Monday, March 14, 2016

समग्रता में पानी, बिजली, सड़क का बजट

वित्तमंत्री अरुण जेटली के इस बजट को पहली नजर में देखने पर ये लगता है कि बजट भाजपा का वो दृष्टि परिवर्तन है, जो बिहार में भारतीय जनता पार्टी की हार से हुआ है। बजट पहली नजर में पूरी तरह से खेत, किसान और गांव का ही बजट नजर आता है। बजट को देखने की ये पहली नजर का ही असर रहा कि शेयर बाजार ने पूरी तरह से बजट को उद्योग के खिलाफ समझ लिया। और शेयर बाजार में तबाही सी आ गई। हालांकि, पहली नजर के प्रभाव से जब बाजार उबरा, तो स्थिति उलट गई और बाजार में काफी हरियाली देखने को मिली। धीरे-धीरे समझ में आया कि गांवों में भी अगर विकास के काम होंगे, तो उसे करने के लिए बड़ी कंपनियां, उद्योग चाहिए। इस देर से आई समझ से बाजार को लगा कि अच्छे दिन आएंगे। मुझे ध्यान में नहीं आ रहा कि वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बजट भाषण में एक बार भी अच्छे दिन आने वाले हैं या अच्छे दिन का बजट शब्द का इस्तेमाल किया हो। दरअसल अच्छे दिनों को विपक्ष ने इस तरह से जुमला साबित कर दिया है कि अब सरकार अच्छे दिनों की जिक्र करने से बचती है। लेकिन, इस बजट को जरा गहरी नजर से देखें, तो ये अच्छे दिनों का खाका संपूर्णता में पेश करने वाला बजट है। ये देश का पहला बजट है, जिसमें समग्रता में पानी, बिजली और सड़क की बात की गई है। सिर्फ बात नहीं की गई है। पानी, बिजली, सड़क की मुश्किल कैसे दूर होगी। ये साफ-साफ बताया गया है। तारीख दी गई है कि इस समस्या का हल इस तारीख को हो जाएगा। पूरे बजट के बजाय अभी मैं सिर्फ पानी, बिजली, सड़क पर ही इस बजट का विश्लेषण कर रहा हूं।

शुरुआत पानी की मुश्किल से करते हैं, फिर बजट में क्या-क्या हुआ। इस पर बात करेंगे। पानी की मुश्किल इतनी बड़ी हो गई है कि बड़े शहरों में तो डिब्बाबंद पानी सबसे बड़ी जरूरत हो गई है। हर घर में पानी को साफ करके पीने लायक बनाने वाली मशीन लग गई है। गांव में भी मुश्किल से तालाब, कुएं से पीने लायक पानी मिल पा रहा है। पीने लायक तो छोड़िए, अब तो सिंचाई के लिए भी पानी नहीं मिल पा रहा है। जमीन में पानी का स्तर तेजी से नीचे जाने की वजह से खेत बंजर होते जा रहे हैं। खेतों की उर्वर क्षमता खत्म हो रही है। जाहिर है इस हाल में खेतों की उत्पादकता यानी प्रति एकड़ ज्यादा उपज से भी हालात सुधरने वाले नहीं हैं। क्योंकि, उससे ज्यादा तेजी से खेत खत्म हो रहे हैं। इस बजट में इस गंभीर परेशानी को समझकर उससे उबरने की कोशिश करती हुई सरकार दिखती है। जमीन में पानी का स्तर बढ़ाने के लिए साठ हजार करोड़ रुपये इस बजट में प्रस्तावित हैं। ये रकम कितनी बड़ी है, इससे ज्यादा महत्वपूर्ण ये है कि किसी सरकार ने इस विकराल होती समस्या को खत्म करने की बीड़ा उठाया है। याद नहीं आता कि किसी बजट में सरकार ने जमीन में पानी का स्तर बेहतर करने के लिए इतनी बड़ी रकम दी हो। जमीन में पानी का स्तर बेहतर करने के साथ सरकार को किसानों की सिंचाई की मुश्किल भी अच्छे से पता है। और इसीलिए बजट में अट्ठाइस लाख पचास हजार हेक्टेयर जमीन की सिंचाई प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत पक्का करना तय किया गया है। विश्व बैंक के मुताबिक, भारत में जमीन के साठ प्रतिशत से ज्यादा हिस्से पर खेती हो सकती है। अनुमान के मुताबिक, देश में सोलह करोड़ हेक्टेयर से ज्यादा जमीन पर खेती होती है। करीब चार करोड़ हेक्टेयर खेत की सिंचाई कुओं, तालाबों के जरिये होती है। जबकि, करीब ढाई करोड़ हेक्टेयर खेत की सिंचाई नहर के जरिये होती है। कुल मिलाकर सभी तरह के सिंचाई साधनों का इस्तेमाल करने के बाद भी देश के करीब दो तिहाई खेत सिंचाई का पानी न मिलने की वजह से सिर्फ बारिश के पानी के ही भरोसे होते हैं। और यही वजह होती है कि देश में उपज को लेकर किसान, ग्राहक और सरकार सब आशंकित रहते हैं। इस बजट में पानी का स्तर बढ़ाने और खेतों की सिंचाई पक्का करने का प्रावधानन भरोसा जगाता है कि सरकार पानी की मुश्किल का हल खोज रही है। नाबार्ड बीस हजार करोड़ रुपये का सिंचाई का फंड तैयार करेगा। प्रति एकड़ ज्यादा उपज के लिए सरकार ऑर्गेनिक खेती को भी बढ़ावा दे रही है। अगले तीन सालों में पांच लाख एकड़ जमीन पर ऑर्गेनिक खेती की जाएगी।

बिजली कितने घंटे मिलती है। कितने घंटे कटौती होती है। ये बहस शहरों-गांवों में आम है। लेकिन, बिजली देश के कितने गावों में है ही नहीं। ये कितनी दुखद स्थिति है। इस समस्या को इस सरकार ने खत्म करने का बीड़ा उठाया है। इस पर काम पहले से हो रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के सभी गांवों तक एक हजार दिनों में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य तय किया था। इस बजट में एक मई 2018 वो तारीख बताई गई है, जिसके बाद देश का कोई गांव ऐसा नहीं होगा। जहां बिजली नहीं होगी। बजट भाषण में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी इसके लिए ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल की पीठ थपथपाई। दरअसल पहली बार मंत्री ने पीयूष गोयल ने जिस तरह से हर गांव तक बिजली पहुंचाने के प्रधानमंत्री के लक्ष्य को पूरा करने का बीड़ा उठाया है। वो कमाल है। संयोगवश एक दिन इस काम करने वाली नोडल एजेंसी के दफ्तर में जाने पर देखा, तो इस परियोजना से जुड़े हर अधिकारी के टेबल पर रखा कैलेंडर हजार में से हर बीतते दिन का हिसाब तय करता दिखता है। बिजली को लेकर इस तरह से काम किसी सरकार ने किया हो, ये याद नहीं आता। 1999 वाली एनडीए की सरकार में सुरेश प्रभु ने ऊर्जा मंत्री काफी सकारात्मक कोशिश की थी। लेकिन, उस वक्त भी हर गांव तक बिजली पहुंचाने की सोच नहीं बन सकी थी। आधार जरूर उसी समय तैयार हुआ।

पानी और बिजली की ही तरह इस बजट में सड़क पर भी सरकार का खास जोर साफ दिखा। सड़क वैसे तो भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली सरकार की सबसे पसंदीदा होती है। फिर चाहे पिछली वाजपेयी सरकार में स्वर्णिम चतुर्भुज की बात हो या फिर इस सरकार के कार्यकाल में तीस किलोमीटर प्रतिदिन राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने का लक्ष्य तय करने वाले सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी हों। इस बजट सरकार ने गांव की सड़कों की समस्या को दूर करने का खाका दिया है। शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अच्छे पता है कि अगर गांव से किसान जिला, राज्य मुख्यालय तक उपज लेकर नहीं आ पाया, तो उनका किसान की आमदनी 2022 तक दोगुना करने का वादा सिर्फ ही रह जाएगा। इसीलिए इस बजट में गांवों की सड़कों के लिए उन्नीस हजार करोड़ रुपये दिया गया है। दो हजार किलोमीटर राज्य की सड़कों को राष्ट्रीय राजमार्ग में बदलने का प्रस्तावव भी इसी बजट में है। सड़कों के लिए सत्तानबे हजार करोड़ रुपये का प्रावधान इस बजट में है। अगर रेलवे-सड़क दोनों को जोड़ें, तो इस बजट में करीब सवा दो लाख करोड़ रुपये का प्रावधान है। बजट में ये सुनकर अच्छा लगा कि पचासी प्रतिशत रुके पड़े सड़क के काम शुरू हो गए हैं। नितिन गडकरी ने बुनियादी परियोजनाओं को तेजी स लागू करने की अपनी छवि को और दुरुस्त किया है। ग्राम पंचायतों को दिया गया करीब तीन लाख करोड़ रुपये साफ बताता है कि नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार को ये बात अच्छे से समझ आ गई है। पानी, बिजली और सड़क तीनों की सबसे ज्यादा मुश्किल और उसका समाधान देश के गांवों में ही है। इसीलिए पहली नजर से देखने में भले ये लगे कि सरकार ने चुनावी बजट के तौर पर गांवों की ओर चलना शुरू किया है। लेकिन, मुझे लगता है कि पहली बार किसी सरकार ने समग्रता में पानी, बिजली और सड़की मुश्किलें समझी हैं और उन्हें खत्म करने का रास्ता भी देख लिया है।

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