4 अप्रैल 2016 को दैनिक जागरण के संपादकीय पृष्ठ पर |
Latur लातूर से लगता
है कि ये देश के एक इलाके में पानी की कुछ कमी हो गई है। इससे हमारी सेहत पर कितना
फर्क पड़ेगा। क्योंकि, ज्यादातर शहरी भारत तो मजे से बोतलबंद पानी पी ले रहा है।
या फिर घर में कितने भी खराब पानी को मशीन से साफ करके पी ले रहा है। लेकिन,
स्थिति इतनी भयावह हो चुकी है कि देश में पानी के भंडार Water Reservoir की बात करें, तो ये पिछले
दस सालों के औसत से भी कम हो गया है। पिछले साल से ही तुलना कर लें, तो ये उससे भी
उनतीस प्रतिशत कम जल भंडार देश में है। इसको ऐसे समझें कि देश के 91 जल भंडारों
में 29 प्रतिशत से भी कम जल बचा हुआ है। ये 91 जल भंडार देश की जरूरत का 62
प्रतिशत पानी जुटाते हैं। इन 91 जलाशयों की क्षमता करीब 158 बिलियन क्यूबिक मीटर की है। जिसमें अभी 10
मार्च 2016 तक के आंकड़ों के मुताबिक छियालीस बिलियन क्यूबिक मीटर से भी कम पानी
जमा है। इन महत्वपूर्ण जलाशयों में जल भंडारण की ये स्थिति साफ बताती है कि हालात
कितने खराब हो चुके हैं। पहले से ही लगातार दो साल से कम बारिश झेल चुके किसानों
के लिए ये खतरे की घंटी जैसा है। देश में पानी की खतरनाक होती स्थिति को अभी मार्च
महीने में आई संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट और पुख्ता करती है। इस रिपोर्ट में
कहा गया है कि 2020 तक दुनिया की चालीस प्रतिशत आबादी को पानी की कमी होगी। और अगर
भारत जल संरक्षण के उपाय सही से लागू नहीं करता है, तो यहां भी ये मुश्किल बढ़ती
दिख रही है। खुद मिनिस्ट्री ऑफ वॉटर रिसोर्सेज का आंकड़ा है कि दुनिया की 18
प्रतिशत आबादी भारत में है। लेकिन, सिर्फ 4 प्रतिशत इस्तेमाल करने लायक पानी है।
आजादी के समय यानी 1947 में हर भारतीय को साल भर में 6042 क्यूबिक मीटर पानी
उपलब्ध था। जो, 2011 में घटकर 1545 क्यूबिक मीटर ही रह गया है। 2025 तक पानी की
उपलब्धता तेजी से घटकर सिर्फ 1340 क्यूबिक मीटर रहने की आशंका है। और पानी की
उपलब्धता घटने के पीछे सबसे बड़ी वजह यही है कि हम भारतीय पानी को बचा नहीं पा रहे
हैं। बारिश का 65 प्रतिशत पानी समुद्र में चला जाता है और हम इसका इस्तेमाल नहीं
कर पाते हैं। खतरनाक ये भी है कि नदियों में मिलने वाला 90 प्रतिशत पानी प्रदूषित
है। ये आंकड़े साफ करते हैं कि भारतीय समाज और सरकार पानी की कमी की भयावहता को
अभी भी समझने को तैयार नहीं हैं। अच्छा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ड्रॉप
मोर क्रॉप का नारा दे रहे हैं। साथ ही मनरेगा के तहत कुएं और तालाब खुदवाने की भी
बात कही गई है। हालांकि, ये साफ नहीं है कि उस परि कितना हिस्सा खर्च होगा।
प्रदूषित पानी को साफ करके पीने की वजह से भी शहरी भारतीय पानी का जबर्दस्त तरीके
से बहा रहे हैं। हालांकि, इसका कोई अधिकारिक आंकड़ा नहीं है कि शहरों में लगे घरों
में पानी साफ करने की मशीन कितना पानी बर्बाद कर रही है। लेकिन, एक मोटे अनुमान के
मुताबिक, एक लीटर पानी साफ करने में आरओ मशीन करीब चार लीटर पानी खराब कर देती है।
यानी ये भी मुश्किल चुपचाप बड़ी होती जा रही है। जिस पर सरकार की शायद ही नजर हो। लेकिन,
ये नजर ज्यादा दिनों तक हटी रही, तो लातूर जैसे हालात देश भर में बनने में ज्यादा
वक्त नहीं लगेगा। क्योंकि, पानी तो लगातार बह रहा है, बर्बाद हो रहा है।
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