Thursday, November 10, 2022

गुजरात में इतना स्पष्ट जनादेश दो दशक बाद आ रहा है

हर्ष वर्धन त्रिपाठी Harsh Vardhan Tripathi



अहमदाबाद के साबरमती रिवरफ्रंट पर सुबह-सुबह सैर करते सामने के पार्क में कई बच्चे पटाखे बजा रहे थे। बेधड़क, उनको पर्यावरण की चिंता थी और ही अहमदाबाद की पुलिस की। उनको कतई डर, आशंका नहीं थी कि, उनके पटाखे जलाने से अहमदाबाद का प्रदूषण इतना बढ़ जाएगा कि, उन्हें और अहमदाबाद के दूसरे लोगों को साँस लेने में भी मुश्किल होने लगेगी। ऊपर नीले आसमान के नीचे और बगल में शानदार रिवरफ्रंट के बगल में बने पार्कों में अहमदाबाद के फरहान अपने दोस्तों के साथ सुबह-सुबह ही मजे से पटाखे बजा रहे थे। उन्हें यह डर भी नहीं था कि, अहमदाबाद पुलिस उन्हें पटाखे फोड़ने के जुर्म में गिरफ्तार कर लेगी। दीपावली से एक सप्ताह पहले ही फरहान और उनके दोस्त जमकर पटाखेबाजी कर रहे थे और दिल्ली में लगातार बढ़ते प्रदूषण से दिल्ली वालों को साँस लेने में दिक़्क़त होने लगी है। अरविंद केजरीवाल की सरकार ने पटाखों पर प्रतिबंध के साथ छह महीने की जेल भी भेजने की चेतावनी दे दी है। ऐसे में दिल्ली से अहमदाबाद जाकर चुनावी रिपोर्ट तैयार करने, चुनावी मन मिजाज समझने की इच्छा रखने वाले हम जैसे पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक के लिए साबरमती रिवरफ्रंट पर यह पटाखेबाजी कई वजहों से आकर्षित कर रही थी। पटाखे फूटने के बाद मैंने उन लोगों से बात की। सारे ही बच्चे मुसलमान थे और सारे बच्चे अभी मतदान की उम्र से कम के थे। मैंने पूछा- चुनावी चर्चा करोगे। सभी ने सकुचाते कहा- नहीं। पूछने पर सबने एक स्वर में बताया कि, भाजप, कांग्रेस, एआईएमआईएम और आम आदमी पार्टी, यह राजनीतिक दल हैं जो, गुजरात के चुनावी मैदान में हैं। पूछने पर सबने बताया कि, माहौल आप का है, लेकिन जीतेगी भाजप ही। गुजरात विधानसभा चुनाव का यही सार है। दिल्ली से देश के दूसरे राज्यों का राजनीतिक चित्र कभी स्पष्ट नहीं दिखता। दरअसल, दिल्ली से दिखने वाला, राज्यों का राजनीतिक चित्र असल चित्र का आवरण होता है। बस उतना ही समझ आता है। गुजरात विधानसभा चुनाव को भी दिल्ली से ऐसे ही देखा जा रहा है। हालाँकि, दिल्ली से अहमदाबाद जाने से पहले तक मुझे लगता था कि, आम आदमी पार्टी का खाता खुलना भी गुजरात में मुश्किल ही है, लेकिन अहमदाबाद में कुछ दिन बिताने और गुजरातियों से मिलने, चर्चा करने के बाद एक बात समझ में आने लगी कि, मोदी और भाजपा विरोधी मतों में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी सेंधमारी कर रही है। अब यह बात अलग है कि, गुजरात, देश के दूसरे राज्यों जैसा नहीं है, इसलिए अरविंद केजरीवाल की शैली वाली राजनीति यहाँ उस तरह से असरकारी नहीं होती, जैसी दिल्ली में हुई या फिर बाद में पंजाब में। गुजरात में नरेंद्र मोदी पर लोगों को अगाध विश्वास है और गुजरातियों को लगता है कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वजह से उनके राज्य की प्रतिष्ठा कई गुना बढ़ी है। साथ ही देश के विकास में गुजरात मॉडल का योगदान उन्हें अधिक गौरवान्वित करता है। यही वजह है कि, कई तरह की समस्याओं के बीच जब कोई भी सवाल करता है कि, इस बार भाजपा आएगी या नहीं तो जवाब एक ही आता है कि, आएगा तो मोदी ही। 


नरेंद्र मोदी ने पहले मुख्यमंत्री रहते और फिर प्रधानमंत्री रहते गुजरात के विकास की यात्रा को लगातार तेजी दी है। चुन-चुनकर गुजरात के हर हिस्से में विकास की बुनियाद मजबूत की है। आदिवासी, पिछड़े क्षेत्र केवड़िया में सरदार पटेल की प्रतिमा लगाना हो या फिर भुज में स्मृति उपवन, यह सब साबरमती रिवरफ्रंट, वाइब्रैंट गुजरात, रण उत्सव, गिफ्ट सिटी का विस्तार ही है। अहमदाबाद का साबरमती आश्रम रिवरफ्रंट की वजह से अधिक दर्शनीय हो चला है, लेकिन राजकोट में महात्मा गांधी संग्रहालय के बारे में गुजरात से बाहर के लोग कम ही जानते हैं। गांधी जी की शिक्षा यहाँ हुई थी और यहाँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शानदार संग्रहालय बनाया है। गुजरात के राष्ट्रनायकों को सम्मानित करते उसके इर्द गिर्द गुजरातियों के लिए समृद्धि का केंद्र तैयार करने की नरेंद्र मोदी की यह शैली अनूठी है। आज गुजरातियों के लिए गांधी, पटेल के बाद नरेंद्र मोदी ही गर्वी गुजरात के चेहरे के तौर पर स्पष्ट दिख रहे हैं और ऐसे में जब गोपाल इटालिया या कोई भी नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी माँ के बारे में अपशब्दों का प्रयोग करता है तो गुजराती उससे किस हद तक चिढ़ने लगता है, इसका अनुमान लगा पाना मुश्किल है। गुजरात ने नरेंद्र मोदी के शासनकाल में सड़क, बिजली, पानी की उपलब्धता के साथ ही कारोबारी उंचाइयों को छुआ है और मई 2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनकर दिल्ली चले गए तो भी उनकी नजर से गुजरात जरा सा भी ओझल नहीं हुआ। आनंदीबेन, विजय रुपानी और अब भूपेंद्र पटेल को भी गुजरात की जनता नरेंद्र मोदी के उस प्रतिनिधि के तौर पर ही देखती है जो उनका खड़ाऊँ रखकर राज चला रहा है। नर्मदा पर बांध बनाने और उसका जल गुजरात लाने के लिए नरेंद्र मोदी के प्रयासों को गुजरात की जनता भागीरथ प्रयास के तौर पर ही देखती है। टाटा की नैनो का गुजरात आना हो या फिर फॉक्सकॉन-वेदांता की सेमीकंडक्टर यूनिट का, गुजरात के लोगों को लगता है कि, नरेंद्र मोदी की वजह से गुजरात में ऐसा माहौल तैयार हुआ है कि, उनके गुजरात के मुख्यमंत्री रहने पर भी देश-दुनिया की हर कंपनी को निवेश के लिए सबसे सुरक्षित राज्य गुजरात ही दिखता है। और, सुरक्षा सिर्फ कारोबार के लिहाज से ही नहीं है। गुजरात के शहरों में आधी रात के बाद भी जगमगाते बाजार गुजरातियों के मन में सुरक्षा के श्रेष्ठ भाव की गवाही दे रहे होते हैं। बाबा साहब अंबेडकर ओपन यूनिवर्सिटी में इंजीनियर की नौकरी के लिए परीक्षा देने आई मनीषा ने चहकते हुए बताया कि, गुजरात में लड़कियों में स्वतंत्रता, सुरक्षा का भाव रहता है। राजधानी अहमदाबाद की सड़कों पर भी पुलिस की मौजूदगी बहुत अधिक नहीं दिखती, लेकिन सीसीटीवी और आधुनिक तकनीक के जरिये किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए गुजरात पुलिस पूरी तरह से मुस्तैद दिखती है। कमाल की बात यह है कि, गुजरात में पुलिस का डर किसी को नहीं लगता और इसिलए पुलिस के होने से किसी को डर नहीं लगता। यही वजह है कि, मध्य रात्रि के बाद भी साबरमती रिवरफ्रंट से लेकर फूड प्लाजा में हिन्दू मुसलमान, लड़के लड़कियाँ, बुजुर्ग सब मजे से घूमते, खाते-पीते मिल जाते हैं। 


नरेंद्र मोदी 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने, लेकिन उससे पहले से 1995 से गुजरात में भारतीय जनता पार्टी शासन में है। भारतीय जनता पार्टी को सत्ताइस वर्ष बाद भी गुजराती क्यों चुनने जा रहा है, इसका जवाब खोजना रहस्य खोजने जैसा नहीं है। शांति, सुरक्षा, समृद्धि छिन जाने या कम हो जाने का डर गुजरातियों के लिए सबसे बड़ा है और इसीलिए तीस वर्ष से कम का नौजवान भले ही भाजपा सरकार की कमियों पर भी खुलकर बात करता है क्योंकि, उसने भाजपा से पहले की सरकारों को देखा ही नहीं है, लेकिन उससे पहले की पीढ़ी याद कराती रहती है कि, कैसे गुजरात में हिन्दू मुस्लिम दंगे सामान्य बात थी। इस सबके बावजूद पिछले चुनावों से एक बात बिल्कुल अलग है। आम आदमी पार्टी पूरे दमखम के साथ गुजरात में है। सूरत के कुछ क्षेत्रों में पार्षद जीतने के बाद से उसका जोश बढ़ा हुआ है। कांग्रेस की निष्क्रियता का लाभ भी आम आदमी पार्टी को मिल सकता है, लेकिन आम आदमी पार्टी को मिलने वाला लाभ कांग्रेस के खाते से ही उसके खाते में जाएगा। भाजपा का चुनावी खाता जस का तस है। भारतीय जनता पार्टी का सरकार बनाना तय है। अब कांग्रेसी खाते में सेंध लगाने की आम आदमी पार्टी की कोशिश जितनी सफल होती जाएगी, उतना ही भारतीय जनता पार्टी माधव सिंह सोलंकी के रिकॉर्ड के नजदीक पहुँचती जाएगी। गुजरात चुनाव का सार यही है।

(स्वदेश समाचार पत्र में आज यह लेख छपा है)

1 comment:

  1. आठ दिसम्बर को देखेंगे क्या रहा। :-)

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