कई बार मैं गंभीरता से सोचता हूं कि पत्रकारिता से मुक्ति लेकर समाज का काम किया जाए। जाहिर सामाजिक काम ठीक से करने के लिए गैर सरकारी संगठन चलाना एक बेहतर रास्ता है। लेकिन, ज्यादातर जिस तरह से एनजीओ चलता रहा है। उससे शंका ज्यादा होती है। फिर लगता है कि इससे बेहतर तो यही किया जाए। अभी एनजीओ वर्करों की एक तगड़ी फौज ने देश में क्रांतिकारी बदलाव किए। और एक पूरी की पूरी पार्टी ही क्रातिकारियों की तैयार कर दी। आम आदमी पार्टी ने सत्ता भी हासिल कर ली। ढेर सारे विवाद खड़े हुए, अन्ना आंदोलन के समय ही। खासकर फंडिंग को लेकर। स्रोत को लेकर कि कहां से एनजीओ को रकम मिल रही है। नरेंद्र मोदी की सरकार आने के साथ ही ये खबरें भी आईं कि कई एनजीओ की फंडिंग पर सरकार नियंत्रण करने जा रही है। क्योंकि, विदेशी ताकतें साजिश कर रही हैं। ये एक विषय हुआ। लेकिन, सुबह ये विज्ञापन मैंने देखा तो मेरी बुद्धि बल खाने लगी। अंग्रेजी के राष्ट्रीय अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में छपा ये विज्ञापन राखी खरीदने के लिए बुला रहा है। निमंत्रण पत्र में बताया गया है कि राखी बेचने का ये काम एक एनजीओ करेगा। ये सबकुछ दिल्ली के मशहूर होटल अशोक में होगा। साथ ही नीचे राखी के साथ कपड़े, तोहफे और दूसरे बिक सकने वाले सामानों की सूची भी बताई गई है। अब मेरी समझ में ये नहीं आ रहा है कि राखी बेचना या कपड़े, तोहफे बेचना एनजीओ का काम कैसे हो सकता है। हांलांकि, ये मैं समझ रहा हूं कि किसी न किसी तरीके से इसको गरीब बच्चों के लिए धन जुटाने या दूसरे सामाजिक काम के लिए धन जुटाना साबित किया जा रहा होगा। लेकिन, मुझे लगता है कि ये जरूरी है कि केंद्र सरकार देश भर में एनजीओ का काम करने के लिए जरूरी शर्तें तय करे। कौन-कौन से क्षेत्र होंगे वो तय करे और किसी महंगे होटल में राखी बेचना तो किसी भी तरीके से एनजीओ के काम में शामिल नहीं होगा ये तय करे।
देश की दशा-दिशा को समझाने वाला हिंदी ब्लॉग। जवान देश के लोगों के भारत और इंडिया से तालमेल बिठाने की कोशिश पर मेरे निजी विचार
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
एक देश, एक चुनाव से राजनीति सकारात्मक होगी
Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी भारत की संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकार कर लिया था। इसीलिए इस द...
-
आप लोगों में से कितने लोगों के यहां बेटियों का पैर छुआ जाता है। यानी, मां-बाप अपनी बेटी से पैर छुआते नहीं हैं। बल्कि, खुद उनका पैर छूते हैं...
-
हमारे यहां बेटी-दामाद का पैर छुआ जाता है। और, उसके मुझे दुष्परिणाम ज्यादा दिख रहे थे। मुझे लगा था कि मैं बेहद परंपरागत ब्राह्मण परिवार से ह...
-
पुरानी कहावतें यूं ही नहीं बनी होतीं। और, समय-समय पर इन कहावतों-मिथकों की प्रासंगिकता गजब साबित होती रहती है। कांग्रेस-यूपीए ने सबको साफ कर ...
No comments:
Post a Comment