आमतौर पर अच्छा रसोइया हो या भारतीय गृहणी, भगोने में पक
रहे चावल के पकने का अंदाजा ऊपर के 1-2 चावल को हाथ में लेकर लगा लेती है। उत्तर
प्रदेश के चुनावी मिजाज को समझने भर का काम उत्तर प्रदेश विधानसभा के 2 चरणों के
चुनावों में हुए मतों के मिजाज को समझकर लगाया जा सकता है। इस चुनाव में एक कमाल
की बात ये रही कि सत्ताधारी पार्टी के परिवार का झगड़ा चुनाव के ठीक पहले ऐसा
उभरकर सामने आया कि चुनावी हवा खत्म सी हो गई। और इसीलिए ये लगने लगा कि समाजवादी
पार्टी और कांग्रेस के गठजोड़ की हवा बन गई है। क्योंकि, समाजवाद-कांग्रेस गठजोड़
बनते ही समीक्षकों की नजर में ये पक्का हो गया कि फरवरी के महीने में हो रहे इन
चुनावों में मुसलमान आंख मूंदे किसी प्रेमी जैसा व्यवहार करेगा और पूरी तरह से इस
गठजोड़ के आगे समर्पण कर देगा। लेकिन, समीक्षक इस प्रेम त्रिकोण के तीसरे कोण को
ठीक से नहीं देख पा रहे थे। उसकी वजह भी बड़ी साफ थी। अखिलेश यादव ने चाचा-पिता के
खिलाफ लड़ाई इस अंदाज में लड़ी कि सारा मीठा गप्प गप्प चला आया अखिलेश के खाते में
और कड़वा कड़वा थू थू हो गया मुलायम और शिवपाल पर। उसी में किसानों का मांगपत्र
भरवाते थक से गए राहुल गांधी ने भी अखिलेश का साथ थाम लिया। फिर क्या था “यूपी के लड़के” छा गए। ये मीडिया
में बना माहौल था, जिसमें “यूपी के लड़के” छा गए थे। लेकिन, जमीन पर जब 2 चरणों के मतों का मिजाज
दिखना शुरू हुआ है, तो लग रहा है कि “यूपी के लड़कों” की हवा खराब हो रही है।
“यूपी के लड़कों” की हवा खराब हो रही
है, ये मैं क्यों कह रहा हूं ?
सबसे बड़ी और पहली वजह- कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के
प्रत्याशियों ने सभी 403 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर ली थी। इस वजह से
कांग्रेस के सम्भावित प्रत्याशी और कांग्रेस समर्थकों ने बमुश्किल कुछ सीटों पर ही
समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों की मदद की है। और लगभग यही काम समाजवादी पार्टी
के सम्भावित दावेदारों और उनके समर्थकों ने किया है। गठजोड़ की केमिस्ट्री गड़बड़ा
गई है।
दूसरी बड़ी वजह ये रही कि आंख मूंदकर जिस तरह से मुसलमानों
के इस गठजोड़ के साथ आने की उम्मीद “यूपी के लड़कों” को हो गई थी, वो उम्मीद धरी की धरी रह गई है। कम से कम
पहले और दूसरे चरण में मत के बाद का मिजाज ऐसा ही दिख रहा है। मुसलमानों का मत
समाजवादी-कांग्रेस गठजोड़ के बजाय हाथी के निशान पर लड़ रहे मुसलमानों पर ज्यादा
भरोसे के साथ पड़ने की खबरें हैं। मायावती ने 403 में से 99 सीटों पर मुसलमानों को
टिकट दिया है। मायावती का प्रचार तंत्र मुसलमानों को ये समझाने में कामयाब रहा है
कि समाजवादी पार्टी की सरकार मुसलमानों पर हुए अत्याचार को रोकने में नाकाम रही
है।
तीसरी बड़ी वजह ये रही कि मुजफ्फरनगर में हुए 2013 के दंगों
के बाद जितनी तेजी से जाट-मुसलमान के एक साथ बैठने की उम्मीद राष्ट्रीय लोकदल के
पक्ष में लगाई जा रही थी, वो समीकरण उतना सलीके से फिट होता नहीं दिखा है।
चौथी एक बड़ी वजह ये रही कि जाट आरक्षण और हरियाणा गैर जाट
मुख्यमंत्री को लेकर पश्चिम उत्तर प्रदेश के जाटों में जिस तरह का विरोध भारतीय
जनता पार्टी के लिए दिख रहा था। उसे काफी हद तक ठीक करने में अमित शाह को सफलता
मिल गई है। भले ही जाटों ने मई 2014 की तरह पूरी तरह से बीजेपी के पक्ष में मत
नहीं दिए लेकिन, जाटों का गुस्सा जरूर काफी कम होता दिखा है।
पांचवी वजह ये कि कहा जा रहा था कि इस चुनाव में कोई हवा
नहीं है। क्योंकि, यादव परिवार के झगड़े की हवा सबसे तेज चल रही थी। लेकिन, सच्चाई
ये है कि मतदाताओं में हवा काम कर रही है। और वो हवा सत्ता के खिलाफ ही है। समाजवादी
सरकार के 5 साल की कानून व्यवस्था ने उस हवा को अंदर ही अंदर बहुत तेज किया है।
छठवीं और आखिरी सबसे जरूरी वजह ये रही कि देश भर में दलित
अत्याचार के मामले को बड़े सलीके से मुसलमानों के साथ जोड़ दिया गया है। उसकी वजह
से उत्तर प्रदेश में एमवाई की जगह डीएम समीकरण का जोड़ ज्यादा तगड़ा दिख रहा है। मुसलमान
और दलितों में संगत बेहतर हुई है, बनिस्बत यादव और मुसलमान के।
ये छह वजहें ऐसी हैं, जो “यूपी के लड़कों” की हवा खराब करती दिख रही हैं। साथ ही रणनीति
के तौर पर मायावती का दलित-मुसलमान को ही सबसे आगे रखना काम करता दिख रहा है। समाजवादी-कांग्रेस
गठजोड़ से अपनी सीधी लड़ाई बताने वाले अमित शाह ने भी पहले चरण के मत के बाद साफ
कहाकि हमारी लड़ाई पहले-दूसरे चरण में बीएसपी से ही है। अभी जो नजर आ रहा है उसमें
किसकी सरकार बनेगी, ये कहना कठिन है। पहले 3 चरण के चुनाव में ही
समाजवादी-कांग्रेस गठजोड़ को भारी बढ़त की उम्मीद मुसलमान मतों के भरोसे थी, जो
ध्वस्त होती दिख रही है। यूपी का मतदाता “यूपी के लड़कों” की हवा खराब करता साफ दिख रहा है और आखिरी नतीजे चौंकाने
वाले ही होंगे, ये तय करता भी दिख रहा है।
No comments:
Post a Comment