अमेरिका में आंशिक तालाबंदी अमेरिका और अमेरिकियों का नया चरित्र दुनिया के सामने पेश कर रही है। ऐसे सरकारी कर्मचारी जिनको अस्थाई तौर पर छुट्टी के लिए कहा गया है। उनके सामने कितनी तेजी में संकट हो गया है। इसका अंदाजा इस उदाहरण से आसानी से लग जाएगा। ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत यावत जीवेत सुखम जीवेत का सिद्धांत भले ही चार्वाक दर्शन हो और भारतीयों के संदर्भ में जाना जाता हो लेकिन, सच्चाई ये है कि इस सिद्धांत को जीते सिर्फ अमेरिकी हैं। हफ्ते भर में ही बिना वेतन के छुट्टी पर भेजे गए कर्मचारियों के सामने संकट खड़ा हो गया है। बचत है नहीं देनदारियां ढेर सारी। अमेरिका के डिफेंस डिपार्टमेंट की डिफेंस एक्विजिशन यूनिवर्सिंटी में आईटी एक्सपर्ट के तौर पर काम करने वाली मेकाइला कोलमैन की मुश्किल इतनी बड़ी हो गई है कि उन्हें अपने रोज के खर्चों के लिए अपने पुराने सामान बेचने की नौबत आ गई है। और ये सामान क्या हैं ये सुनकर आपको हंसी आ सकती है। मेकाइला ने अपने बच्चों के कुछ ऐसे सामानों को बेचने का विज्ञापन दिया है जिसकी उन्हें आगे जरूरत नहीं लगती। विज्ञापन में मेकाइला ने साफ लिखा है कि कीमतों कम ज्यादा हो सकती हैं लेकिन, जो सचमुच खरीदना चाहते हैं वही संपर्क करें क्योंकि उन्हें खर्च चलाने के लिए रकम की सख्त जरूरत है। जिन सामानों का विज्ञापन दिया गया है उसकी अनुमानित कीमत करीब 300 डॉलर बताई गई है। मेकाइला के पति भी काम करते हैं लेकिन, मेकाइला और उनके पति ने सारी बचत अपने उस घर को ठीक कराने में हाल ही लगा दी जिसे वो बेचना चाहते हैं। मेकाइला और उनके पति को अंदाजा ही नहीं था कि एक राजनीतिक तूफान आएगा और उनकी जिंदगी में इस तरह का संकट खड़ा हो जाएगा। डेमोक्रैट और रिपब्लिकन के बीच की जंग अमेरिकियों के लिए खतरनाक संकट बनती दिख रही है और धीरे-धीरे दुनिया के लिए भी।
ये
अंदाजा दुनिया को भी नहीं था कि अमेरिका ऐसे बंद भी हो सकता है। चौंकाने वाली बात
है कि ये कैसे हो सकता है। दुनिया जिस एक देश के इशारे पर चलती है। जिस एक देश के
बारे में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ये सोचते हैं कि उसके मुखिया से शिकायत लगाकर
भारतीय प्रधानमंत्री अपने पक्ष की बात मजबूत कर लेंगे। जिस एक देश की अपनी
समस्याएं भले खत्म न हों लेकिन, कश्मीर सुलझाने के लिए वो आगे आ जाता है। जिस देश
के बैंकिंग सिस्टम के दिवालियेपन से दुनिया एक बार बर्बाद हो चुकी है और अब बड़ी
मुश्किल से पटरी पर आती दिख रही थी। जिस अमेरिका के सुधरने से भारत जैसा देश भी
अपनी अर्थव्यवस्था सुधरने का अनुमान लगाए बैठा है। उस अमेरिका में ताला कैसे लग
सकता है। लेकिन, सच्चाई यही है कि वहां ताला लग गया है। अमेरिका को ताला लगने का
मतलब क्या हुआ, पहले तो ये समझना जरूरी है। दरअसल अमेरिका के 8 लाख फेडरल कर्मचारी
(भारतीय संदर्भ में समझें तो केंद्रीय सरकार के कर्मचारी) छुट्टी पर भेज दिए गए
हैं। अमेरिकी फेडरल के कुल करीब तैंतीस लाख कर्मचारी हैं। और उनमें से ये आठ लाख
कर्मचारी एक अक्टूबर से तब तक तनख्वाह नहीं पाएंगे। जब तक किसी तरह अमेरिका की
इज्जत बचाने के लिए कोई समझौता रिपब्लिकन और डेमोक्रैट के बीच हो जाए तो बात अलग। इसकी
वजह है अमेरिकी सीनेट और कांग्रेस में प्रतिनिधित्व करने वाले दोनों दलों
डेमोक्रैट्स और रिपब्लिकन के बीच चल रही तनातनी।
वैसे
तो अमेरिका जिस राह पर था उसका इस हाल में पहुंचना तय था। लेकिन, अभी जो अमेरिकी
बंदी की वजह बनी है वो अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की निजी इच्छा है। निजी
इच्छा मतलब ओबामा ने 2010 में एक हेल्थकेयर कार्यक्रम लागू किया था जिसे एक
अक्टूबर से लागू कर दिया गया है। सारी लड़ाई उसी की है। इसके लिए फंड का भी
प्रावधान कर दिया है वहां की सीनेट (संसद) ने। अमेरिका के मुख्य सदन में इस बिल को
अफोर्डेबल हेल्थकेयर फॉर अमेरिका एक्ट के नाम से जाना जाता है। यही कानून सीनेट
में पेशेंट प्रोटेक्शन और अफोर्डेबल एक्ट के नाम से पास हुआ। हाउस और सीनेट दोनों
के अपने अलग अनुमान हैं इस बिल को लागू करने में आने वाले खर्च को लेकर। हाउस
मानता है कि इसे लागू करने में एक हजार बिलियन डॉलर से कुछ ज्यादा की रकम खर्च
होगी जबकि, सीनेट का अनुमान इस पर करीब साढ़े आठ सौ बिलियन डॉलर खर्च होने का है।
इस कानून के मुताबिक, हर अमेरिकी को स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए बीमा करने में आसानी
की बात है। वैसे अमेरिका में बीमा सुरक्षा करीब पचासी प्रतिशत लोगों के पास पहले
से है। भारत जैसा नहीं कि खाद्य सुरक्षा योजना से पचास करोड़ गरीबों को फायदा
मिलेगा या 82 करोड़ गरीबों को यही तय नहीं हो पा रहा है। लेकिन, इस नए कानून के
बाद सभी अमेरिकियों को बीमा सुरक्षा देने की अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की
योजना है। यहं से रिपब्लिकन का विरोध शुरू हो जाता है। रिपब्लिकन का कहना है कि इस
योजना पर होने वाले खर्च से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को झटका लगेगा साथ ही लोगों पर
भारी टैक्स थोपा जाएगा। इसीलिए रिपब्लिकन इस बिल को कम से कम एक साल के लिए टालने
की बात कर रहे हैं। जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का साफ कहना है कि ये पूरी
तरह से राजनीति है। ओबामा का कहना है कि ये अमेरिका के इतिहास में पहली बार होगा
जब रिपब्लिकन इस बात पर अड़े हैं कि मैं करोड़ो लोगों के हित वाला कानून को लागू न
करूं। ऐसा करने पर वो अमेरिकी सरकार को बंद करने की धमकी दे रहे हैं। अगर ऐसा हुआ
तो अमेरिका अपनी देनदारी नहीं चुका पाएगा।
अब
अगर ओबामा के इस हेल्थकेयर बिल के बारे में उदाहरण के साथ समझना है तो इसे आप भारत
के खाद्य सुरक्षा बिल की तरह से समझ सकते हैं। भारत का चालू खाते का घाटा लगातार
बढ़ रहा है इसके लिए सरकार ने पेट्रोलियम प्रोडक्ट की सब्सिडी धीरे-धीरे खत्म करने
की योजना बनाई है लेकिन, सवा लाख करोड़ रुपये के खर्च वाली खाद्य सुरक्षा योजना को
आनन फानन में पहले अध्यादेश और फिर कानून बनाकर संसद से पास कर दिया गया। चालू
खाते का घाटा पहले तिमाही यानी अप्रैल से जून के दौरान जीडीपी के 4.9% को पार कर गया है। लेकिन, सोनिया गांधी की
निजी इच्छा वाली खाद्य सुरक्षा योजना लागू हो गई है। हालांकि, वो धीरे-धीरे लागू
होगी। चुनावी राज्यों यानी दिल्ली, राजस्थान से इसकी शुरुआत हुई है और 2014 के
चुनाव जीतने भर की वोट सुरक्षा योजना बन गई है। ठीक इसी तरह बराक ओबामा ने
अमेरिकियों के लिए हेल्थकेयर योजना शुरू की है। अब अमेरिका पहले ही कर्ज के बोझ
में बुरी तरह डूबा हुआ है। उस पर ये हेल्थकेयर योजना का खर्च मुसीबत बन गया है।
इससे पहले भी कर्ज की सीमा बढ़ाने को लेकर अमेरिकी अर्थव्यवस्था खतरनाक संकट से
जूझ चुकी है। अमेरिकी कांग्रेस ने अभी कर्ज लेने की अधिकतम सीमा $16.7 ट्रिलियन तय कर रखी है। अब अगर ये सीमा नहीं बढ़ाई जाती है तो
सरकार खर्च चलाने के लिए भी रकम का जुगाड़ मुश्किल से कर पाएगी। क्योंकि, ये सीमा
17 अक्टूबर तक परी हो जाएगी। इसका सीधा सा मतलब होगा कि अगर सीनेट ने अमेरिका के
कर्ज लेने की सीमा नहीं बढ़ाई तो अमेरिका के लिए देनदारी चुकाना भारी पड़ने लगेगा।
और ये बड़े संकट की शुरुआत होगी। अमेरिका पूरी तरह से करीब एक दशक से उधार की
अर्थव्यवस्था पर चल रहा है। दुनिया भर की सरकारें कर्ज लेती हैं लेकिन, अमेरिका का
कर्ज संकट कितना बड़ा है इसको समझना जरूरी है। भारत की सरकार का कर्ज उसके जीडीपी
का 67% है। मतलब 100 रुपये अगर भारत की जीडीपी मान लें तो 67 रुपये का
कर्ज भारत पर है। लेकिन, जरा अमेरिका की स्थिति समझिए। अमेरिका पर कर्ज उसकी
जीडीपी का 104% है। मतलब अगर अमेरिकी
जीडीपी- हिंदी में अमेरिका की पूरी हैसियत- 100 डॉलर मानें तो उस पर कर्ज 104 डॉलर
से ज्यादा है। ये अमेरिका की अर्थव्यवस्था है। इस अर्थव्यवस्था में चुनाव के पहले
ओबामा हर अमेरिकी को बीमा सुरक्षा आसान प्रीमियम और शर्तों पर देना चाहते हैं और
रिपब्लिकन इससे किसी भी कीमत पर डेमोक्रैट को चुनावी फायदा नहीं होने देना चाहते।
यही पूरी लड़ाई है और अमेरिकी शटडाउन के संकट की वजह है। ये लंबी खिंचे या जल्दी
खत्म हो जाए। इससे दुनिया को एक चेतावनी जरूर है कि उसे विकल्प खोजना होगा। डॉलर
भुगतान संतुलन और उधारी की अर्थव्यवस्था पर चल रहे अमेरिका पर अब भरोसा दुनिया के
लिए खतरनाक हो सकता है। वीजा मिलना इस समय थोड़ा मुश्किल है लेकिन, उधारी पर
दादागीरी दिखाने वाले अमेरिका की असलियत देखनी हो तो इसी समय अमेरिका जाइए। नेशनल
पार्क तक में घूमने का मौका नहीं मिलेगा। क्योंकि, नेशनल पार्क के कर्मचारी भी
उन्हीं आठ लाख कर्मचारियों में से हैं जिन्हें अस्थाई छुट्टी गई है। इससे हर रोज
अमेरिका को 30 लाख डॉलर का नुकसान हो रहा है। फिलहाल अमेरिका बंद है, डेमोक्रैट,
रिपब्लिकन लड़ रहे हैं और दुनिया दहशत में है।
बहुत अच्छे से आपने सारी स्थिति को समझया है... बहुत ही जानकारी देने वाला आलेख है
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteशुक्रिया
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