भारत सरकार के लिए ये फैसला लेना इतना आसान नहीं
था। लेकिन, सरकार की इस बात के लिए तारीफ की जानी चाहिए कि भारत ने चीन की
अतिमहत्वाकांक्षी OBOR
योजना से खुद को पूरी तरह
बाहर ही रखा है। कठिन फैसला इसलिए भी क्योंकि, भारत के 2 सम्वेदनशील पड़ोसी देशों
पर OBOR के जरिए चीन का बढ़ता प्रभाव जल्दी ही दिखने
लगेगा। नेपाल ने इस बात को स्वीकारा कि इतनी बड़ी आर्थिक गतिविधि से हम कैसे
किनारे रह सकते हैं। और, पाकिस्तान तो OBOR के सबसे महत्वपूर्ण CPEC यानी चीन पाकिस्तान आर्थिक
गलियारे का एक अहम पक्ष ही है। पाकिस्तान भारत के लिहाज से दुश्मन देश जैसा है और CPEC के पाक अधिकृत कश्मीर, बलूचिस्तान और दूसरे
विवादित इलाकों से गुजरने की वजह से भारत को इस गलियारे पर कई कड़े एतराज हैं।
लेकिन, चीन ने इसे पूरी तरह से खारिज कर दिया है। वन बेल्ट वन रोड की इस
अतिमहत्वाकांक्षी योजना के जरिए चीन भले ही दुनिया के 60 देशों को जोड़ने का दावा
कर रहा हो। लेकिन, सच्चाई यही है कि इसके जरिए वो अपनी टूटती अर्थव्यवस्था को
मजबूती से जोड़ने की कोशिश कर रहा है। साथ ही चीन इसके जरिए कमजोर देशों को कर्ज
देकर और सामरिक तौर पर निर्भर बनाकर उन्हें अपने उपनिवेश के तौर पर भी इस्तेमाल
करने की योजना बना रहा है। ये बात अब धीरे-धीरे ही सही लेकिन, खुलकर सामने आ रही
है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विदेश मंत्री सुषमा
स्वराज और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल इस पर एकमत थे कि चीन की मंशा इस
मामले में ठीक नहीं है। विदेश सचिव एस जयशंकर ने कहाकि “ये बड़ा मुद्दा है कि देशों को जोड़ने वाला
रास्ता बनाने का काम आम सहमति से होगा या फिर किसी एक पक्ष के तय फैसले के आधार
पर।“ जयशंकर ने कहाकि “चीन अपनी सम्प्रभुता का लेकर बेहद सम्वेदनशील
है। हम उम्मीद करते हैं कि चीन को भी दूसरों की सम्वेदना का ख्याल होगा। CPEC ऐसे इलाके से गुजर रहा है, जो पाक अधिकृत कश्मीर
से गुजरता है। ये इलाका भारत का है, जिस पर पाकिस्तान ने अवैध तौर पर कब्जा कर रखा
है। ” हालांकि, चीन ने भारत की आपत्तियों को सिरे
से खारिज कर दिया और बीजिंग में OBOR की शुरुआत के मौके को भव्य बनाने के लिए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सहित
29 देशों के मुखिया मौजूद थे। OBOR को हर देश कितने बड़े मौके के तौर पर देख रहा है, इसका अन्दाजा इसी से लगाया
जा सकता है कि अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम के प्रतिनिधि भी इस
मौके पर मौजूद थे। इसके बावजूद भारत का इस पूरे आयोजन का बहिष्कार करना बड़ी बात
थी। इतना ही नहीं भारत में भी
बड़े जानकार इस मसले पर भारत के अकेले पड़ने को लेकर चिन्तित हैं। विदेशी
मामलों के जानकार कांति बाजपेई लिखते हैं “चीन के बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव से बाहर रहकर भारत ने खुद को अकेला कर लिया
है।” OBOR के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से CPEC को लेकर भारत के एतराज पर
कांति बाजपेई लिखते हैं कि “चीन ने 1963 से भारत की जमीन
पर कब्जा जमा रखा है। भारत ने चीन के साथ कारोबार बंद तो नहीं कर दिया।”
तार्किक लिहाज से देखें, तो कांति बाजपेई की बात
सही लगती है। लेकिन, मुझे लगता है कि भारत की सम्प्रभुता और सामरिक लिहाज के अलावा
आर्थिक नजरिए या मौके के लिहाज से भी भारत का OBOR में शामिल नहीं होना बेहतर फैसला है। चीन की असली चिन्ता ही यही है कि तरक्की
की रफ्तार के मामले में दुनिया में सबसे आगे रहे और अब जो दिख रहा है, उसमें भारत
सबसे तेज तरक्की करने वाला देश बन रहा है। हालांकि, चीन भारत से 5 गुना बड़ी
अर्थव्यवस्था है। लेकिन, अगर भारत सबसे तेज तरक्की करने वाला देश लगातार बन गया,
तो दुनिया के निवेशक और रेटिंग एजेंसियां चीन को कमतर करके देखने लगेंगी। इसी
आशंका को खारिज करने के लिए चीन OBOR लेकर आया है। विकसित देशों
अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी और यूनाइटेड किंगडम की कम्पनियों को इसमें मौके दिख रहे
हैं। जबकि, रूस इसका इस्तेमाल अमेरिका के खिलाफ चीन और पाकिस्तान का एक गठजोड़
बनाकर करना चाह रहा है। इस लिहाज से रणनीतिक, सामरिक या आर्थिक तीनों ही दृष्टिकोण
से OBOR भारत के लिए बेकार है।
भारत को अपनी आर्थिक या सामरिक मजबूत के लिए देश
से बाहर ऐसी किसी योजना में शामिल होने की जरूरत नहीं है। भारत सरकार को OBOR की बजाए EWHW पर ध्यान देना चाहिए। OBOR में सुरक्षा के लिहाज से
खतरे की आशंका इतनी ज्यादा है कि चीन की 71% कम्पनियां शी
जिनपिंग की इस अतिमहत्वाकांक्षी योजना में राजनीतिक खतरे देख रही हैं।
अफगानिस्तान, पाकिस्तान, इराक, सीरिया और यमन से होकर गुजरने वाले इस रास्ते के
बनने में ढेरों मुश्किलें हैं। बीजिंग के शोध संस्थान सेंटर फॉर चाइना एंड
ग्लोबलाइजेशन के सर्वे में 300 कम्पनियां शामिल हुईं थीं। इसीलिए भारत और
भारतीय कम्पनियों के लिए OBOR की बजाए EWHW ही काम का है। EWHW मतलब एवरीवेयर हाईवे। भारत में पहली बार अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार
ने हाईवे के महत्व को समझा और स्वर्णिम चतुर्भुज योजना के जरिए देश को जोड़ा।
दिल्ली-कोलकाता, कोलकाता-चेन्नई, चेन्नई-मुंबई और मुंबई-दिल्ली को जोड़कर बने 5846
किलोमीटर के हाईवे से लगभग देश का हर बड़ा शहर जुड़ गया था। 6 जनवरी 1999 को इसकी
आधारशिला रखी गई थी और जनवरी 2012 में ये परियोजना पूरी हो गई थी। यही वो सड़क
परियोजना थी, जिसके बाद आम भारतीय सड़क के जरिए एक शहर से दूसरे शहर फर्राटा भरने
लगा था। इसके पहले तक मौर्य शासक चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में बनी और मुगल बादशाह शेरशाह सूरी की ठीक कराई 2 लेन और
कहीं-कहीं तो सिंगल लेन वाली ग्रांड ट्रंक रोड (जीटी रोड) से ही भारत यात्रा
धीरे-धीरे खिसकता रहा। स्वर्णिण चतुर्भुज ने हिन्दुस्तानियों को 4-6 लेन की सड़क
पर झूमते हुए मस्ती से यात्रा का आनन्द लेना सिखाया। दुनिया की कार कम्पनियों के
लिए सबसे पसन्दीदा ठिकाना भी भारत इन्हीं हाईवेज की वजह से बना। मुंबई-पुणे
एक्सप्रेस वे से शुरू हुआ ये सफर अभी उत्तर प्रदेश में ग्रोटर नोएडा से आगरा को
जोड़ने वाले यमुना एक्सप्रेस वे और आगरा से लखनऊ को जोड़ने वाले एक्सप्रेस वे तक
पहुंच चुका है। लेकिन, इसके बाद EWHW की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देश
की कुल सड़कों में हाईवे की हिस्सेदारी 2% से भी कम की है। जबकि, इन्हीं 2% सड़कों पर देश के 40% यातायात का दबाव है। संसद में सरकार की ओर से बताया गया है कि
2013-14 में 4,260 किलोमीटर, 2014-15 में 4,410 किलोमीटर और 2015-16 में 6,061
किलोमीटर का राष्ट्रीय राजमार्ग बनाया गया। इस लिहाज से सड़कों के बढ़ने का आंकड़ा
देखा जाए, तो 1951 से लेकर 2015 तक सालाना 4.2% की रफ्तार से
सड़कें बढ़ी हैं। लेकिन, एवरीवे हाईवे का मतलब सिर्फ और सिर्फ सड़कें बनाना
नहीं है। इसका मतलब जहां, जिस रास्ते से कोई जाना चाहे, उसकी यात्रा सुगम, सुखद
होनी चाहिए। फिर वो सड़क मार्ग हो, रेल मार्ग हो या फिर जल मार्ग।
अच्छी बात ये है कि सड़क परिवहन, हाईवे और पोत परिवहन मंत्री नितिन गडकरी की गिनती मोदी
सरकार के सबसे अच्छा काम करने वाले मंत्रियों में होती है। मोदी सरकार में
प्रतिदिन 22 किलोमीटर हाईवे बन रहा है और गडकरी इसे 30 किलोमीटर प्रतिदिन तक ले जाना चाहते हैं।
स्वर्णिम चतुर्भुज की ही तर्ज पर
मोदी सरकार अब भारतमाला परियोजना शुरू कर रही है। सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी
इसके तहत 20000 किलोमीटर हाईवे बनाकर पूरे देश को एक माला में पिरोने की बात कर
रहे हैं। इस परियोजना की अनुमानित लागत 10 लाख करोड़ रुपये अनुमानित है। भारतमाला
परियोजना की सबसे बड़ी बात ये है कि ये हाईवे देश के किनारे-किनारे बनेंगे और कई
जगहों पर अन्तर्राष्ट्रीय सीमा से सटे होंगे। नितिन गडकरी का कहना है कि “हम सभी जिला मुख्यालयों को हाईवे से जोड़ेंगे।“ सड़क परिवहन
मंत्रालय की एक और महत्वाकांक्षी परियोजना है चारधाम हाईवे विकास की। जिसकी बुनियाद
प्रधानमंत्री रख चुके हैं। चारधाम महामार्ग विकास परियोजना के तहत 900 किलोमीटर
हाईवे बनेगा। इसकी अनुमानित लागत 12000 करोड़ रुपये की है। इसमें से 3000 करोड़
रुपये की मंजूरी पहले ही दी जा चुकी है। इनलैंड वॉटर बिल 2016 को मंजूरी मिलने
के बाद जल परिवहन में भी तेजी आने की उम्मीद की जा सकती है। इस नए कानून की मंजूरी
के समय नितिन गडकरी ने बताया कि देश में 111 नदियां ऐसी हैं, जिनमें जल परिवहन
की सम्भावना है। इसी से अन्दाजा लगाया जा सकता है कि अगर सम्भावित नदियों में से
दसवें हिस्से पर भी जल परिवहन शुरू किया जा सका, तो भारतीय परिवहन की तस्वीर कितनी
तेजी से बदल सकती है।
रेलमंत्री सुरेश प्रभु भी
मोदी सरकार के अच्छे मंत्रियों में गिने जा रहे हैं। तेज रफ्तार ट्रेनें चलाने के
लिए पटरियों को बदलने के साथ रेलवे स्टेशनों के भी कायाकल्प की बड़ी योजना तैयार
की गई है। रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने देश के 283 रेलवे
स्टेशनों को रीडेवलपमेंट प्रोग्राम के लिए चुना है। पहले चरण में 23 रेलवे
स्टेशनों का काम शुरू हो चुका है। लोकमान्य तिलक मुम्बई, पुणे, ठाणे,
विशाखापत्तनम, हावड़ा, कानपुर सेंट्रल, इलाहाबाद, कामाख्या, फरीदाबाद, जम्मू तवी,
उदयपुर शहर, सिकन्दराबाद, विजयवाड़ा, रांची, चेन्नई सेंट्रल, कोझीकोड, यशवन्तपुर
(बैंगलुरू), भोपाल, मुम्बई सेंट्रल, बांद्रा टर्मिनस, बोरीवली और इन्दौर वो 23
स्टेशन हैं, जिनका कायाकल्प पहले चरण में होना है। दूसरे चरण में 100, तीसरे और
आखिरी चरण में 250 रेलवे स्टेशनों के कायाकल्प का काम शुरू होगा। सभी स्टेशनों के
कायाकल्प का काम इसी साल के अंत तक शुरू होना है। तेज रफ्तार वाली तेजस ट्रेन शुरू
हो चुकी है। इसलिए सरकार को देश की आर्थिक तरक्की, रोजगार देने के लिहाज से सरकार
को देश के लिहाज से बेकार OBOR छोड़कर EWHW पर ही मिशन मोड में लग जाना चाहिए।
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