Wednesday, October 21, 2009

ठीक-ठीक सोच तो लो कि क्या करना है

आप करना क्या चाहते हैं। कुछ ढंग का है दिमाग में या बस ये सोच रखा है कि कुछ-कुछ ऐसा करते रहना है जिससे लोग ये तो, जानें कि ये बड़े मंत्री जी हैं। या आपको किसी ने ये समझा दिया है कि जो लोग ये वाले मंत्री जी बन जाते हैं। आगे सबसे बड़े मंत्री जी यानी प्रधानमंत्री जी बनने की रेस में उनका नाम तो आ ही जाता है भले ही वो बने ना बने। वरना एक के एक बाद एक ऐसी ऊटपटांग हरकतें भला आप क्यों करते।


आप समझ तो गए ही होंगे कि मैं अपने मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल साहब की बात कर रहा हूं। बड़े वकील हैं तो, किसी भी बात जलेबी की तरह कितना भी घुमाने की अद्भुत क्षमता रखते हैं। लेकिन, आपको कुछ तो समझना ही होगा सिब्बल साहब। अभी आप अपने पिछड़ने के ब्लू प्रिंट को जस्टीफाई नहीं कर पाए थे तब तक एक और फॉर्मूला ठेल दिया आपने। अब कह रहे हैं कि IIT’s में दाखिला कैसे हो ये तय करना IIT’s का काम है, सरकार का नहीं। फिर क्यों आपने लंतरानी मार दी कि हम कोचिंग संस्थानों की दुकान बंद कराने के लिए IIT’s के दाखिले में 12वीं की परीक्षा के नंबरों को ज्यादा वरीयता देंगे। कुछ 80 प्रतिशत नंबर लाने पर ही IIT’s में दाखिले लायक समझने की बात आई।


जब बिहार के सारे नेता राशन-पानी लेके चढ़ बैठे। और, सिब्बल के फॉर्मूले को anti poor टाइप कहने लगे तो, सिब्बल साहब डर गए। एक बात बड़ी अच्छी है हमारे देश में गरीबों का भला करने को कोई भले न सोचे। गरीबों के खिलाफ जाने से डरते सब हैं सो, सिब्बल साहब भी डर गए। नीतीश मुख्यमंत्री हैं बिहार के तो, आंदोलन नहीं किया। मंच से मीडिया के जरिए बोला कि ये बिहार के छात्रों को IIT’s में जाने से रोकने की साजिश है। लालू प्रसाद यादव की पार्टी सत्ता में नहीं है तो, उन्होंने आंदोलन शुरू कर दिया।


खैर, अच्छी बात ये है कि चाहे जैसे बिहारी आंदोलित होना नहीं छोड़ रहे हैं। ये अलग बात है कि एक देश के सबसे बड़े आंदोलन से निकले नेताओं ने ही बिहार को नर्क बना दिया। और, अजीब टाइप का बिहारी गौरव-बिहारी उपेक्षा में बदल गया था। अब ठीक बात है कि उसी छात्र आंदोलन से निकला एक नेता ही बिहार को कुछ बदलने की कोशिश कर रहा है। सिब्बल के बेतुके फॉर्मूले के खिलाफ भले ही सिर्फ बिहार के लोग आंदोलित हुए और इसे anti poor टाइप कह रहे हों। सच्चाई ये है कि ये फॉर्मूला anti poor states और anti state education board तो है ही। क्योंकि, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान जैसे पिछड़े राज्यों की छोड़िए महाराष्ट्र बोर्ड के भी बच्चों के नंबर शायद ही CBSE, ICSE बोर्ड के छात्रों के नंबर का मुकाबला कर सकें।


अब हो सकता है कि सिब्बल अपने देश भर में एक बोर्ड के फैसले को लागू करने का इस तरह का घुमाके काम पकड़ने वाला तरीका आजमाने की सोच रहे हों। क्योंकि, जब यूपी-बिहार बोर्ड का बच्चा सारी मेहनत करके भी बोर्ड की परीक्षा के तरीके की वजह से 50-60% से ज्यादा नहीं जुटा पाएगा तो, वो CBSE, ICSE बोर्ड के स्कूलों में दाखिला लेकर 80% लाने का रास्ता खोजेगा। धीरे-धीरे करके एक बोर्ड हो जाएगा। अंग्रेजी स्कूलों की दुकान और तेजी से विस्तार ले लेगी। राज्यों के बोर्ड के स्कूल सरकारी विद्यालय जैसे हो जाएंगे। सिब्बल की दिल्ली की इलीट क्लास मानसिकता की विजय हो जाएगी।


और, मैं तो स्वार्थी हूं। मैं यूपी बोर्ड से पढ़ा हूं। नियमित रूप से सेकेंड डिविजनर रहा। अब मैंने तो रास्ता ही ऐसा चुना लिया कि इनके फर्स्ट सेकेंड, डिवीजन से मैं ऊपर उठ गया। लेकिन, अब क्या मुझे जिंदगी के किसी मोड़ पर फर्स्ट डिवीजन की तरफ बढ़ने का हक सिर्फ इसलिए नहीं मिलेगा क्योंकि, हाईस्कूल, इंटर या फिर ग्रैजुएशन में मैं सेकेंड डिविजनर रहा। और, यूपी या राज्यों का बोर्ड खत्म होगा तो, फिर प्रेमचंद या स्थानीय महापुरुषों से परिचय तो होने से रहा। परिचय उनसे होगा जिनका भारत-भारतीयता से वास्ता ही नहीं होगा। पता नहीं देश के सबसे अहम मानव संसाधन विकास मंत्रालय – बार-बार हम ये कहते रहते हैं कि देश की पचास प्रतिशत से ज्यादा आबादी जवान है, उसी पर देश का भविष्य टिका है और जवान होती आबादी को हम ऐसे तैयार करने की सोच रहे हैं - में ऐसे बेतुके फैसले लेने से पहले सिब्बल साहब सोच भी रहे हैं या सिर्फ इसीलिए कि पिछले मानव संसाधन मंत्रियों से ज्यादा चर्चा में बने रहने की सनक सवार है।

7 comments:

  1. बात तो आप सही कह रहे है लेकिन इनको समझाये कौन ?

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  2. सिब्बल जी की सिंपल बात यही है कि पहले दसवी का बोर्ड हटाकर गरीबो के बच्चो को और नालायक बना दो( फिक्र्लेस करके ) और फिर बारहवी में ऐसा टार्गेट रख दो कि इंजीनियर सिर्फ कॉन्वेंट में पड़ने वाले इनके अय्यास बच्चे ही बन पाए !

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  3. सारे बोर्ड के नम्बरों को नौर्मलाइज़ करने का तरीका जब तक नहीं ढूँढा जाता - इस तरह की बातें बचकानी और बेतुकी हैं. पटना के साइंस कौलेज की बात बताता हूँ. मैं अपने झारखंड बोर्ड का टौपर था(२००१) लेकिन मेरे हाथ कौलेज की सीट बड़ी मुशकिल से आयी थी. जबकि मुझसे कई मायनों में कमजोर छात्र CBSE/ICSE के चलते आसानी से एडमिशन पा गये. जहाँ तक इंटर (बारहवीं) की बात है, यद्यपि मेरा ८० से ऊपर था लेकिन मेरे अधिकांश दोस्तों का (जो IIT भी गये) काफ़ी कम था. और अन्य बोर्ड में ९०+ लाने वाले अनेक लोग पहली परीक्षा भी उत्तीर्ण नहीं हो पाये.

    अब यदि बोर्ड के आधार पर विद्वता की जाँच हो सकती - तो IIT के परिणाम भी बोर्ड जैसे ही आते. और अगर इस बात पर सिब्बल साहब को और अन्य गणमान्य लोगों को इतना ही विश्वास है तो अलग से JEE लेने की आवश्यकता ही क्या है? सीधे बोर्ड बेसिस पे एड्मिशन दिला दिजीये.

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  4. सिब्बल साहब को तो कुछ कहना ही था तो कह दिया । ना तो ऱआआ खतम होगी ना ही ये ८० प्रतिशत वाली बात लागू होगी ।

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  5. JEE पढें ऱआआ नही ।

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  6. बोर्ड परीक्षा के नंबर कभी विद्यार्थी की महानता का सूचक नहीं है | भारत की विडम्बना ही है की सी युग मैं भी समरे कपिल सिब्बल जैसे नेता आईन्स्ताईन या बिल गेट्स को भूल कर 1st class और नाबरों के चक्कर मैं पड़े हैं | मैंने व्यक्तिगत तौर पे भी ऐसे कई विद्यार्थी देखे हैं जिसका प्रतिशत ५०-५५ के आस-पास रहा है पर वो ७०-८०% वालों को भी मात देते हैं |

    हर्ष जी आपने ठीक ही कहा है .. कपिल जी वकील हैं ... जलेबी की तरह घुमा रहे हैं ....

    आपका विश्लेषण अच्छा है ...

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  7. भाईसाहब लगता है आपकी बात सिब्‍बल साहब को अपील कर गयी

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