राज ठाकरे की ठकुरैती इस समय शांत हो गई है। लेकिन, मराठी अस्मिता के नाम पर कब वो जाग जाए ये कोई नहीं जानता। मैं दैनिक जागरण अखबार में इलाहाबाद का पन्ना पढ़ रहा था। मैं खुद भी इलाहाबाद का हूं और मेरे मोहल्ले दारागंज के ही मराठियों से जुड़ी खबर है। मुझे आजतक अंदाजा नहीं था कि मेरे मोहल्ले में ही 1000 से ज्यादा मराठी रहते हैं। ये मराठी क्या सोचते हैं पढ़िए
देश की दशा-दिशा को समझाने वाला हिंदी ब्लॉग। जवान देश के लोगों के भारत और इंडिया से तालमेल बिठाने की कोशिश पर मेरे निजी विचार
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एक देश, एक चुनाव से राजनीति सकारात्मक होगी
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राज ठाकरे चुप इस लिया हुआ क्योंकि उसकी पार्टी के २० लोग उसकी इस बात का विरोध कर वापस शिव सेना में चले गये।
ReplyDeleteराज ठाकरे जो इंस्टैंट पॉलिटिकल माईलेज चाहते थे वो उनको मिल गया पर अनजाने ही वे शहरी मानस के मानस का विभाजन तो कर ही गये। मुझे दुःख नहीं अगरचे मुझे महाराष्ट्र से लात मारकर निकाल दिया जाय, शायद वाकई मैं किसी स्थानीय का हक मार रहा हूं, पर मैं यही लात कस के मध्यप्रदेश की सरकार को मारुंगा जहाँ मैं पैदा हुआ और जिसने मुझे रोजगार के सही मौके नहीं दिये और महाराष्ट्र सरकार को मारुंगा जिन्होंने ये नहीं सोचा कि माईग्रेंट्स के लगातार बढ़ते इंफ्लक्स से कैसे निबटा जाय। और राज को एक लात उस मराठी परिवार के लोग ज़रूर मार आयें जिसने इस बवाल में अपनी जान गवाईं।
ReplyDeleteइस देश में हर शख्स परेशान सा क्यूं है?
ReplyDeleteराज ठाकरे को दोष देने से समस्या का समाधान नहीं होगा। राज नहीं होंगे तो और कोई बाज आ खड़ा होगा। इन्हें पैदा करने वाली तो वह व्यवस्था है जो बेरोजगारी का कोई समाधान नहीं खोज पा रही है। जब जब भी चुनाव आएंगे लोगों का ध्यान बंटाने के लिए यह निष्फल व्यवस्था नए नए राज और बाज खड़े कर देगी लोगों का ध्यान जनता की मूल समस्याओं से हटाने के लिए।
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