विदेश सचिव, गृह सचिव और रक्षा सचिव- इन तीनों की
एक साथ प्रेस कांफ्रेंस किसी भी खास मौके पर होने का उदाहरण भारत में ध्यान में
नहीं आता। लेकिन, ये तीनों महत्वपूर्ण सचिव लगातार मीडिया से एक साथ मुखातिब हो
रहे हैं और नेपाल में भारत के राहत कार्यों का पूरा विवरण देते हैं। ये कोई छोटी
घटना नहीं है। ये भारत सरकार के नेतृत्व का फर्क है जो, भारत के लोग तो देख ही रहे
हैं। दुनिया भी महसूस कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से नेपाल
की मदद करने में तेजी दिखाई है वो, अद्भुत है। और ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री
सिर्फ नेपाल की ही मदद करने में लग रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भूकंप की
शुरुआती खबर आते ही काम शुरू कर दिया। उन्होंने सबसे पहले बिहार और उत्तर प्रदेश
के मुख्यमंत्रियों से तुरंत बात की और केंद्र की तरफ से मदद भेज दी। नेपाल के
प्रधानमंत्री तक पहुंचे। हर मदद का भरोसा दिलाया और उस भरोसे को पूरा कर रहे हैं।
साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ये भी चाहते हैं कि दुनिया और देश के लोगों को
ये पता चले कि इस भयानक आपदा में सरकार कैसे काम कर रही है। उसी का नतीजा है कि
देश के तीनों महत्वपूर्ण मंत्रालयों के सचिव एक साथ मीडिया से बात कर रहे हैं। इस
प्रेस कांफ्रेंस से एक बात और साफ होती है कि तीनों मंत्रालयों के बीच तालमेल है
और तीनों मंत्रालय एक दूसरे के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। एक दूसरे पर किसी तरह की
गलती की जिम्मेदारी डालने की स्थिति में नहीं हैं। ये भारत सरकार में काम करने का
नया तरीका है। वरना एक ही सरकार के अलग-अलग मंत्रालय कैसे दूसरे मंत्रालय पर काम न
होने का जिम्मा थोप देते हैं, ढेरों उदाहरण मिल जाएंगे। और ये पूरी तरह से नेतृत्व
परिवर्तन का ही फर्क है। खुद गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सदन में स्वीकार किया कि
उन्हें इस आपदा की जानकारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जरिए ही मिली। इतना प्रो
एक्टिव प्रधानमंत्री भारत ने अब तक नहीं देखा है।
मानवता के नाते, पड़ोसी देश होने के नाते नेपाल
में भारत सरकार की मदद का बहुत महत्व है। लेकिन, ऑपरेशन मैत्री का महत्व इस नाते
से भी बहुत बढ़ जाता है कि चीन पाकिस्तान के साथ नेपाल में भी हर हाल में अपनी
पकड़ मजबूत करने की हरसंभव कोशिश में लगा है। और चीन इस आपदा के समय भारत से
पिछड़ते हुए नहीं दिखना चाहता। हमारा अपना मीडिया औरर मानस चीन के सामने इस तरह
समर्पण की मुद्रा में रहता है कि ये कल्पना से परे है कि भारत चीन के सामने किसी
मोर्चे पर बेहतर कर सकता है। लेकिन, अभी जिस तरह से खुद प्रधानमंत्री ने इसकी कमान
संभाली है और दुनिया भर के देश भारत के आपदा राहत अभियान की कुशलता पर भरोसा कर
रहे हैं वो, कमाल का है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहीं से कोई आपदा प्रबंधन
या राहत की कोई ट्रेनिंग नहीं ली है। लेकिन, समाज जीवन में रहते हुए उन्होंने जिस
तरह की प्रशासनिक कुशलता दिखाई है उससे उनकी छवि दुनिया भर में एक बेहतर प्रशासनिक
प्रबंधन वाले नेता की बनती जा रही है। 2001 में भुज में आए भूकंप के बाद जिस तेजी
से नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री के तौर पर उस पूरे इलाके की तस्वीर बदली थी। वो,
मोदी की आपदा प्रबंधन क्षमता के कुशल उपयोग का पहला उदाहरण था। केदारनाथ में आई
त्रासदी में भी मोदी ने गुजरात के उन अधिकारियों की टीम के साथ काफी तेजी से काम
किया। लेकिन, नरेंद्र मोदी के मार्केटिंग तंत्र की एक कमी से वो पूरा अभियान रैंबो
विवाद में फंस गया था। उसके बावजूद सब ये मानते हैं कि प्रशासनिक कार्यकुशलता में
मोदी के जोड़ का कोई नेता नहीं है। और इस छवि पर दुनिया का भरोसा भी कैसे बढ़ रहा
है। उसका उदाहरण देखिए। नेपाल में अब तक डेढ़ सौ से ज्यादा विदेशी नागरिकों को
बचाने का काम भारतीय सेना कर चुकी है। ये नागिरक 15 देशों के हैं। ये विदेशी
नागरिक अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस जैसे विकसित देशों के हैं। जिनके बारे
में ये पक्की धारणा रही है कि ये विदेशी धरती पर अपने नागरिकों की रक्षा में सबसे
तेज हैं। अब अगर ये देश भी अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए भारत सरकार से मदद चाह
रहे हैं तो, ये नेतृत्व का फर्क ही है। नेपाल को भारत के लोग अपने देश के विस्तार
के तौर पर ही देखते हैं। बड़े भाई छोटे भाई जैसी भावना है। और नेपाल, भारत की
बोली, व्यवहार में बहुत ज्यादा फर्क भी नहीं है। बहुतायत नेपाली भारत में और
बहुतायत भारतीय नेपाल में पूरी तरह से बस गए हैं। इसका भी फायदा राहत कार्य में
भारतीय टीम को मिल रहा है। चीन ने भी राहत कार्य में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।
लेकिन, मीडिया रिपोर्ट से पता चल रहा है कि चीन की टीम को भाषा की वजह से राहत
कार्य तेजी से करने में दिक्कतें आ रही हैं। ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की
अगुवाई में भारत के तुरंत हरकत में आने का परिणाम ही था कि भारतीय एनडीआरएफ के
राहत कार्य शुरू करने के एक दिन बाद बीजिंग की 69 सदस्यों की राहत टीम काठमांडू
पहुंची। नेपाली सेना प्रमुख ने भी मीडिया से ये कहा है कि चीन की राहत टीम भी
अच्छा काम कर रही है लेकिन, भारतीय टीम के साथ नेपाली ज्यादा जुड़ाव महसूस कर रहे
हैं। इससे भारतीय टीम को राहत कार्य में आसानी हो रही है।
और नेपाल का ये अभियान की
पहला मौका नहीं है। इससे पहले यमन से भारतीयों को वापस लाने का काम भी भारत सरकार
ने शानदार तरीके से किया था। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और विदेशी राज्य मंत्री
जनरल वी के सिंह की अगुवाई में अद्भुत तरीके से भारतीय सेना ने भारतीयों को
सुरक्षित वापस लाने का काम पूरा किया था। भारतीय नेतृत्व पर ये दुनिया का बढ़ा
भरोसा ही था कि संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, सिंगापुर से लेकर बहरीन,
बांग्लादेश तक 23 से ज्यादा देश भारत के ही भरोसे अपने नागरिकों की सुरक्षा को
लेकर आश्वस्त हुए। ये सारी खबरें कोई भारतीय मीडिया में चल रही खबरें नहीं हैं।
सीएनएन पर चल रही खबर के स्नैपशॉट ने तो उस समय इंटरनेट पर गजब तेजी से साझा की जा
रही थी। सीएनएन की उस खबर में कहा गया था कि अमेरिका अपने नागरिकों को बचाने के
लिए भारत की मदद ले रहा है। ये अगर अमेरिकी चैनल पर चल रही खबर न होती तो,
शायद इसे भी मोदी विरोधी मार्केटिंग स्ट्रैटेजी बताने से नहीं चूकते। सबसे बड़ी
बात ये कि मोदी विरोधी उन पर जो आरोप लगाते हैं कि वो सारा श्रेय खुद ले लेते हैं।
उसमें भी निराशा ही हाथ लगी होगीष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और विदेश राज्य मंत्री जनरल वी के सिंह के शानदार
प्रयासों की सार्वजनिक सराहना की है। उन्होंने ट्वीट किया कि हमारे सहयोगी सुषमा
स्वराज और जनरल वी के सिंह ने, जो पिछले
कई दिनों से लगातार मैदान में डटे हैं, ने शानदार तरीके से भारतीयों को वापस लाने
का काम किया है। प्रधानमंत्री की ये तारीफ दिखाती है कि अपने सहयोगियों से नेता की
तरह काम लेना और उनके काम की सार्वजनिक सराहना करके प्रोत्साहित कैसे किया जाता
है। विदेश राज्य मंत्री जनरल वी के सिंह जिस तरह से भारतीयों को यमन से वापस लाने
के काम में लगे हैं। उस तरह से शायद पहले की सरकारों में बड़े स्तर के अधिकारी भी
नहीं लगते थे। यही फर्क है जो देश देखना चाहता है। पहले आतंकवाद के बीच से अपने
नागरिकों को वापस लाने काम और अब पड़ोसी देश में हुई भीषणा त्रासदी में मदद की
सबसे भरोसेमंद पहचान बनना भारत सरकार की बड़ी सफलता है। भारत में नेतृत्व का फर्क
दुनिया को साफ दिखने लगा है।
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