अखबार के सभी संस्करणों की ये पहली खबर है |
इसी पर इंडियन एक्सप्रेस में भी संपादक रह चुके वरिष्ठ पत्रकार बी जी वर्गीज
ने प्रभाष परंपरा न्यास के कार्यक्रम में व्याख्यान देते हुए कहा कि The media in India is currently in
crisis and has suffered a severe loss of credibility. Managers have taken over
from editors and gossip and sensation have supplanted news. If the print media
is in trouble, sections of the electronic media have gone out of control. आगे बी जी वर्गीज फिर कहते हैं कि In the media of today, the one who “breaks” the story,
whatever its veracity, sets the stage. The rest follow as a pack creating a
subjective reality that may be far removed from the objective truth. बी
जी वर्गीज साहब को ये चिंता जताते समय शायद ही इंडियन एक्सप्रेस का ध्यान रहा हो। लेकिन,
इंडियन एक्सप्रेस जैसे अखबार नियमित तौर पर ये कर रहे हैं। अब बताइए किसी राज्य के
दिल्ली में स्थित सदन में कैंटीन का अगर इस कदर बुरा हाल है कि सांसद, विधायक को
ढंग का खाना नहीं मिल पा रहा है तो ये गंभीर सवाल है या नहीं। क्या इंडियन
एक्सप्रेस अखबार या उसके बाद मुस्लिम का रोजा तोड़वाकर खेल रहे टीवी चैनल
महाराष्ट्र सदन और दूसरे राज्य अतिथि गृहों के खाने पर पहले स्टोरी कर लेते। आखिर
हर साल रेल बजट के समय तो यही काम करते ही है ना। उस घटना के साथ मैं खड़ा नहीं
हूं। कोई भी नहीं खड़ा होगा। लेकिन, जरा बताइए ना खाना ही खराब मिले तो कितने लोग
हैं जो संयम रख पाते हैं। जो वीडियो मैं देख सका और जितना देख सका। उसके आधार पर
मुझे लगता है कि ये पूरी तरह से घटना को कट्टर हिंदूवादी पार्टी शिवसेना और
मुस्लिम के बीच का मामला बनाने की गंदी कोशिश है। हिंदू, मुस्लिम या कोई भी हो
उसके साथ कोई इस तरह की बद्तमीजी करे उस पर मामला बनाइए। खबर दिखाइए। इंडियन
एक्सप्रेस अखबार का मैं खुद बड़ा प्रशंसक रहा हूं। या यूं कहें कि पत्रकारिता शुरु
करते समय हर पत्रकार को अंग्रेजी में इंडियन एक्सप्रेस पढ़ना बेहतर लगता है। मुझे
तो कई बार ये भी लगता है कि ये बड़े ब्रांड के जो रिपोर्टर होते हैं उनमें से
ज्यादातर तक खबरें खुद चलकर पहुचती हैं। खासकर ऐसी खबरें जिसमें लोगों के हित
जुड़े होते हैं। अब ज्यादा समय नहीं बचा है कि महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने
में। पहले से ही जिस तरह का माहौल है उसमें हिंदू-मुस्लिम करने की बहुत गुंजाइश
दिख नहीं रही है। तो इसका फायदा किसको होगा। इसलिए हिंदू-मुस्लिम करो। कुछ मुस्लिम
वोट शिवसेना-बीजेपी के खिलाफ एकजुट करो। वरना बताइए सत्रह जुलाई की घटना। वो भी
बाकायदा इतने सांसद, पत्रकार, टीवी कैमरे और एक स्टाफ के साथ इस तरह की बदसलूकी।
फिर भी इतने समय बाद ये खबर इतनी बनाकर क्यों चली। जाहिर है वर्गीज साहब जो कह रहे
थे कि मैनेजरों ने खबर मैनेज कर ली। और जब पूरी तरह से मुसलमान का रोजा रोटी
खिलाकर तोड़ने की पक्की बुनियाद तैयार कर ली गई तो, खबर सबको कर दी गई। ये खेल बंद
करना होगा। उसके खिलाफ आवाज उठानी होगी।
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