सिर्फ 33 कोयला खदानों की नीलामी से दो
लाख करोड़ रुपये सरकारी खजाने में आने से साफ है कि नीतियों के आधार पर सरकार चलने
से भ्रष्टाचार से मुक्ति मिल सकती है। अगर हम देश नीतियों के आधार पर चलाएंगे तो
हम देश अच्छे से चला सकते हैं। देश को भ्रष्टाचार मुक्त कर सकते हैं। हम रिश्वत
मुक्त तंत्र बना सकते हैं। हमने ये जिम्मेदारी उठाई है और हम देश को उसी रास्ते पर
ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। 33 कोयला खदानों की नीलामी से दो लाख करोड़ रुपये
सरकारी खजाने में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये कहा। लेकिन, जब
कोयला खदानों के आवंटन में गड़बड़ियों की तरफ सीएजी ने इशारा किया था तो, कम ही
लोगों को ये भरोसा रहा होगा कि कोयला खदानों के आवंटन में सरकारी हितों को इस तरह
से दरकिनार किया गया है। जब सीएजी विनोद राय ने कोयला खदानों के आवंटन से देश के
खजाने में एक लाख छियासी हजार करोड़ रुपये का नुकसान होने का अंदेशा जताया था तो,
ज्यादातर आर्थिक विद्वान इसे देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर डालने वाली रिपोर्ट
बता रहे थे। अर्थव्यवस्था के जानकार यही मान रहे थे कि सीएजी का ये आंकलन पूरी तरह
से अनुमानों पर तैयार किया गया है। और इस तरह की रिपोर्ट से निवेश का माहौल खराब
होगा। यहां तक कि सीएजी विनोद राय के ऊपर राजनीतिक झुकाव तक के आरोप लग रहे थे।
यूपीए सरकार के मंत्री सीधे-सीधे सीएजी विनोद राय को धमकी देने वाले अंदाज में बात
कर रहे थे। भला हुआ कि सितंबर 2014 में सर्वोच्च न्यायालय को सीएजी की रिपोर्ट
सिर्फ कल्पना नहीं लगी और सर्वोच्च न्यायालय ने सभी 204 खदानों का आवंटन रद्द कर
दिया। उन्हीं 204 खदानों में से 33 खदानों की नीलामी सरकार ने की है। उन्हीं 33
खदानों की नीलामी से सरकार के खजाने में दो लाख करोड़ रुपये आ गए हैं। अब इस
नीलामी की रकम सामने आने के बाद सचमुच ये बात साबित हो रही है कि सीएजी के आंकड़े
कल्पना के आधार पर तैयार किए गए थे। लेकिन, सीएजी की कल्पना की उड़ान भी बड़ी छोटी
थी। सीएजी की रिपोर्ट में एक लाख छियासी हजार करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान
लगाया गया था। जबकि, सिर्फ 33 खदानों ने सरकार के खजाने में दो लाख करोड़ रुपये
डाल दिए हैं।
इस बात पर बहस हो सकती है कि देश में
भ्रष्टाचार के खिलाफ माहौल बनाने में कौन-कौन सी बातें थीं जिन्होंने देश में
बदलाव का मानस तैयार किया। और इतना तो तय है कि वो कोई एक दो घटनाएं या व्यक्ति
नहीं थे। वो ढेर सारी घटनाएं, संस्थाएं और व्यक्ति थे। बहुत से कारक मिले, जिससे
देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ माहौल बना और उसी वजह से यूपीए दो से तीन के राह में
नरेंद्र मोदी आकर खड़े हो गए। लेकिन, सच्चाई यही है कि अगर आज नरेंद्र मोदी देश के
प्रधानमंत्री के तौर पर ये कह पा रहे हैं कि न खाऊंगा न खाने दूंगा तो, इसकी
बुनियाद संस्था के तौर पर सीएजी और व्यक्ति के तौर पर विनोद राय ने रखी थी। वो
सीएजी संस्था और व्यक्ति विनोद राय ही थे, जिन्होंने भ्रष्टाचार की बुनियाद पर
बहुत कसकर चोट की थी। ये सीएजी विनोद राय ही थे जिन्होंने बिना किसी बात की परवाह
किए एक के बाद एक ऐसी रिपोर्ट बनाई जिससे देश को पता चला कि दरअसल यूपीए एक और दो
की नीतियां किस तरह से भ्रष्टाचार की बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी कर रही हैं। और सबसे
बड़ी बात ये कि विनोद राय ये सब इसके बावजूद कर रहे थे कि प्रधानमंत्री की कुर्सी
पर बेहद स्वच्छ छवि वाले मनमोहन सिंह बैठे हुए थे। यहां तक कि सीबीआई के समन के
बावजूद ज्यादातर लोगों का यही मानना है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बेईमान नहीं हो
सकते। ये धारणा अभी भी पक्के तौर पर लोगों के दिमाग में बैठी हुई है। सोचिए जरा
जिस समय सीएजी विनोद राय ने स्पेक्ट्रम और कोयला घोटाले पर रिपोर्ट पेश की थी।
सोचिए उस समय मनमोहन सिंह की बेहद ईमानदार छवि के सामने इतने बड़े भ्रष्टाचार की
रिपोर्ट देना कितने साहस का काम रहा होगा। विनोद राय ने वो साहस दिखाया।
स्पेक्ट्रम घोटाले पर सीएजी की रिपोर्ट पर
तत्कालीन संचार मंत्री कपिल सिब्बल की जीरो लॉस थियरी तो सबको याद ही होगी। सीएजी
की रिपोर्ट कह रही थी कि स्पेक्ट्रम घोटाला हुआ है। इसी घोटाले में संचार मंत्री
रहे ए राजा से लेकर डीएमके की कनिमोझी तक जेल जा चुकी हैं। पहले आओ पहले पाओ की
नीति में ढेर सारी अनियमितताएं की गईं, ये भी अब सामने आ चुका है। लेकिन, तब सीएजी
की रिपोर्ट पर तत्कालीन संचार मंत्री कपिल सिब्बल ने शास्त्री भवन में बुलाई गई
पत्रकार वार्ता में पत्रकारों के सामने इस तरह से तथ्य पेश किए कि लगा सीएजी ने
कपोल कल्पना के आधार पर रिपोर्ट पेश कर दी है। और ये रिपोर्ट सिर्फ और सिर्फ देश
के आर्थिक तरक्की के माहौल को झटका देने का काम करेगी। दस प्रतिशत की तरक्की की
रफ्तार की राह में सीएजी विनोद राय की रिपोर्ट बाधा की तरह दिख रही थी। ईमानदार छवि
वाले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मंत्रियों ने यहां तक कहना शुरू कर दिया था कि
सीएजी विनोद राय और पीएसी के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी के निजी संबंधों की वजह से
सीएजी सरकार को सांसत में डालने वाली रिपोर्ट तैयार कर रहा है। लेकिन, अब न तो
यूपीए की सरकार है, न उनके बड़बोले मंत्री और न ही उनके बेबुनियाद तथ्य। तथ्य ये
साबित हुआ है कि सरकार को इस मंदी के दौर पर में स्पेक्ट्रम की नीलामी से भी एक
लाख करोड़ रुपये से ज्यादा मिल चुके हैं। अब कोई ये नहीं कहेगा कि सीएजी ने यूपीए
दो के समय देश की तरक्की की राह में बाधा खड़ी की थी। बल्कि, सच्चाई ये है कि अब
अगर देश में तेजी से तरक्की का माहौल बन रहा है और इस माहौल के साथ भ्रष्टाचार
करने में लोगों को डर लगता है तो, इसकी बुनियाद सीएजी विनोद राय ने रखी थी। ऐसी
बुनियाद जिस पर देश में कम से कम भ्रष्टाचार वाला तंत्र तैयार किया जा सकता है। जिस
तंत्र को तैयार करने की बात प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी कर रहे हैं वो
तंत्र सीएजी की रिपोर्ट की बुनियाद से ही बनना शुरू हुआ है। मेरा मानना है कि जब
भी देश में हुए इस बड़े बदलाव की बात होगी तो, सीएजी विनोद राय को भी याद किया
जाएगा।
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