Thursday, November 07, 2013

सुरक्षा पर राजनीति !

हाल ही में फिल्म मद्रास कैफे टेलीविजन पर देखी। फिल्म में रॉ के एजेंट के तौर पर जाफना गए और फिर वापस आए जॉन अब्राहम की दुविधा उसमें अच्छे से दिखी है। खुद कैबिनेट सेक्रेटरी के लिए राजीव गांधी की सुरक्षा व्यवस्था चुनौतीपूर्ण हो जाती है। हालांकि, वो फिल्म थी इसलिए ज्यादातर बातें फिल्म के हीरो के नियंत्रण में थीं। सिवाय जो सत्य घटना हुई राजीव गांधी की लिट्टे के आतंकवादियों द्वारा हत्या। लेकिन, फिल्म में जब राजीव गांधी की सरकार चली जाती है तो उनकी सुरक्षा को लेकर सुरक्षा एजेंसियों की चिंता किस कदर बढ़ी होती है इसका अंदाजा फिल्म के एक संवाद से लगता है कि जॉन अब्राहम को प्रमुख सचिव ये कह रहे होते हैं कि हमें पूर्व प्रधानमंत्री को बचाने का ये मिशन बिना किसी सरकारी जानकारी और सुविधा के चलाना होगा क्योंकि, अब वो प्रधानमंत्री नहीं हैं। श्रीपेरंबदूर में लिट्टे के आतंकवादी राजीव गांधी की हत्या करने में कामयाब हो जाते हैं। देश के लिए वो बड़ी क्षति थी। राजीव गांधी जैसा नेता हमारे बीच नहीं रहा। उस समय इस बात की चर्चा कम ही हुई थी या हुई भी होगी तो मीडिया के कम विस्तार की वजह से शायद स्मृति पटल पर नहीं है। लेकिन, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए एसपीजी एक्ट के प्रावधान प्रधानमंत्री के अलावा किसी और की सुरक्षा का स्तर वो नहीं रहने देते। हालांकि, बाद में उसमें पूर्व प्रधानमंत्री और उनका परिवार भी दस सालों के लिए शामिल किए गए।

लेकिन, ये प्रावधान शायद गांधी परिवार की प्रतिष्ठा में बदला गया। 1991 में चंद्रशेखर की सरकार थी और राजीव गांधी पूर्व प्रधानमंत्री थे। उस समय कांग्रेस राजीव गांधी के लिए प्रधानमंत्री जैसी सुरक्षा चाहती थी। लेकिन, पहले के कांग्रेस के तर्कों का हवाला देकर पहले वीपी सिंह और बाद में चंद्रशेखर ने पूर्व प्रधानमंत्रियों को प्रधानमंत्री जैसी सुरक्षा देने से इनकार किया था। अब कुछ वैसी ही स्थिति नरेंद्र मोदी के मामले में बन रही है। अब बीजेपी मांग कर रही है और कांग्रेस के गृह राज्यमंत्री आर पी एन सिंह अजीब बयान दे रहे हैं कि राजीव गांधी को बीजेपी ने सुरक्षा नहीं दी थी। वो भूल गए कि उस समय प्रधानमंत्री चंद्रशेखर थे जब राजीव गांधी की हत्या हुई। सवाल ये नहीं है कि किसके समय में किसको कैसी सुरक्षा मिले। सवाल ये है कि देश के किसी भी महत्वपूर्ण नेता की सुरक्षा अगर जरूरी है तो वो होनी चाहिए। फिर वो नरेंद्र मोदी हों या मनमोहन सिंह। सुरक्षा के लिए सत्ता में होना, सत्ताधारी पार्टी में होना और गांधी परिवार का होना पैमाना क्यों बने। मुझे लगता है कि जिस तेजी से देश में राजनीतिक परिस्थितियां बदल रही हैं उसमें कांग्रेस के लोगों को ये समझना होगा कि लोकतंत्र भारत में बहुत तेजी से काम करता दिख रहा है और जरूरी नहीं कि गांधी परिवार या दस जनपथ ही आगे भी सारी बातें तय करे। इसलिए अच्छा होगा कि नरेंद्र मोदी या देश के किसी भी दूसरे नेता की सुरक्षा पर राजनीति के बजाय कांग्रेस पार्टी की नहीं, देश की सरकार की तरह काम करें। और नेता हो या आम जनता उसकी सुरक्षा खतरे के आधार पर तय हो किसी सत्ता, परिवार की वजह से नहीं।

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