Friday, August 01, 2014

लड़का-लड़की

वो औसत सा ही लड़का था। आंखों पर चश्मा। पिट्ठू बैग और दो मोबाइल। एक वही जिससे बात करनी थी। मतलब वो फोन सिर्फ बात करने के काम आता था। दूसरा स्मार्टफोन जो, यारों-दोस्तों से यारी-दोस्ती बनाए रखने में मददगार होता है। यानी स्मार्टली बात करने में दूसरा वाला फोन मददगार था। मंडी हाउस स्टेशन पर मेट्रो में वो तेजी से घुसा। उसके साथ एक लड़की भी थी। लड़की थोड़ी मोटी थी। दोनों में अच्छी दोस्ती लग रही थी। उस औसत से लड़के का चेहरा पता नहीं किस गर्व भाव से भरा हुआ था। और लड़की के चेहरे पर आसक्ति भाव था। मेट्रो ने रफ्तार पकड़ी और गिरने से बचने के लिए लड़की ने लड़के का हाथ पकड़ लिया। फिर लड़की ने बोला अरे सॉरी। लड़के ने बेतकल्लुफी से लड़की का हाथ छूते हुए कहा। अरे इसमें क्या है गिरोगी तो पकड़ लिया। इसमें गलत क्या है। फिर खुद ही उसने चर्चा छेड़ दी। अब उसने उस दिन पकड़ लिया था। लेकिन, उसने नाखूनों से पकड़ लिया था। मुझे चोट आ गई थी। लड़की बोली अरे तुम उसके ब्वॉयफ्रेंड जो हो। पता नहीं पूछ रही थी या बता रही थी। लड़के को जैसे अपनी सारी प्रतिभा दिखाने के लिए इसी मौके का इंतजार था। उसके तमतमाते चेहरे से लगा जैसे किसी ने जख्म पर मिर्ची डाल दी हो। लड़का बोला थू करता है उसके जैसों पर मैं। मैं तो उसके जैसों को जूते की नोक पर रखता हूं। लड़की के चेहरे पर अभी भी आसक्ति भाव बरकरार था। वो लड़की को चमत्कृत कर देना चाहता था। और शायद इससे बेहतर मौका लड़के को दोबारा न मिलता। वो बोलता रहा। वो तो किसी लायक नहीं थी। मेरे आगे पीछे तो एक से एक लड़कियां घूमती रहती हैं। अचानक बात करने वाला साधारण वाला मोबाइल लड़के ने जेब में डाल लिया। और उतनी ही तेजी से स्मार्टफोन जेब से निकाला। जेब से स्मार्टफोन निकालकर व्हॉट्सएप में जल्दी जल्दी कुछ खोजने लगा। खोजकर एक सुंदर लड़की की तस्वीर निकाली। उस मोटी अपेक्षाकृत कम सुंदर अपने साथ वाली लड़की को वो तस्वीर दिखाई। अभी-अभी इसे छोड़ा है मैंने। फिर थोड़ा संतुलित हुआ। छोड़ा नहीं ये कह लो म्यूचुअल ब्रेकअप है। देख इसे कित्ती सुंदर है ये। और दिखाता हूं तुझे। वो ऐसे दूसरी तस्वीर खोजकर दिखा रहा था। जैसे कोई अपनी धन संपदा, हथियार या फिर शारीरिक बल दिखाता है। दूसरी तस्वीर दिखाकर उसने कहा। इससे पहले वाली ये है। थोड़ा गर्व के साथ चेहरा तमतमाते हुए उसने कहा कि ऐसी ढेरों लड़कियां मेरे आगे पीछे रही हैं। मुझे उम्मीद थी कि लड़की कुछ तो प्रतिवाद करेगी। कहीं तो बोलेगी कि लड़कियां भी तुमको जूते की नोक पर रखेंगी। कहीं तो कहेगी कि बहुत बोल चुके तुम। लेकिन, उस लड़की के चेहरे पर आसक्ति भाव बरकरार था। वही आसक्ति भाव लिए लड़की सेक्टर 15 पर लड़की उतर गई। 

No comments:

Post a Comment

एक देश, एक चुनाव से राजनीति सकारात्मक होगी

Harsh Vardhan Tripathi हर्ष वर्धन त्रिपाठी भारत की संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकार कर लिया था। इसीलिए इस द...