मेरे लिए बड़ा मुश्किल है इस मामले पर लिखना।
सबसे बड़ी वजह तो यही है कि मैं इस मामले में अल्पज्ञानी हूं। मुझे असल जानकारी
नहीं है। गूगल अंकल की शरण में दोनों तरफ के अतिवादी ज्ञान दिखते हैं। और दूसरी
बात ये रही कि भारत, भारतीय समाज की अच्छाइयों, बुराइयों को ही ठीक से समझने भर का
जब मैं लिखना-पढ़ना-घूमना-समझना नहीं कर पाता हूं तो, गाजा और इस्राइल पर कितना
पढ़ूं। इराक में शिया सुन्नी संघर्ष पर कितना पढ़ूं। चीन में मुसलमानों के हालात
पर कितना पढ़ूं। अफगानिस्तान में तालिबान पर कितना पढ़ूं। रूस, यूक्रेन, क्रीमिया
पर कितना पढ़ूं। सीरिया पर कितना पढ़ूं। अमेरिका पर कितना पढ़ूं। यूरोप की खराब
हालत पर कितना पढ़ूं। लेकिन, जब हमारे माननीय सांसद मुझ पर ये जबर्दस्ती करते हैं
तो मैं क्या करूं। जब हमारे तथाकथित बुद्धि के माननीय परंपरागत ठेकेदार मुझे पर ये
सब पढ़ने-समझने की जबर्दस्ती करते हैं तो मैं क्या करूं। अब बताइए ऐसी जबर्दस्ती
करने वाले माननीय सांसद जी लोग राज्यसभा चलने ही नहीं दे रहे हैं। क्यों भाई। इसलिए
कि गाजा पर बहस करो। इसलिए कि इस्राइल जो हमले कर रहा है उस पर बहस करो। इसलिए कि
गाजा में बच्चे, महिलाएं मर रहे हैं, उस पर बहस करो। पहली बात तो इस्राइल और गाजा
के बीच हो रहे युद्ध में भारतीय संसद के किसी उच्च या निम्न सदन में बहस को मैं
ठीक नहीं मानता। अब मान लो बहस कर भी लें तो क्या होगा। हमारी बहस के बाद इस्राइल
मान जाएगा, शांति हो जाएगी। या फिर फिलिस्तीन मान जाएगा। हमास मान जाएगा। अब कोई
माननीय ये भी सवाल कर सकते हैं कि बेहद सांप्रदायिक किस्म का व्यक्ति हूं मैं। या
मानव ही नहीं हूं। जो इतनी हत्याओं पर बहस के भी पक्ष में नहीं हूं। हां मैं इस
मामले में मानवीय नहीं हूं। मैं स्वार्थी भी हूं। मुझे बड़ा अच्छा लगा था जब सरकार
हरकत में आई थी। संसद हरकत में आई थी। सब एक सुर में थे। राजनीति भी कर रहे थे तो
सभी भारतीयों को सुरक्षित भारत वापस लौटाने के लिए राजनीति कर रहे थे। सब एक साथ
थे। बेवजह की बात नहीं कर रहे थे। सारे भारतीय (जो भी वापस आना चाहते थे) सुरक्षित
इराक से वापस आ गए। दुनिया के इस सबसे खतरनाक आतंकवादी संगठन के कब्जे से वापस आ
गए। यहां हमारा हस्तक्षेप जायज था। हमारी संसद का हस्तक्षेप जायज था। अब फिलिस्तीन
और इस्राइल में हमारा हस्तक्षेप कहां से जायज हो गया। कुछ माननीय सांसद सिर्फ
इसलिए इस पर राज्यसभा में बहस चाहते हैं कि भारत के उस क्षेत्र में जो इस्राइल के
साथ फिलिस्तीन से भी बेहतर रिश्ते हैं वो सिर्फ किसी एक देश से रह जाएं। या फिर ये
बहस इसलिए करना चाह रहे हैं कि मोदी सरकार के इस्राइल के साथ रिश्तों को आधार पर
बनाकर नरेंद्र मोदी को भी किसी खांचे में फिट कर देना चाहते हैं। और फिर उस बहाने
से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को और फिर उसके बाद उस पूरे विचार को। आखिर पिछले साठ
साल से ज्यादा समय से यही तो हो रहा है।
इस बहस के बीच एक और घटना हुई है। रूस यूक्रेन की सीमा पर मलेशिया के एक जहाज को मार गिराया गया। अब जो खबरें आ रही हैं। उसकी गंभीरता समझिए। खबरें हैं कि यूक्रेन रूस के राष्ट्रपति पुतिन को मार गिराना चाहता था। हालांकि,यूक्रेन रूसी विद्रोहियों पर ये आरोप लगा रहा है। दुनियाभर में आतंकवाद से सबकुछ चलाने की कोशिश हो रही है। इराक, ईरान, सीरिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, नेपाल और चीन तक। और भी जाने कहां-कहां। इसको समझने की जरूरत है। गाजा में जो कुछ हो रहा है। या कहीं भी जो किसी
की हत्या हो रही हो। अनर्थ है। हम भारतीय इसके साथ कभी खड़े नहीं होते, न खड़े
होंगे। राज्यसभा में हम बहस भी करा लें। जेएनयू के छात्र इस्राइल दूतावास के सामने
प्रदर्शन भी कर लें। गलती से गाजा पर भारतीय संसद में बहस न समझ पाने वाले हम जैसे
लोगों को भी वहां हो रहे हर नरसंहार के लिए दोषी ठहरा लें। बस, एक सवाल मन में आता
है कि चीन में रमजान तक की मंजूरी नहीं है। इस पर ये सारे लोग बहस की इच्छा क्यों
नहीं रखते। मैं सचमुच कोई अंतर्राष्ट्रीय मामलों का विशेषज्ञ नहीं हूं। अतिसामान्य
ज्ञान है। फिलिस्तीन, इस्राइल के बारे में। इराक के बारे में, ईरान के बारे में।
अफगानिस्तान के बारे में। हमारी चिंता पहले हमारे देश की होती तो ज्यादा बेहतर
होता। गाजा पर बहस कराकर क्या हम दुनिया के सारे विवादित क्षेत्रों, नरसंहार पर
बहस के लिए अपनी संसद में मंच तैयार करेंगे। और फिर हमारे विवादों पर चर्चा के लिए
दुनिया के दूसरे देशों की संसद और दूसरे मंचों पर चर्चा का अधिकारी भी सौंपेंगे।
उदाहरण के लिए कश्मीर और बांग्लादेश के साथ हमारे सीमा विवाद पर कोई और टिप्पणी
करे। चीन से सीमा विवाद पर अमेरिकी सीनेट कुछ बताए। नक्सलियों पर कार्रवाई से पहले
बान की मून से सहमति प्रमाणपत्र लिया जाए। कुछ ऐसा ही हो ना। अगर बहुतायत में इसका
जवाब हां में है। तो फिर चिंता की कोई बात नहीं। महंगाई, विकास या देश की दूसरी
सारी समस्याओं के बारे में हमें या हमारी सरकार को चिंतित होने की जरूरत नहीं।
दूसरे देशों की संसद, दूसरे मंचों पर बहस से हमारा भी सब ठीक हो जाएगा। आइए मेरे बुद्धिजीविता के ठेकेदार मित्रों,
गरियाइए।
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