विजय
माल्या को मोदी सरकार सलाखों के पीछे पहुंचाएगी या नहीं। इससे भी बड़ा सवाल अब ये
पूछा जाने लगा है कि मोदी सरकार माल्या को सलाखों के पीछे पहुंचाना भी चाहती है या
नहीं। ये सवाल तब खड़ा हो रहा है, जब मोदी सरकार के सिर्फ बाइस महीने में ही
माल्या का इतना बुरा हुआ कि उन्हें देश छोड़कर भागना ही बेहतर लगा। माल्या को लगने
लगा कि अब किसी भी समय वो सीबीआई दफ्तर के रास्ते जेल की सलाखों के पीछे पहुंच
सकता है। धीरे से वो भारत से बाहर चला गया। उस पर तुर्रा ये कि माल्या सोशल मीडिया
के जरिये मीडिया से लेकर सबको धमका सा रहे हैं। नसीहत दे रहे हैं। जानबूझकर
गलतियां तो ढेर सारे लोग पहले भी करते रहे हैं। लेकिन, गंभीर गलतियां करने के बाद
भी छाती चौड़ी करके चुनौती देने वाले अंदाज में बात करने वाले कम ही उदाहरण हैं।
इससे पहले कुछ इसी तरह की हरकत सहारा ग्रुप के चेयरमैन सुब्रत रॉय ने की थी। हालांकि,
दोनों के मामले अलग हैं। लेकिन, जब कोई उद्योगपति इस तरह से सरकार, सत्ता को
चुनौती देने लगे, तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई सरकार, सत्ता की साख के लिए जरूरी
हो जाती है। फिर जब नरेंद्र मोदी जैसा प्रधानमंत्री हो, तो उसकी साख के लिए ये और
जरूरी हो जाता है कि माल्या जैसे लोगों को उनके अपराध के लिए सलाखों के पीछे भेजा
जाए। लेकिन, ये इतना आसान नहीं है। इसका अंदाजा पूर्व प्रधानमंत्री और अभी के
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर के बयान से समझ में आ जाता है।
विजय
माल्या के अच्छे दिनों में शायद ही कोई राजनीतिक दल या राजनेता रहा हो, जिससे माल्या
से अच्छे रिश्ते न रहे हों। लेकिन, जब माल्या के बुरे दिन शुरू हुए, तो सबने दूरी
बना ली। हां, पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा खुलकर माल्या के समर्थन में आ गए
हैं। देवगौड़ा ने विजय माल्या को कर्नाटक धरती पुत्र बताते हुए मीडिया पर आरोप लगा
दिया है कि राज्यसभा सदस्य होने की वजह से माल्या के मामले को इतना तूल दिया जा
रहा है। देवगौड़ा कह रहे हैं कि दूसरे इसी तरह के साठ से ज्यादा बड़े कर्ज न चुका
पाने वाले उद्योगपतियों की बात मीडिया में क्यों नहीं हो रही। दरअसल ये एक बड़ा
सवाल है जो देवगौड़ा ने उठाया है। दिसंबर अंत तक देश के बैंकों का बैड लोन या
एनपीए साढ़े चार लाख करोड़ रुपये का हो चुका है। हालांकि, बजट चर्चा पर जवाब देते
हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस बात को बेबुनियाद बताया कि कोई भी डूबा छोड़
दिया गया है। लेकिन, डूबे कर्ज की ये रकम कितनी बड़ी है, इसका अंदाजा इसी से लगाया
जा सकता है कि इस साल के बजट में योजनागत खर्च छे लाख करोड़ से कम का ही है। बैंक
कर्मचारियों के सबसे बड़े संगठन के मुताबिक, 2001 से 2013 के बीच दो लाख करोड़
रुपये से ज्यादा के कर्ज माफ कर चुके हैं। और सबसे बड़ी बात है कि ये सारे कर्ज
बड़े उद्योगपतियों के हैं। सरकारी बैंकों में चार सबसे बड़े डिफॉल्टर की ही बात
करें, तो ये रकम तेईस हजार करोड़ रुपये की है। इसीलिए जब देवगौड़ा ये कहते हैं कि
सिर्फ माल्या निशाना क्यों, तो बात सही लगने लगती है। इसका कतई ये मतलब नहीं कि
विजय माल्या के खिलाफ कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। दरअसल इसी आधार पर विजय माल्या के
खिलाफ और ऐसे सभी कर्ज न चकाने वाले बड़े उद्योगपतियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई
होनी चाहिए। कर्ज, ब्याज और जुर्माना मिलाकर सरकारी बैंकों का करीब नौ हजार करोड़
रुपये माल्या पर बकाया है। अभी तो खबरें ये भी आ रही हैं कि विजय माल्या काफी रकम
देश बाहर ले जाने में भी कामयाब रहे हैं। अच्छा है कि सेबी भी इस मामले में कड़ाई
बरत रहा है। क्योंकि, ये ऐसे कर्ज न चुकाने वाले उद्योगपति हैं, जो ऐशोआराम की
किसी भी सोची जा सकने वाली ऊंचाई पर दिखते हैं। लेकिन, माल्या के खिलाफ कार्रवाई
करने में कितनी मुश्किलें हैं। इसकी ओर इशारा रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन
का ताजा बयान करता है। राजन ने एक सवाल के जवाब में कहा कि किसी भी कर्ज के डूब
जाने की ढेर सारी वजहें होती हैं। इसीलिए क्या किया जा सकता था इसमें पड़ना ठीक
नहीं होगी। ज्यादातर समझदार उद्योगपति डूबते कर्ज रीस्ट्रक्चर कराने के पीछे बहुत
आशावादी होते हैं। किंगफिशर मामले में क्या हुआ। इसे नहीं देखना चाहिए। बैंकिंग
सिस्टम में अपराध को जगह नहीं दी जा सकती।
राजन कह
रहे हैं कि अपराध को बैंकिंग सिस्टम में जगह नहीं दी जा सकती। लेकिन, बैंकिंग में
बड़े कार्पोरेट किस तरह से अपराध कर रहे हैं या ये कहें कि बैंकिंग व्यवस्था के
साथ दुष्कर्म कर रहे हैं। इसे समझने के लिए एसबीआई चेयरमैन अरुंधति भट्टाचार्य को
सुनना चाहिए। एसबीआई देश का सबसे बड़ा सरकारी बैंक है। और विजय माल्या को कर्ज
देने वाले 17 बैंकों का अगुवा बैंक है, जिनका कर्ज डूब गया है। अरुंधति भट्टाचार्य
ने माल्या के मामले बताया कि किसी खाते से संबंधित जानकारी बैंक सार्वजनिक नहीं
करता है। लेकिन, इस मामले पर जनता की बहुत ज्यादा नजर है। बैंक माल्या से 2013 से कर्ज
वसूली प्राधिकरण में लड़ रहा है। हमारी 81 सुनवाई वहां हो चुकी है। माल्या ने
हमारे खिलाफ ढेर सारे केस दर्ज कराए हैं। जिसका जवाब हमने दिया है। कुल 22 मामले
हम माल्या के खिलाफ लड़ रहे हैं। 508 सुनवाई हो चुकी है। और 180 बार सुनवाई स्थगित
हो गई। भट्टाचार्य ने बताया कि माल्या के गोवा के एक बंगले पर कब्जे के लिए उच्च
न्यायालय ने आदेश दे दिया कि तीन महीने के भीतर बंगले का कब्जा बैंक को मिल जाना
चाहिए। लेकिन, कलेक्टर ने उसके बाद आठ सुनवाई की और फिर छुट्टी पर चला गया। विजय
माल्या का मामला बैंकिंग सिस्टम के साथ पूरे सरकारी तंत्र की गंदगी का जीता जागता
उदाहरण है। और इसीलिए जरूरी है कि इस मामले में सरकार सख्ती बरते और माल्या को
सलाखों के पीछे भेजा जाए। इसीलिए मैं मानता हूं कि ये सीधे-सीधे नरेंद्र मोदी की
उस साख से जुड़ा हुआ है। जिसकी बुनियाद उनके, न खाउंगा-न खाने दूंगा, बयान से
तैयार हुई है। जिस तरह से देश के बड़े उद्योगपति ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत का चार्वाक
सिद्धांत को अमल में ला रहे हैं। उसमें जरूरी है कि उनके देश की जनता की खून पसीने
की कमाई से घी पीने पर रोक लगे। विजय माल्या के खिलाफ अगर सलीके की कार्रवाई हुई,
तो ये ऐसे कर्ज लेकर घी पीने वाले उद्योगपतियों की जमात को तगड़ा झटका होगा। इसका
ताजा उदाहरण है। अभी कुछ समय पहले तक कहां कल्पना थी कि चिटफंड कंपनियों के खिलाफ
कोई सरकार कभी कुछ कर पाएगी। सेबी से सुब्रत रॉय की सीधी लड़ाई न हुई होती, तो
शायद चिटफंड कंपनियां अभी भी गरीबों की गाढ़ी कमाई लूट रही होतीं। लेकिन, सुब्रत
रॉय को सरकार, सत्ता के जेब में होने या फिर उसे खरीद लेने का गुरूर था। झगड़ा
बढ़ा और आगे क्या हुआ, ये सब देख रहे हैं। सुब्रत रॉय जेल में हैं। इसी के साथ
दूसरे चिटफंडियों पर भी कार्रवाई की सिलसिला तेज हुआ। पर्ल्स, सारदा, साईं प्रसाद
और ऐसी जाने कितनी चिटफंड कंपनियों के मालिक फर्जीवाड़े के मामले में जेल में हैं।
कमाल ये कि इनमें से ज्यादातर मीडिया हाउस के भी मालिक रहे या हैं। लेकिन, सुब्रत
रॉय की गिरफ्तारी की बुनियाद इतनी मजबूत थी कि एक के बाद एक सारे चिटफंडिये जेल के
भीतर पहुंच गए। विजय माल्या का गिरफ्तारी भी ऐसी ही एक बुनियाद है। इससे बैंकिंग
सिस्टम में कर्ज डुबाकर बैंकों की हालत खराब करने वाले उद्योगपतियों को उनकी औकात
में लाया जा सकेगा। मामला कितना गंभीर है, इसका अंदाजा लगाइए। सुप्रीमकोर्ट ने
सरकार से 500 करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज डुबाने वाले उद्योगपतियों की सूची
मांगी है। सुप्रीमकोर्ट ये भी पूछ रहा है कि शाही अंदाज में जीने वाले इन
उद्योगपतियों के अपनी कंपनी को बीमार घोषित करने के बाद भी बैंक कैसे कर्ज देकर
खुश है। बाजार नियामक सेबी ने विलफुल डिफॉल्टरों, यानी ऐसी कंपनियां जिन्होंने
जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाया है, को कंपनी में किसी भी पद पर रहने से, बाजार में
किसी भी तरह की गतिविधि में शामिल होने से रोक दिया है। देश में नियामक होने न होने
पर बहुत बहस चली है। लेकिन, सेबी ने इस बहस को सकारात्मक संदर्भ दे दिए हैं। विजय
माल्या के यूबी ग्रुप की संपत्तियों से ये सारा कर्ज वसूला जाना चाहिए। ठीक है कि
ऐसा काम न हो कि लोग उद्योग लगाने, कर्ज लेने से डरने लगें। लेकिन, ऐसे उद्योगपति
देश के लिए ज्यादा खतरनाक हैं, जिनसे बैंक, देश डरने लगे। विजय माल्या के यूबी
ग्रुप की कंपनी यूनाइटेड स्पिरिट्स की किंगफिशर बीयर दुनिया के 52 देशों में बिकती
है। भारत के बीयर बाजार में इसकी आधी से ज्यादा हिस्सेदारी है। इसीलिए देवगौड़ा जी
विजय माल्या मीडिया की सुर्खियों में है। और इसीलिए मोदी जी आपको विजय माल्या को
सलाखों के पीछे भेजना ही होगा। ये सीधे-सीधे आपकी साख का सवाल है। और साख से
ज्यादा देश की आर्थिक दशा का सवाल है। ऐसे कर्ज डुबाने वालों से कर्ज वसूली नहीं
हुई, तो पचीस-पचास हजार करोड़ रुपये बैंकों को देकर भी बैंक की दशा सरकार क्या
सुधार पाएगी। हां, ऐसे लोगों को कर्ज डुबाने के लिए इतनी रकम और मिल जाएगी।
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