Saturday, February 16, 2008

चीन में भी शहरों और गांवों के विकास में बड़ा फर्क है

भारत के लिए अक्सर ये कहा जाता है कि तरक्की के साथ सामाजिक विकास के मामले में भी चीन से सीखा जा सकता है। ये भी दावा किया जाता है कि वहां के कम्युनिस्ट शासन में सभी लोगों में बराबर बंटवारा है। अभी कुछ दिन पहले जब खबर आई थी कि भारत के तीन सबसे बड़े पूंजीपतियों के पास जितना पैसा है, उससे कम पैसा वहां के सबसे बड़े 120 पूंजीपतियों के पास है। साथ ही ये भी खबर थी कि भारत में अमीर और अमीर हुआ है जबकि, गरीब और गरीब। आज एक खबर और मैंने पढ़ी जो, चीन में गांव और शहर के बीच के विकास के अंतर को दिखाती है। यहां तक कि कई मां-बाप को छोटे शहरों में अपने बच्चों को छोड़कर इसलिए बड़े शहरों में जाना पड़ता है कि अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ा सकें। और, अच्छी जिंदगी जी सकें। पूरी खबर यहां पढ़े

4 comments:

  1. दूर के ढोल सुहावने होते है।

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  2. चीन में पूंजीवाद ही है, समाजवाद नहीं। लेकिन राज्य नियंत्रित पूंजीवाद। पूंजीवाद की बहुत सी बुराइयाँ उसमे होंगी ही। चीनी उसे समाजवाद कहते भी नहीं हैं। फिर भी अनेक चीजें ऐसी हैं जो हमारे लिये प्रेरणा का कारण बन सकती हैं। हमें किसी भी समाज या व्यवस्था से अच्छाइयाँ सीखनी हैं, उसकी कमियाँ अथवा दोष नहीं।

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  3. बेहतर जिंदगी की तलाश में चीन से पलायनकर्ताओं की भीड़ देखकर शायद कुछ विचार बदलें-अमरीका/कनाडा आदि देशों में सबसे बड़ी माइग्रेन्ट संख्या यहीं से है.

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  4. हाल ही में एक खबर मैंने भी पढ़ी थी कि चीन अब अपने यहां प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को रोकने की कोशिशें कर रहा है। आर्थिक कारणों से नहीं, बल्कि राष्ट्रीय कारणों से। पिछले 20 सालों में मधुमक्खियों की तरह चीन पर टूट रही विदेशी कंपनियों ने चीन को अंदर ही अंदर खोखला किया है (ये मेरा नहीं चीन सरकार का मानना है)। चाहे वो 16वीं सदी की ईस्ट इंडिया कंपनी हो, 21वीं सदी की बहुराष्ट्रीय कंपनियां, सब मुनाफा तो कमाती ही हैं, लेकिन साथ ही अपने मूल देश की विदेश नीति के लक्ष्यों को हासिल करने का भी जरिया होती हैं। विदेशी निवेश के जरिए विकास का ताना-बाना बुनते समय इसे भी ध्यान में रखा जाए, तो बेहतर होगा।

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