Monday, July 27, 2015

नई विश्व संरचना का संगठन है ब्रिक्स

ब्रिक्स देशों के बैंक ने विधिवत काम करना शुरू कर दिया है। ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के संगठन ब्रिक्स के इस बैंक की अहमियत बहुत ज्यादा हो जाती है। न्यू डेवलपमेंट बैंक में एक रूस को छोड़ दें तो सभी देश विकासशील देश हैं। ये बैंक विश्व बैंक के मुकाबले में काम करेगा या यूं कहें कि विश्व बैंक की कमियों को भरने की कोशिश करेगा। दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब दुनिया में सहयोग, संगठन, संतुलन बनाने की बात की गई तो, संयुक्त राष्ट्र संघ, अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक कोष और विश्व बैंक की भूमिका समझ में आई। और उम्मीद यही की गई थी कि इन संस्थाओं के जरिए दुनिया समानता लाने की कोशिश की जाएगी। कहने को तो ये संस्थाएं दुनिया भर में असमानता दूर करने के लिए बनीं। लेकिन, बाद के सालों में समझ में ये आया कि दरअसल ये संस्थाएं दुनिया की असमानता को दूर करने के बजाए उनकी ताकत बढ़ाने में ही मददगार हुईं जो, पहले से ही ताकतवर थीं। जिसका सीधा सा असर भी हुआ कि दुनिया लगभग एकध्रुवीय हो गई। अमेरिका के ही इर्द गिर्द पूरी दुनिया और ये संस्थाएं घूमने लगीं। रूस के बिखरने के बाद तो ये पूरी तरह से तय हो गया। चाहे अनचाहे दुनिया को संतुलित करने के लिए बनी संस्थाओं का पूरा एजेंडा ही अमेरिका से तय होने लगा। अस्सी के दशक में जब संगठित रूस कमजोर होने लगा। तब तो अमेरिका ने खुले तौर पर पूरी तरह से ही अपना एजेंडा चलाना शुरू कर दिया था। नब्बे के दशक की शुरुआत में ही सोवियत रूस विघटित हो गया। लेकिन, इसी समय दो महत्वपूर्ण घटनाएं आकार ले रहीं थीं। प्रधानमंत्री नरसिंहाराव ने भारत में उदारीकरण की शुरुआत कर दी थी। और, पड़ोस में चीन अपने स्पेशल इकोनॉमिक जोन के बूते तेजी से तरक्की की राह पर बढ़ते हुए अमेरिका को चुनौती देने का नया केंद्र बनता जा रहा था।

यही वो समय था जब दुनिया को अपने लिहाज से चलाने के लिए तैयार की गई अमेरिकी संस्थाएं- संयुक्त राष्ट्र संघ, विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक कोष-  आधी शताब्दी की यात्रा तय कर चुकी थीं। विश्व बैंक की स्थापना उन्नीस सौ चौवालीस में माउंट वॉशिंगटन होटल, ब्रेटन वुड्स, न्यू हैंपशायर अमेरिका में हुई। कमाल की बात ये है कि विश्व बैंक की स्थापना के मुख्य उद्देश्यों में ही ये है कि विकासशील देशों को उनकी जरूरत के लिहाज से कर्ज देना। इसी समय इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड की भी स्थापना हुई। इससे भी ज्यादा कमाल की बात ये है कि विकासशील देशों को उनकी जरूरत के लिहाज से कर्ज देने के कार्यक्रम का पूरा जिम्मा अमेरिकियों पर ही थी। विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक कोष दोनों ही संस्थाओं का मुख्यालय वॉशिंगटन में ही है। विश्व बैंक के अब तक के सारे ही अध्यक्ष अमेरिकी रहे हैं। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि दरअसल विश्व बैंक किसके हितों की रक्षा की कोशिश करता रहा होगा। इसीलिए ब्रिक्स देशों के संगठन न्यू डेवलपमेंट बैंक या ब्रिक्स बैंक का महत्व समझना जरूरी है। इस बैंक की स्थापना करने वाले पांचों देश इसमें बराबर के सहयोगी हैं। यानी किसी देश या सदस्य के पास किसी तरह का वीटो पावर नहीं है। जैसा कि पश्चिम या सीधे कहें कि अमेरिकी, यूरोपीय मानसिकता से चलने वाली संस्थाओं में होता है। न्यू डेवलपमेंट बैंक पूरी तरह से विकासशील देशों का बैंक है जो, विकासशील देशों की जरूरतों के लिहाज से वित्त उपलब्ध कराएगा। ये ज्यादा महत्वपूर्ण इसलिए भी हो जाता है कि यहीं ब्रिक्स के पांच देश हैं जो, दुनिया की चालीस प्रतिशत से ज्यादा जनसंख्या वाले देश हैं। और ये आबादी होती है तीन अरब से ज्यादा। इन देशों को अगर क्षेत्रफल के लिहाज से भी देखा जाए तो, ये देश दुनिया की एक तिहाई जमीन पर काबिज हैं। और, इन पांच देशों की जीडीपी जोड़ दी जाए तो दुनिया की जीडीपी का एक तिहाई सिर्फ ब्रिक्स देश ही हैं। फिर भी दुनिया को चलाने का काम अमेरिका और यूरोप कर रहा था। अमेरिका की अगुवाई में पश्चिम तय करता था कि पूरब के हिस्से में दुनिया के सूरज की रोशनी कितना मिलेगी। इस नए संगठन की एक सबसे बड़ी खूबसूरती मैं ये समझता हूं कि ब्रिक्स देशों का ये संगठन दुनिया में सही मायने में संतुलन लाने में मददगार होगा। भारत और चीन दोनों के बीच के तनावपूर्ण संबंध कम करने में भी ये संगठन मददगार हो रहा है। दोनों दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं। चीन लगातार दस प्रतिशत तरक्की वाला देश लंबे समय तक रहा। अब जब चीन की तरक्की की रफ्तार लुढ़कती दिख रही है तो, भारत उस कमी को पूरा करता दिख रहा है। और आने वाले सालों में भारत दस प्रतिशत की तरक्की की रफ्तार को आसानी से लंबे समय के लिए हासिल करता दिख रहा है। यानी, बाजार की ताकत का बड़ा हिस्सा इन्हीं दोनों देशों के इर्द गिर्द घूमता है। ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका उस बाजार की ताकत को पूरा करते हैं। और अमेरिकी अतिक्रमण का शिकार रूस नए सिरे से दुनिया की संरचना बदलने में मददगार होता दिख रहा है। भारत और चीन के बीच इस संगठन की वजह से संतुलन कितना ज्यादा है। इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि न्यू डेवलपमेंट बैंक का मुख्यालय शंघाई में है और इसका पहला अध्यक्ष एक भारतीय है। भारत में निजी बैंकों के लिए रास्ता बनाने वाले या कहें कि आधुनिक बैंकिंग सिस्टम को मजबूत करने वाले आईसीआईसीआई बैंक के पूर्व प्रमुख के वी कामत अब न्यू डेवलपमेंट बैंक के अध्यक्ष के तौर पर शंघाई में हैं।  


ऑस्ट्रेलिया के रेडियो एसबीएस हिंदी से इसी विषय पर बातचीत करते हुए मैंने इसी बात पर जोर दिया कि सारा फर्क समझ का है। के वी कीमत ने न्यू डेवलपमेंट बैंक के अध्यक्ष के तौर पर सबसे पहली जो बात कही। वही सारा फर्क पैदा कर देती है। के वी कामत ने साफ कहा कि ब्रिक्स देशों का ये बैंक कर्ज देने वाले के लिए नहीं कर्ज लेने वाले के लिए काम करेगा। मतलब ये कि वो साफ कह रहे हैं कि न्यू डेवलपमेंट बैंक की प्राथमिकता विश्व बैंक के उलट होगी। क्योंकि, विश्व बैंक काम ही कर्ज देने वालों के हितों की सुरक्षा के लिए करता था। अब न्यू डेवलपमेंट बैंक कर्ज लेने वालों के हित की सुरक्षा करेगा। ये बहुत बड़ा फर्क है। क्योंकि, अगर कर्ज देने वालों के हित की बात की जाएगी तो, जाहिर है कि कर्ज भले लंबे समय तक चले, ब्याज आता रहे। इस पर जोर होगा। जबकि, कर्ज लेने वालों के हित की बात होगी तो, कर्ज जिसको दिया गया है वो, अपने प्रोजेक्ट समय पर पूरा करने के साथ समय से कर्ज वापस कर सके। इस पर जोर होगा। इसका सीधा सा मतलब है कि न्यू डेवलपमेंट बैंक विकासशील देशों के विकसित देश बनने तक की यात्रा आसान करने में मदद करेगा। सूरज पूरब से निकलता है। ये अब कहावत भर या एक प्राकृतिक सच्चाई भर नहीं है। ये दुनिया की नई हकीकत है। 

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