उत्तर
प्रदेश में जिस दिन योगी आदित्यनाथ की सरकार ने न्यायालय में हाथरस मामले पर
शपथपत्र पेश किया, उसी दिन राज्य के बड़े हिस्से में बत्ती गुल हो गई। इन दोनों
घटनाओं का आपस में सीधा संबंध नहीं है, लेकिन राज्य सरकार की प्रशासनिक अक्षमता और
योगी आदित्यनाथ के अलावा प्रदेश में भाजपा के मंत्रियों, चुने हुए जनप्रतिनिधियों
का कोई महत्व न होने की बात दोनों में ही स्पष्ट नजर आती है। 5 अक्टूबर 2020 को
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश और पूर्वांचल विद्युत वितरण
निगम लिमिटेड के बीच समझौता हुआ कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड या किसी
भी विद्युत वितरण निगम लिमिटेड का निजीकरण या हस्तांतरण का प्रस्ताव वापस लिया
जाता है। इस समझौते पर उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा की सहमति से विद्युत
कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश के पदाधिकारी तैयार हुए और उन्होंने
समझौते पर दस्तखत करके आन्दोलन वापस लेने का निर्णय कर लिया, लेकिन इसके बाद जो
हुआ, उससे उत्तर प्रदेश में आए दिन होने वाली गड़बड़ियों की असली वजह सामने आ जाती
है। ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा की सहमति के बावजूद उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन
लिमिटेड के चेयरमैन आईएएस अधिकारी अरविंद कुमार ने समझौते पर दस्तखत करने से इनकार
कर दिया। यही मूल वजह है जो पूरे उत्तर प्रदेश में लोकतंत्र की विफलता में तब्दील
होता जा रहा है। जनता अपने मताधिकार का प्रयोग करके जनप्रतिनिधि चुनती है, लेकिन
अगर जनप्रतिनिधियों का ही अपमान होने लगे तो कल्पना की जा सकती है कि राज्य में
सामान्य जनता की भला कितनी सुनी जाती होगी। फिर वो भाजपा कार्यकर्ता हो या उत्तर
प्रदेश का सामान्य नागरिक और मंगलवार 6 अक्टूबर को तो उत्तर प्रदेश में सामान्य
नागरिकों, भाजपा कार्यकर्ताओं की छोड़िए, विधायकों, सांसदों और मंत्रियों की भी
कोई सुनने वाला नहीं था क्योंकि उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन लिमिटेड के चेयरमैन आईएएस
अरविंद कुमार के समझौते पर हस्ताक्षर करने से इनकार करने के बाद विद्युत कर्मचारी
संयुक्त संघर्ष समिति ने हड़ताल कर दी थी। काम रोको पहले से ही चल रहा था, उत्तर
प्रदेश के कई जिलों में लोगों के घर की बिजली गायब हो चुकी थी। हड़ताल के बाद बिजली
कर्मचारियों ने गुस्से में कई जगह बिजली काट दी। सबसे पहले वीआईपी क्षेत्र की ही
बिजली आपूर्ति ठप कर दी। उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या और ऊर्जा मंत्री
श्रीकांत शर्मा के घर की भी बिजली गायब हो गई। इसके अलावा दो दर्जन मंत्रियों, विधायकों, न्यायाधीशों, कांग्रेस मुख्यालय, वीआईपी गेस्ट हाउस, मुख्यमंत्री
कंट्रोल रूम की बिजली भी गुल हो गई।
जब पूरे
प्रदेश में हाहाकार मचा तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आनन फानन में बैठक
बुलाई। उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन
लिमिटेड के चेयरमैन आईएएस अरविंद कुमार की बेअदबी से नाराज ऊर्जा मंत्री श्रीकांत
शर्मा ने पहले बैठक में जाने से इनकार कर दिया, लेकिन बाद ऊर्जा मंत्री श्रीकांत
शर्मा उस बैठक में शामिल हुए। इसके अलावा इस बैठक में वित्त मंत्री सुरेश खन्ना, मुख्य सचिव
राजेंद्र कुमार तिवारी, अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी, प्रमुख सचिव ऊर्जा
अरविंद कुमार और वित्त विभाग के अधिकारी शामिल हुए। इस बैठक में फिलहाल तीन महीने
के लिए निजीकरण का निर्णय टालने पर सहमति बनी। सहमति बनने के बाद विद्युत कर्मचारी
संयुक्त संघर्ष समिति ने कार्य बहिष्कार वापस लेने का निर्णय लिया। हालांकि यह
सहमति बनते 6 अक्टूर की शाम हो चुकी थी और पूरे प्रदेश में 24-48 घंटे से ज्यादा
कई क्षेत्रों में बिजली आपूर्ति पूरी तरह से बाधित थी। बिजली आपूर्ति इतने लंबे
समय तक बाधित होन का सीधा सा मतलब था कि जलापूर्ति का भी संकट खड़ा होना और पूरे
प्रदेश में बड़े क्षेत्र में जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी। अब सवाल यह उठता है कि
कौन सी ताकत थी कि ऊर्जा सचिव ने अपने ही मंत्री का कहा मानने से इनकार कर दिया और
इसी सवाल के जवाब मे उत्तर प्रदेश की हर मुश्किल की मूल वजह छिपी है और मूल वजह
यही है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अलावा आईएएस अधिकारी
किसी की सुनने को तैयार नहीं हैं और यह संदेश नीचे तक इस तरह से है कि आए दिन
पुलिस थानों तक से भाजपा के विधायकों, सांसदों और नेताओं के अपमानित होने की खबरें
आती रहती हैं।
किसी भी जिले के विकास कार्यों और अपराध के मामलों की समीक्षा वाली
लगभग हर बैठक से मीडिया में यह खबर जरूर आती है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिले
के अधिकारियों, पुलिस वालों को बिना डरे, सीधे उन्हें रिपोर्ट करने को कहा है और
किसी भी मामले में किसी भी नेता का दबाव बर्दाश्त नहीं होगा, चाहे वह नेता भारतीय
जनता पार्टी का ही क्यों न हो। मीडिया में तो यह खबर योगी आदित्यनाथ की अपराध,
भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस वाली छवि के तौर पर पेश की जाती है, लेकिन इसका
दूसरा पहलू यह होता है कि स्थानीय मीडिया से लेकर राज्य के मीडिया तक योगी
आदित्यनाथ के अलावा किसी भी मंत्री, सांसद, विधायक का महत्व खत्म होता दिखता है।
स्थानीय सांसद, विधायक अधिकारियों की कृपा पर आश्रित होने लगते हैं और धीरे-धीरे
जनता के बीच निष्क्रिय होने लगते हैं। इस निष्क्रियता का अनुमान अभी भारतीय जनता
पार्टी को इसलिए समझ में नहीं आ रहा है कि अदालत के निर्णय के बाद तेजी से हो रहे राममंदिर
निर्माण, अपराधियों के एनकाउंटर के बीच दबे स्वरों में ही भाजपा कार्यकर्ता इस
निराशा की बात कर रहा है, लेकिन उत्तर प्रदेश में इस तरह से बत्ती गुल होने और
हाथरस मामले में प्रशासनिक अक्षमता ने इस समस्या को उभारकर सामने ला दिया है। योगी
आदित्यनाथ के समर्थक उन्हें हर हाल में नरेंद्र मोदी के बाद प्रधानमंत्री पद का
दावेदार बना देना चाहते हैं। इसमें कोई सन्देह भी नहीं है कि योगी आदित्यनाथ की
छवि मोदी के बाद योगी वाली हो चली है, लेकिन इस तरह से भाजपा नेताओं,
जनप्रतिनिधियों का अधिकारियों के सामने अपमान भाजपा कार्यकर्ता का मनोबल बुरी तरह
से तोड़ रहा है और भारतीय जनता पार्टी को इसका बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। बिजली
कर्मचारियों को निजीकरण न करने का आश्वासन देकर काम पर बुला लिया गया है और अगले
24 घंटे में बिजली आपूर्ति फिर से बहाल हो जाएगी, लेकिन जनता के बीच एक बार
विश्वास टूटा तो उसकी बहाली बहुत मुश्किल से हो पाती है। उम्मीद है कि हाथरस और
बत्ती गुल होने के मामलों से उत्तर प्रदेश की सरकार सबक लेगी।
(यह लेख मनीकंट्रोल डॉट कॉम पर छपा है।)
सामयिक विषय पर सार्थक आलेख।
ReplyDeleteबधाई हो आपको।