मेक इन इंडिया
का बेहतर असर हो रहा है। मेक इन इंडिया अभियान की शुरुआत के बाद भारत में एफडीआई
अड़तालीस प्रतिशत बढ़ा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल सितंबर में मेक
इन इंडिया अभियान शुरू किया था। तब से अप्रैल तक के आंकड़े बता रहे हैं कि विदेशी
निवेशकों को ये मेक इन इंडिया खूब लुभा रहा है। इसकी गवाही दे रहा है आजकल अखबारों
और दूसरे जरिए से आ रहा बीएमडब्ल्यू का बड़ा सा विज्ञापन। ये विज्ञापन बीएमडब्ल्यू
के मेक इन इंडिया अभियान में शामिल होने का खबर दे रहा है। इस खबर के साथ अच्छी
खबर ये भी कि अब चेन्नई के नए प्लांट में बनेंगी बीएमडब्ल्यू कारें। कंपनी ने मेक
इन इंडिया कारों की कीमत कम होने का विज्ञापन दिया है। विज्ञापन कह रहा है कि
जर्मन तकनीक का नया घर भारत है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मेक इन इंडिया असर
करता दिख रहा है। सही समय पर ये अभियान प्रधानमंत्री ने शुरू किया है। ये समय है
जब दुनिया भर में बड़ी-बड़ी कंपनियां खुद का मुनाफा बचाने के लिए जूझ रही हैं। यही
वजह है कि जब ऐसे मौके पर दुनिया के सबसे ज्यादा संभावना वाले देश भारत के
प्रधानमंत्री ने उनके लिए और मौके मेक इन इंडिया अभियान के साथ दिखाए तो, वो खुद
को रोक नहीं पा रहे हैं। और ये मौके सिर्फ विदेशी कंपनियों को भारत में बुलाने के
लिए नहीं है। ये मौका उन भारतीय कंपनियों को भी बड़े मौके की तरह दिख रहा है जो, यूपीए
2 में नीतियों में स्पष्टता न होने और स्थिरता की वजह से विदेशों में मौके तलाशने
लगी थीं। अच्छी बात ये है कि रक्षा, ऑटो, स्मार्टफोन, पीसी बनाने वाली कंपनियां
सबसे ज्यादा इस मौके को भुनाना चाह रही हैं। और ये साफ दिख रहा है कि मेक इन
इंडिया की कामयाबी का बड़ा फायदा सिर्फ सरकार को नहीं भारतीय ग्राहकों को भी जमकर
मिलने वाला है।
चीन के
राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी नए सिरे से मेड इन चाइना अभियान शुरू किया है। कहीं न
कहीं इस अभियान के पीछे मेक इन इंडिया अभियान से चीन का हिस्सा घटने का डर भी है।
लेकिन, मुनाफा देखने वाली कंपनी वहीं जाएगी जहां उसे मुनाफा मिलेगा। इसी सिद्धांत
पर चीन दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब बन गया। अब वही कोशिश भारत कर रहा है। इसका
असर भी दिख रहा है। चीन की कंपनी अपने वीवो स्मार्टफोन अब भारत में ही असेंबल करके
बेचेगी। अक्टूबर से कंपनी की असेंबलिंग यहां शुरू हो जाएगी। अब तक ज्यादातर मोबाइल
फोन सीधे चीन से ही बनकर भारत आते रहे हैं। यहां तक कि एप्पल और सैमसंग मोबाइल भी
ज्यादातर मेड इन चाइना होते हैं। देसी कंपनियां माइक्रोमैक्स और कार्बन के
स्मार्टफोन भी मेड इन चाइना ही होते हैं। लेकिन, अब आप जल्द ही मेड इन इंडिया
स्मार्टफोन इस्तेमाल कर सकेंगे। स्मार्टफोन बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी
फॉक्सकॉन भारत में दस से बारह मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाने वाली है। ये सभी
इकाइयां 2020 तक काम करने लगेंगी। भारत की आयात नीति में बदलाव के बाद फॉक्सकॉन ने
एलान किया है कि वो भारत में 2 बिलियन डॉलर का निवेश करेगी। फॉक्सकॉन एप्पल आईफोन
और आईपैड बनाने के लिए दुनिया भर में मशहूर है। स्मार्टफोन बनाने के मामले में भारत
में मेक इन इंडिया के जोर पकड़ने के एक और संकेत हैं। पिछले साल जून महीने से इस
साल जून महीने में सेमी नॉक्ड डिवाइसेज का आयात चौंसठ प्रतिशत बढ़ गया है। इसका
सीधा सा मतलब ये हुआ कि अब पहले से इतना ही ज्यादा मोबाइल फोन भारत में असेंबल किए
जा रहे हैं। सैमसंग और माइक्रोमैक्स ने जून महीने में 69 लाख सेमी नॉक्ड डिवाइसेज
आयात किए हैं। इंटेक्स, लावा और कार्बन मोबाइल कंपनियां भी अब धीरे-धीरे भारत में
ही स्मार्टफोन असेंबलिंग कर रही हैं। अभी तक ये कंपनियां पूरा फोन ही चीन से
बनवाकर आयात करती रही हैं। कार्बन कंपनी तो अगले साल भर में नोएडा, बंगलुरू में
असेंबली लाइन और हैदराबाद में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाने की तैयारी कर चुकी है।
लेनोवो और सोनी भी अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट भारत में लगाने जा रहे हैं। सेलकॉन
की हैदराबाद मैन्युफैक्चरिंग यूनिट से तो फोन बनना भी शुरू हो गया है। एचटीसी भी
अब अपने मोबाइल भारत में ही बनाएगी। यानी भले ही आपके हाथ में आने वाले दिनों में
किसी भी कंपनी का स्मार्टफोन हो लेकिन, वो दरअसल मेड इन इंडिया ही होगा। मेक इन
इंडिया में सिर्फ स्मार्टफोन कंपनियों को ही मौका है। ऐसा नहीं है। पीसी, लैपटॉप
बनाने वाली कंपनी डेल चाहती है कि ज्यादा से ज्यादा डेल के पीसी, लैपटॉप भारत से
ही निर्यात कि जाएं। यानी मेड इन इंडिया पीसी, लैपटॉप दुनिया भर में बिकेगा।
बीएमडब्ल्यू
साफ बता रही है कि भारत में ही कार बनाने की वजह से कार कंपनी अपनी कारों की कीमत
कम कर रही है। लेकिन, दूसरी कार कंपनियां पहले से ही भारत में हैं। अब वो भारत के
प्लांट से ही कारें बनाकर दुनिया भर में बेचना चाह रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी का मेक इन इंडिया इन कार कंपनियों के लिए सोने पर सुहागा जैसा है। यूरोपीय
कंपनी एयरबस के सीईओ बर्नहार्ड जरवर्ट ने पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
से दिल्ली में मुलाकात की। मुलाकात का मकसद सरकार के मेक इन इंडिया अभियान में
शामिल होकर इस मौके का फायदा उठाना है। एयरबस डिफेंस और स्पेस क्षेत्र में मेक इन
इंडिया अभियान में शामिल होना चाहता है। एयरबस महिंद्रा के साथ मिलकर सेना के लिए
हेलीकॉप्टर बनाएगा। सरकार को इस बात का भी अच्छे से अंदाजा है कि मेक इन इंडिया का
ज्यादा फायदा विदेशी कंपनियों को ही न मिल जाए। इसीलिए रक्षा क्षेत्र में सरकार ने
56 भारतीय कंपनियों को लाइसेंस दिए हैं। यूपीए सरकार ने अपने पूरे कार्यकाल में
इतने लाइसेंस नहीं दिए थे। मेक इन इंडिया अभियान मौके पर चौका मारने जैसा है।
लेकिन, एक बड़ी सावधानी जरूर सरकार को रखनी होगी। और वो सावधानी है भ्रष्टाचार
मुक्त मेक इन इंडिया। क्योंकि, अभी के हाल में एक छोटा सा धब्बा भी पूरे मेक इन
इंडिया को मुश्किल में डाल सकता है।
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