Friday, November 11, 2022

नैनीताल यात्रा में इस छोटी सी घटना से भारत की समझ और पक्की हुई

 हर्ष वर्धन त्रिपाठी Harsh Vardhan Tripathi

भारत को समझना है तो भारत घूमते रहिए। घूमते-टहलते आपको ऐसा ज्ञान प्राप्त हो जाएगा जो बहुत ज्ञानी, विद्वान की लिखी पुस्तक में भी शायद ही मिले और मिले भी तो शायद आपके मन मस्तिष्क में ठहर न सके। अब भारत की समझ मन मस्तिष्क में ठहरे, इसके लिए घर में ही या अपने कार्यालय या अपने घेरे में ही न ठहरे रहिए। थोड़ा कहीं और जाकर भी ठहरिए। ऐसे ही कहीं जाकर ठहरने के क्रम में लंबे समय के बाद परिवार सहित यात्रा पर निकाला। नोएडा से नैनीताल की यात्रा भी निर्बाध और सुहानी रही। तीन दिनों के नैनीताल भ्रमण में सबकुछ देखा जो पहाड़ों पर जाकर देखना चाहिए, लेकिन भारत की समझ वाली बात तो बस यूं ही समझ आ गई और यह भी समझ आया कि, जो भारतीयों को हिन्दू धर्म अफीम बताकर डराते रहते हैं, क्यों धीरे-धीरे शून्य होते जा रहे हैं। शून्य में जाकर शायद उन मूढ़ों को ब्रह्म समझ आए। 


नैनीताल में एक एडवेंचर स्पोर्ट्स का ठिकाना बना है। हमें हमारे टैक्सी ड्राइवर लेकर गए जो अलीगढ़ से नैनीताल जाकर बस गए हैं। बता रहे थे कि, कैसे शुरू में बहुत समय तक लोग उन्हें घर भी किराए पर नहीं देते थे। खूब लड़ाई होती थी कि, मैदान से लोग आकर पहाड़ पर बसे जा रहे हैं। उनका हिस्सा कब्जा रहे हैं। अवसर खोजने के लिए अपना घर छोड़ना और अपने घर में दूसरा आकर अवसर बना ले रहा है, इससे अपना हिस्सा छिन रहा है, यह लड़ाई अनवरत जारी है। प्रवासियों से ही विकास क्रम है और प्रवासियों का ही संघर्ष है। हमारा भी मूल गांव तो अभी भी प्रतापगढ़ ही है। हमारे बाबा (दादू) इलाहाबाद आ गए थे। 


तो हमारे लिए प्रयागराज प्रिय हो गया। प्रतापगढ़ भी उतना ही प्रिय है। फिर दिल्ली, कानपुर, देहरादून, मुम्बई होते अब नोएडा में प्रवासी से स्थानीय हो गए हैं। विकास क्रम यही है। अपना मूल स्थान छोड़ना और अपने मूल से जुड़े रहने का संघर्ष। इस संघर्ष में संतुलन बना पाने वाला विकास के साथ समाज में भी जिंदा रहता है। वसीम बरेलवी की पंक्तियां हैं कि, जिंदा हो तो फिर जिंदा नजर आना भी जरूरी है। जिंदा रहते तो सब हैं, लेकिन इसी जिंदा नजर आने के चक्कर में व्यक्ति, मोदी जी के शब्दों में सामान्य मानवी, जाने क्या-क्या करता है। इसी जिंदा नजर आने के चक्कर में तो हम सपरिवार नैनीताल तक गए थे।

नैनीताल में भी हमारे अलीगढ़ वाले टैक्सी ड्राइवर एडवेंच स्पोर्ट्स वाले ठिकाने तक लेकर चले गए। गए तो यह सोचकर कि, सिर्फ बच्चों को रोमांचक खेलों में शामिल कराएंगे। लटकते एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने वाला खेल हमें भी रोमांचक लगा। हमने मन बनाया और अर्धांगिनी डॉक्टर कंचन को भी इस रोमांच में सहभागी बना लिया, लेकिन मन बनने से पहले जो हुआ, वही भारत की समझ है। संयोग ऐसा बना था कि, हम लोगों की नैनीताल यात्रा दशहरे, नवरात्र के समय हुई। हम लोग सोच ही रहे थे कि, रोमांचक खेलों में शामिल हुआ जाए या नहीं। बच्चों का भी मन बहुत बन नहीं रहा था। इसी बीच उस जगह को संभाल रही महिला ने कहा, बेटियों को प्रसाद देना है। फिर जब दक्षिणा देने लगीं तो मैंने कहा- प्रसाद दे दीजिए, पैसे नहीं लेंगे। मंजू जी ने कहा- कन्या पूजन के लिए दे रही हूं। भारत में बेटियों को सम्मान देने, पूजने की परंपरा की तुलना विश्व के किसी दूसरे मॉडल से हो ही नहीं सकती है। भारत जिंदा लोगों का देश है, यहां लोग जिंदा नजर आने के अपनी परंपरा जीते हैं और मंजू जी के चित्र देखकर आसानी से समझा जा सकता है कि, कितनी जिंदादिल हैं मंजू जी। हमारे संस्कार, संस्कृति, धार्मिक परंपराएं ही हमें जोड़ती हैं, भारत बनाती हैं। यहां अलीगढ़ से आए हमारे टैक्सी ड्राइवर की तरह पहाड़ मैदान का संघर्ष भी नहीं है। उन्होंने तो हमसे पूछा ही नहीं कि, हम किसी जाति से हैं। संयोगवश हम जन्मना जाति व्यवस्था से ब्राह्मण हैं। बाद में थोड़ी बातचीत करके हमने उनके बारे में जाना और उन्होंने थोड़ा हमारे बारे में। हम प्रयागराज से हैं और ब्राह्मण हैं, यह जानकर उनकी प्रसन्नता बढ़ गई। हालांकि, बेटियों को पूजते उन्होंने मुझसे जाति नहीं पूछी थी और मंजू जी जन्मना जाति व्यवस्था में राजपूत हैं। भारत समझने के लिए यात्राओं में रहिए। ठहरते रहिए, भारत मन मस्तिष्क में ठहरा रहेगा।     


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