Monday, February 02, 2015

हर्षवर्धन शांडिल्य

मैंने काफी समय पहले एक बार सोचा था कि अपना नाम हर्षवर्धन त्रिपाठी की जगह हर्षवर्धन शांडिल्य लिखना शुरू कर दूं। लेकिन, फिर नाम बदलने की नाना प्रकार की झंझटों से वो विचार त्याग दिया। वैसे इस विचार के पीछे मंशा यही थी कि जाति की बजाय गोत्र लिखूंगा तो जातिवाद को शायद एक धक्का दे सकूं। क्योंकि, गोत्र तो सभी जातियों में लगभग एक जैसे ही होते हैं। किसी न किसी ऋषि के नाम पर ही जातियों में गोत्र तय होते हैं। इसका ज्यादा विद्वान नहीं हूं। इसलिए ये चर्चा खत्म। लेकिन, अब लगता है कि अच्छा ही किया कि जातिनाम ही लिख रहा हूं। क्योंकि, अब तो गोत्र नाम से राजनीति हो रही है। और, गोत्र से जाति जोड़ देने से पूरी जाति का अपमान हो रहा है। और 'आप' कह रहे थे कि राजनीति बदलने आए हैं। बदलकर रहेंगे। लेओ, देखो कैसे बदल रही है राजनीति।

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