Tuesday, October 29, 2013

कांग्रेस की राजनीति को ध्वस्त करते मोदी


पटना के गांधी मैदान की रैली का सबको इंतजार था। इंतजार इस बात का था कि नरेंद्र मोदी इस रैली में आएंगे तो कितनी भीड़ जुटेगी। बिहारी नीतीश कुमार के गृह मैदान पर गुजराती नरेंद्र मोदी चलेगा या नहीं चलेगा। इंतजार इस बात का भी था कि नरेंद्र मोदी बोलेंगे क्या। क्या नरेंद्र मोदी अपने स्थापित हिंदू वोट बैंक को और पक्का करने वाली बात बोलेंगे। नरेंद्र मोदी की इस रैली के इंतजार में लाखों लोग भी थे। लेकिन, नरेंद्र मोदी की पटना के गांधी मैदान की रैली ने सारे पुराने इंतजार को ध्वस्त किया। दरअसल ये कम ही हो पाता है कि जब कोई अपने शीर्ष पर हो तो स्थिर दिमाग से सारे फैसले ले सके। लेकिन, नरेंद्र मोदी ने इस अवधारणा को पूरी तरह से ध्वस्त किया है। हिंदू हृदय सम्राट की छवि मिलने के बाद बीजेपी के कई बड़े नेता कैसे बैराने लगते थे। ये इस देश ने लंबे समय तक देखा है। लेकिन, नरेंद्र मोदी ने एजेंडा बदल दिया है। नरेद्र मोदी को हिंदू हृदय सम्राट की उपाधि से राजनीतिक तौर पर नवाजा गया तो उन्होंने कभी उसे नकारा नहीं। लेकिन, धीरे-धीरे अपने एजेंडे पर वो पहले हिंदुओं को और फिर मुसलमानों को भी ला रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी के इससे पहले के जितने भी हिंदू हृदय सम्राट की छवि वाले नेता रहे। वो ज्यादातर वही करते रहे जिसकी माहिर कांग्रेस रही है। यानी कांग्रेस मुसलमानों को ये डराकर कि संघ से नियंत्रित होने वाली बीजेपी सत्ता में आई तो आपका बहुत बुरा होगा जो वोट लेती थी। वही काम बीजेपी वाले हिंदू हृदय सम्राट करते थे कि मुसलमानों को तुष्टीकरण के नाम पर सब दे दिया जा रहा है। इसलिए आप मुसलमानों के खिलाफ खड़े हो तभी आपको पूरा हक मिल पाएगा। यानी कांग्रेस अल्पसंख्यकों को डराकर उनका पूरा और तटस्थ हिंदुओं का वोट लेने का खेल खेल रही थी और उसकी प्रतिक्रिया में बीजेपी के हिंदू हृदय सम्राट टाइप नेता बहुसंख्यक हिंदुओं के वोट के चक्कर में खेलने लगते थे। लेकिन, इस खेल की माहिर कांग्रेस इसलिए भी थी कि ज्यादातर समय सत्ता उसके पास थी तो सत्ता के लिहाज से तुष्टीकरण या जाहिर तौर पर किसी का भला बुरा करने की क्षमता सत्ताधारी पार्टी यानी कांग्रेस के ही पास थी।

नरेंद्र मोदी जब हिंदू हृदय सम्राट बने तो उनके सामने की चुनौती ज्यादा बड़ी थी। क्योंकि, उनके ऊपर 2002 का ऐसा दाग था जिस पर कोई आंख मूंदने को तैयार नहीं था न देश, न दुनिया। नरेंद्र मोदी ने इस दाग को छिपाया नहीं लेकिन, एक बात जो नरेंद्र मोदी ने बहुत सावधानी से मजबूत की कि ये दाग अब बढ़ेगा नहीं, न दोबारा लगेगा। ये बात मजबूत इससे नहीं हुई कि उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी की तरह बिना सोचे समझे जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष बताकर संघ की भी दुश्मनी ले ली और अपनी लोकप्रियता भी खो बैठते। उन्होंने सद्भावना उपवास में भी टोपी नहीं पहनी। वो टोपी जिस पर उनकी खूब खिंचाई हुई और फिर से ये प्रचारित करने की कोशिश की गई कि नरेंद्र मोदी मुसलमान विरोधी हैं। जिस देश में प्रतीक और प्रतीक और प्रतीकों की राजनीति से इतने साल से राजनीति चल रही हो वहां ऐसे प्रतीक की राजनीति में बिना फंसे ये नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व का ही कमाल था। नरेंद्र मोदी ने सबके भले के काम की बात की। लेकिन, कभी हिंदू या मुसलमान के हित की अलग बात नहीं की। नरेंद्र मोदी ने पूरा निशाना कांग्रेस और यूपीए की सरकार पर ही रखा। यहां तक कि जब तक वो बीजेपी के घोषित प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं हुए तब तक पूरी तरह से 6 करोड़ गुजरातियों की ही बात करते रहे। यानी अपनी जो मिली जमीन है उसी को और बेहतर करते रहे। उसके बाद जब उन्हें भारतीय जनता पार्टी ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया तो उन्होंने सवा सौ करोड़ भारतीयों की सेवा की बात करनी मजबूती से की।

नरेंद्र मोदी ने धीरे-धीरे कब हिंदू हृदय सम्राट से विकास पुरुष की उपाधि धारण कर ली। ये लोगों को अहसास तो हुआ लेकिन, ये हुआ कैसे ये पता नहीं चला। नरेंद्र मोदी की गुजरात के सचमुच के मौलाना गुलाम मोहम्मद वास्तनवी ने तारीफ की तो पहली बार लगा कि मुसलमानों को ये अहसास होने लगा है कि नरेंद्र मोदी कोई हत्यारा नहीं एक राज्य का शानदार काम करने वाला मुख्यमंत्री है। हालांकि, वास्तनवी की उस आवाज को नक्कारखाने में तूती की आवाज जैसा ही माना गया और मुसलमानों में वास्तनवी के ही खिलाफ आवाज उठी। जबकि, वास्तनवी ऐसे मौलाना हैं जो सिर्फ प्रतीकों के मौलाना नहीं हैं। यानी दाढ़ी बढ़ाकर और कुछ अजीब फतवे जारी करके मौलाना नहीं बने हैं। वास्तनवी ने गुजरात और महाराष्ट्र के बड़े हिस्से में मुसलमानों की तालीमी हालत दुरुस्त करने का काम किया है। वो हर रोज मोदी के काम को देख रहे थे। या कहें कि मोदी की सरकार से हर रोज प्रभावित हो रहे थे। इसलिए मौलाना वास्तनवी की बात बड़ी महत्वपूर्ण थी। लेकिन, कांग्रेस और दूसरी मुसलमानों को डराकर वोट जुटाने वाली पार्टियों के लिए ये बेहद खतरनाक था तो इस धारणा को ध्वस्त करने की कोशिश हुई। खुद वास्तनवी को उसका खामियाजा भुगतना पड़ा। लेकिन, वास्तनवी का बयान मोदी के विकास पुरुष की छवि को मजबूत करने का शानदार आधार बन चुका था। मोदी विकास, गवर्नेंस के अलावा कोई बात नही करते। या तो गुजरात और बीजेपी शासित राज्यों के विकास की बात करते हैं या फिर यूपीए की केंद्र की सरकार के विकास न होने की बात। और सबसे बड़ी तथ्यों के साथ इस तरह की बात करने वाले मोदी अकेले नेता बन रहे थे। हालांकि, कई बार उनके तथ्य विवाद में भी आए। लेकिन, मोदी हर बार उससे आगे बढ़े।

फिर नरेंद्र मोदी ने एक और बयान दिया जिसे देकर यूपीए के मंत्री जयराम रमेश फंस चुके थे। नरेंद्र मोदी ने कहा कि उनका ये कहना बड़ा मुश्किल था लेकिन, वो ये मानते हैं कि पहले शौचालय फिर देवालय। सचमुच ये कहने क लिए बड़ा साहस होना चाहिए। क्योंकि, इसे सीधे हिंदुओं की आस्था से जोड़कर विश्व हिंदू परिषद और हिंदूवादी संगठन जयराम रमेश की ऐसी तैसी कर चुके थे। एक और बात जिसकी चर्चा जरूरी है। नरेंद्र मोदी ने एक कार्यक्रम में ये बताया कि किस तरह से अहमदाबाद नगर निगम चुनाव से पहले उन्होंने अतिक्रमण करने वाले मंदिरों, मस्जिदों या किसी भी अतिक्रमण को हटाने का जब अभियान चलाने को मंजूरी दी तो उन्हें अपनी पार्टी में तगड़ा विरोध झेलना पड़ा। लेकिन, अतिक्रमण हटने से हिंदू मुसलमान सब खुश थे। यहां भी विकास पुरुष की उनकी छवि मजबूत हुई। फिर महमूद मदनी और कल्बे सादिक के बयानों ने इतना तो तय कर दिया कि अब तक बीजेपी नहीं चलेगी और उसके खिलाफ किसी को भी बिना सोचे वोट करने वाले मुसलमानों को ये सोचने पर मजबूर कर दिया था कि बीजेपी नहीं चलेगी ये तो ठीक है लेकिन, बिना सोचे किसी को वोट क्यों दें और फिर उससे आगे बात ये भी मुसलमानों के दिमाग के किसी कोने में आने लगा कि आखिर बीजेपी या नरेंद्र मोदी का विरोध बिना सोचे समझे क्यों करना चाहिए। यानी अब तक बिना सोचे समझे वोट बैंक की तरह वोट करने वाला मुसलमान एक समय के हिंदू हृदय सम्राट की वजह से सोचने लगा था।
बिहार में तो पूरी तरह से मुसलमान बीजेपी और नरेंद्र मोदी के दो धुर विरोधियों के साथ है। एक लालू प्रसाद यादव और दूसरा नीतीश कुमार। लेकिन, पटना के गांधी मैदान की रैली में विकास पुरुष नरेंद्र मोदी ने हिंदू मुसलमान अलग करके नहीं देखा। वो भी तब जब आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिदीन रैली को पूरी तरह से बिगाड़ने के लिए एक के बाद एक धमाके करा रहा था। विकास पुरुष नरेंद्र मोदी बोले हिंदुओं मुसलमानों आपस में मत लड़ो। गरीबी से लड़ो। पटना का गांधी मैदान जयप्रकाश नारायण की क्रांति की सबसे बड़ी बुनियाद बना था। अब नरेंद्र मोदी ने देश की राजनीति में मुसलमानों-हिंदुओं के राजनीतिक समीकरण को नए सिरे से परिभाषित करने की जो कोशिश लंबे समय से की है। उसको भी पक्का करने का काम गांधी मैदान में किया है। हिंदुओं मुसलमानों को गरीबी से लड़ने के लिए साथ आने की अपील की है। आजादी के लिए भी हिंदू मुसलमान साथ लड़े थे। अगर ये दोनों साथ आ जाएं तो दुनिया भारत से लड़ने में सोचे। मैं लंबे समय से ये मानता रहा हूं कि अगर मुसलमान बीजेपी के साथ आए तो देश की राजनीति बदलेगी। नरेंद्र मोदी वो राजनीति बदलते दिख रहे हैं।

6 comments:

  1. शुक्रिया

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  2. लंबे समय बाद फेसबुक के जरिए बतंगड़ पर विजिट करने का मौका मिला। अच्छा विश्लेषण, पढ़ कर अच्छा लगा।

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  3. कोई ताजा हवा चली है अभी...।

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  4. निश्चित ही मोदी दूरदर्शी नेता हैं, जिसप्रकार पटेल ने 565 रियासतों को एक किया था उसी प्रकार मोदी भारतीय जनमानस को एक करने में सफल होंगे।

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  5. किसका तगड़ी कमल है, किसका तगड़ा हाथ।
    अपने ढंग से ठेलते, अपनी-अपनी बात।।

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