हर्ष वर्धन त्रिपाठी
फर्जी
तरीके से टीआरपी बढ़ाने के मामले में मुम्बई पुलिस ने कुल 8 लोगों को गिरफ्तार कर
लिया है। फर्जी तरीके से टीआरपी बढ़ाने की जांच में 3 टीवी चैनलों के नाम सामने
आए। मुम्बई पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने रिपब्लिक टीवी पर सीधा हमला बोल दिया, हालांकि,
रिपब्लिक के साथ फक्त मराठी और बॉक्स सिनेमा पर भी टीआरपी के फर्जीवाड़े का आरोप
मुम्बई पुलिस ने लगाया था, लेकिन रिपब्लिक टीवी ने मुम्बई पुलिस की प्रेस
कांफ्रेंस के कुछ घंटे बाद ही मुम्बई पुलिस की FIR में इंडिया टुडे का नाम होने और रिपब्लिक का नाम
न होने का दावा करके फर्जी तरीके से टीआरपी हासिल करने की पूरी बहस का ही शीर्षासन
करा दिया। स्पष्ट तौर पर यह बात दिख रही थी कि किस तरह से मुम्बई पुलिस रिपब्लिक
टीवी के साथ निजी दुश्मनी जैसा व्यवहार करती दिख रही थी और यह व्यवहार इससे पहले
तब दिखा था, जब सोनिया गांधी पर टिप्पणी करने के बाद मुम्बई पुलिस ने रिपब्लिक
टीवी के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी से 12 घंटे से ज्यादा पूछताछ की थी। इसमें
कतई संदेह नहीं है कि मुम्बई पुलिस रिपब्लिक के खिलाफ विद्वेष की भावना से काम कर
रही है। अब मुम्बई उच्च न्यायालय में अर्नब का पक्ष रख रहे मशहूर अधिवक्ता हरीश
साल्वे मुम्बई पुलिस की जांच में रिपब्लिक का नाम आने को इन्हीं आधारों पर खारिज
कर रहे हैं। हरीश साल्वे ने कहाकि उनके मुवक्किल अर्नब की आवाज दबाने की कोशिश
इसलिए हो रही है क्योंकि उन्होंने पालघर में साधुओं की भीड़ द्वारा हत्या के खिलाफ
बहुत मजबूत तरीके से आवाज उठाई थी। सुशांत सिंह राजपूत मामले में भी रिपब्लिक ने
महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है और मामला सिर्फ एक
टीवी चैनल और एक सरकार के बीच का होता तो ऐसा होना स्वाभाविक है, लेकिन यहां तो टीवी
की फर्जी टीआरपी का मामला अब सीधे तौर पर टीवी चैनलों की निजी दुश्मनी और उससे भी
आगे बढ़कर अलग-अलग सरकारों के साथ खड़े दिखने की कोशिश में किसी भी हद तक जाने का
मामला हो गया है।
टीवी
चैनलों की गिरती साख का सवाल इतना बड़ा हो गया है कि नेटवर्क 18 के प्रधान संपादक
राहुल जोशी ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ यह सवाल पूछा कि मीडिया में
घंटों एक ही विषय पर हो रही रिपोर्टिंग को आप किस तरह से देखते हैं। गृह मंत्री
अमित शाह ने इस सवाल के जवाब में कहाकि, राहल, इसका जवाब तो मुझसे अच्छा आप दे
सकते हो। गृह मंत्री अमित शाह ने कहाकि मीडिया ट्रायल नहीं होना चाहिए। जहां गलत
हो रहा हो, वहां मीडिया को सवाल खड़ा करना चाहिए, लेकिन कार से निकले, अभी दायां
पैर बाहर निकाला ... इस तरह की रिपोर्टिंग ठीक नहीं है और इससे न्याय के काम में
भी बाधा आती है। दरअसल, आदर्श स्थिति यही होनी चाहिए कि किसी भी हाल में लोकतंत्र
के चौथे खंभे के तौर पर स्थापित पत्रकारिता को अपने आचरण के लिए राजनेताओं या
सरकार की तरफ न ताकना पड़ता, लेकिन विज्ञापन के लिए टीआरपी और सरकार पर आश्रित
टीवी चैनलों ने खुद ही सरकारों को पक्ष बना दिया और इसी का नतीजा है कि बिना
ड्राइवर की कार, स्वर्ग की सीढ़ी, भूत-प्रेत-नाग-नागिन और घटिया कार्यक्रमों को
आगे बढ़ाते टीवी चैनल कब टीआरपी खरीदने में लग गए होंगे, पता ही नहीं चला। कमाल की
बात है कि आज टीवी की शुचिता और शुद्धता की बात करने वाले ज्यादातर वही संपादक हैं
जो ज्यादातर मौजूदा दौर में संपादक की कुर्सी पर काबिज नहीं रह पाए हैं और टीवी की
साख गिराने का बुनियादी काम करके गए हैं। और, शायद टीआरपी के फर्जीवाड़ा में भी
टीआरपी की शुरुआत से ही शामिल रहे थे। अभी भी देश भर सिर्फ 44 हजार घरों में टीवी
की टीआरपी आंकने वाले मीटर या बक्से लगे हुए हैं। BARC भले ही दावा करता है कि टीवी की टीआरपी नापने का
तरीका पहले से बहुत अच्छा हुआ है, लेकिन टीआरपी के फर्जीवाड़े की खबर सामने आने के
बाद 12 सप्ताह के लिए टीआरपी न आंकने का फैसला स्पष्ट करता है कि टीआरपी का
फर्जीवाड़ा बहुत जबरदस्त तरीके से हो रहा था। रिपब्लिक ने BARC और टीवी चैनल के
पत्राचार को सार्वजनिक करके बताया कि दरअसल किसी भी जांच में रिपब्लिक का नाम टीवी
की टीआरपी में छेड़छाड़ के लिए नहीं आया है। अब इस पर भी विवाद हो गया। BARC के साथ ही NBA के चेयरमैन रजत
शर्मा भी खुलकर रिपब्लिक के खिलाफ खड़े हो गए।
इस सबके
बीच हरीश साल्वे ने अर्नब गोस्वामी की तरफ से पक्ष रखते हुए न्यायालय से फर्जी
टीआरपी मामले की जांच केंद्रीय एजेंसी CBI से कराने की मांग की और कहाकि टीवी की विश्वसनीयता के लिए यह बहुत
जरूरी है क्योंकि मुम्बई पुलिस उनके मुवक्किल के प्रति पक्षपाती है। भारतीय टीवी
मीडिया पर इस तरह का संकट इससे पहले कभी नहीं आया था और टीवी चैनलों में बैठे लोग
कुछ भी स्थापित करने की कोशिश में लगे हों, टीवी चैनलों को देखकर, असली टीआरपी
बढ़ाने वाली जनता के मन में धारणा गहरे बैठ गई है कि लंबे समय से टीवी की टीआरपी
के शीर्ष पर बैठे टीवी चैनलों के पिछड़ने के बाद शीर्ष पर पहुंचने की वजह से
रिपब्लिक के खिलाफ यह घेरेबंदी की जा रही है। और, यह घेरेबंदी जनता के मन में और
गहरे बैठ गई, जब महाराष्ट्र विधानसभा ने रिपब्लिक के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी
को समन कर दिया। रिपब्लिक रिपब्लिक संवाददाता प्रदीप भंडारी को बिना किसी आधार के
मुम्बई पुलिस ने घंटों बैठाए रखा और मोबाइल छीन लिया। प्रदीप भंडारी के पास न्यायालय
से राहत होने के बावजूद यह सब हुआ।
रिपब्लिक
की याचिका में कहा गया है कि इसकी जांच होनी जरूरी है जिससे बड़े स्तर पर देश भर
में हो रही साजिश सामने आ सके। हरीश साल्वे ने केबल टीवी ऑपरेटर, ब्रॉडकास्टर,
मीडिया एजेंसियों, विज्ञापनदाताओं और दूसरे पक्षकारों पर इसका प्रभाव पड़ने की बात
कहकर इसकी जांच पूरे देश में सीबीआई से कराने की मांग की थी और इसी बीच मामले में
एक नया मोड़ आ गया, जब उत्तर प्रदेश सरकार ने टीवी की टीआरपी फर्जी तरीके से
बढ़ाने के मामले में एक मामला दर्ज कर लिया। इस एफआईआर में किसी टीवी चैनल का नाम
नहीं है, लेकिन किसी भी टीवी चैनल की जांच की जा सकती है। 17 अक्टूबर को उत्तर
प्रदेश पुलिस ने मामला दर्ज किया और इसे सीबीआई को सौंपने की सिफारिश कर दी गई। एफआईआर
में किसी का नाम नहीं है। सीबीआई ने लखनऊ के हजरतगंज थाने में दर्ज एफआईआर की
बुनियाद पर जांच शुरू कर दी है। गोल्डेन रैबिट कम्युनिकेशंस मीडिया के कमल शर्मा
ने यह मामला दर्ज कराया है और इसमें कहा गया है कि मेरे पास पक्की जानकारी है कि टीआरपी
को फर्जी तरीके से बढ़ाने के लिए अपराधिक तरीके का भी इस्तेमाल किया गया है।
मुम्बई
और दिल्ली के बाद उत्तर प्रदेश टीआरपी के लिहाज से सबसे महत्वपूर्ण है और अब
मुम्बई पुलिस की जांच के साथ उत्तर प्रदेश पुलिस की एफआईआर पर सीबीआई जांच से पूरे
देश में टीवी टीआरपी के फर्जीवाड़े की जांच होगी। हो सकता है कि इस जांच में टीवी
की टीआरपी के बेढंगे तंत्र को थोड़ा दुरुस्त किया जा सके और टीवी की टीआरपी में
फर्जीवाड़ा करने वाले कुछ लोगों को पकड़ा भी जा सके, टीवी की टीआरपी के साथ
छेड़खानी करने वालों की भी पहचान हो जाए, लेकिन टीवी की साख के साथ हुई छेड़खानी
ने दर्शकों के मन में टीवी की साख पर जो सन्देह गहरा दिया है, अब शायद ही उसे भरा
जा सके। नेटवर्क 18 के प्रधान संपादक राहुल जोशी को सवाल के जवाब में गृह मंत्री
अमित शाह ने कहाकि मीडिया की रिपोर्टिंग के बारे में तो आप ही ज्यादा अच्छे से बता
सकते हैं और टीवी के संपादकों को यह बात अच्छे से समझने की जरूरत है। यही बात टीवी
के संपादक अगर समझ सकें तो शायद टीवी पत्रकारिता की साख को वापस लाया जा सके।
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