Wednesday, October 30, 2013

प्रतिष्ठित भारत, धूमिल चीन



चीन के राष्ट्रपति झी जिनपिंग ने 22 जनवरी को साफ कहा था कि चीन में कोई भी भ्रष्ट बचेगा नहीं। उन्होंने अपने बयान में कहा था कि हमें उस धरती को ही खत्म कर देना है जिस पर भ्रष्टाचार का बीज पनपता है। जिनपिंग ने कहा कि भ्रष्टाचार के मामले में छोटे या बड़े भ्रष्ट का फर्क नहीं होगा। चीन के राष्ट्रपति भले ही भ्रष्टाचार मुक्त चीन की कल्पना कर रहे हों। जिनपिंग इसे लेकर कितने संजीदा हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम में ढेर सारे बड़े अधिकारियों के साथ चाइना नेशनल पेट्रोलियम के पूर्व मुखिया जियांग जीमिन भी बुरी तरह फंसते दिख रहे हैं। चीन के जिंयांगसू प्रांत की राजधानी नानजिंग के मेयर के खिलाफ भी आर्थिक अपराध की जांच चल रही है। लेकिन, चीन की कंपनियां भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने राष्ट्रपति की बड़ी लड़ाई की योजना की जड़ में ही मट्ठा डाल रही हैं।

दुनिया की जानी मानी संस्था ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल का ताजा सर्वे बता रहा है कि चीन की कंपनियां दुनिया की सबसे भ्रष्ट कंपनियां हैं। और उनके जो काम के तरीके हैं वो सबसे कम भरोसेमंद हैं। ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल दुनिया में भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाला संगठन है। इसका मुख्यालय बर्लिन में है। 52 पन्ने की इस रिपोर्ट में इमर्जिंग मार्केट्स में कॉर्पोरेट्स के कामकाज के तरीके को जांचा गया है। BRICS यानी ब्राजील, रूस, इंडिया, चीन और दक्षिण अफ्रीका के अलावा 12 दूसरे विकासशील देशों की कुल 100 कंपनियों को इस सर्वे में शामिल किया गया है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण खबर ये है कि ये लगभग वही 100 कंपनियां हैं जिन्हें 2011 में ग्लोबल चैलेंजर्स की सूची में शामिल किया गया था। और इन 100 कंपनियों में औसत पारदर्शिता की बात करें तो ये सिर्फ 36 प्रतिशत है। इस सर्वे में जो बातें निकलकर आई हैं उससे दुनिया में अमेरिका के विकल्प के तौर पर देखी जा रही चीन की कंपनियों के कामकाज का तरीका बेहद खतरनाक संकेत देता है। 100 में से 11 कंपनियां जिनमें कंपनी के अंदर ही पारदर्शिता लगभग न के बराबर है उसमें से 9 चीन की ही कंपनियां हैं। ये सारी चीन की बड़ी कंपनियां हैं। चाइना नेशनल ऑफशोर ऑयल, अंशन आयरन एंड स्टील ग्रुप, चाइना शिपबिल्डिंग इंडस्ट्री कॉर्पोरेशन, ऑटो पार्ट्स बनाने वाली कंपनी वैनजियांग और भारत में भी तकनीक का इस्तेमाल करने वालों के लिए काफी परिचित कंपनी हुआवेई टेक्नोलॉजीज भी शामिल हैं। इन कंपनियों ने किस देश में कितना निवेश है या किस तरह की आगे की योजना है इसकी भी जानकारी छिपाने की कोशिश की है।

चीन की कंपनियों से इसकी शुरुआत मैंने इसीलिए की कि बार-बार एक बात जो कही जाती है कि तरक्की के लिए चीन का मॉडल श्रेष्ठ है। जबकि, ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल का ताजा सर्वे बता रहा है कि किस तरह से चीन की कपनियां तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ती हैं। जबकि, इसी सर्वे में भारतीय कंपनियों ने भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने का काम किया है। ब्रिक्स देशों में सबसे अच्छी कंपनियां भारतीय ही हैं। भारत की कंपनियां ने सर्वे के पैमाने के औसत से काफी अच्छा 52 प्रतिशत हासिल किया है। भारत के बाद दक्षिण अफ्रीका, रूस, ब्राजील और सबसे अंत में जाहिर है चीन की कंपनियों का नाम आता है। और भारतीय कंपनियों की प्रतिष्ठा का झंडा लहराते सबसे आगे देश की सबसे प्रतिष्ठित टाटा ग्रुप की ही कंपनी है। ट्रांसपैरेंसी के मामले में टाटा कम्युनिकेशंस सबसे आगे है। सर्वे के मानकों पर टाटा कम्युनिकेशंस को 71 प्रतिशत मिले हैं। और इस सर्वे में एक बात जो और निकलकर आई है कि भले ही भारत की चर्चा दुनिया में इस समय पॉलिसी पैरालिसिस और भ्रष्टाचार जैसी वजहों से चर्चा में हो। लेकिन, भारत का कानूनी ढांचा ऐसा है कि भारत में काम करने वाली कंपनियों को अपनी आर्थिक जानकारियां सबके सामने रखनी पड़ती हैं। यानी भले ही नीरा राडिया टेप के बाद टाटा ग्रुप और भारतीय कंपनियों की प्रतिष्ठा धूमिल होती दिखी हो लेकिन, सच्चाई यही है कि भारतीय कंपनियां अभी भी दुनिया के पैमाने पर सबसे अच्छी हैं। इसीलिए ये ज्यादा जरूरी हो जाता है कि सरकार को उद्योगों की इस चेतावनी पर ध्यान देना चाहिए कि देश में बेहतर काम करने लायक माहौल खत्म हो रहा है। ये सर्वे दरअसल भारतीय लोकतंत्र और अदालतों के लोकतंत्र को ठीक रखने की भूमिका को भी महत्व दे रहा है।

इस सर्वे में एक और बात निकलकर सामने आई है कि जो कंपनियां शेयर बाजार में सूचीबद्ध हैं वो गैरसूचीबद्ध कंपनियों से ज्यादा बेहतर तरीके से काम कर रही हैं। यानी बाजार यहां पारदर्शिता बचाने और भ्रष्टाचार के खिलाफ माहौल बनाने में मददगार हो रहा है। दरअसल शेयर बाजार में गैरसूचीबद्ध कंपनियां अपने खातों में पारदर्शिता बहुत कम रखती हैं। यानी बाजार से सब बिगड़ता है ये वाली धारणा भी एकदम ठीक नहीं है। इस सर्वे में जब कंपनियों के राजनीतिक रिश्तों की जानकारी लेने की कोशिश की गई तो वहां ज्यादातर कंपनियों ने जानकारी स्पष्ट नहीं की। औऱ न ही दिए जाने वाले चंदे के बारे में। हालांकि, यहां भी भारतीय कंपनियां सबसे बेहतर हैं जबकि, चीन यहां भी सबसे बदतर। इस सर्वे की खबर भारतीय मीडिया में बहुत हल्के में लिखी-बोली गईं। जबकि, ये सर्वे भारतीय लोकतंत्र, कंपनियों और कानून की महत्ता दुनिया में दिखाने वाला है। और, सबसे बड़ी बात ये कि हमें अपने लिहाज से मॉडल तैयार करना होगा न कि चीन और अमेरिका को देखकर। उनका हश्र दुनिया देख रही है।

4 comments:

  1. रोचक अवलोकन, विकास की दर पर अद्भुत है चीन।

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  2. कहीं तो भारत विश्वसनीय बना।

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  3. निराशाजनक माहौल के बीच एक अच्छी तस्वीर। लेकिन यह अध्ययन BRICS के संदर्भ में ही है। यूरोप व अमेरिका के विकसित देशों की कंपनियों के मुकाबले क्या स्थिति है यह जानना भी जरूरी है। और ट्रान्सपैरेन्सी वालों के दुलारे स्कैन्डिनेवियाई देशों की तुलना में कहाँ ठहरती हैं हमारी कंपनियाँ इसका भी आकलन रोचक होगा।

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  4. बढ़िया विश्लेषण....

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