Saturday, February 16, 2008

ई लल्लूपना न होये ऊ, सच्चाई है जउने प आंख मूंदे कइउ पीढ़ी बरबाद होई ग बा

मैंने उत्तर प्रदेश के बारे में ASSOCHAM की एक रिपोर्ट के आधार पर तरक्की की उम्मीद जताई थी। उस पोस्ट के आधार पर एक ब्लॉगर लल्लू ने बहुत गंभीर बातें कह डाली हैं। इस पोस्ट को लल्लूपना टैग दिया गया है लेकिन, ये बात गंभीरता से न लेने से ही कई पीढियां बरबाद हो चुकी हैं। मैं वहां टिप्पणी करना चाह रहा था। लेकिन, वहां टिप्पणी फॉर्म न होने से यहीं चिपका रहा हूं। और, पूरी पोस्ट डाल रहा हूं।

वाकई हम यूपी के लोगों को दूसरे राज्य में पिटने जाने की कतई जरूरत नहीं है.
हम जिस काम को आपस में अच्छी तरह से कर सकते हैं उसके लिये दूसरे प्रांत के लोगों का सहारा लेना पड़ता है? छी.
हमारे अन्दर बहुत प्रतिभा है और हम आपस में ही इत्ती मार कुटाई कर सकते हैं कि जरूरत पड़ने पर दूसरे प्रांत या देश के लिये भी मारकुटाई करने वाले भेज सकते हैं. इतने सालों से हम एक दूसरे को पीटने या लतियाने के अलावा कर ही क्या रहे हैं!

सबसे बड़ी बात तो ये है कि हमें मार पिटाई करने के लिये मुद्दों की जरूरत नहीं पड़ती. जब दिल में आग हो तो मुद्दों की क्या कमी. धर्म जात के नाम पर तो हम एक दूसरे को सदियों से पीटते आये ही हैं. कभी कभी तो हम एसे एसे बचकाने मुद्दों पर एक दूसरे को पीटने लगते हैं कि बेचारे बुश बाबा को भी ये लगने लगे कि उसने इराक पर हमला करके कुछ गलत नहीं किया.

लेकिन जब असल मुद्दों की बात आती है तो हम दूर खड़े तमाशाई बन जाते हैं.अगर कोई आदमी किसी महिला के साथ बदतमीजी कर रहा हो तो हम दूर खड़े रहेंगे. मैं इन जगह बृहन्नला जैसे शब्द का उपयोग करना चाहता था पर सोचा इससे शबनम मौसी सरीखे लोगों का अपमान होगा.

कोई मायावती अपने एक स्कूल को तुड़वा कर गटर बनवा डालती है और हम घर में दुबके टेलीविजन के सामने बैठे रहते हैं. बुरा लगे तो रिमोट हाथ मे है. चैनल बदल डालेंगे. बस्स. कही कोई पत्ता भी नहीं खडकता.

तो हम यहीं पिटें और पीटें यही तो हमारा चरित्र है. वाकई हम यूपी के लोगों को दूसरे राज्य में पिटने जाने की कतई जरूरत नहीं है.

4 comments:

  1. अरे; हम कैसे सहमत हों। हम तो लिख ही चुके हैं - बम्बई जाओ भाई, गुजरात जाओ

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  2. सही है । पर राजनीति करने वालों का इसमें बडा हाथ है । पहले राज्य के कोटे को अपने लोगों से भरो और उन्हें पिटवाओ ।

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  3. हर्ष जी। यह पूंजी का युग है। जहाँ पूंजी लगेगी वहां नौकरियाँ होंगी। जहाँ नौकरियाँ होंगी वहाँ खरीदक्षमता होगी तो छोटे-मोटे रोजगार पनपेंगे। अब पूंजी मुम्बई में लगेगी तो लोग वहाँ नौकरी करने आएंगे या फिर पूंजी खुद ले कर आएगी। उन के साथ उन के निकट के लोग छोटे रोजगारों के लिए आएंगे।
    पूंजी वहाँ लगेगी जहाँ इन्फ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध होगा। यह सरकारों का काम है कि वह कहाँ इन्फ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध कराती है।
    आप वापस यूपी बिहार जा सकते हैं। बशर्ते कि वहां की सरकारे इन्फ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध कराए। वह भी उस से सस्ता जहाँ आज वह उपलब्ध है। फिर मराठा भी यूपी बिहार जा बसने लगेंगे।
    मैं अपने ही कुछ बच्चों को जानता हूँ जो मुम्बई में रहते हैं। वे एक दिन भी वहां नहीं रहना चाहते। मुम्बई उन्हें कतई पसंद नहीं पर उन के नियोजक वहीं उन को रखना चाहते हैं। और इधर बीमारू राज्यों में नियोजकों का अभाव है।

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