Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी
2018 में भारतीय जनता पार्टी कार्यालय के विस्तारित बंगले 9 अशोक रोड पर पत्रकारों के साथ दीपावली मंगल मिलन के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक महत्वपूर्ण बात कही थी। उन्होंने कहा कि, आप पत्रकार पार्टियों के आतंरिक लोकतंत्र को लेकर देश में एक सार्थक चर्चा छेड़ सकते हैं। भारत के राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र से देश के लोकतंत्र की मजबूती या कमजोरी भी तय होती है। यह एक ऐसी बात थी जो चर्चा में हमेशा से थी, सबके ध्यान में थी, लेकिन इस पर कभी उस तरह से चर्चा नहीं हुई। आसानी से कोई भी कह देता था, मान लेता था कि, कांग्रेस पार्टी तो गांधी परिवार की इच्छा से ही चलेगी, इसमें गलत क्या है। ऐसे ही करुणानिधि परिवार, शरद पवार परिवार, मुलायम परिवार, लालू परिवार आदि आदि अपनी पार्टी चाहे जैसे चलाएँ, उस पर भला किसी चर्चा से क्या लाभ हो सकता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दरअसल भारतीय जनता पार्टी और दूसरी पार्टियों के बीच का जो भेद है जो अंतर है और जो बेहद महत्वपूर्ण है उसे समझा रहे दीपावली मंगल मिलन में पत्रकारों के बीच में वह बात रखने की उनकी कोई बड़ी रणनीति रही हूँ और इस रणनीति का असर भी दिखा। शायद उसी रणनीति का प्रभाव रहा होगा कि कांग्रेस पार्टी जहाँ 20 वर्षों से लगातार सोनिया गांधी अध्यक्ष पद पर क़ाबिज़ रहे थे और उसके बाद अपने पुत्र राहुल गांधी ख़ुशी ख़ुशी पर बिठा दिया उनको मल्लिकार्जुन खड़गे खड़गे को कांग्रेस अध्यक्ष पद पर बिठाना छोटी बात नहीं इसे कांग्रेस पार्टी मानेंगे नहीं लेकिन कांग्रेस पार्टी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस विमर्श का दबाव था और उस पर मैंने भी लेख लिखा था इसी दैनिक जागरण अखबार में लिखा था। और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को लाल क़िले की प्राचीर से एक नया विमर्श किया है हालाँकि यह विमर्श कोई नया नहीं है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जबसे सप्ताह में आए हैं 2 बातें वो बड़ी मज़बूती से कहते हैं एक भ्रष्टाचार और दूसरा वंशवाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो यह भी कहते हैं कि वंशवाद और भ्रष्टाचार दोनों एक दूसरे से जुड़े हैं। अगर आप ध्यान से देखें तो प्रधानमंत्री बिलकुल दुरुस्त बात कह रहे हैं क्योंकि जब एक तरह से वंशवादी पार्टियाँ उसी पार्टी के भी 2 पीढ़ी, तीन पीढ़ी लगातार सत्ता में रहती हैं तो भ्रष्टाचार अपने आप उससे आगे बढ़ता रखता है। और थोड़ा गहराई से आगे देखें तो प्रधानमंत्री जिस आंतरिक लोकतंत्र की बात करते थे उसी का दूसरा चरण है वंशवाद और उसी का तीसरा चरण है भ्रष्टाचार शायद यही वजह है कि उस सारी पार्टियां जिनमें आंतरिक लोकतंत्र नहीं है जिन पार्टियों में वंशवादी राजनीति प्रबलता से हैं वहीं सबसे अधिक भ्रष्टाचार दिखाई देता है। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो लाल क़िले की प्राचीर से कहा उसे ध्यान से सुना जाना चाहिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि एक लाख नौजवानों को जो किसी परिवार से नहीं आते हैं, उन एक लाख नौजवानों को राजनीति में लेकर आएँगे और इसका प्रभाव बड़ा सुंदर पड़ा मैंने सोशल मीडिया पर देखा बहुत से युवाओं ने ये लिखा कि अब लगता है कि राजनीति में आने का यह उचित समय है। भारत की राजनीति में युवाओं की हिस्सेदारी बहुत कम होती है। अभी जो हम देख रहे हैं कि थाईलैंड में बहुत कम उम्र की एक नौजवान महिला वो प्रधानमंत्री बन गई है। थाईलैंड की नई प्रधानमंत्री की उम्र मात्र 37 वर्ष हालाँकि वो भी राजनैतिक परिवार से आती हैं। उनसे पहले उनके परिवार से दो और लोग प्रधानमंत्री रह चुके हैं इसके बावजूद हम भारत में यह कल्पना भी नहीं कर सकते कि कोई इतनी कम उम्र का व्यक्ति प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे। राहुल गांधी 54 वर्ष के हो चुके हैं और 20 वर्षों के संसदीय जीवन के बावजूद अब जाकर कहा जा रहा है कि भारत जोड़ो यात्रा और भारत जोडो न्याय यात्रा ने उनको कुछ परिपक्व किया है। इस सबके बावजूद नेता प्रतिपक्ष के तौर पर भी राहुल गांधी जिस तरह का व्यवहार करते दिखते हैं वो भी बताता है कि परिपक्वता के स्तर पर राहुल गांधी को अभी बहुत कुछ करना बाक़ी है।
वैसे भी राहुल गांधी को लगता है कि गांधी परिवार का होना उनके लिए पर्याप्त है और अगर आप ध्यान से देखें तो गांधी परिवार का होने की वजह से ही राहुल गांधी को इतना महत्व मिलता है और वो महत्व भी इतना अधिक है कि सब घूम फिरकर राहुल गांधी कितनी भी अनिच्छा करते हैं कितना भी मना करते हैं एकदम से राजनीति से दूर जाना चाहे उसे ज़हर बताएँ लेकिन उसके बावजूद पूरी की पूरी कांग्रेस पार्टी उनके ही सामने नतमस्तक रहती है और सिर्फ़ इतना भर नहीं है कि राहुल गांधी के सामने नतमस्तक रखती है आपका ध्यान से देखें तो कांग्रेस पार्टी में नेताओं की नहीं परिवारों की राजनीति होती है। बिना किसी लाग लपेट के कहें तो कांग्रेस में विशुद्ध वंशवादी राजनीति होती है। अब इस तरह की वंशवादी राजनीति में नए लोगों के लिए नौजवानों के लिए कोई अवसर होगा, यह लगभग असंभव होता है। भारतीय राजनीति में कांग्रेस पार्टी के धीरे धीरे इतनी गंभीर तरीके से क्षरण होने की एक बड़ी वजह यही थी कि वंशवादी राजनीति की वजह से नए चेहरे ही नहीं तैयार हो रहे थे। जनता नए चेहरे न होने की वजह से कांग्रेस पर भरोसा खोती जा रही थी। देश का नौजवान अगर देश में राजनीति से दूर होता गया तो उसकी सबसे बड़ी वजह कांग्रेस पार्टी और उससे निकली हुई पार्टियों का वंशवादी राजनीति करना था।
2024 के लोकसभा चुनावों में आए परिणामों को देखें तो लाल क़िले की प्राचीर से नौजवानों को राजनीति में लाने के प्रधानमंत्री के संकल्प की वजह कुछ हद तक सामने आ जाती है। दरअसल 2024 के चुनाव में जिन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की गाड़ी रुक गई या कहें कि पीछे चली गई, अगर ध्यान से देखें तो वहाँ भारतीय जनता पार्टी नौजवानों को प्रतिनिधित्व देने में रह गई या कहें कि, नये नेतृत्व को टिकट देने में संकोच कर गई और वहाँ भी वही वंशवादी राजनीति हावी हो गई। गुजरात में भारतीय जनता पार्टी ने पूरी तरह से वंशवाद को समाप्त कर दिया और वंशवादी ही नहीं, लंबे समय से जम कर बैठे नेताओं को टिकट तक नहीं दिया। मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री से लेकर विधायक तक सब चेहरे नये हो गए और भारतीय जनता पार्टी को इस प्रयोग से कमाल का परिणाम मिला। दरअसल जब नए चेहरों को प्रतिनिधित्व मिलता है तो लोगों में उम्मीद बढ़ती है। नौजवान को भी लगता है कि, आज नहीं तो कल हमारी भी बारी आएगी। उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में यही भारतीय जनता पार्टी नए चेहरों को, नौजवानों को टिकट देने में नाकाम रही। जो टिकट नौजवानों को दिए भी वो वंशवादी राजनीति के ही प्रतीक थे और सिर्फ़ किसी बड़े नेता के पुत्र होने की वजह से जनता उनको जिता देती ऐसा नहीं हो सका। 2014 में उत्तर प्रदेश में शानदार प्रदर्शन अगर भारतीय जनता पार्टी ने किया उसकी एक बड़ी वजह यह रही कि अमित शाह ने संगठन में नए लोगों को, नए चेहरों को मौक़ा दिया लंबे समय से जमे बैठे लोगों को धीरे धीरे राजनीति से बाहर किया जन प्रतिनिधित्व से बाहर किया और उसका सुखद परिणाम रहा कि भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश में अप्रत्याशित परिणाम मिले। जनता को 2019 में भी उन सांसदों को जिताने में अधिक संकोच नहीं हुआ जबकि बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी का अजेय समझा जाना वाला समझा जाने वाला गठजोड़ था, लेकिन 2024 में जब भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें चेहरों को फिर से आगे बढ़ाया तो जनता को यह दिखा कि, भारतीय जनता पार्टी जमे जमाए चेहरों को ही राजनीति में आगे बढ़ा रही है और नौजवानों को अवसर नहीं मिल पा रहा है। अभी एक लाख नौजवानों को राजनीति में लाने की बात कहकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय जनता पार्टी की भविष्य की राजनीति पक्की करने की कोशिश कर रहे हैं। इसके साथ ही दूसरे राजनीतिक दलों के लिए यह बड़ी चुनौती भी होगी कि कैसे वह वंशवादी राजनीति से, जमे जमाए चेहरों की राजनीति से बाहर आ सकें। भारतीय जनता पार्टी में भी वंशवादी नेताओं का, पारंपरिक तौर पर राजनीति करने वालों का, जमे जमाए नेताओं का एक बड़ा वर्ग पैदा हो गया है। ज़ाहिर है एक लाख नौजवान अगर राजनीति में आएंगे तो उन सभी जमे जमाए चेहरों को, वंशवादी राजनीति करने वालों को बड़ी मुश्किल होने वाली है, लेकिन नरेंद्र मोदी तो ऐसे ही राजनीति के लिए जाने जाते हैं और यही राजनीति करके भारतीय राजनीति में अप्रत्याशित, चमत्कारिक सफलता नरेंद्र मोदी ने प्राप्त की है।
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