Saturday, August 16, 2014

1947 के बाद वाले प्रधानमंत्री का 15 अगस्त


ये किसी को उम्मीद नहीं रही होगी। दरअसल ये परंपरा भी नहीं रही है। इसीलिए कोई भी ये सोच नहीं रहा था। राष्ट्रीय अखबार, टीवी चैनल लंबे समय से ये कयास लगा रहे थे कि ढेर सारी नई योजनाओं का एलान लाल किले की प्राचीर से होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सरकार की छवि को बेहतर करने के लिए 15 अगस्त का इंतजार कर रहे हैं और सारी योजनाओं को 15 अगस्त पर ही लागू करके देश के लोगों का मन जीतने की योजना बना चुके हैं। लेकिन, ऐसा कुछ नहीं हुआ। प्रधानमंत्री ने ऐसा कोई भी बड़ा एलान 15 अगस्त को नहीं किया। बड़े एलान की बात करें तो एक बड़ा एलान हुआ कि योजना आयोग की जगह कोई नया आयोग बनेगा। हालांकि, उसका भी जिक्र एक-दो लाइनों में हुआ। उसकी भी असल रूपरेखा अभी जनता के सामने आना बाकी है। हां, ये जरूर पता चल गया है कि ये नया आयोग संभवत: राष्ट्रीय विकास एवं सुधार आयोग या इसी तरह का कुछ होगा। और साथ ही ये आयोग योजना आयोग की तरह पंचवर्षीय सरकारी योजनाओं से आगे जाएगा । आगे किस तरह जाएगा वो होता ये दिख रहा है कि इसमें निजी कंपनियों के लिए भी कुछ प्रस्तावित रूपरेखा तैयार होगी। राज्यों के काम करने के तरीके भी ये आयोग कुछ-कुछ तय करेगा। उम्मीद ये भी है कि नया आयोग पुराने आयोग की तरह सिर्फ इस मद में इतना खर्च वाली भूमिका में भी नहीं रहेगा। उम्मीद ये भी कि नया आयोग अगले 02-30-50 सालों की योजना भी बनाएगा और उसके पूरा होने की एक निश्चित समयसीमा भी तय करेगा। हालांकि, ये सारे मेरे निजी अनुमान हैं। तो फिर अगर ये भी लाल किले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नहीं बोला तो आखिर करीब 65 मिनट तक यानी एक घंटे से भी ज्यादा समय तक वो क्या बोलते रहे।

तीन दशक बाद भारत का प्रधानमंत्री बुलेटप्रूफ के शीशे के पीछे नहीं था। प्रधानमंत्री ने जन गण मन के साथ वंदेमातरम् को भी वही सम्मान दिया। प्रधानमंत्री मशीनी भाषण नहीं पढ़ रहे थे। प्रधानमंत्री किसी खास ड्रेस कोड से बंधे नहीं दिखे। लेकिन, क्या यही सब एक प्रधानमंत्री से हम उम्मीद कर रहे थे। वो भी ऐसे प्रधानमंत्री से जनभावनाओं के ज्वार पर सवार होकर लाल किले की प्राचीर पर पहुंचा है। दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस बात को अच्छे से समझते हैं। इसीलिए नरेंद्र मोदी अभी भी जनता क्या सोचती है, किस परेशानी में रहती है। सिर्फ उसी की बात की। मेरी नजर में लंबे अर्से बाद देश को एक ऐसा प्रधानमंत्री मिला है जो देश के लोगों का नैतिक बल बढ़ाने का काम सफलतापूर्वक कर रहा है। पिछले दस सालों में मनमोहन सिंह की अगुवाई में देश हर साल 15 अगस्त पर ग्लोबल इकोनॉमी, रिकवरी, ग्रोथ, दस प्रतिशत, FDI, FII, मार्केट, मंदी, इनक्लूसिव ग्रोथ सुन-सुनकर थक, पक चुका था। डॉक्टर मनमोहन सिंह अर्थशास्त्र के विद्वान रहे हैं। वित्त मंत्री रहे हैं। उससे पहले योजना आयोग, रिजर्व बैंक की अगुवाई कर चुके हैं। विश्व बैंक में भी रहे। दुनिया के जाने माने अर्थशास्त्रियों में रहे। देश को दस प्रतिशत की तरक्की की रफ्तार का सपना भी दिखाया। हर 15 अगस्त पर भारी-भारी पढ़ा हुआ भाषणा पढ़ा भी। इस बात को नरेंद्र मोदी अच्छे से समझ रहे थे। इसलिए उन्होंने वो बात कही जिसकी वजह से भारत के लोगों का मनोबल हर रोज टूट रहा है। अमेरिका, चीन, जापान के नागरिकों का नैतिक, मनोबल इतना ऊंचा होता है कि कई काम वहां की सरकारें इसी से कर ले जाती हैं। यही नैतिक, मनोबल ऊंचा करने की कोशिश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2014 को की है। इसीलिए इस 15 अगस्त 1947 के बाद जन्मे प्रधानमंत्री ने ऐसी बातें लाल किले से कीं जो, हर रोज की मुश्किल हैं। और उन्हें ठीक करना लोगों के ही वश की बात है, किसी सरकार या प्रधानमंत्री के नहीं। लेकिन, प्रधानमंत्री या सरकार कैसे काम करती हैं इससे जनता ठीक काम करेगी या नहीं करेगी ये जरूर तय होता है। नरेंद्र मोदी ने कहाकि राष्ट्रीय अखबारों, टीवी चैनलों में खबर चल रही है कि सरकारी कर्मचारी, अधिकारी समय से आने लगे हैं। लेकिन, मेरे लिए गर्व की बात नहीं हो सकती। ये शर्म की बात है कि हम इतने नीचे गिर चुके हैं कि हमारे देश में समय पर सरकारी कर्मचारियों का आना राष्ट्रीय खबर है। सोचिए कि हम हमारे देश में ही किस तरह हमारे अनुशासन हीन होने का मजाक बनाते हैं। कोई समय पर आया तो कभी सुनने में नहीं आता कि ये भारतीय समय पर आया। समय पर आया भारतीय, भारत में ही कहता है कि मैं तो ब्रिटिश टाइम का पाबंद हूं। ये देश का दुर्भाग्य नहीं हो तो और क्या है कि हम देर से आने पर कहते हैं कि अरे इंडियन स्टैंडर्ड टाइम का मतलब इतना देर तो होता ही है। इससे ज्यादा नैतिक पतन किसी देश का क्या हो सकता है। इसी नैतिक पतन को रोक लिया जाए तो सब ठीच हो जाए। फिर सवाल ये है कि इस नैतिक पतन को रोकने की कोशिश देश के किसी प्रधानमंत्री ने क्यों नहीं की। मैं बताता हूं क्यों नहीं की। इसके पहले के कितने प्रधानमंत्री खुद सुबह समय पर और नियमित तौर पर प्रधानमंत्री कार्यालय आते थे। अब मुझे इंदिरा गांधी, राजीव गांधी के समय का तो पता नहीं। हां, उसके बाद के सारे प्रधानमंत्री काम भले करते रहे हों लेकिन, उनके जीवन में अनुशासन कितना था। वो सब जानते हैं। नरेंद्र मोदी अगर खुद समय से दफ्तर आ रहे हैं तो जाहिर हैं सारे देश के लोगों को समय की पाबंदी बताने का हक उन्हें मिलता है। सरकारी कर्मचारी को जो अहंकार भाव होता है। उसे भी प्रधानमंत्री ने साफ किया। नरेंद्र मोदी ने सरकारी कर्मचारियों को देश का सेवक बताया। और कहाकि यही राष्ट्रीय चरित्र बनाने की जरूरत है। और शायद इसी को स्थापित करने के लिए नरेंद्र मोदी ने खुद को प्रधानमंत्री की जगह प्रधान सेवक के रूप में पेश किया। ऐसा नहीं है कि ये कोई नई बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह रहे थे। सच्चाई यही है कि विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री सब जनता के प्रतिनिधि, सेवक ही होते हैं। लेकिन, धीरे-धीरे ये बात सबके दिमाग से हटती गई। और शायद इसीलिए इस बेहद पुरानी और स्थापित बात को भी नए सिरे से बताने, समझाने की जरूरत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पड़ी।

Come Make In India ये भी नया है। Made In India से आगे की ये बात है। इसे हो सकता है विरोधी विदेशी कंपनियों के लिए आसान शर्तों पर दरवाजे खोलने से जोड़कर देखें। लेकिन, सच्चाई यही है कि दुनिया सामाजिक, राजनीतिक नजरिये को अपने अर्थशास्त्र से बदल देने वाले चीन ने यही तो किया है। फिनलैंड की कंपनी नोकिया भी अपनी असेंबलिंग चीन में ही कराती है। फायदा किसको हुआ। चीन को, चीन की तरक्की हुई। मिसाल बन गई। जब-जब रुपये की कमजोरी होती है तो हम भारतीय कहते हैं कि हमारी सरकार Import Driven Policy के बजाए Export Driven Policy क्यों नहीं बना पाती है। प्रधानमंत्री की 15 अगस्त की अपील उसी दिशा में बढ़ा हुआ एक कदम है। अगर हम एक-एक करके धीरे-धीरे ही सही आयात किए जाने वाले उत्पादों को खुद तैयार करने लगें तो खुद ही धीरे-धीरे निर्यात करने की भी स्थिति में भी आएंगे। Zero Defect Zero Effect भी इसी सोच को दिखाता है। गुणवत्ता वाले उत्पाद बनाने और पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचाने वाली नीति। इन सबके लिए कुछ सिर्फ अर्थशास्त्रियों या बाजार के जानकारों की ही समझ में आने वाले शब्दों के इस्तेमाल की जरूरत भी मोदी को नहीं पड़ी। ये जनता के प्रधानमंत्री वाली बात साबित करता है। लड़कियों के साथ किसी भी तरह के गलत व्यवहार, भ्रूण हत्या से लेकर बलात्कार तक, पर किसी प्रधानमंत्री ने इस तरह से लाल किले से बात क्यों नहीं की। क्या लाल किला गंभीर भाषण की जगह होती है। आजादी के दिन का प्रधानमंत्री का भाषण है तो वो बताए कि कौन सी समस्याएं हैं और देश को उससे आजादी कैसे मिल सकती है। वो नरेंद्र मोदी ने किया। बताया कि माता-पिताजी, लड़कियों को टोंकते हो, पहले लड़कों को टोंको। सब ठीक हो जाएगा। 15 अगस्त 1947 के बाद पैदा हुए प्रधानमंत्री की ये नजर थी। और उसी नजरिये से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को देखना, दिखाना चाहते हैं। बेहतर कोशिश है, सफल हुई तो देश बेहतर होगा। 

No comments:

Post a Comment

हिन्दू मंदिर, परंपराएं और महिलाएं निशाने पर क्यों

हर्ष वर्धन त्रिपाठी Harsh Vardhan Tripathi अभी सकट चौथ बीता। आस्थावान हिन्दू स्त्रियाँ अपनी संतानों के दीर्घायु होने के लिए निर्जला व्रत रखत...