Monday, June 26, 2017

नौकरी में भागते रहने का सुख !

मेरी पहली नौकरी प्रयाग महाकुम्भ में वेबदुनिया के साथ
ये सलाह अनुभव से उपजी है और सभी के लिए है। लेकिन ख़ासकर पत्रकारों के लिए। ये सही है कि हम पत्रकार या तो दिल्ली, मुम्बई जैसी बड़ी जगह या फिर अपने राज्य की राजधानी या फिर अपने जिले के ही धाँसू पत्रकार बनना चाहते हैं। इसमें से किसी भी एक मोह से उबर पाना बेहद कठिन होता है। मैं मूलत: प्रतापगढ़ से हूँ। पैदाइश के बाद हमारी पूरी बनावट इलाहाबाद की देन है। सबसे कठिन फैसला था, इलाहाबाद छोड़ना। बहुत कड़ा मन करके ये फैसला लिया था। आज उस फैसले पर मुग्ध होने जैसा भाव रहता है। फिर कानपुर, देहरादून, मुम्बई होते अभी दिल्ली टिका हूँ। हालाँकि, मैं ठहरना दिल्ली ही चाहता था। पहली बार ११ जुलाई २००१ को दिल्ली आकर गिरा था। लेकिन, दिल्ली निरन्तर भगाती रही। उसी भागने में ऊपर लिखे शहरों में रहना हुआ। आत्मीय सम्बन्ध बने। कानपुर और मुम्बई दोनों ही शहरों को लेकर मन में अच्छा भाव नहीं था। लेकिन, कानपुर में ग़ज़ब के आत्मीय सम्बन्ध बने और समझ भी बेहतर हुई। ईमानदार विश्लेषण ये कि  हर शहर ने मुझे बेहतर होने में मदद की और सबसे बड़ी बात कि समझ का दायरा बहुत बड़ा कर दिया।
हिन्दुस्तान इतनी विविधता वाला देश है कि यहां आप एक छोटी सी 2-4 दिन की यात्रा में एक पर्यटक की तरह कहीं घूम-टहलकर तो आ जाते हैं। अपने फेसबुक पन्ने के लिए कुछ अच्छी तस्वीरें जुटा लेते हैं। लेकिन, उस जगह से जुड़ाव बहुत कम हो पाता है। हिन्दुस्तान को समझने, पक्का हिन्दुस्तानी बनने के लिए जरूरी है कि हर कोई, हर किसी की भावना को समझे। कानपुर, मुम्बई और देहरादून ने मुझे ये समझने में मदद की। मुम्बई मुझे बहुत परेशान करता था। यहां तक कि 4 साल रहने के बाद लगभग विद्रोही अन्दाज में मैंने मुम्बई छोड़ा था। लेकिन, ये भी सच है कि उन 4 सालों में मिली, सहेजी अच्छी यादों की वजह से आज भी मुम्बई जाने का मन होता है। यही हाल देहरादून और कानपुर को लेकर भी है। इस लिहाज से ज्यादा जगहों पर रहना नहीं हो सका। इसीलिए नए पत्रकारों को मेरी ये सलाह है कि पढ़ाई पूरी होते ही पहला मौका मिलते ही बैगपैक करके अपने शहर, अपनी राजधानी और देश की राजधानी से जितना दूर जा सकते हैं, चले जाइए। इससे देश के और नजदीक पहुंचेंगे। लिखने, पढ़ने, समाज को समझने के लिहाज से अद्भुत, सकारात्मक बदलाव होगा।
कम से कम, जीवनसाथी पक्का कर लेने और बच्चों के जिन्दगी में आने तक तो ये प्रक्रिया जितनी तेजी से पूरा कर सकते हों, तो करिए। सच बता रहा हूं, उस भगान लेने के दौरान के अनुभव जिन्दगी में कमाल की समझ, मिठास विकसित करते हैं। और पत्रकार के लिए तो ये जरूरी है कि वो देश के हर हिस्से के लोगों की समझ को थोड़ा बहुत तो समझ सके। वरना अपने शहर, अपनी राजधानी और देश की राजधानी के लिहाज से पूरी समझ बनाएगा। फिर मुश्किल आजीवन रहेगी। दूसरे काम करने वालों के लिए भी ये बहुत सुखद अनुभव देने वाला हो सकता है। लेकिन, पत्रकार के लिए ये सबसे जरूरी सबक के जैसा है। ये किताबी ज्ञान तो है नहीं, अपने निजी अनुभव से सीखा है, इसलिए सकारात्मक परिणाम का दावा भी पक्का है।


No comments:

Post a Comment

हिन्दू मंदिर, परंपराएं और महिलाएं निशाने पर क्यों

हर्ष वर्धन त्रिपाठी Harsh Vardhan Tripathi अभी सकट चौथ बीता। आस्थावान हिन्दू स्त्रियाँ अपनी संतानों के दीर्घायु होने के लिए निर्जला व्रत रखत...