28 जुलाई 2014
को दिल्ली विश्वविद्यालय के लॉ कॉलेज में हरीश साल्वे मुख्य अतिथि के तौर पर थे।
कानून की पढ़ाई कर रहे बच्चों से उन्होंने एक बात कही कि “हमारी पीढ़ी के वकीलों ने इस पेशे की इज्जत मिट्टी में मिला
दी है”। वकीलों की इज्जत मिट्टी में मिलाने का अपनी पीढ़ी का “अपराधबोध” शायद हरीश साल्वे के दिल को गहरे
साल रहा था। और आखिरकार मई 2017 में एक भारतीय के पक्ष में अन्तर्राष्ट्रीय अदालत
में की गई बहस ने उस सारे “अपराधबोध” को खत्म कर दिया है। भारत की ओर से
कुलभूषण के पक्ष में की गई जोरदार तार्किक बहस ने हरीश साल्वे को भारत ही नहीं, दुनिया
भर में चर्चा की वजह बना दिया है। हर कोई उस भारतीय वकील हरीश साल्वे के बारे में
जानना चाहता है जिसने अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में पाकिस्तान के तर्कों की बखिया
उधेड़कर रख दी है। भारत-पाकिस्तान तो सीधे पक्ष हैं लेकिन, दुनिया में भी इस बात
की चर्चा हो रही है कि देश की प्रतिष्ठा के लिए केस लड़ने के लिए हरीश साल्वे ने
सिर्फ 1 रुपये की फीस ली है। कहा जा रहा है कि पाकिस्तान की ओर से पैरवी कर रहे
वकील ने करीब 5 करोड़ रुपये लिए हैं। हरीश साल्वे की पूरी पीढ़ी ने मिलकर वकालत के
पेशे की जिस इज्जत को मिट्टी में मिलाया था, आज वही वकालत का पेशा सोने जैसा चमक
रहा है। इंडिया टुडे ने 2009 में हरीश साल्वे को देश के सबसे ताकतवर लोगों की सूची
में 18वें स्थान पर रखा था। 2017 में उसी सूची में हरीश साल्वे 43वें स्थान पर चले
गए थे। लेकिन, आज कुलभूषण जाधव मामले की पैरवी करके हरीश साल्वे देश के प्रतिष्ठित
लोगों की शीर्ष सूची में साफ नजर आ रहे हैं। ताकतवर शब्द इसे परिभाषित करने के लिए
सही नहीं होगा।
हरीश साल्वे के
बारे में अगर एक पंक्ति में कहना हो तो, “देश में दो बड़े लोग या कम्पनियां कानूनी लड़ाई लड़ते हैं,
तो किसी एक पक्ष के वकील हरीश साल्वे होते हैं”। इस बात को इसी
से समझा जा सकता है कि जब कृष्णा गोदावरी मामले पर अंबानी भाई आपस में भिड़े और
अदालत के दरवाजे तक पहुंचे तो, मुकेश अंबानी की तरफ से वकील हरीश साल्वे थे। 2010
में जब नीरा राडिया के टेप की वजह से सिर्फ रतन टाटा नहीं, पूरे टाटा समूह की
प्रतिष्ठा दांव पर लगी तो, फिर टाटा की इज्जत बचाने के लिए जो वकील अदालत में जिरह
कर रहा था। वो हरीश साल्वे ही थे। वोडाफोन के पक्ष में हरीश साल्वे ही भारत सरकार
के खिलाफ अदालत में खड़े हुए थे। यही वजह थी कि जब हरीश साल्वे को भारत सरकार ने
कुलभूषण जाधव के मामले में पैरवी के लिए चुना तो, ट्विटर पर किसी ने लिखा कि सरकार
ने इतना महंगा वकील चुना है, सरकार कम पैसे में दूसरा बेहतर वकील रख सकती थी। इसका
जवाब देते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने 15 मई को ही ये बताया कि कुलभूषण जाधव
के मामले की पैरवी के लिए हरीश साल्वे सिर्फ 1 रुपये फीस ले रहे हैं। इसके बाद
हरीश साल्वे को देखने का देश का नजरिया बदल गया। हरीश साल्वे पक्ष में देशभक्ति की
बयार बहने लगी। हरीश साल्वे देशभक्ति के नए पोस्टर ब्वॉय हो गए हैं। हालांकि, लगे
हाथ ये दोनों तथ्य भी जान लेना जरूरी है पहला तथ्य ये है कि हरीश साल्वे अटल
बिहारी वाजपेयी की सरकार में सॉलीसीटर जनरल थे। हालांकि, दूसरा कार्यकाल लेने
से उन्होंने मना कर दिया था। और इस बार भी अटॉर्नी जनरल के लिए प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी की पहली पसंद हरीश साल्वे ही थे। लेकिन, उन्होंने पद लेने से मना कर
दिया। अब इस मामले के बाद एक बार फिर से हरीश साल्वे का नाम अटॉर्नी जनरल के लिए
चर्चा में आ गया है। संयोगवश जून महीने में मुकुल रोहतगी का तीन साल का कार्यकाल
खत्म हो रहा है। दूसरा जरूरी तथ्य ये है कि हरीश साल्वे जाने माने कांग्रेसी
नेता एनकेपी साल्वे के बेटे हैं। पिता की तरह हरीश ने भी सीए की डिग्री हासिल
की है। नानी पालकीवाला से प्रभावित होकर हरीश ने वकालत की डिग्री ली। और देश के
प्रख्यात वकील पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी की टीम में शामिल हो गए।
हरीश साल्वे ने
गुरू सोली सोराबजी, अपने पिता और अपने दादाजी से जो कुछ भी सीखा हो, उसे बेहतर
किया। 28 जुलाई 2014 को दिल्ली विश्वविद्यालय के लॉ कॉलेज में छात्रों से बात करते
हरीश साल्वे ने कहाकि “एक जानकार प्रोफेशन में होने की वजह से आप सम्भ्रांत वर्ग
में आते हैं। एक वकील की ताकत उसके दिमाग से, उसकी बुद्धिमत्ता से और उसकी
निष्पक्षता से तय होती है। न्याय, सच और सही की यही ताकत है जिसकी वजह से वकील
सम्भ्रांत कहे जाते हैं”। लेकिन, हरीश
साल्वे की क्लाइंट लिस्ट कानून की पढ़ाई करने वाले बच्चों के बीच कही उनकी इस बात
को कई बार काटती भी दिखती है। हरीश साल्वे सर्वोच्च न्यायालय के मित्र (एमिकस
क्यूरी) के तौर पर पर्यावरण से जुड़े कई मामलों में काम करते रहे। लेकिन, 2011 में
अवैध खनन के मामले में उन्होंने ये कहते हुए एमिकस क्यूरी बनने से इनकार कर दिया
कि पहले वो कुछेक कम्पनियों के पक्ष में पैरवी कर चुके हैं। हरीश साल्वे हिट एंड
रन मामले में सलमान खान को बचा लेते हैं। इससे पहले वो काला धन रखने के मामले में अभिनेता
दिलीप कुमार के भी तारनहार बन चुके हैं। गुजरात दंगों के मामले में हरीश साल्वे
बिल्किस बानो मामले की भी पैरवी कर चुके हैं। और सरकार को जब आधार मामले में
सर्वोच्च न्यायालय के सामने अपना पक्ष मजबूती से रखना होता है, तो भी हरीश साल्वे
ही खड़े होते हैं। बाबा रामदेव के लिए भी हरीश साल्वे खड़े होते हैं। यहां तक कि
जब मेरू और दूसरी कम्पनियों ने एप टैक्सी सेवाओं के खिलाफ मामला दायर किया, तो उबर
की तरफ से हरीश साल्वे ही अदालत में खड़े हुए।
नागपुर में वकीलों के परिवार में ही हरीश साल्वे का जन्म हुआ। अदालत में एक
बार खड़े होने की हरीश साल्वे की फीस 6 लाख रुपये से 15 लाख रुपये के बीच जाकर
बैठती है। कई मामलों में साल्वे एक दिन के लिए 30 लाख रुपये लेते हैं। लेकिन, कुलभूषण
जाधव के मामले में हरीश साल्वे ने 1 रुपये की फीस लेकर अपनी पीढ़ी के वकीलों की
इज्जत फिर से वापस ला दी है। 28 जुलाई 2014
को दिल्ली विश्वविद्यालय के लॉ कॉलेज में छात्रों से बात करते हरीश साल्वे ने कहा
था कि “एक सफल वकील के लिए किसी मामले की डिटेलिंग सबसे जरूरी है
और इसी में वकील की सफलता का सूत्र छिपा होता है”। हरीश साल्वे की
दिल्ली विश्वविद्यालय के कानून के छात्रों को दी गई इस कीमती सलाह को पाकिस्तानी
वकील ने शायद पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया। इसीलिए उनके पास कुलभूषण मामले पर मिले
90 मिनट को इस्तेमाल करने भर की भी बहस तैयार नहीं हो सकी। इसी सूत्र और पूरे 90
मिनट का इस्तेमाल करके हरीश साल्वे ने ऐतिहासिक सफलता हासिल कर ली है। और अपनी इस
सफलता पर हरीश साल्वे शायद अपने लंदन के घर में मुस्कुराते हुए पियानो बजा रहे
होंगे।
(ये लेख QUINTHINDI पर छपा है)
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