Wednesday, July 24, 2024

राजनीतिक संतुलन के साथ विकसित भारत का बजट

Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तीसरा कार्यकाल पहले के दोनों कार्यकाल से कितना अलग है, इसका सही अनुमान तीसरी बार की मोदी सरकार बनने के बाद आए इस बजट से स्पष्ट रूप से पता लग गया है। 543 की लोकसभा में किसी एक पार्टी के 272 से अधिक सांसद होने पर ही एक पार्टी की सरकार बन पाती है। ऐसा न होने पर उसे दूसरी पार्टी से समर्थन लेना पड़ता है। हालाँकि, तीसरी बार की नरेंद्र मोदी सरकार के साथ अच्छा यह है कि, चुनाव पूर्व गठबंधन वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार बिना किसी किंतु परंतु के बन गई है। मोटे तौर पर देखने पर बजट 2024 भी पूरी तरह से नरेंद्र मोदी के विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए तैयार बजट ही दिखता है, लेकिन इस बजट विकसित भारत की आकांक्षा के साथ राजनीतिक संतुलन साधने का प्रयास भी स्पष्ट तौर पर दिखता है। 10 वर्ष की मोदी सरकार के बाद तीसरी बार की मोदी सरकार पर रोजगार पर अलग से बड़े ऐलान करने का दबाव भी स्पष्टता से नजर आ रहा है। सरकार बनते ही घोषित प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए अतिरिक्त 3 करोड़ घरों के लिए बजट प्रावधान कर दिया गया है। एमएसएमई के लिए कई राहत भरे एलान के साथ उनको कर्ज देने का प्रावधान भी बढ़ गया है। प्रधानमंत्री सूर्य घर योजना और बुनियादी ढाँचागत विकास के लिए 11 लाख 11 हज़ार करोड़ रुपये का प्रावधान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतिगत निरंतरता और प्रतिबद्धता को स्थापित कर रहा है, लेकिन सरकार यह नहीं चाहेगी कि, इस बार भी निरंतरता के बजट के तौर पर इसे प्रस्तुत किया जाए। यही वजह है कि, इस बार वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का बजट भाषण शुरू होते ही रोजगार पर चला गया था। उसके साथ ही चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार के महत्वपूर्ण समर्थन पर चल रही तीसरी बार की मोदी सरकार ने बड़े सलीके से विकास की पैकेजिंग में राजनीतिक संतुलन का शानदार उदाहरण प्रस्तुत किया है।   

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दोनों सहयोगियों को केंद्रीय बजट में देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इन दोनों ही राज्यों की तरफ से बार-बार विशेष राज्य के दर्जे की माँग की जा रही थी, लेकिन अभी के नियमों के लिहाज से दोनों ही राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है और ऐसा होने पर दूसरे राज्य भी ऐसी ही माँग कर सकते थे, लेकिन नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू की राजनीतिक प्रतिष्ठा पर कोई दुष्प्रभाव न पड़े, इसका भी ध्यान रखना था। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने उसी को ध्यान में रखते हुए बिहार को विशेष पैकेज राजमार्ग, हवाई अड्डे, बड़े पुल और पर्यटन सर्किट की शक्ल में दे दिया। बक्सर-भागलपुर सड़क परियोजना के लिए प्रावधान हो गया। बिहार में अलग-अलग बुनियादी सुविधाओं के लिए 26 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। नये हवाई अड्डे, राजमार्ग के साथ दूसरी परियोजनाओं के लिए यह रकम स्वीकृत की गई है। इसके अलावा बिहार में बाढ़ की समस्या के निपटारे के लिए 11 हजार 500 करोड़ रुपये अलग से स्वीकृत किए गए। आंध्र प्रदेश से बंटकर तेलंगाना निकला था, उसी समय आंध्र प्रदेश को जो कुछ मिलना था, नहीं मिल पाया था। अब चंद्रबाबू नायडू के पास समय नहीं है। नई राजधानी के साथ पूरा राज्य उन्हें अपने लिहाज से बनाना है, इसीलिए चंद्रबाबू नायडू बजट से पहले अलग-अलग मंत्रालयों से मिलकर अपनी माँग रख चुके थे और उसे सार्वजनिक भी कर चुके थे। नई राजधानी और औद्योगिक गलियारे के लिए केंद्रीय बजट में 15000 करोड़ रुपये देकर नरेंद्र मोदी ने चंद्रबाबू नायडू के उस विश्वास को बढ़ाने की कोशिश की है जो संसद के केंद्रीय कक्ष में सरकार बनने से पहले दिखा था। बिहार और आंध्र प्रदेश को मिला विशेष बजट विकास की पैकेजिंग में राजनीतिक संतुलन का अद्भुत उदाहरण है, लेकिन तीसरी बार की मोदी सरकार ने दूसरे राजनीतिक दबावों में पड़कर किसान सम्मान निधि बढ़ाने या एमएसपी की गारंटी देने जैसा पीछे ले जाने वाला निर्णय नहीं लिया, यह अच्छी बात रही। चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार ने बजट की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। अब राहुल गांधी भले कहें कि, यह कुर्सी बचाओ बजट है, लेकिन राहुल गांधी की पोस्ट ही यह प्रमाणित कर देती है कि, नरेंद्र मोदी की तीसरी बार की सरकार का पहला बजट नीतियों की निरंतरता के साथ आवश्यक सुधार वाला बजट है। राहुल गांधी ने कहा कि, दूसरे राज्यों की कीमत पर तुष्टीकरण किया जा रहा है। जाहिर है, उनका निशाना बिहार और आंध्र प्रदेश के लिए दिया गया विशेष पैकेज था, लेकिन इससे यह भी तय हुआ कि, नरेंद्र मोदी ने बजट में सारी आशंकाओं को ध्वस्त कर दिया था। राहुल गांधी बजट में बिना सिर पैर के दो बार ए लिखकर शायद अंबानी-अडानी जोड़ना चाह रहे थे, लेकिन अगली ही पंक्ति में कांग्रेस की कॉपी है, लिखकर अपनी ही बात को ध्वस्त कर दिया, लेकिन रोजगार को लेकर देश भर में एक वातावरण बना हुआ था और इस पर कुछ ऐसा एलान करना आवश्यक था, जिससे सीधे तौर पर भाजपा समर्थकों को एक मजबूत तर्क मिल सके। एक करोड़ युवाओं को इंटर्नशिप देने का बजट में एलान सरकार के लिए बड़ा हथियार है। युवाओं को भारत की शीर्ष 500 कंपनियों में इंटर्नशिप के समय प्रति माह 5000 रुपये मिलेंगे और इंटर्नशिप में 6000 रुपये की एकमुश्त रकम मिलेगी। पढ़ाई पूरी करके निकले नौजवान को इंटर्नशिप के साथ 66 हजार रुपये पक्के हो जाने से नौजवानों में रोजगार के मसले पर सरकार का पक्ष बहुत हद तक बेहतर होता दिख रहा है और सबसे बड़ी बात यह भी है कि, इसके लिए सरकार को अलग से सरकार खजाने पर बोझ नहीं बढ़ाना पड़ रहा है।  इंटर्नशिप के दौरान 20 लाख युवाओं को प्रधानमंत्री योजना के तहत कुशल बनाया जाएगा। कुशल श्रमिक न मिल पाना उद्योगों की सबसे बड़ी समस्या रही है। अपने पहले कार्यकाल से ही मोदी सरकार कौशल विकास को प्राथमिकता में रख रही है, लेकिन अभी तक इस मामले में ठीक से क्रियान्वयन नहीं हो सका है। पहली नौकरी पाने वाले 30 लाख कर्मचारियों को लाभ देने वाली योजना का भी ऐलान बजट में युवाओं में विश्वास बढ़ाने के लिए की गई दिखती है। एक लाख रुपये प्रति माह वाली नौकरी ईपीएफओ में पंजीकृत होने पर 3 चरणों में 15000 रुपये सरकार की ओर से मिलेंगे। इसके लिए 10 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। नये रोजगार देने वाली कंपनियों को प्रति नौकरी 3 हजार रुपये प्रति माह प्रॉविडेंट फंड के लिए दो वर्ष तक मिलेंगे।  

एमएसएमई अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं और उस रीढ़ को मजबूत करने के लिए इस बजट में भी विशेष प्रावधान किया गया है। MSME मुद्रा लोन सीमा 10 लाख करोड़ रुपये से बढ़ाकर 20 लाख करोड़ कर दी गई है। नई योजना के तहत MSME को 100 करोड़ रुपये तक कर्ज मिल सकेगा। PPP मॉडल के तहत ई कॉमर्स एक्सपोर्ट हब बनाए जाने की बात बजट में कही गई है, इसका लाभ भी MSME को  मिलेगा। अपना कारोबार करने वालों को अब 20 लाख तक का कर्ज बिना गारंटी के मिलेगा, पहले यह सीमा 10 लाख थी। कोविड और दूसरी वजहों से ढेरों कंपनियाँ दिवालियाँ हुई हैं। अच्छी बात है कि, सरकार का ध्यान इस ओर भी है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि, IBC मामलों के लिए अलग ट्रिब्यूनल बनाया गया है और इसके तहत एक लाख करोड़ रुपये के 28 हजार मामलों का निपटारा हुआ। वित्त मंत्री ने डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल सिस्टम गठित करने की भी बात कही है। 11 लाख 11 हजार करोड़ रुपये के कैपिटल एक्सपेंडिचर के साथ सरकार की विकास की राह पूर्ववत आगे बढ़ती दिख रही है। ग्रामीण विकास के लिए 2.66 लाख करोड़,शिक्षा, रोजगार और कौशल के लिए 1.48 लाख करोड़ रुपये, कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के लिए 1.52 लाख करोड़ रुपये आवंटित करने को उसी तरह से देखा जा सकता है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का चौथा चरण गावों में निवेश लेकर आ सकता है। कर छूट के मामले में पिछले बजटों की तरह इस बजट में भी सरकार बहुत उदार नहीं रही है। कुल मिलाकर नये टैक्स रिजीम में टैक्स स्लैब में थोड़ी छूट का लाभ करदाताओं को अवश्य मिल जाएगा। कैपिटल गेन्स टैक्स को लेकर बाजार में नाराजगी देखने को मिली, लेकिन बाजार बंद होते सेंसेक्स और निफ्टी में बहुत मामूली गिरावट बची रह गई। शेयर बाजार भी नरेंद्र मोदी की सरकार के साथ मध्य वर्ग की ही तरह व्यवहार कर रहा था। अपने अनुकूल निर्णय न होने पर थोड़ी देर की नाराजगी और फिर समग्रता में निर्णय देखकर राष्ट्र के लिए आहुति मानकर उसे स्वीकार कर लेना। इस बजट में रोजगार पर जो संदेश नरेंद्र मोदी देना चाह रहे हैं, उसे जमीन पर उतार सके तो विपक्ष के लिए युवाओं की भावनाएँ भड़का पाना आसान नहीं होगा। 

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