रेडियो पर विज्ञापन सुनते दफ्तर आया जिसमें पत्नी चिंतित है कि खाने का पूरा ध्यान रखने के बाद भी पति चैतन्य नहीं रहता। सलाह मिलती है कि रोज के खाने से शरीर की सारी जरूरतें पूरी नहीं होतीं। प्रोटीन के लिए ये उत्पाद खाओ। और अगर ध्यान से दूसरे विज्ञापनों को देखें तो वो बताता है कि शुद्ध गेहूं या दूसरी रोज की खाने की चीजें इसमें मिली हैं, इसलिए खाओ। ये बाजार चाहता क्या है। खेत से पैदा अनाज छोड़, अनाज को इधर-उधर करके कारखाने में बने, पैक डिब्बाबंद उत्पादन को खाया जाए। कमाल है ना। लेकिन, बाजार ऐसे ही काम करता है। वो चाहता है कि खेत बने रहें लेकिन, सिर्फ उसकी जरूरत भर के। सिर्फ उसके कारखानों में नए उत्पाद बनाने भर के। किसान भी बचे रहें उतने ही।
देश की दशा-दिशा को समझाने वाला हिंदी ब्लॉग। जवान देश के लोगों के भारत और इंडिया से तालमेल बिठाने की कोशिश पर मेरे निजी विचार
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
एक देश, एक चुनाव से राजनीति सकारात्मक होगी
Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी भारत की संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकार कर लिया था। इसीलिए इस द...
-
आप लोगों में से कितने लोगों के यहां बेटियों का पैर छुआ जाता है। यानी, मां-बाप अपनी बेटी से पैर छुआते नहीं हैं। बल्कि, खुद उनका पैर छूते हैं...
-
हमारे यहां बेटी-दामाद का पैर छुआ जाता है। और, उसके मुझे दुष्परिणाम ज्यादा दिख रहे थे। मुझे लगा था कि मैं बेहद परंपरागत ब्राह्मण परिवार से ह...
-
पुरानी कहावतें यूं ही नहीं बनी होतीं। और, समय-समय पर इन कहावतों-मिथकों की प्रासंगिकता गजब साबित होती रहती है। कांग्रेस-यूपीए ने सबको साफ कर ...
No comments:
Post a Comment