अनिल
माधव दवे जी से 2 बार मिलना हुआ। पहली बार भोपाल की
मीडिया चौपाल में और दूसरी बार #IIMC में हुई मीडिया चौपाल में। उनसे मिलकर, बातचीत करके ही समझ में आ गया कि वो कितने सरल, सहज हैं, साथ
ही पर्यावरण, पानी के लिए गजब के सम्वेदनशील। खुद
प्रधानमंत्री ने भी उनकी आखिरी इच्छा वाली चिट्ठी साझा की है। मुझे लगता है कि ये
चिट्ठी बार-बार, ज्यादातर बिना किसी प्रयोजन, सन्दर्भ के साझा की जानी चाहिए। संघ के प्रचारक
से केंद्र सरकार के मंत्री तक उनके व्यहार में कोई बदलाव नहीं दिखा। बल्कि, आचार-विचार की मजबूती बनी ही रही।
ये छोटा काम नहीं था। खासकर ऐसे समय में जब राजनीति करने की मूल शर्त ही यही है कि
बिना पैसा कमाए काम नहीं चलेगा। दवे जी के नाम सिर्फ पर्यावरण, पानी
की सफाई ही नहीं राजनीति की सफाई की भी चर्चा होनी चाहिए। समाज जीवन में हम जैसे
जो लोग आज भी ये मानते हैं कि पैसा बहुत जरूरी हो सकता है लेकिन, समाज
जब हमें जीवन में सम्मान देने लगे, तो
समाज जीवन का सम्मान बना रहे, ये
जिम्मेदारी हमारी बढ़ती जाती है। अनिल माधव दवे जी को पुन: श्रद्धांजलि। जब जिसे
मौका लगे, दवे जी की आखिरी इच्छा वाली चिट्ठी ज्यादा से
ज्यादा लोगों से साझा कीजिए।
देश की दशा-दिशा को समझाने वाला हिंदी ब्लॉग। जवान देश के लोगों के भारत और इंडिया से तालमेल बिठाने की कोशिश पर मेरे निजी विचार
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
एक देश, एक चुनाव से राजनीति सकारात्मक होगी
Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी भारत की संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकार कर लिया था। इसीलिए इस द...
-
आप लोगों में से कितने लोगों के यहां बेटियों का पैर छुआ जाता है। यानी, मां-बाप अपनी बेटी से पैर छुआते नहीं हैं। बल्कि, खुद उनका पैर छूते हैं...
-
हमारे यहां बेटी-दामाद का पैर छुआ जाता है। और, उसके मुझे दुष्परिणाम ज्यादा दिख रहे थे। मुझे लगा था कि मैं बेहद परंपरागत ब्राह्मण परिवार से ह...
-
पुरानी कहावतें यूं ही नहीं बनी होतीं। और, समय-समय पर इन कहावतों-मिथकों की प्रासंगिकता गजब साबित होती रहती है। कांग्रेस-यूपीए ने सबको साफ कर ...
No comments:
Post a Comment