दैनिक जागरण में 18 अप्रैल को प्रकाशित |
दूसरे
पक्ष का अनुभव हुआ, जब नोएडा सिटी सेंटर से मेट्रो पकड़ी। चिलचिलाती गर्मी में
सीढ़ियों से नीचे तक कतार लगी थी। जबरदस्त भीड़ थी। दो लाइनों में भी सीढ़ी खत्म
होने के बाद भी कतार में खड़े होना पड़ा। कतार में ही एक पुराने सहयोगी मिल गए। वो
भी मीडिया में ही हैं। दफ्तर जा रहे थे। मेट्रो ट्रेन आई। हम लोग लपककर सीट पा गए।
थोड़ी सीट मिलने के दंभ में थे कि अचानक सोमराज अपना बैग चेक करने लगे। पूरा बैग
चेक करने के बाद समझ में आया कि पर्स गायब हो चुका था। फिर मैंने उनको सलाह दी कि
सबसे पहले #FIR कराइए
क्योंकि, #PANCARD #ADHAARCARD #DebitCard बनवाने के लिए उसकी जरूरत होगी। वो लौटे। लौटने के बाद पता चला कि उसी
दौरान दस पंद्रह ऐसे मामले सामने आए। कई लोगों ने पर्स चोरी जाने के बाद भी लौटना
जरूरी नहीं समझा होगा। पुलिस का अनुमान था कि भीड़ ज्यादा होने की वजह से ये घटना
ज्यादा बढ़ी है। #OddEven का ये बुरा असर तो कभी हमारी कल्पना में भी नहीं था। मुझे लगता है कि
अरविंद केजरीवाल शायद अब जनता की नब्ज समझ नहीं पा रहे हैं। और जिस तरह से दिल्ली
के दिल से तैयार होने वाला विज्ञापन दिखा रहे हैं। वो दिल्ली के लोगों को चिढ़ाता
नजर आ रहा है। इस चिलचिलाती गर्मी में कार चलने वालों की कार छीनकर वो कार वालों
को बुरी तरह से नाराज कर ही रहे हैं। मेट्रो और बसों में ज्यादा भीड़ बढ़ने से उन
लोगों को भी नाराज कर रहे हैं। लेकिन, सत्ता के साथ ये हो जाता है। समाज की समझ कम
होती जाती है।
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