Friday, June 06, 2008

साहब, खाली पेट और भूख लगती है

कर्नाटक में ब्लैकमेलर देवगौड़ा परिवार की धोखाधड़ी और ऐन मौके पर दिखी महंगाई (महंगाई खतरे के निशान पर पहुंच तो, साल भर पहले ही गई थी। आज शुक्रवार है और फिर महंगाई दर बढ़ गई है।) इन दोनों ने दक्षिणपंथी बीजेपी को दक्षिण दुर्ग का द्वार भेदने में मदद कर दी। वरना फिलहाल ऐसा कोई मुद्दा नहीं था जो, बीजेपी के पक्ष में वोट का अंबार लगा पाता। कांग्रेस के युवराज को डिस्कवर इंडिया में कुछ काम का नहीं मिला जो, नेहरू जी के डिस्कवरी ऑफ इंडिया से आगे बढ़ पाता। पूरा देश घूमने वाले युवराज की महंगाई से भी मुलाकात नहीं हुई। जबकि, मेरी महंगाई से मुलाकात एक ही दिन में नैनीताल के स्टेट गेस्ट हाउस में मुन्ना खां की शक्ल में हो गई।

बीजेपी कर्नाटक में सत्ता में आ गई है। और, उत्तरांचल में पहले से ही है। अचानक बने प्रोग्राम में एक दिन के लिए मैं नैनीताल पहुंच गया। रात की फ्लाइट से मुंबई से दिल्ली। रात भर चलकर सड़क के रास्ते से रुद्रपुर और वहां से नैनीताल। एक रात नैनीताल में दूसरे दिन शाम को फिर वापस और रात की फ्लाइट से फिर मुंबई। वैसे तो नैनीताल पहुंचना ही बहुत सुखद अनुभव रहा। लेकिन, नैनीताल के स्टेट गेस्ट हाउस (नैनीताल क्लब के नाम से मशहूर) में सुबह हुई मुन्ना खां से मुलाकात ने बता दिया कि- महंगाई मार गई, का डर ऐसे ही बड़ी-बड़ी सरकारों पर भारी नहीं पड़ता।


सुबह उठा तो, कड़ुआ तेल की शीशी चटकाते बुजुर्ग सज्जन मालिश के आग्रह के साथ दरवाजे पर खड़े थे। पहाड़ों का खुशनुमा मौसम और दिल्ली से नैनीताल तक सड़क के रास्ते आने की थकान में मेरा मन भी मालिश के लिए मचल गया। लेकिन, चुचके गालों और झुर्रियों से सिकुड़े मुन्ना खां के हाथ और चेहरे को देखकर मेरा मालिश कराने का मन थोड़ा हिचका। मुन्ना खां ने कहा- साहब, 130 रुपए में बढ़िया मालिश करूंगा। मैंने कहा- 100 रुपए (क्योंकि, मुझे लगा कि ये मालिश क्या करेंगे, ऐसे ही निपटा देंगे।)

मुन्ना खां ने कहा- साहब, बस मई-जून। उसके बाद तो 10-20 रुपए में भी कोई मालिश के लिए नहीं पूछता। और, साहब मन खुश होगा तो, आप मुझे 10-20 रुपए ज्यादा ही देंगे। घड़ी दिखाकर बोले- पूरे आधे घंटे लगते हैं। कड़ुए तेल की शीशी भी सुंघा दी। एकदम असली कड़ुआ तेल था— महक आंखों तक उतर गई थी (असली कड़ुए तेल का अनुभव जिनको न हो उनके लिए, कड़ुए तेल के आंखों में उतरने का अहसास जरा मुश्किल ही है।)

मैं तैयार हो गया। मुझे क्या पता था कि मुन्ना खां की शक्ल में खुद महंगाई मेरी मालिश करने जा रही थी। मैंने उमर पूछी तो, मुन्ना ने 60 साल बताई। जबकि, मुझे 70 के ऊपर लग रही थी। ठीक वैसे ही जैसे महंगाई दर के आंकड़े कुछ और होते हैं और हमारे-आपके घर में पहुंचकर वो और ज्यादा दिखने लगती है। खैर, मुन्ना खां ने जब मेरी मालिश शुरू की तो, मुझे अहसास हुआ कि मुझसे ज्यादा ताकत अभी भी उनमें बची है।

साहब, मई-जून के बाद तो काम ही नहीं मिलता। खाली रहता हूं। चूल्हा जलना मुश्किल हो गया है। सबकुछ इतना महंगा हो गया है। चावल-दाल किलो भर लेने में खून जल जाता है। और, जब काम नहीं मिलता, खाली रहता हूं, कमाई नहीं होती तो, खाली पेट भूख और ज्यादा लगती है। काम में तो फिर भी भूख से ध्यान हट जाता है। और, पहाड़ों पर तो, वैसे भी महंगाई कुछ ज्यादा ही असर करती है। सब बड़े-बड़े घरों के बच्चे आते हैं। या फिर शहरों से लोग मौसम बदलने आते हैं। उनकी जेब तो भरी होती है। पहले से महंगी चीज को और महंगा कर जाते हैं।

मुझे मुन्ना खां की बात में दम लगा। मैंने भी नैनीताल की मॉल रोड से 100 रुपए का बैटरी से चलने वाला मसाजर ले लिया। तुरंत ही बगल में खड़े एक सरदारजी बोले- पचास रुपए से ज्यादा का नहीं है। दूसरी सुबह हम झील में बोटिंग करने के बाद निकले तो, दूसरा मसाजर बेचने वाला 70 रुपए में ही देने को तैयार हो गया। दुपट्टे जैसे हल्के कपड़े के शॉल 150 रुपए में मिल रहे थे। झील के किनारे के होटल पीक सीजन (गर्मियों में) एक रात के लिए 3,000 से 7,000 रुपए तक वसूलते हैं। और, हमें घुमाने वाले गाइड ने रास्ते का एक होटल दिखाकर बताया- ये यहां का सबसे महंगा होटल है। एक रात का 10,000 रुपए से ज्यादा लगता है। मुझे लगा बाहर से आने वाले लोगों को जो, इतने महंगे सामान या फिर होटल के कमरे मिलते हैं। उसकी कमाई में मुन्ना खां जैसा खांटी पहाड़ियों को हिस्सा अब भी क्यों नहीं मिल पा रहा। अब तो सिर्फ पहाड़ के लोगों के लिए अलग से राज्य भी बन गया है।

खैर, मालिश के साथ ही मुन्ना खां की बात आगे बढ़ चुकी थी। बाहरी लोग आके साहब पहाड़ काट रहे हैं। दो मंजिल की परमीशन पर 4-5 मंजिल की बिल्डिंग तान देते हैं। 3500 घर ऐसे ही बने हैं साहब। कभी-कभी कुछ घर टूटते भी हैं। नैनीताल क्लब में ही साहब पहले सिर्फ 40-50 कमरे थे अब 300 कमरे हैं। बहुत विरोध हुआ था। पुलिस ने लाठियां बरसाईं थीं। लड़कों ने बहुत बवाल किया था।

मुन्ना खां नैनीताल में हैं। वहां बीजेपी की सरकार है। ये दूसरी बार है। लेकिन, मुन्ना खां महंगाई पर बरस रहे थे। और, सरकार पर बरस रहे थे। एक बार भी उन्होंने बीजेपी या कांग्रेस का नाम नहीं लिया। हां, ये जरूर कह दिया कि अंग्रेज सरकार हमारे सरकार से अच्छे थे। महंगाई भी नहीं थी। कोई गलती करे—गलत काम करे तो, सीधे गोली से उड़ा दिया जाता था। इस वजह से लोगों में डर था। अब तो ऐसी सरकार है कि कुछ भी करके आदमी बच जाता है। पैसा सारे पाप छिपा लेता है।

पहाड़ों में मैंने कभी हिंदू-मुस्लिम भी नहीं सुना। देहरादून में करीब डेढ़ साल रहते हुए। मुन्ना खां से नैनीताल क्लब में आधे घंटे मालिश करवाते हुए और मुस्लिम घोड़े वालों के साथ वैष्णो देवी के दर्शन के लिए जाते हुए भी। नैनीताल की सैर करवाने वाले ज्यादातर घोड़े वाले मुस्लिम ही थे। हम लोगों जिन 4 घोड़ों पर ऊपर तक गए। उसे ले जाने वाले भी दोनों ही मुस्लिम ही थे। और, ये सिर्फ यहीं नहीं है। वैष्णो देवी के दर्शन के लिए ले जाने वाले सारे घोड़े वाले और पालकी वाले भी मुस्लिम हैं। हिंदू भक्तों का देवी दर्शन मुस्लिमों के ही भरोसे हो रहा है।

खैर, नैनीताल भी पहाड़ पर है तो, कोई न कोई देवी-देवता तो होंगे ही। नैनीताल की झील के बगल में ही नयना देवी का मंदिर है। मेरी पत्नी और उनकी दोनों बहनें मंदिर गईं। मैंने कहा- मैं जूते पहने हूं, बाहर से ही प्रणाम कर लेता हूं। दरअसल, मैं आज तक ये जान नहीं पाया हूं कि भगवान में मेरी कितनी आस्था है। ये जरूर लगता है कि कोई न कोई शक्ति तो जरूर है जो, सुपरपावर है। खैर, मैं बाहर खड़ा था एक अधेड़ उम्र दंपति आए। पत्नी ने कहा- गोपाल आओ, दर्शन कर लेते हैं। लेकिन, गोपाल बाहर ही रुक गए। पत्नी अंदर चली गई। थोड़ी ही देर बाद गोपाल भी कुछ सोचते विचारते मंदिर के अंदर थे। मैं सोचने लगा कि क्या उम्र बढ़ने के बाद मैं भी इसी तरह पत्नी के पीछे मंदिर में दर्शन करने जाने लगूंगा।

नयना देवी मंदिर के बाहर मैं खड़ा इंतजार कर रहा था। और, प्रसाद की दुकान पर फुल वॉल्यूम में गाना बज रहा था- नयनों की मत सुनियो ... नयना ठग लेंगे। और, जिस तरह से महंगाई की राजनीति शुरू हो गई है। उससे तो साफ लग रहा है कि कांग्रेस को महंगाई ठग लेगी।

10 comments:

  1. महंगाई की रफ़्तार के साथ आपकी यात्रा कदम ताल करती रही . जाने अनजाने मे कई सारे मुद्दों पर आपकी ये लिखाई विविधता के साथ मौलिकता बरकरार रखने का परिचायक है . कहा जा सकता है ,आपकी लेखनी महंगाई की तरह सुधर रही है .
    जनता का अपना अर्थशास्त्र है वह किसी भी हाल मे मंहगे होते मनमोहन या चिदंबरम जैसे अर्थशास्त्री का क्लास नही लेना चाहती. जनता जानती है, महंगाई किसको मारने से मरेगी .

    ReplyDelete
  2. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  3. ham aor aap jaise log to fir bhi chala lenge cheezo ke mahngi -sasti hone me par aise logo ki zindgi aor mushkil ho jati hai.

    ReplyDelete
  4. बहुत ही सशक्त लेखन।
    मंगाई की हालत देख कर मनेज कुमार की रोटी कपड़ा और मकान फ़िल्म का वो गीत याद आ रहा है
    बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गई ,महंगाई मार गई।

    ReplyDelete
  5. रोचक शैली मे लिखा हुआ आपका एक सुंदर यात्रा वृतांत..
    पड़कर कई विचारनीय प्रश्न सामने खड़े हो गए हैं.

    ReplyDelete
  6. मुन्ना खां के फोटो देख लग रहा है कि वे मंहगाई को ताक रहे हैं और हम गरीबी को!
    जानदार लेख।

    ReplyDelete
  7. बहुत जबरदस्त आलेख. मंहगाई, सरकार, गरीबी, आपका यात्रा वृतांत -इन सबका का इतना खूबसूरत सामंजस्य गजब का रोचक है.

    ReplyDelete
  8. बंधु मैं खुद पहाड़ों से हूँ हालांकि रहा नहीं हूँ वहाँ कभी मगर भावनात्मक जुड़ाव बहुत गहरा है। कई मुन्ना खान मिल जाएंगे वहां। घोर अभाव में जीते हैं मगर बड़े जीवट हैं लोग। समस्या तो नैनीताल से दूर गाँवों में और भी विकट है। प्राकृतिक संसाधनों से धनी धरती के स्वामी।
    आपने यात्रा-व्रतांत्र को सामाजिक समस्या से काफ़ी चतुरता से मिला दिया है लेख में।

    ReplyDelete
  9. आपका लेखन तो हमेशा से ही प्रभावशाली रहा है... सफल लेखन वही है जो कुछ गहरी बातों का खुलासा न करके पढने वाले पर ही छोड़ दे...आपने भी उसी कुशलता के साथ यात्रा और महंगाई का वर्णन करते हुए और कई बातों के लिए चिंतन करने पर विवश कर दिया.

    ReplyDelete
  10. APNE SUCH LIKHA HAI.
    SUCH DUNIA KI SABSE KHUBSURAT CHEESE HAI.

    ReplyDelete

शिक्षक दिवस पर दो शिक्षकों की यादें और मेरे पिताजी

Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी  9 वीं से 12 वीं तक प्रयागराज में केपी कॉलेज में मेरी पढ़ाई हुई। काली प्रसाद इंटरमी...