रहने के लिहाज से दिल्ली देश का सबसे अच्छा शहर है। इसका मतलब ये है कि आधुनिक सुविधा, जीने-रहने की आसानी दिल्ली में सबसे ज्यादा है। सड़कें अच्छी हैं। सड़कों पर जाम कम है और जरूरी सुविधाओं के मामले में बहुत खराब मुंबई से अभी भी सस्ता है। ये बात कह रही है शहरी विकास मंत्रालय की हाल ही में मुंबई में जारी रिपोर्ट।
दिल्ली रहने के लिए देश का सबसे अच्छा शहर है। इसके लिए तो, ढेर सारे तर्क हैं। दिल्ली- देश की राजधानी है। दिल्ली- देश के सारे नेता-बड़े अधिकारी यहीं रहते हैं। विदेशों से आने वाले प्रतिनिधिमंडल-नेताओं को यहीं रुकाया जाता है। इन सब छोटी-बड़ी वजहों से दिल्ली को बुनियादी सुविधाओं यानी सड़क, बिजली, पानी के लिहाज से बेहतर होना ही पड़ता और, वो है। दिल्ली सरकार के साथ ही केंद्र की सरकार भी इस शहर/राज्य को सजाने-संवारने की हर संभव कोशिश करती रहती है।
दिल्ली रहने के लिहाज से सबसे अच्छा है, इसके पक्ष में ऐसे सैकड़ो तर्क हैं। लेकिन, ऐसे ही सैकड़ो तर्क होने के बाद भी देश की आर्थिक राजधानी मुंबई को रहने लायक देश के सबसे अच्छे शहर का खिताब नहीं मिल सका। आपको लगेगा कि इसमें क्या बात हुई ये तो, चलता रहता है। दरअसल मुंबई के इसी, चलता है वाले, अंदाज से ही सारी काबिलियत होने के बाद भी मुंबई रहने के लिहाज से देश का सबसे अच्छा शहर नहीं बन पा रहा है।
मुंबई रहते हुए मुझे भी तीन साल हो गए हैं। सच बात ये है कि अभी भी मुझे दिल्ली के मुकाबले मुंबई कम ही अच्छी लगती है। इसके पीछे कोई ऐसी वजह नहीं है जो, अभी के सर्वे में निकली है। लेकिन, तीन साल पहले और अब जब मुझे हाल में दिल्ली जाने का मौका मिला था तो, दिल्ली में जमीन-आसमान का अंतर दिखा। लेकिन, इन तीन सालों में मुंबई एयरपोर्ट की बदली सूरत को छोड़ दें तो, कुछ भी नहीं बदला। यहां तक कि नवंबर 2004 में सुबह-सुबह मुंबई एयरपोर्ट पर उतरने के बाद से बांद्रा के एक होटल में पहुंचने तक जिस तरह झुग्गियों की लाइन, सड़क पर सुबह चारपाई डालकर सोते लोग, जाम, भीड़ भाड़ दिखा था, वो आज भी वैसे का वैसा है।
सड़क के दोनों तरफ करीब 6-6 फीट रास्ता रोके झुग्गियों में अभी भी लाखों लोग रह रहे हैं। 2004 में बनकर पूरा होने वाला बांद्रा वर्ली सी लिंक अगले साल अप्रैल तक पूरा होने की उम्मीद जताई जा रही है। बांद्रा वर्ली सी लिंक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट का पहला हिस्सा है जो, 5.6 किमी का है। दूसरा हिस्सा वर्ली से कोलाबा का 12 किमी से ज्यादा का है जो, अभी शुरू भी नहीं हुआ है। वेस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे के अलावा कोई ऐसी सड़क नहीं दिखती जो, देश के सबसे अमीर लोगों के शहर होने का भरोसा दिला सके।
मुंबई में लोकल रेलवे इतनी भरी होती हैं कि सांस लेना भी मुश्किल होता है। अब ऐसा तो है नहीं कि ऐसी दमघोंटू रेल में कोई खुशी से सफर करना चाहता है। लोकल मुंबई की जान इसलिए है कि दम घुटते हुए भी सफर जरा जल्दी पूरा हो जाता है और, दम निकलने से बच जाता है। रेल के बराबर की ही दूरी सड़क के रास्ते तय करने में मुंबई में दोगुना समय लग जाता है। और, सड़कों का ये हाल तब है जब, मुंबई का सिर्फ म्युनिसिपल कॉरपोरेशन इतना बजट पाता है। जितने में कई राज्य अपना बजट बना लेते हैं। आपको शायद भरोसा नहीं होगा- BMC यानी बृहन्मुंबई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन का बजट 7000 करोड़ रुपए का है।
मुंबई में टाटा-अंबानी-गोदरेज-बजाज जैसे जाने कितने तुर्रमखां उद्योगपति रहते हैं। जो, इस समय दिल्ली दरबार में अलग से पूरा शहर (SEZ) बनाने के लिए अर्जी पे अर्जी दे रहे हैं। ये उद्योगपति कह रहे हैं कि ये शहर ऐसे होंगे जहां, बाहर से कुछ जरूरत नहीं होगी। बिजली, पानी, सड़क, एयरपोर्ट सबकुछ शहर में होगा। हेडक्वार्टर होने की वजह से इन्हें अक्सर ही मुंबई रहना, एक जगह से दूसरी जगह आना-जाना पड़ता है। लेकिन, दुनिया के सबसे अमीर उद्योगपति बनने की कतार में लगे उद्योगपति अपने शहर में कुछ खास करने की इच्छा भी नहीं जताते। हां, अपने प्रोजेक्ट में जरा सी ऊंच-नीच होने पर किसी भी सरकार से भिड़ने को तैयार रहते हैं।
दिल्ली में रिंग रोड तो पूरी तरह से रेड सिग्नल फ्री है। इसके साथ ही दूसरी कई ऐसी सड़कें भी बन गई हैं जिसमें, 10-15 किलोमीटर तक ब्रेक लगाने की जरूरत नहीं होती। मेट्रो की सहूलियत तो दुनिया को पता है। मुंबई भी मेट्रो दौड़ाना चाहता है लेकिन, सी लिंक की ही तरह मेट्रो के काम में भी देरी शुरुआत से होनी शुरू हो गई है। लेकिन, रेड सिग्नल फ्री सड़कों की बात तो अभी मुंबई चलाने वाले सोच भी नहीं रहे हैं। जबकि, मुंबई में जिस तरह से छोटी (कम चौड़ी) सड़कों पर चलने वाली गाड़ियां बढ़ रही हैं, पूरी मुंबई में दो मंजिला सड़क की जरूरत दिखती है।
मैं मुंबई को लेकर निराश नहीं हूं। लेकिन, इतना जरूर सोचता हूं कि देश में सबसे ज्यादा पैसा खर्च कर लोग मुंबई में रहते हैं। उन्हें विश्व स्तरीय सुविधा न मिलने की कोई वजह नहीं है। मोनो रेल, मेट्रो रेल, ढेर सारे फ्लाईओवर, सी लिंक, नई खूबसूरत-ज्यादा सुविधाओं-रफ्तार वाली लोकल और ऐसी ही दूसरी योजनाएं हैं जो, भरोसा दिलाती हैं कि मुंबई देश का सबसे ज्यादा सुविधाओं वाला शहर आसानी से बन सकता है। मुंबई एयरपोर्ट पर नए टर्मिनस पर उतरने पर ये अहसास होता भी है। मैंने बचपन में मुंबई के बारे में सुन रखा था कि वहां तो, कई-कई लेन वाली सड़कें हैं। तेज रफ्तार वाली गाड़ियों के लिए अलग-अलग लेन है। लंबी दूरी, चंद मिनटों में तय हो जाती है।
तीन साल पहले दिल्ली से हवाई सफर तय करने के बाद जमीन पर उतरा तो, खराब सुविधाओं को देखकर मेरे नीचे की जमीन ही खिसक गई। लेकिन, उम्मीद करता हूं कि मेरे बाद कोई और जब मायानगरी में सपने पूरे करने आएगा तो, उसे मुंबई देश में ही नहीं दुनिया में रहने के लिए सबसे अच्छे शहरों में शामिल मिले। उसे सिर्फ ये कहकर न बहलाया जाए कि मुंबई की खूबी यही है कि मुंबई कभी रुकती नहीं। बल्कि, यहां नया आने वाला मुंबई की तेज रफ्तार देखकर कहे कि हम दुनिया से आगे निकल गए हैं।
दिल्ली रहने के लिए देश का सबसे अच्छा शहर है। इसके लिए तो, ढेर सारे तर्क हैं। दिल्ली- देश की राजधानी है। दिल्ली- देश के सारे नेता-बड़े अधिकारी यहीं रहते हैं। विदेशों से आने वाले प्रतिनिधिमंडल-नेताओं को यहीं रुकाया जाता है। इन सब छोटी-बड़ी वजहों से दिल्ली को बुनियादी सुविधाओं यानी सड़क, बिजली, पानी के लिहाज से बेहतर होना ही पड़ता और, वो है। दिल्ली सरकार के साथ ही केंद्र की सरकार भी इस शहर/राज्य को सजाने-संवारने की हर संभव कोशिश करती रहती है।
दिल्ली रहने के लिहाज से सबसे अच्छा है, इसके पक्ष में ऐसे सैकड़ो तर्क हैं। लेकिन, ऐसे ही सैकड़ो तर्क होने के बाद भी देश की आर्थिक राजधानी मुंबई को रहने लायक देश के सबसे अच्छे शहर का खिताब नहीं मिल सका। आपको लगेगा कि इसमें क्या बात हुई ये तो, चलता रहता है। दरअसल मुंबई के इसी, चलता है वाले, अंदाज से ही सारी काबिलियत होने के बाद भी मुंबई रहने के लिहाज से देश का सबसे अच्छा शहर नहीं बन पा रहा है।
मुंबई रहते हुए मुझे भी तीन साल हो गए हैं। सच बात ये है कि अभी भी मुझे दिल्ली के मुकाबले मुंबई कम ही अच्छी लगती है। इसके पीछे कोई ऐसी वजह नहीं है जो, अभी के सर्वे में निकली है। लेकिन, तीन साल पहले और अब जब मुझे हाल में दिल्ली जाने का मौका मिला था तो, दिल्ली में जमीन-आसमान का अंतर दिखा। लेकिन, इन तीन सालों में मुंबई एयरपोर्ट की बदली सूरत को छोड़ दें तो, कुछ भी नहीं बदला। यहां तक कि नवंबर 2004 में सुबह-सुबह मुंबई एयरपोर्ट पर उतरने के बाद से बांद्रा के एक होटल में पहुंचने तक जिस तरह झुग्गियों की लाइन, सड़क पर सुबह चारपाई डालकर सोते लोग, जाम, भीड़ भाड़ दिखा था, वो आज भी वैसे का वैसा है।
सड़क के दोनों तरफ करीब 6-6 फीट रास्ता रोके झुग्गियों में अभी भी लाखों लोग रह रहे हैं। 2004 में बनकर पूरा होने वाला बांद्रा वर्ली सी लिंक अगले साल अप्रैल तक पूरा होने की उम्मीद जताई जा रही है। बांद्रा वर्ली सी लिंक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट का पहला हिस्सा है जो, 5.6 किमी का है। दूसरा हिस्सा वर्ली से कोलाबा का 12 किमी से ज्यादा का है जो, अभी शुरू भी नहीं हुआ है। वेस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे के अलावा कोई ऐसी सड़क नहीं दिखती जो, देश के सबसे अमीर लोगों के शहर होने का भरोसा दिला सके।
मुंबई में लोकल रेलवे इतनी भरी होती हैं कि सांस लेना भी मुश्किल होता है। अब ऐसा तो है नहीं कि ऐसी दमघोंटू रेल में कोई खुशी से सफर करना चाहता है। लोकल मुंबई की जान इसलिए है कि दम घुटते हुए भी सफर जरा जल्दी पूरा हो जाता है और, दम निकलने से बच जाता है। रेल के बराबर की ही दूरी सड़क के रास्ते तय करने में मुंबई में दोगुना समय लग जाता है। और, सड़कों का ये हाल तब है जब, मुंबई का सिर्फ म्युनिसिपल कॉरपोरेशन इतना बजट पाता है। जितने में कई राज्य अपना बजट बना लेते हैं। आपको शायद भरोसा नहीं होगा- BMC यानी बृहन्मुंबई म्युनिसिपल कॉरपोरेशन का बजट 7000 करोड़ रुपए का है।
मुंबई में टाटा-अंबानी-गोदरेज-बजाज जैसे जाने कितने तुर्रमखां उद्योगपति रहते हैं। जो, इस समय दिल्ली दरबार में अलग से पूरा शहर (SEZ) बनाने के लिए अर्जी पे अर्जी दे रहे हैं। ये उद्योगपति कह रहे हैं कि ये शहर ऐसे होंगे जहां, बाहर से कुछ जरूरत नहीं होगी। बिजली, पानी, सड़क, एयरपोर्ट सबकुछ शहर में होगा। हेडक्वार्टर होने की वजह से इन्हें अक्सर ही मुंबई रहना, एक जगह से दूसरी जगह आना-जाना पड़ता है। लेकिन, दुनिया के सबसे अमीर उद्योगपति बनने की कतार में लगे उद्योगपति अपने शहर में कुछ खास करने की इच्छा भी नहीं जताते। हां, अपने प्रोजेक्ट में जरा सी ऊंच-नीच होने पर किसी भी सरकार से भिड़ने को तैयार रहते हैं।
दिल्ली में रिंग रोड तो पूरी तरह से रेड सिग्नल फ्री है। इसके साथ ही दूसरी कई ऐसी सड़कें भी बन गई हैं जिसमें, 10-15 किलोमीटर तक ब्रेक लगाने की जरूरत नहीं होती। मेट्रो की सहूलियत तो दुनिया को पता है। मुंबई भी मेट्रो दौड़ाना चाहता है लेकिन, सी लिंक की ही तरह मेट्रो के काम में भी देरी शुरुआत से होनी शुरू हो गई है। लेकिन, रेड सिग्नल फ्री सड़कों की बात तो अभी मुंबई चलाने वाले सोच भी नहीं रहे हैं। जबकि, मुंबई में जिस तरह से छोटी (कम चौड़ी) सड़कों पर चलने वाली गाड़ियां बढ़ रही हैं, पूरी मुंबई में दो मंजिला सड़क की जरूरत दिखती है।
मैं मुंबई को लेकर निराश नहीं हूं। लेकिन, इतना जरूर सोचता हूं कि देश में सबसे ज्यादा पैसा खर्च कर लोग मुंबई में रहते हैं। उन्हें विश्व स्तरीय सुविधा न मिलने की कोई वजह नहीं है। मोनो रेल, मेट्रो रेल, ढेर सारे फ्लाईओवर, सी लिंक, नई खूबसूरत-ज्यादा सुविधाओं-रफ्तार वाली लोकल और ऐसी ही दूसरी योजनाएं हैं जो, भरोसा दिलाती हैं कि मुंबई देश का सबसे ज्यादा सुविधाओं वाला शहर आसानी से बन सकता है। मुंबई एयरपोर्ट पर नए टर्मिनस पर उतरने पर ये अहसास होता भी है। मैंने बचपन में मुंबई के बारे में सुन रखा था कि वहां तो, कई-कई लेन वाली सड़कें हैं। तेज रफ्तार वाली गाड़ियों के लिए अलग-अलग लेन है। लंबी दूरी, चंद मिनटों में तय हो जाती है।
तीन साल पहले दिल्ली से हवाई सफर तय करने के बाद जमीन पर उतरा तो, खराब सुविधाओं को देखकर मेरे नीचे की जमीन ही खिसक गई। लेकिन, उम्मीद करता हूं कि मेरे बाद कोई और जब मायानगरी में सपने पूरे करने आएगा तो, उसे मुंबई देश में ही नहीं दुनिया में रहने के लिए सबसे अच्छे शहरों में शामिल मिले। उसे सिर्फ ये कहकर न बहलाया जाए कि मुंबई की खूबी यही है कि मुंबई कभी रुकती नहीं। बल्कि, यहां नया आने वाला मुंबई की तेज रफ्तार देखकर कहे कि हम दुनिया से आगे निकल गए हैं।
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