दिल्ली, मुंबई या फिर देश के दूसरे बड़े शहरों के
लोगों को ये बात टेलीविजन पर देखने के बाद भी समझ में शायद ही आती हो। पिछले साल सितंबर
महीने में पंजाब के जालंधर में किसानों ने आलू सड़कों पर बिखरा दिया था। ये वही
समय था जब प्याज की कीमतें साठ रुपये किलो से ज्यादा के भाव पर बिकने लगी थी। और
देश में हर साल सब्जियों की महंगाई के समय बढ़ने वाला हल्ला जोर-शोर से मच गया था
कि शहरी भारत महंगाई से मरा जा रहा है। इस प्याज की महंगाई की चर्चा के बीच जालंधर
के किसानों का आलू ऐसे सड़कों पर फैला देना ज्यादा देर तक टिक नहीं सका। उसकी वजह
पर शायद ही ठीक से चर्चा हो सकी। दरअसल जब प्याज साठ रुपये किलो से ज्यादा के भाव
पर बिक रहा था। उसी समय जालंधर के किसानों को मजबूरी में आलू दो सौ रुपये क्विंटल
पर बेचना पड़ रहा था। यानी एक किलो आलू सिर्फ दो रुपये में मिल जा रहा था। किसानों
को भारी घाटा उठाना पड़ रहा था। इसलिए विरोध स्वरूप आलू की सही कीमत मिलने की मांग
के साथ जालंधर के किसान खेत के आलू को सड़क पर बिखेर रहे थे। पिछले साल सितंबर में
जालंधर के किसान आलू सड़कों पर बिखेर रहे थे। उससे कुछ ही महीने पहले अप्रैल महीने
में उड़ीसा के अलग-अलग इलाकों में किसान जिलाधिकारी के दफ्तर पर आलू से भरे बोरे
लेकर पहुंच रहे थे। उनकी भी मुश्किल वही थी जो, जालंधर के किसान की थी। यानी आलू
की लागत भी नहीं मिल रही थी। अब सवाल यही है कि हर सब्जी के साथ भारतीयों की थाली
में सबसे जरूरी आलू का इतना बुरा हाल क्यों हो रहा था। ये सवाल इसलिए भी ज्यादा
बड़ा हो जाता है कि पिछले साल उसी सितंबर महीने में दिल्ली, मुंबई या दूसरे थोड़े
बड़े शहरों में आलू की कीमत दस रुपये किलो से ज्यादा की थी। ये एक उदाहरण भर है।
लेकिन, सच्चाई यही है कि देश के हर हिस्से में अलग-अलग फसलों को लेकर किसान इस तरह
की परेशानी से जूझ रहा है। और इसकी सबसे बड़ी वजह ये कि अगर किसी खास इलाके में
खास उपज ज्यादा हो गई, तो उसकी सही कीमत किसानों को नहीं मिल पाती। और सही कीमत
तो छोड़िए, दरअसल किसान उपज की लागत भी नहीं निकाल पाता। अब सवाल ये है कि क्या ये
संभव नहीं है कि देश के किसानों की इस सबसे बड़ी समस्या का हल निकाला जा सके। मतलब
किसान को उसकी उपज की बेहतर लागत मिल सके। ज्यादा मुनाफा कमा सके।
इसका जवाब पक्के तौर पर हां में है। और अच्छी
बात ये है कि नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए की सरकार इस सवाल का जवाब जल्द से
जल्द पूरे देश के किसानों को दे देना चाहती है। किसानों को अपनी उपज की सही कीमत
मिल सके। उन्हें मजबूरी में उपज सड़कों में न फेंकना पड़े, ये तभी संभव है, जब
पूरे देश का बाजार किसान को उसकी अपनी जगह पर बैठे-बैठे मिल सके। इसी को संभव करने
के लिए केंद्र सरकार राष्ट्रीय कृषि बाजार को जल्द से जल्द लागू कर देना चाहती है।
राष्ट्रीय कृषि बाजार का सीधा सा मतलब एक ऐसी राष्ट्रीय मंडी जिसमें तकनीक के
इस्तेमाल से जालंधर में आलू उगाने वाला किसान सीधे मुंबई के किसी आलू कारोबारी को
अपनी आलू बेच सके। या फिर बिहार के पूर्णिया का मक्का किसान सीधे किसी बड़े कारोबारी
को अपना मक्का बेच सके। राष्ट्रीय कृषि बाजार को लागू किया जा सकता है। इसका भरोसा
दिया है कर्नाटक की एकीकृत बाजार प्रणाली ने। कर्नाटक में सभी मंडियों को ऑनलाइन
करने का काम राष्ट्रीय ई मार्केट्स सर्विसेज के जिम्मे है। राष्ट्रीय ई मार्केट्स
सर्विसेज कर्नाटक सरकार और NCDEX स्पॉट एक्सचेंज की
बराबर की साझेदारी से बनी कंपनी है। यही कंपनी एकीकृत बाजार प्रणाली लागू कर रही
है। इसी को आधार बनाकर पूरे देश में राष्ट्रीय कृषि बाजार योजना को लागू किया जाना
है। राष्ट्रीय कृषि बाजार योजना लागू करने के लिए केंद्र सरकार ने दो सौ करोड़
रुपये का बजट रखा है। इसे 2018 तक लागू कर दिया जाएगा। मतलब 2017-18 के वित्तीय
विर्ष में देश की सभी मंडियां इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म के जरिये एक दूसरे
से जुड़ जाएंगी। इसको और सरल तरीके से समझें, तो जैसे अभी किसान अपने नजदीक की
मंडी में जाकर उस मंडी में आने वाले सभी किसान-कारोबारियों से किसी भी तरह की खरीद-बिक्री
कर सकता है। वैसे ही देश के हर हिस्से के किसान आपस में एक दूसरे से और देश भर के
कारोबारियों से सीधे जुड़ जाएंगे। मतलब ये ऑनलाइन मंडी तैयार हो जाएगी। अभी देश
में कुल 585 मंडियां हैं। केंद्र सरकार की योजना इसे तीन चरणों में पूरा करने की
है। इस वित्तीय वर्ष यानी 2015-16 में ही 250 मंडियों को ई प्लेटफॉर्म से जोड़
दिया जाएगा यानी ऑनलाइन मंडी बना दिया जाएगा। 2016-17 में 200 और बची 135 मंडियों
को 2017-18 में ऑनलाइन कर दिया जाएगा। राष्ट्रीय कृषि बाजार योजना भारत सरकार
की कृषि विभाग SFAC
यानी लघु कृषक विकास
संघ के जरिये लागू की जाएगी। केंद्र सरकार राज्यों की मंडियों में ऑनलाइन मंडी
तैयार करने के लिए सॉफ्टवेयर मुफ्त में लगाएगी। साथ ही सभी 585 मंडियों में ऑनलाइन
प्लेटफॉर्म तैयार करने के लिए केंद्र सरकार राज्य को अधिकतम तीस लाख रुपये तक की
मदद भी देगी। इसमें मंडी में ही जमीन के परीक्षण की सुविधा का होना भी है। राज्य
सरकारों द्वारा नियंत्रित 585 मंडियों के अलावा भी बड़ी निजी मंडियों को ऑनलाइन
प्लेटफॉर्म से आगे जोड़ा जाएगा। लेकिन, इन मंडियों को सरकार से किसी तरह की आर्थिक
सहायता नहीं मिलेगी। राज्यों को राष्ट्रीय कृषि बाजार योजना से जोड़ने के लिए
केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह खुद 23 राज्यों के मंत्रियों और अधिकारियों की
टीम लेकर पिछले साल 10 और 11 जुलाई को कर्नाटक के हुबली पहुंचे थे। हुबली की
एपीएमसी मंडी देश की आधुनिकतम मंडियों में से एक है। कर्नाटक राज्य की 150 में से 100
से ज्यादा मंडियां एकीकृत बाजार प्रणाली के जरिए पहले ही एक दूसरे से जुड़ चुकी
हैं। यानी राष्ट्रीय कृषि बाजार का छोटा स्वरूप कर्नाटक की इन 100 से ज्यादा मंडियों
में आसानी से देखा जा सकता है।
अब सवाल ये है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का
2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य क्या पूरा हो सकेगा। इसका जवाब है
कि राष्ट्रीय कृषि बाजार लागू होने के बाद निश्चित तौर पर इस लक्ष्य को हासिल किया
जा सकता है। और 2017-18 के वित्तीय वर्ष में ही सरकार देश की सभी 585 मंडियों को एक
साथ जोड़ देगी। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 2022 का लक्ष्य व्यवहारिक नजर
आता है। राष्ट्रीय कृषि बाजार कर्नाटक की जिस एकीकृत बाजार प्रणाली के आधार पर
बनाया जा रहा है। एकीकृत बाजार प्रणाली को लागू करने वाली कंपनी आरईएमएस के सीईओ मनोज
राजन बताते हैं कि किस तरह से ऑनलाइन मंडी होने से किसानों को फायदा हो रहा है।
कर्नाटक की तिप्तुर मंडी में कोपरा का
अधिकतम भाव 6000 रुपये क्विंटल तक जाता था। ऑनलाइन होने के बाद उसी मंडी में कोपरा
का भाव 13 से 14000 रुपये क्विंटल तक पहुंच गया। ममतलब ऑनलाइन मंडी ने भाव दोगुना
से ज्यादा कर दिया। फायदा सीधे तौर पर किसानों को ही मिला। ऑनलाइन होने के बाद गदक
मंडी में मूंग दाल के भाव करीब 35% बढ़ गए हैं। बेल्लारी
में मूंगफली का भाव 25% बढ़ गया है। और आधुनिक
मंडी ज्यादा किसानों को आकर्षित कर रही है। चामराजनगर में कमोडिटी की आवक 322% बढ़ी है। कर्नाटक में ऑनलाइन मंडियों में गजब का कारोबार
बढ़ा है। लगे हाथ रोजगार भी। बेहतर रोजगार। और सभी का फायदा दिख रहा है। कर्नाटक
की 155 मुख्य मंडियों और 354 छोटी मंडियों
में कारोबार 31000 करोड़ रुपये से ज्यादा का हो गया है। 92 कमोडिटीज का कारोबार यहां किया जाता है। 31473
कारोबारी हैं, जो सरकारी मंडियों में सूचीबद्ध हैं और 17149 कमीशन एजेंट हैं। कुल
मिलाकर राष्ट्रीय कृषि बाजार खेती से जुड़े हर शेयरधारक के लिए फायदे का बाजार दिख
रहा है।
कैसे काम करेगा राष्ट्रीय कृषि बाजार
कर्नाटक में कुल 155 मंडियां और 354 उप मंडियां
हैं जिनमें से अब तक करीब 100 मंडियों को ऑनलाइन
जोड़कर एक प्लेटफॉर्म पर लाया जा चुका है। आम तौर पर ट्रेडर को हर मंडी में
कारोबार के लिए अलग-अलग लाइसेंस लेना होता है, लेकिन कर्नाटक में कोई भी कारोबारी
केवल एक लाइसेंस से ऑनलाइन जुड़ चुकी सभी 100 मंडियों में कारोबार कर सकता है। इतना ही नहीं, यहां राज्य सरकार ने
गोदामों को भी उपमंडियों का दर्ज़ा दे दिया है, जिससे किसान अपने खेत के करीब के
किसी भी गोदाम में अपनी उपज रख कर सीधे वहीं से उसे बेच सकता है। केंद्र सरकार की प्रस्तावित
राष्ट्रीय कृषि बाजार एक बार लागू हो गई, तो किसान-कारोबारियों के लिए हर राज्य एक
मंडी की तरह हो जाएगा। वैसे तो पूरे देश में किसान, कारोबारी कहीं से कहीं के लिए
खरीद बिक्री कर सकता है। क्योंकि, ऑनलाइन होने के बाद सभी राज्य एक दूसरे से जुड़
जाएंगे। लेकिन, उसे खरीदने-बेचने की प्रक्रिया पूरी करने के लिए लाइसेंस लेना
होगा। और वो लाइसेंस राज्यों के आधार पर मिलेगा। मंडियों के आपस में ऑनलाइन जुड़
जाने से सार्थक बदलाव किसानों की जिंदगी में आएगा। अभी देश के किसी भी हिस्से के
किसान को अपनी फसल बेचने के लिए अपने इलाके के आसपास की ही मंडीतक पहुंच बन पाती
है। अब कर्नाटक के किसी जिले का किसान सीधे दिल्ली या फिर देश के दूसरे किसी
राज्ये के किसी जिले में अपनी फसल बेच पाएगा। उदाहरण के लिए दिल्ली में चने का कोई
कारोबारी है जो चना खरीदना चाहता है तो कम्प्यूटर पर केवल एक क्लिक से वह देश भर
की मंडियों में मौजूद हर गुणवत्ता के चने का पूरा स्टॉक देख सकता है और उसके लिए
बोलियां लगा सकता है। ज़ाहिर है इससे जहां एक ओर किसान को अपनी फसल के लिए बेहतर
से बेहतर भाव मिलेगा, वहीं सरकार को भी देश के अलग-अलग हिस्सों में मांग और आपूर्ति
के लिहाज से संतुलन बिठाने में सहूलियत होगी।
पूरे देश के एक बाजार बनने की पूरी प्रक्रिया हम
आपको इस कहानी के जरिये समझाने जा रहे हैं। इस पूरी कहानी की शुरुआत होती है हुबली
की एपीएमसी मंडी के गेट से जहां किसान अपना माल लेकर पहुंचता है। किसान बोरियों और
हर बोरी के वजन के लिहाज से अपनी कुल कमोडिटी का एक अंदाजा लगाता है और उसी आधार
पर गेट एंट्री की जाती है। लेकिन गेट एंट्री से पहले किसान का पंजीकरण ज़रूरी है।
पंजीकरण के लिए तय कई दस्तावेजों में से किसी एक का होना ज़रूरी है। साथ ही बैंक
में खाता होना ज़रूरी है। लेकिन, अगर किसी किसान के पास अभी तक बैंक खाता नहीं है,
तो उसी समय मंडी के कर्मचारी बैंक के कर्मचारियों से बात करके किसान का बैंक खाता
खुलवा देते हैं। एक बार किसान का पंजीकरण हो गया, तो यही उसे हमेशा काम आएगा। वन
टाइम रजिस्ट्रेशन के बाद बारी आती है गेट एंट्री की। गेट एंट्री के लिए गेट पर
बैठा डाटा ऑपरेटर बोरियों की संख्या, उपज का वजन और कमीशन एजेंट का नाम जैसी
जानकारियां कम्प्यूटर में डालता है और फिर वहीं से किसान को अपने माल के लिए एक
आईडी और एक लॉट नंबर मिल जाता है। अमूमन एक गुणवत्ता की सारी उपज एक लॉट में आती
है और इसलिए एक किसान की उपज को कई लॉट नंबर मिल सकते हैं। इसके बाद इन सारे लॉट
का सैंपल असेइंग लैब में जाता है और फिर लैब के परिणाम लॉट नंबर के सामने ऑनलाइन
बिडिंग स्क्रीन पर आ जाता है। हालांकि यूएमपी की मंडियों में असेईंग, क्लीनिंग और
ग्रेडिंग की सुविधा अभी पर्याप्त नहीं है, लेकिन राष्ट्रीय ई-मार्केट्स सर्विसेज
यानी आरईएमएस तेजी से इस दिशा में काम कर रहा है। अभी मंडियों में ग्रेडिंग और
असेइंग की सुविधा मंडी में आने वाले माल की तुलना में नाकाफी है, तो फिलहाल सारे
लॉट के लिए ऐसा संभव नहीं होता। ऐसे में फिलहाल कमीशन एजेंट ही ज्यादातर लॉट की
असेइंग कर अपने ट्रेडर को लॉट के भाव पर सलाह देते हैं और इस तरह ट्रेडर हर लॉट के
हिसाब से अपना भाव कोट करता है और यह भाव किसान को एसएमएस के जरिए उसके मोबाइल पर
भेज दिया जाता है। किसान का पंजीकरण हो गया। उसकी उपज की किस्म के लिहाज से उसे
भाव पता चल गया। अलग-अलग कारोबारियों के भाव उसके पास आ गए। अब उसे तय करना है कि
उसे अपनी उपज कहां बेचनी है। एक बार किसान का पंजीकरण हो गया। तो कर्नाटक के
ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से जुड़ी करीब सौ मंडियों में बैठा कारोबारी उस दिन ट्रेड के
लिए मौजूद हर कमोडिटी की पूरी लिस्ट देख सकता है। इसके बाद वह अपनी रुचि की कोई एक
कमोडिटी तयकर उस कमोडिटी के पेज को खोल सकता है। इसके लिए उसे ई-टेंडर पेज पर जाना
होता है और उस लिंक को खोलना होता है, जहां उसे हर कमोडिटी का नाम, कमीशन एजेंट का
नाम, लॉट नंबर और उसकी मात्रा मिल जाते हैं। एक बार ट्रेडर अपनी कमोडिटी चुनकर उस
पेज पर जाता है। तो वहां जो लॉट असेइंग किए हुए होते हैं, वे उन्हें हरे रंग में
दिखते हैं और उनके आगे असेइंग के सभी नतीजे लिखे होते हैं। सभी लॉट के आगे
बोरियां, मात्रा, लॉट आईडी, कमीशन एजेंट इत्यादि का नाम लिखा होता है। स्क्रीन के
ऊपर सत्र का समय भी लिखा होता है और सत्र का बचा हुआ समय भी स्क्रीन पर साफ नजर
आता रहता है। यहीं कोई कारोबारी किसी भी किसान के किसी भी लॉट के लिए अपनी बोली
लगा सकता है। बोली वो बदल भी सकता है लेकिन, घटा नहीं सकता। यहीं ओपन ई-टेंडर पेज
पर हर कमोडिटी के लॉट और बोलियों की कुल संख्या भी दिखती है। हर मंडी में अलग-अलग
कमोडिटी के लिए बोली लगाने का अंतिम समय अलग-अलग होता है। उसी लिहाज से बोली बंद
होने के कुछ समय बाद सबसे ज्यादा बोली लगाने वाला ट्रेडर बोली जीत जाता है। होम
पेज पर सभी विजेताओं की पूरी लिस्ट होती है। यहां कमोडिटी आईडी, ट्रेडर और कमीशन
एजेंट के लिहाज से पूरी लिस्ट उपलब्ध हो जाती है। यहीं से एक बटन पर उन सभी
किसानों के मोबाइल पर एसएमएस से यह जानकारी भी भेज दी जाती है, जिनके लॉट ट्रेड के
लिए उस दिन बाजार में होते हैं। बोली के विजेता की घोषणा के बाद हर किसान के पास
आधे घंटे का समय होता है अगर वो अपने लॉट के लिए घोषित कीमत पर अपना माल बेचने के
लिए तैयार न हो तो। ऐसी स्थिति में ट्रेड रद्द हो जाता है और वह लॉट अगले दिन के
ट्रेड में फिर शामिल होता है।
अब इस तरह के आधुनिक बाजार के लिए किसान,
कारोबारी कितनी तेजी से तैयार हो पाएगा। ये बड़ा सवाल है। इस सवाल का जवाब तकनीक
को यूजर फ्रेंडली बना कर किसानों के बीच प्रशिक्षण और जागरूकता फैला कर दिया जा
रहा है। राष्ट्रीय ई मार्केट्स सर्विसेज ने जिस तरह कर्नाटक ने एकीकृत बाजार
प्रणाली लागू की है। उससे ये देश भर के लिए ये एक मॉडल बन गया है। दूसरे राज्य भी
इसे जल्द से जल्द लागू करना चाह रहे हैं। प्रोजेक्ट के सीईओ मनोज राजन का दावा है
कि राज्य चाहे तो सिर्फ 6 महीने में उस राज्य में भी यही बाजार काम करने लगेगा।
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