अन्ना आंदोलन के दौरान इंडिया गेट पर एक पोस्टर |
ये सब मैं इसलिए भी कह रहा हूं कि थोड़े समय के लिए सारे मॉडल कोड ऑफ
कंडक्ट आसानी से चलते हैं। लेकिन, जैसे किसी की जिंदगी मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट से नहीं
चल सकते। वैसे ही पार्टियों की भी। इसलिए जरूरी है कि अरविंद इस राजनीतिक व्यवस्था
को लंबे समय में कैसे बदल सकते हैं ये दिखे। अभी अरविंद की पार्टी में अरविंद को
छोड़कर कोई नहीं है। शाजिया इल्मी, मनीष सिसोदिया टाइप लोग अभी कितने नेता बन पाए
हैं ये बताने समझाने की जरूरत नहीं है। लेकिन, अब जरा समझिए कि मैं क्यों कह रहा
है कि अभी थोड़ी लंबी राजनीतिक पारी के बाद इन्हें सत्ता मिले। अरविंद की पार्टी
में योगेंद्र यादव हैं। बाकायदा पार्टी के संस्थापक सदस्य हैं। वैसे योगेंद्र यादव
की पहचान राजनीतिक सर्वे और उस सर्वे के अच्छे समीक्षक होने की वजह से हैं। लेकिन,
राजनीतिक पार्टी में शामिल होने के बाद जाहिर है कि योगेंद्र यादव का सर्वे
निष्पक्ष कैसे होगा। उसी सर्वे के आधार पर अरविंद सुबह से शाम तक दिल्ली के एफएम
रेडियो पर ये बताते रहते हैं कि 70 में से 47 सीटें आप को मिल रही हैं। एफएम
रेडियो पर ही एक और विज्ञापन आता है। अरविंद
केजरीवाल रेडियो पर जब कहते हैं कि फूल वाला मुझे मिला और उसने बताया कि उसकी दुकान से फूल लेने वाले 10 में से 8 #AAP
को वोट देंगे। तब पता नहीं क्यों मुझे चिढ़
होती है कि ये आदमी किस तरह से फूल वाले के नाम पर FOOL बनाने की कोशिश कर रहा है। अब ये बताइए कि ये कौन सा
फूल वाला है। और किसी फूल वाले की दुकान पर 60 दिनों के चुनाव को भी मान लें तो
कितने लोग फूल लेने आ पाएंगे। रोज 30 लोग भी फूल लेने आते हों तो 1800 लोग ही हुए।
उसमें भी सारे ये बताएंगे कि वो किस पार्टी को वोट देंगे या फिर फूल लेकर निकल
लेंगे।
अरविंद केजरीवाल की आदर्श अपील बहुत ज्यादा
है। लेकिन, एक बात जो समझना जरूरी है कि आप पार्टी के पास अभी भी दिल्ली में
बीजेपी-कांग्रेस जैसा संगठन और पक्का वाला वोट बैंक नहीं है। पंजाबी, बनिया,
पूर्वांचली किसे वोट करेगा आप को? मुझे संदेह है। दिल्ली वैसे भी Elite है। मतलब देश के सबसे
ज्यादा कमाई वाले यहीं हैं। मेरा आशय प्रति व्यक्ति आय से है। दिल्ली सुविधाभोगी
भी है। दो साइज बड़ी शर्ट पहनकर अरविंद दिल्ली के झुग्गी-ऑटोवालों को लुभा रहे हैं
इसमें कोई बहस नहीं। लेकिन, क्या वो दिल्ली के उस वर्ग को चिढ़ाते नहीं हैं जो असल
दिल्ली है। या उनको जो असल दिल्ली बनना चाहते हैं। दिल्ली आकर कोई भी फटेहाल नहीं
रहना चाहता। इसीलिए शीला दीक्षित के - कमाई ज्यादा है इसलिए महंगाई भी ज्यादा जैसे
अटपटे- बयानों के बाद भी दिल्ली शीला को पसंद करती है। एक और बात कि दिल्ली में
शीला से नाराज लोग (सही ये लिखना होगा कि केंद्र की कांग्रेस सरकार से नाराज)
अरविंद को पसंद कर रहे थे सच है। लेकिन, सच ये है कि उनको विजय गोयल का चेहरा भी
बहुत पसंद नहीं आ रहा था। लेकिन, डॉक्टर हर्षवर्धन की जो छवि है वो दिल्ली को
अच्छी लगती है।
और जो सबसे बड़ी बात है कि अगर देश में ही
नरेंद्र मोदी की हवा निकल जाए तो बात अलग। वरना दिल्ली विधानसभा को दिल्ली लगे
होने से देश के चुनाव का प्रतीक माना जाता है। और देश में मोदी को पसंद करने वाले
दिल्ली में अरविंद के साथ चले जाएंगे ये होगा मुश्किल है। वजह साफ है उन्हें
अरविंद पसंद हैं। लेकिन, उन्हें देश में मोदी चाहिए। इसलिए मुझे लगता है कि चुनाव
आते आते वो लोग और साफ होंगे जो कांग्रेस के विरोध में देश में मोदी और दिल्ली
विधानसभा में अरविंद केजरीवाल को पसंद कर रहे हैं। क्योंकि, उन्हें पता है कि
दिल्ली विधानसभा में अरविंद के मजबूत होने का मतलब देश में मोदी के कमजोर होने से
निकाला जाएगा। और ये स्थिति उन लोगों को नापसंद होगी जो कांग्रेस विरोध में हैं।
जो नरेंद्र मोदी की सभा में दिल्ली के रोहिणी से लेकर दक्षिण तक जुट रहे हैं और
तालियां बजा रहे हैं। ये ओपिनियन पोल काफी हद तक सही है। लेकिन, मुझे लगता है कि
15 नवंबर के बाद का ओपिनियन पोल तस्वीर नए सिरे से साफ करेगा।
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