राजदीप सरदेसाई को लेकर दुनिया भर की जा बातें हो रही हैं वो अपनी जगह। लेकिन, राजदीप सरदेसाई के अपराध बहुत हैं। इस थप्पड़ से सारे अपराधों की बात होगी। इससे कम से कम मैं तो खुश हूं। और कम से कम आज की तारीख तक किसी की चवन्नी भी मैंने बेईमानी के एवज में नहीं ली है। मैं भी ये मानता रहा कि राजदीप बड़े और ईमानदार पत्रकार हैं। देश के जाने कितने पत्रकारिता पढ़ने वाले बच्चे राजदीप को देखकर पत्रकारिता करते हैं। उन सबको राजदीप ने ठगा है। उन सबके साथ राजदीप सरदेसाई ने बेईमानी की है। किसी पत्रकार के साथ धक्कामुक्की या मारपीट पहली बार नहीं हुई है। रिपोर्टिंग करते समय कई बार होती है। लेकिन, राजदीप ने जो इरादतन टाइप की मारपीट अपने साथ करवाई उसकी वजह से पूरे देश की छवि को जो बट्टा लगा। उसकी भरपाई किसके हिस्से से होगी। राजदीप को अगर सचमुच की पत्रकारिता करनी होती तो क्या डॉक्टर ने बताया था कि करीब दो दशक से संपादक रहने के बाद उन्हें फिर से किसी संस्थान में नौकरी करनी पड़े। क्या दोनों पति-पत्नी पत्रकार देश में सचमुच की पत्रकारिता करने की शुरुआत नहीं कर सकते थे।
सीएनएन आईबीएन और आईबीएन सेवन के संपादक की नौकरी छोड़नी पड़ी तो फिर से संपादक की कुर्सी ही चाहिए। क्या ये साबित करना चाहते हैं कि बिना संपादक हुए पत्रकारिता नहीं हो सकती। क्या राजदीप सरदेसाई और सागरिका घोष हेडलाइंस टुडे और टाइम्स ऑफ इंडिया की नौकरी करने के बजाय स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर देश की सरकार के खिलाफ असल मुहिम छेड़ने का साहस कर सकते थे और अगर नहीं कर सकते थे तो मलाईदार संपादकी और मोटी रकम के साथ पत्रकार बनने की इच्छा रखने वाली पूरी पीढ़ी बरगलाने का अधिकार इन्हें किसने दिया। पत्रकारिता, देश दोनों के साथ ये बेईमानी नहीं कर रहे थे। इस वीडियो को देखकर समझिए कि राजदीप सरदेसाई ने ऐसा क्यों किया होगा। किसी दलाली या किसके लिए बेईमानी कर रहे थे राजदीप सरदेसाई। आज तक पर जब मैंने राजदीप को मैडिसन स्क्वायर से रिपोर्टिंग करते देखा तभी समझ गया था कि वो एजेंडे पर थे। राजदीप सरदेसाई के मन में शायद ये इच्छा रही होगी कि वो अमेरिका में ये बेहूदगी करके दुनिया के सबसे सेक्युलर पत्रकार बन जाएंगे। उनकी इच्छा शायद यूएन में मुकदमा चलाकर नरेंद्र मोदी को अब दागी साबित करने की होगी या फिर अमेरिका की किसी अदालत में। देश, देश की जनता, देश सम्मानित संस्थाओं को अपमानित करने की नीयत से ये राजदीप सरदेसाई अमेरिका गया था।
सीएनएन आईबीएन और आईबीएन सेवन के संपादक की नौकरी छोड़नी पड़ी तो फिर से संपादक की कुर्सी ही चाहिए। क्या ये साबित करना चाहते हैं कि बिना संपादक हुए पत्रकारिता नहीं हो सकती। क्या राजदीप सरदेसाई और सागरिका घोष हेडलाइंस टुडे और टाइम्स ऑफ इंडिया की नौकरी करने के बजाय स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर देश की सरकार के खिलाफ असल मुहिम छेड़ने का साहस कर सकते थे और अगर नहीं कर सकते थे तो मलाईदार संपादकी और मोटी रकम के साथ पत्रकार बनने की इच्छा रखने वाली पूरी पीढ़ी बरगलाने का अधिकार इन्हें किसने दिया। पत्रकारिता, देश दोनों के साथ ये बेईमानी नहीं कर रहे थे। इस वीडियो को देखकर समझिए कि राजदीप सरदेसाई ने ऐसा क्यों किया होगा। किसी दलाली या किसके लिए बेईमानी कर रहे थे राजदीप सरदेसाई। आज तक पर जब मैंने राजदीप को मैडिसन स्क्वायर से रिपोर्टिंग करते देखा तभी समझ गया था कि वो एजेंडे पर थे। राजदीप सरदेसाई के मन में शायद ये इच्छा रही होगी कि वो अमेरिका में ये बेहूदगी करके दुनिया के सबसे सेक्युलर पत्रकार बन जाएंगे। उनकी इच्छा शायद यूएन में मुकदमा चलाकर नरेंद्र मोदी को अब दागी साबित करने की होगी या फिर अमेरिका की किसी अदालत में। देश, देश की जनता, देश सम्मानित संस्थाओं को अपमानित करने की नीयत से ये राजदीप सरदेसाई अमेरिका गया था।
No comments:
Post a Comment