांप्रदायिक है कि मुसलमान देशभक्त होता है, तो
वो देश के नेताओं के लिए गलती से भी तवज्जो की वजह नहीं बन पाता है। तंजील की मौत
नेताओं को इसीलिए नहीं लुभा रही कि वो देशभक्त मुसलमान था। इस देश में कितनी बार वीर अब्दुल
हमीद की चर्चा हो पाती है। अकसर लगता है कि हिंदुस्तान में नेताओं के लिए देशभक्त
मुसलमान की कदर नहीं हैं। क्योंकि, वो वोटबैंक नहीं है। मोहम्मद तंजील अहमद इसी देश के उन गंदी राजनीति
करने वाले नेताओं को भी आतंकवादियों से बचाने के लिए जान पर खेल गए।
सिर्फ थोड़ा सा पीछे जाइए। ग्रेटर नोएडा के एक गांव बिसाहडा में गाय
का मांस होने के भ्रम में एक मुसलमान अखलाक को मार दिया गया। जघन्य अपराध था। समाज
के लिए धब्बा था। पुलिस हरकत में आई। सभी आरोपियों को पकड़ लिया गया। लेकिन, वहां
ऐसे नेता पहुंच रहे थे। जैसे कोई उत्सव चल रहा हो। वजह साफ थी कि उसमें हर किसी को
राजनीति की, वोटबैंक की संभावना दिख रही थी। इसीलिए केंद्र से लेकर राज्य सरकार के
मंत्री तक और अरविंद केजरीवाल जैसे दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्री तक टूट पड़े थे। अखलाक
के परिवार में एक सैनिक भी था। ये बताकर नेता से लेकर मीडिया तक ऐसे साबित कर देना
चाह रहे थे। जैसे मुसलमान सैनिक के साथ देश के हिंदुओं ने ये बुरा सुलूक किया हो। गंदी
राजनीति करने वाले तो मुसलमानों को भारत माता की जय कहने पर भी इबादत अल्लाह के
सिवाय किसी और की नहीं, कहकर भड़काएंगे ही। लेकिन, क्या मुसलमान इसे नहीं समझेगा
कि उसके साथ क्या हो रहा है। देश में गंदी राजनीति करने वाले कितने सलीके से
मुसलमान को देश से काटकर अलग कर देना चाह रहे हैं। अब सवाल ये है कि क्या देशभक्त
हुआ मुसलमान मुसलमान के तौर पर नहीं रह जाता है। अभी हाल ही में जावेद अख्तर ने जब
भारत माता की जय बोला तो, उन्हें राज्यसभा में कहना पड़ा कि मैं जानता हूं कि इससे
मेरे ढेर सारे मित्र नाराज हो जाएंगे। इस देश में मुसलमान को देशभक्त दिखने की
इजाजत गंदी राजनीति नहीं दे रही है। एक छोटा सा उदाहरण और है। वैसे तो भारतीय जनता
पार्टी की राजनीति करने वाले हर मुसलमान भाजपा में शामिल होने के बाद सिर्फ भाजपाई
रह जाता है। जबकि, कांग्रेस में या दूसरे दलों में राजनीति करते वो बड़ा मुसलमान
नेता होता है। और तो और एमजे अकबर जैसे बड़े पत्रकार को भी जब भाजपा अच्छी लगने
लगती है, तो इस देश में गंदी राजनीति करने वाले अकबर के सच्चे और अच्छे मुसलमान
होने को धीरे से बोलने लगते हैं। नजमा हेपतुल्ला की मुसलमानों के बीच मान्यता
क्यों नहीं बन पाती। मोहम्मद तंजील की हत्या के बहाने इसका प्रकटीकरण होना जरूरी
है। हिंदुस्तान दुनिया में अकेला ऐसा देश है, जहां मुसलमान पराया नहीं है। वो
इबादत के लिए मक्का मदीना देखता होगा। वो उनका मंदिर हो सकता है। घर हिंदुस्तान ही
है। और तंजील जैसे लाखों मुसलमान अपनी जिम्मेदारी बड़े सलीके से निभा रहे हैं।
लेकिन, गंदी राजनीति के साथ खड़े होने वाले मुसलमान इन बहुतायत मुसलमानों का अपमान
करते हैं। मुसलमानों के बीच घुस गए आतंकवादियों के नेटवर्क को ध्वस्त करने का काम
भी मोहम्मद तंजील जैसे जांबाज मुसलमान देशभक्त अधिकारी ही कर रहे हैं। लेकिन, इस
तरह से बात करने से गंदी राजनीति करने वालों का वोटबैंक नहीं बन पाता। इसलिए वो
हमेशा हिंदु-मुसलमान होने पर ही राजनीति करते हैं। बाटला हाउस एनकाउंटर तो सबको
याद ही होगा। वहां सिर्फ इसलिए इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा की मौत पर भी राजनीति
होने लगी थी। क्योंकि, हिंदु मुसलमान उसमें मिल गया था। फिर क्या था नेता इस कदर
गिरे कि मोहन चंद्र शर्मा के एनकाउंटर को ही फर्जी ठहराने की कोशिश की। हालांकि,
बाद में अदालत ने आतंकवादियों के साथ हुई मुठभेड़ को असली माना था। लेकिन, सबसे
बड़ा सवाल यही है कि कैसे सिर्फ हिंदु मुसलमान को वोटबैंक समझकर इंडियन मुजाहिदीन
के आतंकवादियों को मारने दिल्ली पुलिस के उस इंस्पेक्टर को ही गलत करार देने की
कोशिश की जो, खुद आतंकवादियों की गोली का शिकार हो गया। राज करने के लिए यही गंदी
नीति दुनिया में हिंदुस्तान की पहचान बन गई है। हिंदु मुसलमान मिलकर अगर नेताओं की
ये गंदी राजनीति बदल सके, तो मोहम्मद तंजील को असली श्रद्धांजलि यही होगी और उनका
मरना भी तंजील मतलब प्रकाश बन जाएगा।
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