मुझे आज एक ई मेल मिली। जिसमें किसी ने बिना नाम बताए उत्तर प्रदेश की राजनीतिक-नौकरशाही जुगलबंदी पर कुछ लाइनें भेजी हैं। मैं मेल सहित वो लाइनें आप सबके सामने पेश कर रहा हूं।
हर्षजी, आपका बतंगड़ पढ़ता रहता हूँ। आप यूपी से हैं और यहाँ की राजनीति व नौकरशाही से परिचित हैं। आज-कल यहाँ जो कुछ चल रहा है उसकी एक बानगी इस कविता में है। यदि बात कुछ जमे तो अपने ब्लॉग पर डाल सकते हैं। अपनी ही ओर से। धन्यवाद।
बीत गया है मार्च, मई ने दस्तक दी है।
वित्त वर्ष की लेखा बन्दी, सबने की है॥
'जून आ गया भाई',यूँ सब बोल रहे हैं।
तबादला-सीजन है, अफसर डोल रहे हैं॥
शासन ने तो पहले, इसकी नीति बनायी।
अनुपालन होगा कठोर, यह बात सुनायी॥
अब ज्यों सूची-दर-सूची, जारी होती है।
घोषित नीति ट्रान्सफर की, त्यों-त्यों रोती है॥
सक्षम अधिकारी को, भूल गया है शासन।
तबादलों के नियम, कर रहे हैं शीर्षासन॥
मंत्री जी के दर पर, जाकर शीश झुकाओ।
स्वाभिमान, ईमान, दक्षता मत दिखलाओ॥
टिकट कट रहे वहाँ, मलाईदार सीट के।
बिचौलिए भी कमा रहे, धन पीट-पीट के॥
जैसी भारी थैली, वैसी सीट मिलेगी।
मंत्रीजी तक परिचय है, तो छूट मिलेगी॥
देखो प्यारे आया कैसा, विकट जमाना।
चोर-लुटेरे चढ़े शिखर पर, बदले बाना॥
नेता-नौकरशाह मिलाकर हाथ, खजाना लूट रहे हैं।
मजबूरी में 'हरिश्चन्द्र' हैं जो, अपना सर कूट रहे हैं॥
देश की दशा-दिशा को समझाने वाला हिंदी ब्लॉग। जवान देश के लोगों के भारत और इंडिया से तालमेल बिठाने की कोशिश पर मेरे निजी विचार
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ओह, रेलवे में यह सब पता नहीं चलता। हम लोग काफी इन्सुलर हैं।
ReplyDeleteमेरे ख़याल से यह हालत देश की लगभग सभी राज्य सरकारों में है। लोकतन्त्र के नाम पर जनता के १०-१५ फीसदी वोट पाकर, जिसकी कुल संख्या हजार में ही बैठती होगी, ये विधायक जोड़-तोड़ की सरकारों में अचानक मंत्री बन जाते हैं। …और तब इन्हे हाथ आये इस अवसर को जल्द से जल्द भुना लेने की व्यग्रता में किसी भी हद तक जाने में कोई संकोच या लाज़-शर्म जैसी कोई बात असर नहीं करती। सत्ता के शीर्ष पर बैठी नेत्री ने तो टिकट बँटवारे के समय ही इस विडंबना का सूत्रपात कर दिया था।…
ReplyDeleteयह उत्तर प्रदेश की नहीं, पूरे भारत की कहानी है. बेहतरीन. आभार हमारे साथ बांटने के लिए.
ReplyDeletesarkari aadmi ki vyatha kah dali hai saheb..par ye u.p ki hi nahi sare bharat ki kahani hai.....unhe meri aor se badhai dijeyega...
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