भारतीय शेयर बाजार इन दिनों उसैन बोल्ट से भी तेज रफ्तार से
दौड़ रहा है। इस तेजी के पीछे अगर कोई एक वजह सबसे बड़ी है तो वो ये है कि
भारत चीन की पीछे छोड़ने वाले है। चीन को लेकर सिर्फ भारत के ही लोगों का
नहीं, दुनिया का कुछ ऐसे ही आकर्षण भाव है। इसीलिए जब आईएमएफ की ये
रिपोर्ट आई कि चीन की तरक्की की रफ्तार को भारत पीछे छोड़ने वाला है तो फिर
दुनिया भर में भारत में निवेश के लिए होड़ लग गई है। छिपाकर रखी रकम भी
लोग भारतीय शेयर बाजार में लगाने दौड़ पड़े हैं। लेकिन, आईएमएफ के इस ताजा अनुमान को जरा सलीके से समझा जाए। आईएमएफ कह रहा है कि 2016 तक भारत की तरक्की की रफ्तार चीन से ज्यादा हो जाएगी। इसे दूसरी तरह से
समझें तो वो ऐसे है कि भारत दुनिया की सबसे तेजी से तरक्की करने वाले देश
अगले दो सालों में बन जाएगा। 2016 में आईएमएफ
भारत की तरक्की की रफ्तार6.5% देख रहा है। और साथ ही अनुमान लगा रहा है कि चीन की
तरक्की की रफ्तार घटकर 2016 तक 6.3 प्रतिशत ही रह जाएगी। ताजा आंकड़े बता रहे
हैं कि अभी चीन 7.4 प्रतिशत की रफ्तार
से तरक्की कर रहा है। और ये सरकार के साढ़े सात प्रतिशत के अपने अनुमान से कम रह गया है। अब आईएमएफ
के अनुमान को मानें तो इसी साल चीन की तरक्की की रफ्तार तेजी से घटकर 6.8 प्रतिशत रह जाएगी। और अगले साल 6.3 प्रतिशत ही रह
जाएगी। और बस इसी आधार पर भारतीय शेयर बाजार झूमने लगा है। शेयर बाजार के दोनों सूचकांक
रिकॉर्ड तेजी पर हैं।
शेयर बाजार की इस तेजी के पीछे दुनिया खासकर पश्चिम की ये नजर महत्वपूर्ण भूमिका
अदा कर रही है कि भारत, चीन को पीछे
छोड़ देगा। लेकिन, 2016 में साढ़े छे प्रतिशत की तरक्की की रफ्तार के साथ भारत को चीन से आगे देखने
वाले हमारी नजर ये भी जा रही है कि चीन की हाल की 7.4 प्रतिशत की तरक्की की जो रफ्तार दिख रही है। वो पिछले दो दशकों से सबसे कम है। मतलब
पिछले दो दशकों से चीन साढ़े सात प्रतिशत से ज्यादा की रफ्तार से तरक्की
करने वाला देश रहा है। और लंबे समय तक वो डबल डिजिट ग्रोथ यानी दस प्रतिशत
की तरक्की की रफ्तार पर टिका रहा है। अब इस तथ्य को थोड़ा और
विस्तार दें तो ये आसानी से समझ में आ जाएगा कि भारत के लिए अभी लंबी यात्रा
बची हुई है। भारत अगर लगातार औसत 8 प्रतिशत की
तरक्की की रफ्तार बनाए रखने में कामयाब हो सके और चीन की तरक्की की रफ्तार घटकर औसत पांच प्रतिशत रह
जाए तो भी भारत को चीन की बराबरी करने में बत्तीस साल लग जाएंगे। कम से कम
दोनों देशों के बीच का जीडीपी का फासला तो यही बताता है। जीडीपी के
लिहाज से देखें तो चीन की अर्थव्यवस्था भारत से दस गुना ज्यादा है। चीन की अर्थव्यवस्था साढ़े दस ट्रिलियन डॉलर की है तो भारतीय
अर्थव्यवस्था 2013 के अंत तक दो ट्रिलियन डॉलर से भी कम की थी। ठीक है कि
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीस ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का सपना देख
रहे हैं। लेकिन, सिर्फ तरक्की की रफ्तार के आधार पर चीन की
बराबरी और इस आधार पर होने वाला निवेश पता नहीं कितना कारगर होगा।
भारत आठ प्रतिशत के ऊपर की तरक्की की रफ्तार को साल भर भी संभालकर नहीं रख पाया था। हालांकि, उसके पीछे सबसे बड़ी वजह डॉक्टर मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली सरकार का नीतियों के स्तर पर बेहद लचर रवैया रहा। हाल ये था कि सुधारों को सबसे बड़े पैरोकार और लागू करने वाले वित्तमंत्री के प्रधानमंत्री रहते मनमोहन सिंह के सामने ही कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने बचकाने तरीके से तीन सब्सिडी वाले सिलिंडर देकर मनमोहनॉमिक्स को शीर्षासन करा दिया। परिणाम ये कि भारत दुनिया की नजर में तो छोड़िए खुद भारत के उद्योगपतियों, निवेशकों की नजर में सबसे जोखिम भरा लगने लगा। भारत के बड़े कारोबारी प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर चेता रहे थे कि यही हाल रहा तो हम अपना कारोबार देश से समेटकर विदेश चले जाएंगे। ऐसे में नरेंद्र मोदी जैसा एक नेता आया जो दुनिया को भारत में आकर कारोबार करने को कह रहा है। मेक इन इंडिया कैंपेन की खिलाफत करने वाले ये कह सकते हैं कि जब दुनिया के बाजार मेड इन चाइना के ठप्पे से दबे, भरे पड़े हैं। तो फिर मेक इन इंडिया कहां ठहरेगा। लेकिन, नरेंद्र मोदी के किसी भी अभियान की खिल्ली उड़ाने वालों को एक छोटा सा उदाहरण ध्यान में रखना चाहिए। वो ताजा उदाहरण है प्रधानमंत्री जनधन योजना। जनधन योजना को नीचे तक कैसे इस्तेमाल किया जा रहा है, जाएगा। इस पर चर्चा आगे होगी। और सफलता, असफलता की कहानी भी उसी समय लिखी जाएगी। लेकिन, एक सरकार के कार्यक्रम को इस तरह से जनता में हाथोंहाथ लिया जाए और वो अभियान गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल हो जाए तो अभियान के महत्व को समझना होगा। एक और उदाहरण है। वो उदाहरण है वाइब्रेंट गुजरात समिट का। किसी राज्य का अपने राज्य की नीतियों को बताकर दुनिया से निवेश जुटाने का, यहां तक कि देश की ही दूसरे राज्यों से निवेश जुटाने का ये अनूठा अभियान है। और कितना निवेश आया, कम आया या ज्यादा आया। इसपर तो बहस होती है, होती रहनी चाहिए। लेकिन, इसका राज्य की तरक्की में कितना महत्व है और आज इसे किस तरह से हर राज्य अपने राज्य की खूब के तौर पर दिखा रहा है। इससे तो इनकार नहीं किया जा सकता। इसीलिए शायद आईएमएफ का तरक्की का अनुमान और नरेंद्र मोदी का ऐसे समय में प्रधानमंत्री होना, दोनों ऐसी बातें हैं जिन्होंने शेयर बाजार को पंख लगा दिए हैं। मेक इन इंडिया को जिस पैमाने पर प्रधानमंत्री बेच रहे हैं और अमेरिका और जापान के कारोबारी जिस तरह से भारतीय बाजार को अपना मुख्य कारोबारी केंद्र बनाने की तैयारियां कर रहे हैं। वो सचमुच दुनिया का कारोबारी नक्शा बदलने वाला है। इसमें संदेह नहीं है। डॉक्टर मनमोहन सिंह के अर्थशास्त्री सिद्धांतों की जिस तरह से मिट्टी पलीद करके कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने सामाजिक सुरक्षा का लबादा ओढ़ा था। वो इतना खोखला और भविष्य को मुंह चिढ़ाने वाला था कि न सामाजिक सुरक्षा गरीबों को मिल सकी और न ही देश में गरीबों को रोजगार देने वाले उद्योगों की रफ्तार पटरी पर आ सकी। इसीलिए जब नरेंद्र मोदी की सरकार आई तो कई बातें बिना वजह अच्छे नतीजे देने लगीं। सच्चाई यही है कि इन अच्छे नतीजों में से बहुत की बुनियाद डॉक्टर मनमोहन सिंह के समय में ही रखी गईं थीं। हालांकि, ये लोकतंत्र में होता रहता है कि एक सरकार के अच्छे फैसले या बुरे फैसले का असर उसके बाद आने वाली सरकार के हिस्से में जाए। लेकिन, अच्छे फैसलों पर अपनी छाप छोड़ने का काम जिस तेजी से नरेंद्र मोदी की सरकार कर रही है। उसमें लोग भूल ही जाएंगे कि सब्सिडी बिल धीरे-धीरे घटाने का काम डॉक्टर मनमोहन सिंह की ही सरकार ने किया था। और अब उसी के आधार पर सरकार खजाने की सेहत दुरुस्त हो रही है। इसपर किस्मत के धनी नरेंद्र मोदी को तेजी से गिरती कच्चे तेल की कीमतों वाले समय में प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला है। जाहिर है आंकड़े दिखाकर भले ये साबित करने की कोशिश कोई भी करे लेकिन, जनता बार-बार तर्क नहीं देखती, सुनती।
भारत आठ प्रतिशत के ऊपर की तरक्की की रफ्तार को साल भर भी संभालकर नहीं रख पाया था। हालांकि, उसके पीछे सबसे बड़ी वजह डॉक्टर मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली सरकार का नीतियों के स्तर पर बेहद लचर रवैया रहा। हाल ये था कि सुधारों को सबसे बड़े पैरोकार और लागू करने वाले वित्तमंत्री के प्रधानमंत्री रहते मनमोहन सिंह के सामने ही कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने बचकाने तरीके से तीन सब्सिडी वाले सिलिंडर देकर मनमोहनॉमिक्स को शीर्षासन करा दिया। परिणाम ये कि भारत दुनिया की नजर में तो छोड़िए खुद भारत के उद्योगपतियों, निवेशकों की नजर में सबसे जोखिम भरा लगने लगा। भारत के बड़े कारोबारी प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर चेता रहे थे कि यही हाल रहा तो हम अपना कारोबार देश से समेटकर विदेश चले जाएंगे। ऐसे में नरेंद्र मोदी जैसा एक नेता आया जो दुनिया को भारत में आकर कारोबार करने को कह रहा है। मेक इन इंडिया कैंपेन की खिलाफत करने वाले ये कह सकते हैं कि जब दुनिया के बाजार मेड इन चाइना के ठप्पे से दबे, भरे पड़े हैं। तो फिर मेक इन इंडिया कहां ठहरेगा। लेकिन, नरेंद्र मोदी के किसी भी अभियान की खिल्ली उड़ाने वालों को एक छोटा सा उदाहरण ध्यान में रखना चाहिए। वो ताजा उदाहरण है प्रधानमंत्री जनधन योजना। जनधन योजना को नीचे तक कैसे इस्तेमाल किया जा रहा है, जाएगा। इस पर चर्चा आगे होगी। और सफलता, असफलता की कहानी भी उसी समय लिखी जाएगी। लेकिन, एक सरकार के कार्यक्रम को इस तरह से जनता में हाथोंहाथ लिया जाए और वो अभियान गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल हो जाए तो अभियान के महत्व को समझना होगा। एक और उदाहरण है। वो उदाहरण है वाइब्रेंट गुजरात समिट का। किसी राज्य का अपने राज्य की नीतियों को बताकर दुनिया से निवेश जुटाने का, यहां तक कि देश की ही दूसरे राज्यों से निवेश जुटाने का ये अनूठा अभियान है। और कितना निवेश आया, कम आया या ज्यादा आया। इसपर तो बहस होती है, होती रहनी चाहिए। लेकिन, इसका राज्य की तरक्की में कितना महत्व है और आज इसे किस तरह से हर राज्य अपने राज्य की खूब के तौर पर दिखा रहा है। इससे तो इनकार नहीं किया जा सकता। इसीलिए शायद आईएमएफ का तरक्की का अनुमान और नरेंद्र मोदी का ऐसे समय में प्रधानमंत्री होना, दोनों ऐसी बातें हैं जिन्होंने शेयर बाजार को पंख लगा दिए हैं। मेक इन इंडिया को जिस पैमाने पर प्रधानमंत्री बेच रहे हैं और अमेरिका और जापान के कारोबारी जिस तरह से भारतीय बाजार को अपना मुख्य कारोबारी केंद्र बनाने की तैयारियां कर रहे हैं। वो सचमुच दुनिया का कारोबारी नक्शा बदलने वाला है। इसमें संदेह नहीं है। डॉक्टर मनमोहन सिंह के अर्थशास्त्री सिद्धांतों की जिस तरह से मिट्टी पलीद करके कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने सामाजिक सुरक्षा का लबादा ओढ़ा था। वो इतना खोखला और भविष्य को मुंह चिढ़ाने वाला था कि न सामाजिक सुरक्षा गरीबों को मिल सकी और न ही देश में गरीबों को रोजगार देने वाले उद्योगों की रफ्तार पटरी पर आ सकी। इसीलिए जब नरेंद्र मोदी की सरकार आई तो कई बातें बिना वजह अच्छे नतीजे देने लगीं। सच्चाई यही है कि इन अच्छे नतीजों में से बहुत की बुनियाद डॉक्टर मनमोहन सिंह के समय में ही रखी गईं थीं। हालांकि, ये लोकतंत्र में होता रहता है कि एक सरकार के अच्छे फैसले या बुरे फैसले का असर उसके बाद आने वाली सरकार के हिस्से में जाए। लेकिन, अच्छे फैसलों पर अपनी छाप छोड़ने का काम जिस तेजी से नरेंद्र मोदी की सरकार कर रही है। उसमें लोग भूल ही जाएंगे कि सब्सिडी बिल धीरे-धीरे घटाने का काम डॉक्टर मनमोहन सिंह की ही सरकार ने किया था। और अब उसी के आधार पर सरकार खजाने की सेहत दुरुस्त हो रही है। इसपर किस्मत के धनी नरेंद्र मोदी को तेजी से गिरती कच्चे तेल की कीमतों वाले समय में प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला है। जाहिर है आंकड़े दिखाकर भले ये साबित करने की कोशिश कोई भी करे लेकिन, जनता बार-बार तर्क नहीं देखती, सुनती।
व्यवहार में अगर महंगाई घट रही है। पेट्रोल, डीजल, सब्जी, फल सस्ते मिल रहे हैं तो वो सरकार की तारीफ करने ही लगती है। और कमाल की बात ये है कि आईएमएफ की तारीफ के पीछे बड़ी वजह सरकार का पेट्रोलियम सब्सिडी को घटाना मुख्य वजह है। आईएमएफ की मैनेजिंग डायरेक्टर क्रिस्टीना लगार्डे का मानना है कि भारत सरकार बेहतर काम कर रही है। इस बेहतरी की बुनियाद में वो संभावना है जो साल 2014-15 में भारत सरकार का एनर्जी बिल 60 प्रतिशत घटता दिखा रहा है। नरेंद्र मोदी की सरकार उन मोर्चों पर खास तेजी से काम कर रही है जिसकी वजह से दुनिया ने भारत को देखने की नजर बदल ली थी। फिर वो पेट्रोलियम सब्सिडी हो, इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को मंजूरी की बात हो या तेजी से फैसले लेने की। इसीलिए जब आईएमएफ ये कहता है कि 2016 तक भारत, चीन को तरक्की की रफ्तार में पीछे छोड़ देगा। तो दुनिया की नजर बदल जाना स्वाभाविक है। स्वाभाविक है कि भारतीय शेयर बाजार तेज रफ्तार से भागने लगें। और स्वाभाविक ये भी है कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका चीन चिंतित हो जाए। और वहां के अखबारों में भारतीयों के चीन से मुकाबले की इच्छा पर चुटकियां ली जाने लगें। लेकिन, सच्चाई यही है कि भले चीन हमसे दस गुनी ज्यादा बड़ी अर्थव्यवस्था हो जाए। लेकिन, सच्चाई यही है कि दुनिया को भारत का ताकतवर होना डराता नहीं है। चीन का ताकतवर रहना डराता है। इसीलिए दुनिया भारत के साथ खड़ी होना चाहती है। दिख भी रही है। बस एक बात नरेंद्र मोदी की सरकार को ध्यान में रखना होगा कि चीन की वामपंथी सरकार ने कारोबार के लिए हर समझौता कर लिया। चीन दस ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा की अर्थव्यवस्था बना दिया। लेकिन, चीन के साथ दुनिया का रिश्ता संदेह का ही है। जबकि, भारत का दुनिया से रिश्ता भरोसे का है। हमें चीन का मुकाबला नहीं करना है, बराबरी भी नहीं करनी है। क्योंकि, चीन की कारोबारी बराबरी करने के लिए उसकी बुराइयों की भी बराबरी जाने-अनजाने हो जाएगी। भारत को नरेंद्र मोदी बीस ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाएं। बस एक बुनियादी बात तय होनी चाहिए कि महात्मा गांधी की ही बात ध्यान में रहे कि कतार में खड़े आखिरी आदमी का हक मारा नहीं जाएगा। वरना शेयर बाजार की ये तेजी, आईएमएफ का ये भरोसा ध्वस्त होने में समय नहीं लगेगा।
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