तेरह दिनों के
रामलीला मैदान में हुए भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की कवरेज करते-करते कब मैं अन्ना
भक्त जैसा कुछ हो गया था। इसका मुझे अंदाजा ही नहीं लगा। और शायद मेरे जैसे हजारों
लोग इसी भक्ति की अवस्था में पहुंच गए थे। ये स्वाभाविक था। अगर ये नहीं होता तो
अस्वाभाविक होता। मनुष्य वृत्ति के खिलाफ होता। इसीलिए जब मैं अन्ना की भक्ति की
अवस्था में पहुंचा तो मैं मानता हूं कि मुझमें मनुष्य वृत्ति ही है। देश से
भ्रष्टाचार मिटाने के लिए चल रहे उस आंदोलन की कमान अन्ना के हाथ में थी। लगता था
जैसे एक बूढ़े में महात्मा गांधी का पुनर्जन्म जैसा कुछ हो गया है। अनशन की हालत
में भी तिरंगा झंडा हाथ में थाम लेना। अनशन से शरीर भले ही कमजोर हो लेकिन, अन्ना
का मानस हर क्षण मजबूत होता दिखता था। और वही ताकत थी कि अन्ना हजारे के पीछे देश
का नौजवान टूटकर खड़ा था। टूटकर खड़ा था मतलब उस समय की व्यवस्था से पूरी तरह
हताश, निराश लेकिन, अन्ना हजारे के प्रति पूरी निष्ठा से उनके पीछे खड़ा। हर कोई
मैं हूं अन्ना चौबीस घंटे चौकन्ना, का नारा बुलंद कर रहा था। लोग अपना काम-धंधा
छोड़कर, उसकी कमाई निस्वार्थ भाव से अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के
लिए देने को तैयार थे। सचमुच लग रहा था कि महाराष्ट्र के रालेगण सिद्धि के इस
बूढ़े को देश ने वो सम्मान नहीं दिया जो उसे मिलना चाहिए था। वो अन्ना जो सेना में
ट्रक ड्राइवर था लेकिन, अपने गांव में लौटकर सारी बुराइयों को खत्म करके उस गांव
को आदर्श गांव बनाने का महान काम कर डाला था। वो अन्ना जो अविवाहित था। वो अन्ना
जो किसी प्रकार का लोभ नहीं रखता। वो अन्ना जो हर बार ये बताता था कि कैसे अन्ना
हजारे के आंदोलन से ढेर सारे मंत्रियों की कुर्सी चली गई। वो खुद ही ये भी बताते
थे कि गांव के मंदिर में ही एक कमरे में वो रहते हैं। एक गिलास, कटोरी, थाली।
इतना कमाल का
व्यक्तित्व कैसे इतने समय तक महाराष्ट्र की बुराइयों के बीच छिपा रहा। सवाल मेरे
मन में भी ये बार-बार आता रहा कि इतने अद्भुत व्यक्तित्व के अन्ना कभी महाराष्ट्र
में विदर्भ के किसानों के लिए इस तरह से क्यों नहीं खड़े हुए कि लोकपाल से पहले
वही देश का आंदोलन बन जाता। सवाल मेरे मन में ये भी आता है कि आखिर क्या वजह रही
होगी कि शरद पवार का भ्रष्टाचार अन्ना के लिए आंदोलन की वजह कभी क्यों नहीं बन
सका। समझ में तो ये भी मुझे नहीं आया कि आखिर अन्ना हजारे की वो बुलंद आवाज राज
ठाकरे के खिलाफ तब क्यों नहीं उठी, जब मुंबई और महाराष्ट्र के कुछ दूसरे हिस्सों
में क्षेत्रीय आधार पर मारपीट हो रही थी। मुझे लगा कि रही होगी कोई वजह। लेकिन, अब
अन्ना हजारे जागे हैं। शायद महाराष्ट्र में इतने सालों तक भ्रष्टाचार के खिलाफ कुछ
न कर पाने की कसक रही होगी कि वो देश से भ्रष्टाचार हटाने की लड़ाई लड़ने दिल्ली आ
गए हैं। इसीलिए मेरी अन्ना में भक्ति कम नहीं हुई। भक्ति जैसी तो नहीं लेकिन, गजब
के प्रभावी अन्ना हजारे के आसपास तिरंगा झंडा लहराने वाला हर कोई लगने लगा। जाहिर
है अरविंद केजरीवाल और किरन बेदी सबसे आगे तिरंगा लहरा रहे थे तो अन्ना के बाद सबसे
ज्यादा प्रभाव भी वही दोनों लोगों पर डाल रहे थे। लेकिन, किसे पता था कि ये दोनों
ही सिर्फ दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की आकांक्षा में अन्ना के अनशन के मंच पर हैं।
इन्हीं महत्वाकांक्षाओं में पहले अन्ना हजारे का मंच टूटा। फिर तो अन्ना हजारे भी
टूट गए। बोल दिया कि राजनीतिक चेलों से दूरी ही बनाए रखेंगे। दिल्ली का पूरा चुनाव
बीत गया। अन्ना ने वही भूमिका निभाई जो वो बरसों से निभा रहे थे। वो भूमिका थी
मौकापरस्ती वाली। वो भूमिका थी मौका देखकर चौका मारने वाली। वो भूमिका थी श्रेय
मिलने वाली जगह पर मुझे कुछ नहीं चाहिए का नारा बुलंद करने वाली। वो भूमिका थी
भीड़ जुटने का जुगाड़ न हो तो दिल्ली आने से बचने वाली। वो भूमिका थी मौके के
लिहाज से बयान बदलने वाली। विचार करता रहता हूं इसलिए किसी की भी भक्ति तो लंबे
समय तक मुझसे होती नहीं। विचार करता हूं तो सामने वाले के विचार बदलने की वजह पर
भी विचार कर लेता हूं। विचार करता हूं तो ये सोचा कि आखिर ये क्या था कि अरविंद
केजरीवाल के मुख्यमंत्री बनते ही अन्ना हजारे के वो प्रिय फिर से कैसे हो गए। इसका
मतलब तो यही हुआ कि अगर किरन बेदी मुख्यमंत्री हो गई होतीं तो वो पहले किरन बेदी
और धीरे-धीरे नरेंद्र मोदी के भी गुण गाते।
अन्ना के ताजा भूमि
अधिग्रहण बिल विरोधी आंदोलन को लेकर तमाम तरह की खबरें हैं। खबरें हैं कि एनडीटीवी
के पूर्व पत्रकार और पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह के कम्युनिकेशन
एडवाइजर रहे पंकज पचौरी रालेगण से अन्ना को लेकर दिल्ली आए। खबरें ये भी हैं कि
अन्ना चार्टर्ड प्लेन से आए और वो भी कांग्रेस नेता का। खबरें ये भी हैं कि
तिरंगा, वंदेमातरम और भारत माता की जय वाले रामलीला मैदान के मंच से इस बार
जंतर-मंतर का मंच लाल सलाम की पैरोकारी में बदल गया है। ये सब खबरें मैं झूठी
मानता हूं। फिर भी मेरा भरोसा ये बनता है कि अन्ना हजारे और उनकी शिष्य मंडली
मौकापरस्त है। अन्ना हजारे फिर कह सकते हैं कि मेरा क्या, मुझे कोई लोभ नहीं। मैं
तो सब निस्वार्थ कर रहा हूं। जाहिर है पत्नी, बच्चे हैं नहीं। धन की कामना अन्ना
को है नहीं तो, मेरा अन्ना को मौकापरस्त कहना मेरे ही पूरे व्यक्तित्व पर सवाल
खड़ा करता है। लेकिन, अगर ऐसा है तो फिर जिसने भी विवाह नहीं किया। जिसके भी
परिवार नहीं है। और जिसको भी धन का लोभ नहीं है वो सब महान हैं, संत हैं। देश के
सारे गृहस्थ ही इससे मुक्त नहीं हो पाते। लेकिन, पुत्रेष्णा और वित्तेष्णा के
अलावा लोकेष्णा भी होती है। और अन्ना हजारे यश की इसी कामना में मौकापरस्त हो रहे
हैं। वरना इस तरह से अन्ना हजारे भूमि अधिग्रहण बिल के बहाने सरकार पर हमला करने
की मौकापरस्ती में दिल्ली के जंतर-मंतर न आते। अन्ना हजारे देश भर में भ्रष्टाचार
के खिलाफ आंदोलन चला रहे होते तो आज भी शायद मैं अन्ना भक्ति में ही होता। तब
अन्ना हजारे भ्रष्टाचार के मसले पर नरेंद्र मोदी का जमकर विरोध करते तो भी मैं
अन्ना हजारे के साथ ही होता। लेकिन, अन्ना आप मौकापरस्त हो गए हैं इसलिए मैं भूमि
अधिग्रहण बिल पर सरकार के साथ हूं और अन्ना के विरोध में हूं।
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