Monday, August 05, 2024

आरक्षण में आरक्षण समानता के सिद्धांत को असल में लागू करेगा

Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी



सर्वोच्च न्यायालय ने अनुसूचित जाति में आरक्षण के लाभ को अनुसूचित जाति में शामिल सभी जातियों को समान रूप से मिल पाने पर एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया है। सात न्यायाधीशों की खंडपीठ का यह निर्णय कई मायने में मील का पत्थर साबित होता दिख रहा है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायाधीश विक्रम नाथ, न्यायाधीश बेला एम त्रिवेदी, न्यायाधीश पंकज मिथल, न्यायाधीश मनोज मिश्रा और न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ के सामने वही प्रश्न था जो पूरे देश के सामने था। अंग्रेजों से भारत के स्वतंत्र हुए 75 वर्ष पूर्ण होने के बाद हिन्दू समाज में सभी जातियों के एक बराबर अधिकार आज तक क्यों नहीं हो पाए। कानून की दृष्टि में सबके एक बराबर होने के बावजूद आरक्षण के जरिये जिन जातीय समूहों को ऊपर उठाकर मुख्यधारा में लाना था, आरक्षण के बावजूद मुख्यधारा में नहीं सके थे। इसके पीछे बार-बार यह कहा जाता था कि, जिन्हें आरक्षण मिल गया, उन्हीं की अगली पीढ़ी को भी आरक्षण का लाभ मिलता रहा और इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि, अनुसूचित जातियों में बड़े जातीय समूह को आरक्षण का लाभ ठीक से नहीं मिल सका। अब सभी जातियों को ठीक से आरक्षण का लाभ मिल सके, इसके लिए सातों न्यायाधीशों की खंडपीठ ने बीस वर्ष पूर्व के सर्वोच्च न्यायालय के ही एक निर्णय को उलटकर अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण में आरक्षण की व्यवस्था लागू करने का निर्णय दिया। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय में स्पष्ट तौर पर यह कहा गया कि, अनुसूचित जातियों और जनजातियों में कुछ जातियों ने ही आरक्षण का पूरा लाभ लिया है, ऐसे में राज्य सरकारों को यह अधिकार दिया गया है कि, विवेकपूर्ण तरीके से पक्के आधार पर जिन जातियों को आरक्षण का अधिकार देने की आवश्यकता दिखती है, उन्हें दिया जाए। इसमें अनुच्छेद 341 की राष्ट्रपति सूची के प्रश्न को भी शामिल किया गया था। सर्वोच्च न्यायालय की सात न्यायाधीशों की खंडपीठ के निर्णय की मूल भावना को स्पष्टता से समझने के लिए न्यायाधीश बीआर गवई की कही एक बात देश में हर किसी को पता चलना चाहिए। वैसे तो ओबीसी आरक्षण के मामले में क्रीमीलेयर पहले से लागू है, लेकिन लंबे समय से यह बात सामने रही है कि, ओबीसी में भी कुछ जातीय समूह ही हैं जो आरक्षण का अधिकांश लाभ ले रहे हैं। इस पर लंबे समय से चर्चा हो रही है और इस पर रोहिणी आयोग की रिपोर्ट भी केंद्र सरकार के पास है। इस रिपोर्ट में स्पष्ट है कि, ओबीसी आरक्षण का अधिकांश लाभ सिर्फ 10 जातियों के लोगों को ही मूल रूप से मिल पा रहा है। ओबीसी में शामिल लगभग 1500 जातियों को इसका पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा है। अब यह रिपोर्ट केंद्र सरकार के पास है, लेकिन लंबे समय से चर्चा के बावजूद केंद्र सरकार भी यह रिपोर्ट लागू करने का साहस नहीं जुटा पा रही है। अब अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण में आरक्षण का उप वर्गीकरण का सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय देश में आरक्षण की समीक्षा करके आरक्षण के लाभ से छूट गए लोगों को शामिल करने का सही रास्ता दिखा दिया है। एक समय में पिछड़ों को आरक्षण देने के लिए मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करने के निर्णय का विरोध सवर्णों की ओर से जिस तरह से हुआ था, कुछ उसी तरह से पिछड़ों और अनुसूचित जाति, जनजाति के आरक्षण का लाभ ले रहे नव सवर्णों को सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय पच नहीं रहा है। 

न्यायाधीश बीआर गवई ने निर्णय सुनाते हुआ कहा कि, जनरल कोच में ऐसा होता है कि जो पहले बाहर रहता है, वह भीतर आने के लिए संघर्ष करता रहता है, जब वह अंदर जाता है तो फिर कोशिश करता है कि बाहर वाला अंदर पाए। उन्होंने इसी बात को और स्पष्ट करते हुए कहा कि, एक शख्स जब आईएएस-आईपीएस बन जाता है तो उसके बच्चे गाँवों में रहने वाले उसके समुदाय की तरह असुविधाओं का सामना नहीं करते, फिर भी उसके परिवार को पीढ़ियों तक आरक्षण का लाभ मिलता रहेगा। अब ये संसद को तय करना है कि, संपन्न लोगों को आरक्षण से बाहर करना चाहिए या नहीं। सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय के बाद संपन्न लोगों को या एक पीढ़ी आरक्षण का लाभ लेने वालों को आरक्षण का लाभ मिले या नहीं, इस पर निर्णय लेने में नरेंद्र मोदी की सरकार को शक्तिशाली पिछड़ी जातियों और अनुसूचित जाति, जनजाति के समूहों का विरोध भी झेलना पड़ सकता है, उस पर राहुल गांधी की अगुआई वाला विपक्ष आरक्षण समाप्त कर देने जैसा चुनावी अभियान फिर से शुरू करने में देर नहीं लगाएगा। इसलिए नरेंद्र मोदी की सरकार इस पर कोई निर्णय करेगी, यह मुश्किल दिखता है, लेकिन नरेंद्र मोदी की सरकार रोहिणी आयोग की रिपोर्ट को लागू करके पिछड़ी जातियों में आरक्षण के लाभ से वंचित बड़े समूह को शामिल करके राजनीतिक नुकसान से बच सकती है। उसका अगला चरण यह अवश्य हो सकता है कि, एक पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी में आरक्षण दिया जाए। संविधान निर्माण के समय बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने समाज में समरसता, बराबरी का जो स्वप्न देखा था, उसे इसी तरह से पूरा किया जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने मोदी सरकार को जातीय विभाजन कम करने का एक बड़ा अवसर दे दिया है। इस जरिये से भारत में समानता का सिद्धांत व्यवहार में लागू किया जा सकता है। भारत की विकास यात्रा के लिए यह सिद्धांत व्यवहार में आना सबसे पहली शर्त है। 

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