दस
प्रतिशत की तरक्की की सपना भारत फिर देख रहा है। सवाल ये है कि क्या भारत दस
प्रतिशत की तरक्की की रफ्तार के लिए जमीन तैयार कर पाया है। सवाल ये है कि क्या
भारत के इस सपने को दुनिया सच मान रही है। उससे भी बड़ा सवाल ये कि क्या भारतीय
कंपनियां नए उद्योग लगा रही हैं। क्या रोजगार के नए मौके बनते दिख रहे हैं। ये
सारे सवाल इसीलिए खड़े हो रहे हैं कि इसके पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी
यही सपना दिखाया था लेकिन, दस प्रतिशत की तरक्की की रफ्तार के नजदीक पहुंचते-पहुंचते
सरकारी नीतियों में भ्रम से ये सपना बुरी तरह टूट गया। और इस कदर टूटा कि यूपीए दो
के शासनकाल के आखिरी दिनों में भारत पांच प्रतिशत के आसपास की तरक्की की रफ्तार पर
आकर टिक गया। अब एक बार फिर से नई सरकार के वित्तमंत्री अरुण जेटली ने दस प्रतिशत
की तरक्की की तरफ्तार हासिल करने की बात की है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और
विश्व बैंक के अनुमान साफ कर चुके हैं कि इसी वित्तीय वर्ष में भारत दुनिया का
सबसे तेजी से तरक्की करने वाला देश बन जाएगा। ज्यादातर अनुमानों में भारत की
तरक्की की रफ्तार इस वित्तीय वर्ष में साढ़े सात प्रतिशत या उससे ज्यादा रहने वाली
है। जबकि, चीन पीछे छूटता दिख रहा है। चीन की तरक्की की रफ्तार सात प्रतिशत या
उससे भी कम रहने का अनुमान है। अनुमानों में चमकती इंडिया ग्रोथ स्टोरी को धरातल
पर देखें तो तस्वीर ज्यादा साफ होगी। धरातल पर भी हालात यही है कि सबसे तेजी से
तरक्की करने वाले देश में दुनिया के सारे निवेशक रकम लगाने को आतुर हैं। इमर्जिंग
मार्केट्स में भारत में ही सबसे ज्यादा विदेशी संस्थागत निवेशक आ रहे हैं। इस साल
अब तक एफआईआई यानी विदेशी संस्थागत निवेशक भारत में करीब साढ़े छे बिलियन डॉलर का
निवेश कर चुके हैं। इसके बाद मेक्सिको, ब्राजील, साउथ कोरिया और ताइवान का नंबर
आता है। और ये भरोसा सिर्फ एफआईआई के मामले में ही नहीं है। प्रत्यक्ष विदेशी
निवेश यानी एफडीआई के आंकड़े इंडिया ग्रोथ स्टोरी पर ज्यादा भरोसा साबित करते हैं।
नरेंद्र मोदी की सरकार के पहले दस महीने में कुल 25.25 बिलियन डॉलर का प्रत्यक्ष
विदेशी निवेश हुआ है। वित्तीय वर्ष 2013-14 में कुल 19 बिलियन डॉलर से कम का
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ था।
दस
प्रतिशत की तरक्की की रफ्तार के लिए बहुत बड़े विदेशी निवेश की जरूरत है। फिर वो
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हो या फिर संस्थागत विदेशी निवेश। इसलिए किसी भी तरह का
विदेशी निवेश अगर भारत में इस तेजी से आ रहा है तो इसका सीधा सा मतलब है कि दुनिया
के निवेशकों को इंडिया ग्रोथ स्टोरी भरोसे लायक दिख रही है। इसमें बड़ी भूमिका इस
बात की भी है कि भारत में नीतियों में भ्रम की स्थिति अब नहीं रही है। नरेंद्र
मोदी की अगुवाई वाली सरकार नीतियों के मामले में यूपीए सरकार बहुत ज्यादा साफ और
दृढ़ दिखती है। यही वजह है कि दुनिया की रेटिंग एजेंसियां लगातार भारत की रेटिंग
बेहतर कर रही हैं। इसका असर साफ-साफ नजर आ रहा है। फरवरी महीने में औद्योगिक
रफ्तार पांच प्रतिशत रही है जो पिछले तीन महीने में सबसे ज्यादा है। फरवरी महीने
में कैपिटल गुड्स के उत्पादन की रफ्तार आठ प्रतिशत बढ़ी है। इसका सीधा सा मतलब अगर
समझें तो, बड़ी मशीनों का ज्यादा उत्पादन हो रहा है। मतलब निर्माण और दूसरी गतिविधियां
तेजी से बढ़ी हैं। मार्च महीने में कमर्शियल गाड़ियों की बिक्री में भी तेजी आई
है। किसी अर्थव्यवस्था में कारोबारी इस्तेमाल के वाहनों की बिक्री बढ़ने का सीधा
सा मतलब अर्थव्यवस्था में तेजी के अच्छे लक्षणों की तरह देखा जाता है। सर्विस
सेक्टर में भी बेहतरी के संकेत मिल रहे हैं। सर्विस सेक्टर में इस वित्तीय वर्ष के
पहले दस महीने में 2.64 बिलियन डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ है। कुल मिलाकर
निर्माण हो या सेवा क्षेत्र, दोनों ही क्षेत्रों में फिलहाल बेहतरी के संकेत मिल
रहे हैं।
यूपीए
की सरकार में एक बड़ी समस्या नीतियों को लेकर रही। जिसकी वजह से नए प्रोजेक्ट शुरू
करने में कारोबारी डरने लगे थे। उनको डर ये था कि प्रोजेक्ट शुरू होने के बाद उससे
संबंधित नीतियां बदल न जाएं। और इसका असर पुराने प्रोजेक्ट पर भी पड़ रहा था। ढेर
सारे प्रोजेक्ट इसी वजह से शुरू हो ही नहीं पाए थे। अच्छी बात है कि मोदी सरकार
में पुराने रुके पड़े प्रोजेक्ट को शुरू करने में तेजी आई है। 2014-15 में करीब दो
लाख करोड़ रुपये की रुकी योजनाएं शुरू हुई हैं। जबकि, इससे पहले के साल में सिर्फ
सत्ताइस हजार करोड़ रुपये की ही रुकी योजनाएं शुरू की जा सकी थीं। सिर्फ निर्माण
क्षेत्र की शुरू हुई योजनाओं की लागत करीब साठ हजार करोड़ है। जो, यूपीए के शासन
से साढ़े पांच गुना ज्यादा है। यही बुनियादी परियोजनाओं की बात करें तो करीब
छिहत्तर हजार करोड़ रुपये की रुकी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं शुरू हुई हैं। जो,
2013-14 से छे गुना ज्यादा है। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि रुकी परियोजनाएं तेजी
से शुरू हो रही हैं। साथ में नए प्रोजेक्ट भी तेजी से शुरू हो रहे हैं। इसका सीधा
सा मतलब हुआ कि लोगों को रोजगार के नए मौके मिलने वाले हैं। मोदी सरकार के पहले दस
महीने में करीब 1900 प्रोजेक्ट शुरू करने का एलान हुआ है। इन योजनाओं में करीब दस
लाख करोड़ रुपये का निवेश होगा। पिछले साल के मुकाबले यानी यूपीए दो शासन के आखिरी
साल के लिहाज से देखें तो ये अस्सी प्रतिशत ज्यादा है। ये आंकड़े साफ बता रहे हैं
कि दुनिया को ऐसे ही नहीं भारत के भरोसे अर्थव्यवस्था में तेजी की उम्मीद नजर आ
रही है। आईएमएफ चीफ क्रिस्टीन लागार्ड ने ऐसे ही नहीं कहा कि भारत काले घने बादलों
के बीच चमकता सितारा है। दरअसल भारत में ये ताकत है कि वो दुनिया की अर्थव्यवस्था
के घने बादलों को साफ कर सके। लेकिन, इसके लिए एक जो सबसे जरूरी बात है कि सरकारी
नीतियों में भ्रम या बार-बार बदलाव की स्थिति न बने। वो देसी और विदेशी दोनों ही
निवेशकों, कारोबारियों के लिए जरूरी शर्त है। अभी तक के नरेंद्र मोदी सरकार के
फैसले देखें तो ये भरोसा बनता है। और अगर ये भरोसा बना रहा तो दस प्रतिशत की
तरक्की का मनमोहिनी सपना नरेंद्र मोदी की सरकार में पूरा होता दिख सकता है।
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