कहां से रुकेगा जातिवाद। एक ही दिन में दो ऐसी घटनाएं हुईं। जिससे ये रुकना बड़ा मुश्किल लगता है। अब ढेर सारे अंतर्जातीय विवाह होकर नौजवान जातियों को गड्डमड्ड कर दें तो बात अलग है। महंगाई पर चिंतित केंद्र सरकार ने राज्यों को खाद्य मंत्रियों की बैठक दिल्ली में बुलाई थी। विज्ञान भवन में उसी बैठक में उत्तर प्रदेश के खाद्य मंत्री रघुराज प्रताप सिंह भी आए हुए थे। पहली बार मेरी उनसे मुलाकात हुई। हमारे गांव अब उन्हीं की विधानसभा में आता है। पहली बार मैं उनसे मिला और ये परिचय भी दिया कि मैं भी प्रतापगढ़ का हूं। अच्छी खासी बात हुई। महंगाई, उत्तर प्रदेश सरकार और नरेंद्र मोदी के जादू पर। दूसरे कई पत्रकार भी थे। इतने में एक राष्ट्रीय टीवी चैनल के एक पत्रकार जोश में आए और नमस्कार राजा भैया करके तुरंत बताया कि मैं भी ठाकुर हूं बिहार का। रघुराज प्रताप सिंह मुस्कुराए और मैं जोर से हंस पड़ा। वहां से निकल गया। शाम को घर आया तो एक फोन आया। उसने कहा आपका लेख शुक्रवार में पढ़ा। आपसे एक सलाह लेना चाहता हूं। वो लड़का अच्छा काम कर रहा है। गांव-गांव घूमकर वहां की थोड़ी अलग घटनाओं पर डायरी लिखता है। अच्छा काम कर रहा है तो उसे वो ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना चाहता है। मैंने उसे इंटरनेट का सहारा लेने को कहा। लेकिन, डरते-सहमते एक बात जो उसने बोली तो मैं हिल गया। उसने कहाकि मैंने आपके नाम में त्रिपाठी देखा तो आपको फोन कर लिया। मैंने उसे समझाया कि तुम जो गांव-गांव घूमकर अच्छा काम कर रहे हो अगर त्रिपाठी देखकर मुझे फोन कर रहे हो तो वो अच्छा काम बेकार हो जाएगा। और तुम्हारे नाम के आगे त्रिपाठी या कुछ भी लगा होता तो भी मैं ऐसे ही बात करता। इतनी ही बात करता। लेकिन, इन दोनों घटनाओं से जाति की मुश्किल और बड़ी होती दिखी।
देश की दशा-दिशा को समझाने वाला हिंदी ब्लॉग। जवान देश के लोगों के भारत और इंडिया से तालमेल बिठाने की कोशिश पर मेरे निजी विचार
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