भारतीय शेयर बाजार दुनिया के दूसरे
बाजारों के मुकाबले बेहतर ही रहा है। जब भारतीय शेयर बाजार एक ही स्तर पर लगातार
करीब तीन सालों तक बने रहे, तब भी सेंसेक्स और निफ्टी दुनिया के दूसरे बाजार
सूचकांकों से बेहतर करते रहे। लेकिन, यूपीए दो में भारतीय शेयर बाजार में निवेशकों
का भरोसा बहुत बन नहीं सका। फिर वो विदेशी निवेशक हों या देसी निवेशक या फिर कहें
रिटेल इनवेस्टर। विदेशी निवेशकों यानी एफआईआई को लुभाने के लिए यूपीए की सरकार ने
अपने दूसरे कार्यकाल में हरसंभव कोशिश की लेकिन, मामला बन नहीं सका। मल्टीब्रांड
रिटल में एफडीआई को मंजूरी देने के सरकार के फैसले के बाद भी धरातल पर इसका असर
नहीं दिखा। यहां तक वॉलमार्ट और दूसरे विदेशी मल्टीब्रांड रिटेलर की कोई बड़ी
रिटेल दुकान भारत के किसी कोने में चमकती नहीं दिख सकी। इस सबका असर ये रहा कि
भारतीय शेयर बाजार में विदेशी और देसी निवेशक प्रवेश करने से बचते रहे। उस पर
दुनिया की रेटिंग एजेंसियों ने भी भारत और भारतीय शेयर बाजार की साख बिगाड़ने में
कोई कसर नहीं छोड़ी। तीन साल से स्थिर शेयर बाजार से विदेशी निवेशक भाग रहे थे।
साथ ही 2008 में बुरी तरह से मार खाए देसी निवेशक तो दलाल स्ट्रीट के रास्ते की
तरफ से गुजरना भी मुनासिब नहीं समझ रहे थे। लेकिन, अब एक बार फिर से शेयर बाजार
में निवेशकों का भरोसा वापस लौटता दिख रहा है। विदेशी और देसी निवेशक दोनों ही फिर
से शेयर बाजार में प्रवेश कर रहे हैं। विदेशी निवेशक तो पूरी तरह से वापस आ गया
है। लेकिन, देसी निवेशक अभी तोड़ी हिचक दिखा रहा है। हालांकि, ताजा डीमैक खाता
खोलने के आंकड़े इस बात को पुख्ता कर रहे हैं कि भारतीय शेयर बाजार का भरोसा लौटा
है। हां, 2008 वाला भरोसा पाने के लिए भारत सरकार और बाजार को अभी बहुत कुछ करना
होगा।
मई में जब नरेंद्र मोदी की अगुवाई में
बीजेपी की पूर्ण बहुमत वाली सरकार आई तो जैसे शेयर बाजार को पंख लग गए। शेयर बाजार
का अहम सूचकांक तीस हजार के पार चला गया। दुनिया की हर रेटिंग एजेंसी ने भारत की
क्रेडिट रेटिंग निगेटिव से पॉजिटिव कर दी। इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड की मैनेजिंग
डायरेक्टर क्रिस्टीना लागार्डे ने साफ कहा है कि दुनिया के निराशा भरे आसमान में
भारत एक चमकता सितारा है। दुनिया के जानकार ये मान रहे हैं कि भारत सिर्फ एशिया
में ही नहीं सभी उभरते बाजारों में सबसे बेहतर मुनाफा देगा। और यही वजह है कि
विदेशी निवेशक धड़ाधड़ भारतीय शेयर बाजार में निवेश कर रहे हैं। अप्रैल 2014 में भारतीय
शेयरों में विदेशी निवेशकों ने शुद्ध सात हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की खरीद की
थी। मई में जब नरेंद्र मोदी की सरकार बन गई तो ये निवेश बढ़कर साढ़े सोलह हजार
करोड़ रुपये से ज्यादा का हो गया। सिर्फ मई महीने में ही नहीं नरेंद्र मोदी की
सरकार आने के बाद बीते साल के हर महीने में विदेशी निवेशकों ने जमकर खरीद की।
सिर्फ साल का आखिरी महीना दिसंबर अपवाद रहा। दिसंबर महीने में विदेशी निवेशकों ने
शुद्ध बिकवाली की और साढ़े आठ सौ करोड़ रुपये से ज्यादा के शेयर बेच दिए। लेकिन, फिर
नए साल में विदेशी निवेशकों का भरोसा लौटा और जनवरी में एफआईआई ने साढ़े सत्रह
हजार करोड़ रुपये से ज्यादा के शेयर खरीदे। फरवरी में करीब नौ हजार करोड़ रुपये और
मार्च 2015 यानी बीते वित्तीय वर्ष के आखिरी महीने में विदेशी निवेशकों ने करीब नौ
हजार करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश भारतीय शेयर बाजार में किया। ये भारतीय शेयर
बाजार में दुनिया का भरोसा दिखाता है। लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यही है कि शेयर बाजार
के नजरिये से क्या देसी निवेशकों को भी नरेंद्र मोदी की सरकार पर उतना ही भरोसा
है। कम से कम आंकड़े तो यही बता रहे हैं कि नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार में
बाजार में पैसा लगाकर मुनाफा कमाने की इच्छा देसी निवेशक में भी बलवती हुई जाती
है। शेयर बाजार में निवेश करने के लिए जरूरी है कि डीमैट खाता खोला जाए। 31 मार्च
को खत्म हुए वित्तीय वर्ष में खुले डीमैट खाते पिछले चार सालों में सबसे ज्यादा
हैं। एक अप्रैल 2014 से 31 मार्च 2015 के बीच सोलह लाख से ज्यादा डीमैट खाते खुले
हैं। वित्तीय वर्ष 2014 में आठ लाख सात हजार, 2013 में दस लाख इकसठ हजार और
वित्तीय वर्ष 2012 में दस लाख दो हजार डीमैट खाते खुले थे। बीजेपी की सरकार बनने
के लिए हर महीने करीब आठ प्रतिशत ज्यादा डीमैट खाते खुल रहे हैं। और सबसे अच्छी
बात ये है कि तुरंत बीते वित्तीय वर्ष में खुले खातों में से पचासी प्रतिशत से
ज्यादा डीमैट खाते नए खाताधारकों के हैं। यानी देसी निवेशकों का भरोसा तेजी से लौट
रहा है। तेजी से खुलते डीमैट खातों के बूते देश में ढाई करोड़ से ज्यादा निवेशक
शेयर बाजार से सीधे जुड़ गए हैं। निवेशकों को इसका फायदा भी मिला है। अप्रैल से
मार्च तक शेयर बाजार के दोनों अहम सूचकांक सेंसेक्स और निफ्टी 33 प्रतिशत से
ज्यादा बढ़े हैं। इसका सीधा सा मतलब ये हुआ कि 2008 में बुरी तरह से भरोसा खोने के
बाद भारतीय शेयर बाजार में देसी छोटे, मंझोले निवेशकों का भरोसा फिर से लौट रहा
है। उसे लग रहा है कि एक बार फिर से देश की तरक्की से देश की कंपनियों को होने
वाली तरक्की उनके शेयर भाव में भी दिखेगी। और शेयर बाजार में भारतीय कंपनियों में
किया गया उनका निवेश उन्हें मुनाफा देगा। मतलब साफ है कि सरकार ने पहली बाधा
मजबूती से पार कर ली है। देसी और विदेशी दोनों ही निवेशकों का खोया हुआ भरोसा लौट
आया है। लेकिन, ये पहली बाधा पार करने जैसा ही है। अभी नरेंद्र मोदी की सरकार को
मनमोहन सिंह की सरकार के पहले कार्यकाल यानी यूपीए वन के आखिरी साल से पहले तक का
भरोसा बनाना बाकी है। 2008 में दुनिया में आई मंदी और इसके बुरे परिणाम से ध्वस्त
हुए शेयर बाजार में देसी निवेशकों का उसके पहले जैसा भरोसा अब तक नहीं बन सका है। यानी
कम से कम शेयर बाजार और तरक्की के मोर्चे पर 2008 जैसा माहौल बनना बाकी है। जनवरी
2008 के पहले आठ दिनों में देसी निवेशकों ने करीब एक लाख साठ हजार डीमैट खाते खोले
थे। ये वो दौरर था जब रिलायंस पावर का बहुप्रतीक्षित आईपीओ आना था। और हर कोई शेयर
बाजार में निवेश करके तगड़ा मुनाफा कमा लेना चाहता था। लेकिन, वही आईपीओ शेयर
बाजार में आईपीओ में निवेश करने वाले लोगों के लिए बुरे सपने की तरह साबित हुआ। और
2008 की मंदी में भारतीय शेयर बाजार और रिलायंस पावर के आईपीओ में मार खाए देसी
निवेशक ने तेजी से डीमैट खाता बंद कराकर बाजार से दूरी बना ली। उसके बाद 2010 में
आए कोल इंडिया के आईपीओ ने ही निवेशकों को फिर से बाजार की तरफ खींचा। लेकिन, 2008
के बाद से अब तक कोल इंडिया को छोड़कर कोई ऐसा आईपीओ नहीं आया जो, निवेशकों को
अपनी तरफ खींचने में कामयाब रहा हो। मतलब साफ है कि भारतीय शेयर बाजार के प्राइमरी
मार्केट की संभावनाओं की कहानी फिर से अभी शुरू ही हुई है। और अच्छा हो कि शेयर
बाजार इस बार प्राइमरी मार्केट में आए निवेशकों को साध सके। देसी कंपनियों की
निवेश योजनाएं पहले से काफी बेहतर हुई हैं। विदेशी कंपनियों को भी मोदी सरकार का
मेक इन इंडिया लुभा रहा है। मैन्युफैक्चरिंग और इंफ्रस्ट्रक्चर के मोर्चे पर काफी
कुछ हो रहा है। चार महीने में सबसे बेहतर काम मैन्युफैक्चरिंग में होता दिखा है।
सड़क बनाने के काम में नितिन गडकरी का मंत्रालय बेहतर कर रहा है। हालांकि, तीस
किलोमीटर प्रतिदिन के महात्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने में अभी बहुत लंबी दूरी
तय करनी है। फिर भी बारह किलोमीटर प्रतिदिन का लक्ष्य हासिल करना भी बड़ी कामयाबी
मानी जानी चाहिए। कुल मिलाकर सरकार की दिशा सही है। बस इसकी रफ्तार बेहतर करने की
जरूरत है। फिर 2008 के पहले वाला भरोसा और दस प्रतिशत की तरक्की वाला सपना पूरा
होने में भी ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।
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