Sunday, June 15, 2008

हम सबको राज ठाकरे के साथ खड़े हो जाना चाहिए

राजनीतिक फायदे के लिए ही सही लेकिन, इस बार बात राज ठाकरे की बात एकदम कायदे की है। सबसे बड़ी बात ये वो, मुद्दा है जिस पर राज ठाकरे ने शायद ही कभी कायदे की बात की हो। पहली बार है कि मराठी अस्मिता से जुड़ा मुद्दा होने के बाद भी राज ठाकरे भावना को उबारने की बजाए तर्क दे रहे हैं।

मामला मराठी स्वाभिमान के सबसे बड़े प्रतीक का है इसलिए राज सीधे विरोध करने के बजाए तर्क दे रहे हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया ने राज ठाकरे की ये पूरी दलील पहले पन्ने पर छापी है। और, अब तक ऐसी कोई खबर नहीं आई है कि राज ठाकरे के घर पर किसी शिवसैनिक, किसी शिवसंग्राम के सिपाही या फिर और किसी मराठी अस्मिता के ठेकेदार ने हमला किया हो (शायद किसी में इतना दम ही नहीं है)। अभी तक तो बयान भी नहीं आया है पूरी उम्मीद है कि बयान तो आएंगे ही। लेकिन, सबको याद होगा कि छत्रपति शिवाजी महाराज की मूर्ति समुद्र में लगाने के सरकार के फैसले का विरोध अपने संपादकीय में करने के बाद लोकमत के संपादक का क्या हाल हुआ था। अच्छा हुआ कुमार केतकर ने घर का दरवाजा नहीं खोला। नहीं तो, एनसीपी विधायक की शिवसंग्राम सेना के सिपाही जाने क्या कर गुजरते। अब विनायक मेटे के सिपाही कहां हैं।

राज ठाकरे की बात सुनिए—मैं शिवाजी की प्रतिमा के खिलाफ नहीं हूं। शिवाजी महाराष्ट्र के, भारत के सबसे बड़े महापुरुषों में हैं (मेरे जैसे लोग पढ़ाई के दिनों से ही शिवाजी को देश के महापुरुषों में जानते थे। मुंबई में ठाकरे परिवार ने इसे देश की बजाए सिर्फ मराठी अस्मिता के प्रतीक महापुरुष में बदल दिया था)। लेकिन, समुद्र के बीच में मूर्ति – फिर चाहे वो इंदिरा गांधी हों या फिर शिवाजी ठीक नहीं है। ये एक बीमार विचार है।

राज ठाकरे के अलावा शायद ही किसी की हिम्मत थी कि इस तरह से सरकार के इस फैसले का विरोध करता। क्योंकि, मराठी स्वाभिमान के नाम पर शिवसेना और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के बाद एनसीपी के विधायक भी ऐसा तांडव कर चुके हैं कि कोई सही बात भी कहने से डरता है। लेकिन, राज ठाकरे की इस कायदे की बात को इस तरह से समर्थन मिलना चाहिए कि आगे राज भी बेवजह की मराठी अस्मिता का नाम लेकर लोगों को बांटने की कोशिश करें तो, उनको किसी का साथ न मिले।

राज ठाकरे को पर्यावरण की चिंता है। राज कह रहे हैं कि अगर मूर्ति बनाने और साढ़े सात एकड़ में एम्फीथिएटर, म्यूजियम और कैफेटेरिया बनाने के लिए समुद्र में खुदाई की गई तो, ECOLOGICAL BALANCE बिगड़ जाएगा। और, बेशकीमती समुद्री जीव-जंतुओं के जीवन को खतरा हो जाएगा। राज इसे तकनीकी तौर पर पूरी तरह से गलत बता रहे हैं। साथ ही वो, मूर्ति और टूरिस्ट स्पॉट बनाने के लिए सरकारी बजट को भी पूरी तरह निराधार बता रहे हैं। राज कहना है कि 200 करोड़ का बजट धोखा है। इस PROJECT पर करीब साढ़े चार हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे। राज कह रहे हैं कि अमेरिका स्टैचू ऑफ लिबर्टी की नकल बनाने की बात बेवकूफी है। वो, दुनिया की एक अनूठी चीज है, उसकी नकल की कोशिश भी नहीं करनी चाहिए।

राज ऐसे ढेर सारे तर्क दे रहे हैं। सारी बातें सही है। ऐसी ही बात महाराष्ट्र के सबसे प्रतिष्ठित संपादकों में से एक कुमार केतकर ने भी कही थी। केतकर ने कहा था कि सरकार शिवाजी महाराज की मूर्ति लगाने पर 200 करोड़ खर्च करना चाहती है जबकि, किसान भूखों मर रहे हैं। लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा है। लोगों की जिंदगी का स्तर गिरता जा रहा है। लेकिन, इस बात पर केतकर के घर पर हमला हो गया। घर के शीशे तोड़ दिए गए। और, ये सब करने वाले बेशर्मी से कह रहे हैं कि शिवाजी महाराज के खिलाफ टिप्पणी करने वालों के साथ ऐसा ही होना चाहिए।

राज ठाकरे राजनीति कर रहे हैं। उनकी बातें सही हैं लेकिन, ये सारे तर्क सिर्फ इसलिए कि महीनों की कड़ी मेहनत के बाद मराठी और उत्तर भारतीयों के बीच नफरत का कुछ बीज बोने में कामयाब हो पाए राज के मराठी वोटबैंक की फसल कहीं कांग्रेस-एनसीपी काट न ले जाए। लेकिन, मैं तो यही कहूंगा इस समय वो सभी लोग जो, चाहते हैं कि लोगों के बीच नफरत न रहे। वो, सब राज ठाकरे के साथ खड़ें हों, जिससे नफरत पैदा करने की बुनियाद पर मजबूत चोट पड़े और वो बुनियाद धसक जाए जिससे कि दुबारा खुद राज ठाकरे भी उस नफरत की बुनियाद पर किसी वोटबैंक की इमारत न खड़ी कर सकें।

7 comments:

  1. "राज" नीति में शाश्वत सिद्धान्त नहीं होते। राज ठाकरे सफल हो गये तो कल पूरी निष्ठा से राज्यवाद की बजाय राष्ट्रवाद या विश्ववाद की बात भी कर सकते हैं। :)

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  2. इस तरह के प्रोजेक्ट्स दो फायदे पहुंचाते है. एक, राजनीतिक फायदा जिस में यह साबित होता है की आप ही महा अस्मिता के महान सिपाही हैं. दो, अपनी जेब भरती है. सच पूछिये तो दूसरा कारण ही मुख्य होता है. क्या शिवा जी को इन मूर्तियों की जरूरत है?

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  3. पर्यावरण को नुकसान बहुत बड़ा मुद्दा है. जमीन का सत्यानाश करने वाले हम समुन्द्र को छोड़ दें तो अच्छा होगा.

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  4. jitne bhi tark diye jate hain..chaahe prayaavaran ke mudde par ya any kisi mudde par...sabhi ka uddeshy sirf sirf vote kamana hai aur yahi sabse badi vidambna hai...

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  5. पर्यावरण को नुकसान से बचाने की चिन्ता एक बडी बात है, पर शायद राज ठाकरे ने इस बात को कहने से पहले जो उत्पात मचाया है, उससे उनकी इस गम्भीर बात का भी वजन कम हो गया है।

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  6. Anonymous6:45 PM

    raj thhakre=ek baddimaag aadmi
    don't care

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